आख़िर किसे समझाएँ..? – रश्मि प्रकाश   : hindi stories with moral

hindi stories with moral : “जब मैंने कोई गलती नहीं की तो क्यों बर्दाश्त करूँ … जब देखो सब मुझे ही सुनाने चले आते हैं जैसे मेरी ही गलती हो।”तमतमाती हुई शानू पैर पटकती अपने कमरे में जाकर बैठ कर रोने लगी 

“ बहुत सिर चढ़ा रखा है बेटी को…अरे ऐसा क्या ही कह दिया…अब शुभ ये सब काम करता अच्छा लगता है क्या…जरा सा पानी पोंछने क्या कह दिया ये तो ग़ुस्सा दिखा ने लगी है ।” मनोरमा जी अपनी बहू से पोती की बात बताते हुए बोली 

“ मैं पोंछ देती हूँ ।” कहकर रजनी फ़र्श पर गिरा पानी पोंछने लगी 

ये सब निपटा कर वो बेटी के पास गई जो अभी भी रो रही थी…रजनी समझ रही थी ये ग़ुस्सा सिर्फ़ पानी गिरने को लेकर नहीं है वजह तो कुछ और ही है पर इसके लिए वो खुद भी कभी ना हिम्मत दिखा सकी ना बेटी को सपोर्ट कर पाई

रजनी ने जैसे ही शानू के कंधे पर हाथ रखा ही तो वो हाथ छिटकते हुए बोली,” तुम भी तो औरत हो ना.. तुम्हारी सोच भी वैसी ही रहेगी … मुझे समझाने की कोशिश मत करना।” 

रजनी उस वक्त कुछ नहीं बोली पर अब उसे भी लग रहा था अगर शुभ पर लगाम ना कसी गई तो वो उसके बिगड़ते देर ना लगेगी ।

रात को वो अपने पति से इस बारे में बात करना चाही तो उन्होंने भी अपनी माँ की तरह ही कह दिया,” अरे लड़का है ये सब काम उसके नहीं है..और शानू को समझा दो ये दोस्त की शादी में जाने की ज़िद्द बेकार है अकेली लड़की को हम नहीं भेज सकते कहीं कुछ ऊँच नीच हो गया तो कहीं मुँह दिखाने लायक़ नहीं रहेंगे और हाँ शुभ जो दोस्तों के साथ ट्रैकिंग पर जाने वाला था उसका क्या हुआ… हो गई उसकी तैयारी?”

रजनी ने हाँ में सिर हिला दिया पर आज एक माँ खुद को मज़बूत करने की कोशिश कर रही थी ….अब पति और सास से कैसे निपटना है ये मन ही मन सोच रही थी ।

दो दिन बाद शानू की पक्की दोस्त की दीदी की शादी थी उसकी दोस्त ने बहुत मनाया था उसकी मम्मी को और दादी से भी कहा था …जिसे दादी ने एक सिरे से नकार दिया था…उसकी दोस्त ने इतना तक कह दिया आप मेरा भरोसा कर के भेज दीजिए…दीदी के विदा होते मैं खुद इसे यहाँ पहुँचा जाऊँगी पर किसी ने ना सुनी… रजनी ने उससे बस इतना कहा एक बार इसके पापा से बात करके देखूँगी … पर सब के नकारात्मक रवैये से शानू चिढ़ गई थी और कहीं ना कहीं शुभ को मिल रही छूट से वो ग़ुस्से से भरी हुई थी ।

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“ माँ मेरे कपड़े रख दिए हैं?” शुभ ने जाने से एक दिन पहले रजनी से पूछा 

“ हाँ रख दिए है पर ये बता कितने लड़के लड़कियाँ जा रहे हो इस ट्रैकिंग पर ..!” रजनी उसके कपड़े देते हुए बोली 

“ चार लड़कियाँ और छह लड़के है।” शुभ ने आराम से कहा 

“ फिर बेटा तुम इस ट्रैकिंग पर नहीं जा सकते हो।” रजनी उसके कपड़े लेकर वापस अलमारी में रखने लगी

“ पर क्यों माँ?” आश्चर्य से शुभ ने पूछा 

“ वो क्या है ना बेटा …उस दिन जब शानू शादी में जाने की बात कर रही थी एक तुम भी थे जो ये कह रहे थे.. ‘आजकल देर रात तक लड़कियाँ बाहर सुरक्षित नहीं है देखती नहीं कैसे कैसे हादसे होते रहते हैं … तू कहीं नहीं जाएगी समझी…’….तो बेटा तुम जैसे ही लड़के होते होंगे ना जो ऐसे घूमने फिरने जाते हैं और तो और ट्रैकिंग पर …आउटिंग पर और फिर किसी लड़की के साथ कुछ ग़लत हुआ तो लड़की ही क़सूरवार क्यों… उसके साथ हादसा करने वाला कोई लड़का ही होगा ना .. तो बेटा जब मेरी बेटी को सुरक्षित रखना है तो मैं दूसरों की बेटियों की फ़िक्र कैसे ना करूँ?” रजनी ने सवालिया नज़रों से शुभ की ओर देखा

“ अरे पर मैंने कोई गलती तो की नहीं ना फिर क्यों नहीं जाऊँ… मैं क्यों बर्दाश्त करूँ ये सब?” शुभ ने कहा 

“ बेटा गलती तो आज तक कुछ भी शानू ने भी नहीं की….. पर वो सब बर्दाश्त कर रही है ना…. लड़की है बस इसलिए?” रजनी ने सवाल किया 

अब शुभ माँ की बात पर चुप हो गया…उसे माँ के कहने का मक़सद समझ आ रहा था 

“ शानू को आज शादी में जाना था ना..?” शुभ ने पूछा 

“ हाँ पर क्या फ़ायदा वो तो जा नहीं सकती तेरे जैसी छूट उसे थोड़ी ना मिलती है ।” रजनी कहते हुए कमरे से चली गई 

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“ शानू शाम को तैयार हो जाना तुझे तेरी दोस्त के यहाँ शादी पर ले जाऊँगा ।” शुभ ने जाकर अपनी बहन से कहा

“ तू और मुझे ले जाएगा… दादी और पापा का चमचा… जा तू अपनी तैयारी कर कल शाम को निकलना है ना तुझे।” गुस्से और आश्चर्यमिश्रित स्वर में शानू ने बोला

“ कह रहा हूँ ना तू जाने को तैयार रहना ।” शुभ कह कर कमरे से निकल गया 

शाम को शुभ ज़बरदस्ती शानू को चलने को तैयार किया और जब निकलने लगा तो दादी और पापा के सवाल और क्रोधित नज़रों को देख शानू एक बार फिर कमरे की ओर जाने लगी …

शुभ ने उसका हाथ पकड़ कर रोकते हुए दादी और पापा से बोला,” शानू को कल सुबह जाकर ले आऊँगा… उसको जाने का मन है जाने दीजिए जैसे आप मुझे इजाज़त दे सकते तो उसे क्यों नहीं… जब एक लड़के पर भरोसा कर के आप लोग उसे परमिशन दे सकते हैं तो अपनी बेटी पर भी कर के देखिए,अगर आज शानू नहीं गई तो कल को जब मैं जाऊँगा और उधर कुछ हादसा होगा तो सब मुझे भी क़सूरवार ठहरा सकते हैं….ऐसे में मुझे ऐसा महसूस होगा कि जब मैं अपनी बहन का ही साथ और सम्मान नहीं कर सकता तो किसी और लड़की का साथ और सम्मान कैसे कर पाऊँगा…ये शुरूआत पहले ही करनी चाहिए थी पर अभी भी देर नहीं हुई है … मैं इसे छोड़ कर आता हूँ ।” कहकर शुभ घर से निकल गया 

“ लो अब ये लड़का भी हाथ से गया ।” कहते हुए दादी ने अपना सिर पीट लिया 

और रजनी एक तरफ़ खड़ी होकर यही सोच रही थी जब आप किसी बड़े को अपनी बात नहीं समझा पाओ तो कभी कभी यंग जनरेशन से भी एक उम्मीद की जा सकती हैं …आज के माहौल को वो भी तो देख समझ रहे हैं…शायद आपकी बात समझ पाये….हमेशा घर की लड़कियों को बंदिश में रखना सही नहीं है… हादसे हो जाते हैं कब कैसे ये तो हम भी नहीं जानते…पर इसके लिए हम घर में बंद होकर तो नहीं रहते हैं ।

मेरी रचना से किसी को आपत्ति हो तो माफ़ करें ।

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

#वाक्य कहानी प्रतियोगिता 

#जब मैंने कोई गलती नहीं की तो क्यों बर्दाश्त करूँ..

1 thought on “आख़िर किसे समझाएँ..? – रश्मि प्रकाश   : hindi stories with moral”

  1. कोई भी समस्या बिना सोचे समझे और तर्क बिना नहीं सुलझती। धैर्य से बात रखी जाए और उसके पक्ष और विपक्ष को सही तौर पर मनन करने के लिए रखा जाता है तब सही निर्णय निकल आता है।
    किशोरावस्था में बच्चे भी सही बात का चुनाव कर लेते हैं बस बड़े उनसे सही परिप्रेक्ष्य में बात तो कर सकें। यहां इसका श्रेय
    बच्चों की मां को जाता है।

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