विमला की बेटी की शादी होनी थी, वो बहुत खुश भी थी। वह सभी रिश्तेदारों को फोन करके बता रही थी, हमने भी अपनी बेटी की शादी तय कर दी है। जो लोग ताने दे रहे थे, उनके मुँह पर भी ताला लग गया,उसका इशारा मायके पक्ष की ओर था….लेकिन मायके में मनमुटाव के चलते उसने शादी तय करते समय अपने माता पिता ,भैया भाभी और बहन को नहीं बुलाया था।
विमला की बेटी की सगाई होनी थी,, तो वह फोन करके छोटी बहन को पूछ रही थी, क्या तुम्हारी टिकट करा ले। पूना से सगाई होनी है। इतना सुनते ही उसकी छोटी बहन सरला को बहुत गुस्सा आया तो उसने कहा
-” दीदी तुम्हें तो हमको चलने के लिए मनाना चाहिए और सगी बहन होकर केवल पूछ रही हो! ” तब विमला कहती – तुम हमसे गुस्सा थी, इसलिए तुमसे पूछा और सोचा कि तुम से जान ले। तब सरला बोली…. अच्छा आपको ये लगा हम नहीं जाने वाले है, तो औपचारिक होकर भी पूछने की भी जरूरत नही है।
तब विमला कहने लगी- हम तुमसे कन्फर्म कर रहे हैं ,नहीं तो टिकट बुक करा ले, और फालतू पैसे ही लग जाए। तब सरला ने कहा – दीदी तुम अपने पैसे बचा लो, पर हमें तुमसे ये उम्मीद नहीं थी। हर भाई बहनों में तनाव और लड़ाई होती है, पर तुम तो बिलकुल ही अलग निकली।
क्या खून के रिश्ते ऐसे होते हैं!!!!
अब बड़ी बहन विमला कहां सुनने वाली थी। तब वो कहती – देखो सरला पिछले बार फोन पर तुमने इतनी बातें सुनाई थी। इसलिए हमने भी अपना दिल पक्का कर लिया। इतना सुनते ही सरला ने कहा- दीदी आपने मन पक्का कर लिया, तो अब हम नहीं आने वाले, ठीक है….. फोन करने के लिए आभार व्यंग्यात्मक लहजे में बोल कर फोन रख दिया…..
इस तरह उनकी बात खत्म होती है
दो चार दिन बाद उसकी भाभी नीलम का फोन आता है, तब बातों ही बातों में सरला बताती है विमला दीदी का फोन आया था और वो हमसे पूछ रही थी टिकट करा ले कि नहीं…..
हमें तो गुस्सा भरी थी, एक तो दूसरे के सामने हमारा मजाक बनाए और हम कुछ न कहे ये भी कोई बात है!!तब नीलम भाभी कहती- तुम से पूछ ही लिया कि टिकट करा ले कि नहीं ,यहां तो कोई खबर तक न दी। क्या ऐसी होती है घर की बेटी…..
इधर पापा ने क्या कुछ नहीं किया। एक तो विमला दीदी ने घर में दोनों भाइयों में फूट करा दी, बडे़ भाई साहब को अपने तरफ कर लिया।
इधर पापा कितने व्याकुल और बैचेन से है, हमसे तो पापा की हालत नही देखी जा रही है….
क्या करे भाभी विमला दीदी का स्वभाव नहीं बदल सकते, वो तो मायके में हिस्सा चाहती है। और वे ये नहीं चाहती कि भाइयों में आपसी प्रेम बना रहे।
खैर….
अब देखो शादी में हमारी जरुरत पड़ती है कि नहीं नीलम भाभी कहकर फोन रख देती है।
धीरे धीरे समय बीतता है…..
कुछ दिन बाद विमला की बेटी की शादी की तारीख भी नजदीक आ जाती है।
एक दिन सरला मौसी की बेटी को मिलती है, तब वह बताती है, हमारे पास शादी का इनविटेशन आ गया है, विमला दीदी ने हमें हाट्सएप कर दिया है और फोन पर बोल रही हैं,
सबको आना है, इस तरह हमे बुलाया है, पता है विमला दीदी ने मायके पक्ष में से किसी का नाम नहीं छपवाया। ये उन्होंने अच्छा नहीं किया। तब सरला कहती- हमारी दीदी को मायके की जरूरत नही है। इस लिए मायके की देहरी इस तरह छोड़ रही है।
पर सोचो ये बात पापा को पता चली तो क्या होगा….
तब कजिन सिस्टर बोलती – सरला कितने भी रिश्तेदार हो ,पर सगे लोग शामिल न हो तो लोग तरह- तरह की बात बनाते हैं। अपनों की कमी तो खलती ही है। हो सकता है आखिर समय तक उनका मन बदल जाए।
अब सरला कहां चुप रहने वाली थी।
उसके मुख से ्यंग्यात्मक लहजे में निकल गया- दीदी तो पैसे के लिए वे सबसे बुराई मोल ले रही है कल के दिन हम लोग के घर में शादी वगैरह होगी तो हम भी नहीं बुलाएँगे और क्या….वो ही हमसे रिश्ता खत्म कर रही है उनको ये नहीं है कि अपना बड़प्पन ही दिखाए, धन संपत्ति का क्या है, आज है कल नहीं …. पता नहीं कैसी उनकी सोच है खैर जानो दो क्या कर सकते हैं पर खून का रिश्ता है दुख तो होता ही है….
तभी कजिन सिस्टर बोलती है -दुखी मत हो हम सब तो है, वो विमला दीदी नहीं बुला रही तो मत बुलाने दो ,उस बारे में ज्यादा मत सोचो….
इधर सब जगह विमला सबको बुलावा भेज रही थी।
उधर पापा की बैचेनी दिनों -दिन बढ़ रही थी।
पापा के पास जो भी रिश्तेदार आते यही बात करते। तब वो यही पूछते कि विमला से बात हुई कि नहीं….. इधर सोमनाथ जी विमला के पापा कहते हैं हमारी विमला को घर में हिस्सा चाहिए और बडे़ बेटा कमा खा रहा है। उसे वो भड़का रही है, दोनों में बैर करा रही है क्या ये ठीक है!!!!
बताओ विमला के लिए हमने क्या कुछ नहीं किया ,और वो सब भूल गयी। हमारा इतने सालों से किया धरा सब पानी हो गया। तब उन्हें मामा जी समझाते है, जो पीड़ा विमला आपको दे रही है, वो कहीं न कहीं से निकलेगी ही, भगवान के घर देर है अंधेर नहीं….
अब सोमनाथ जी मौन हो गये।
उनसे जब भी कोई रिश्तेदार विमला के बारे में बात करता तो उन्हें ऐसा लगता जैसे कोई जले पर नमक छिड़क रहा हो….
इधर मामा ,मौसी पक्ष से केवल एक एक व्यक्ति ही औपचारिकता निभाने शादी में गया।
उधर विमला अपने में मस्त होकर शादी की रस्में निभा रही थी। जब कोई उनसे पूछता तो साफ बोलती हमें नहीं बुलाना था तो नहीं बुलाया आपको हमारे बीच में बोलने की जरूरत नही….
इस तरह सबकी बोलती बंद कर रही थी।
शादी के दिन ही सोमनाथ जी के मन में रह -रहकर यही ख्याल आ रहा था। हमारी विमला के लिए हमने कितने पैसे बचा -बचाकर उसके तीनों बच्चों का पथ किया, तीनों बच्चों की यही डिलीवरी करवाई, हर इच्छा पूरी की ,पर आज ये दिन भी देखना पड़ेगा ये कभी नहीं सोचा था, घर के हर काम में उसकी सलाह ली जाती थी,
भाइयों बहनों की शादी में उसकी अहमियत कभी कम न होने दी। जबकि उसने तो हमें किसी लाइक भी न समझा, बताओ कैसी हमारी औलाद है , इसके पास कोई कमी नहीं है, फिर भी इसे से भाइयों की बराबरी में हिस्सा चाहिए, इसलिए बडे़ को भड़का कर अपने तरफ कर लिया। इधर जब वो सोच रहे थे।
तब उनका शरीर पसीना से तरबतर हो रहा था। जब वही से नीलम उनकी छोटी बहू ने देखा तो कहा- पापा आप विमला दीदी के बारे सोच- सोचकर परेशान हो रहे हैं, तो पापा आप बिलकुल परेशान मत हो। आपका बीपी लो हो रहा है। उनका मन शांत करने कोशिश की, फिर नीलम ने दवा दी।
थोडे़ देर आराम करने को कहा। और बेटे बहू ने उनके दर्द को कम करने के लिए एक मंदिर जाने का प्लान बनाया। वहां जाकर सोमनाथ जी का मन शांत हुआ।
वो बेटे बहू से भी कुछ कहने की स्थिति में न थे। उनकी आंखों में भी आंसू भर- भर आ रहे थे। बस यही कह रहे हमें विमला से ऐसी उम्मीद नहीं थी। तब बेटा बहू कहते हैं, पापा जो हो गया सो हो गया, अब क्या कर सकते, अब हमसे भी कभी कोई उम्मीद विमला दीदी न रखेगी। इस तरह विमला का छोटा भाई इस दर्द से पीड़ित होकर कहने लगा था।
तब नीलम भाभी के मुंह से निकल ही गया कि ऐसी बहन बेटी हमने पहली देखी जो एक घर परिवार से इस तरह अलग हो रही है। तब सोमनाथ जी बोले- देखो नीलम हम तुम लोग दुखी को नही देखना चाहते थे। इसलिए हम ही कह रहे ,शादी की चर्चा दो दिन होगी, फिर बात आई गयी जैसे लगेगी तुम लोग हमें बहलाने यहाँ लाए थे।
पर इस दर्द को कोई नहीं समझ सकता है जिसके साथ बीतती है, वही जानता है। मन छोटा मत करो उसने हमें नहीं बुलाया और उसने मायके की देहरी स्वयं से छोडी, अब तो जो दिल का रिश्ता था वो खत्म हो गया। बस नाम का ही खून का रिश्ता रह गया है।
इस तरह अनकहा दर्द आंसुओं से छलक उठा।
और वे सब घर लौट आए।
मौलिक रचना
अमिता कुचया
अनकहा दर्द