आखिर कब तक – शिव कुमारी शुक्ला : Moral Stories in Hindi

विपुल जी एवं विभा जी अपने दोनों बच्चों के साथ दिल्ली में तीन बेडरूम फ्लैट में रहते थे। बच्चे क्रमशः बेटा मितेश बारह वर्षीय एवं दस वर्षीय बेटी मिताली । दोनों ही बच्चे स्कूल में सातवीं  एवं पांचवीं कक्षा में  पढ़ रहे थे।

आज की इस महंगाई के जमाने में उच्चमध्यवर्गीय परिवार के सामने दोहरी समस्या यह रहती है कि स्टेटस भी सम्हाल कर रखना एवं बढती मंहगाई से घर खर्च चलाना बडा ही मुश्किल होता है। प‌ति-पत्नी कामकाजी थे सो गृहस्थी की गाडी सुगमता से अपनी गति पर चल रही थी।

तीन बेड रूम का फ्लैट भी इसीलिए लिया था कि एक कमरा कभी-कभी आनेवाले मेहमान एवं माता- पिता के आने पर परेशानी न हो। नहीं तो दो कमरे में बडी परेशानी होती थी बच्चों को किसी के आने पर शिफ्ट करो। पहले तो छोटे थे अब बडे हो गए थे तो वे भी आनाकानी करते और पढ़ाई भी डिस्टर्ब होती  थीं।

अब मुसिबत  तब शुरू हुई जब उनके दोस्त  अशोकजी  ने उनके यहाँ सपरिवार आना शुरु कर दिया वे दोनों पति-पत्नी अपने दोनो बच्चों आठ वर्षीय बेटी एवं छः बर्षीय बेटे के साथ हर  दो तीन  माह में आ धमकते और अपना ही घर समझकर आराम से तीन चार-दिन  रूकते, घूमते-फिरते एवं जिस काम से आते  वह करते और फिर मिलेंगे कह कर चले जाते।

दो-तीन बार आने को तो उन्होंने सामान्य रूप से लिया कि दोस्त है इतना तो बनता है। किन्तु विभा जी उनकी बेतुकी फरमाइशों से परेशान हो जातीं और उनका महिने  भर का बजट गड़बड़ा जाता।

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भाभी जी बच्चे सब्जी नहीं खाते जरा पनीर की बना दें अशोक जी साधिकार कहते। अब पनीर नहीं है तो लाओ। दूध लेते समय सीमा जी बोलीं भाभी जी बच्चों को दूध दोनों समय पीने की आदत है सो दूध जरा ज्यादा ही ले लीजिए।ये भी तीन-चार बार चाय ले लेते हैं सो दूध कम नहीं पड जाए इसलियेआपको बता दिया। जब वे तीसरी बार आये तो विपुल जी  एवं विभा जी ने उन्हें परोक्ष रूप से यह जताने की कोशिश की वह  अवांछित हैं यानी उन लोगों का आना उन्हें पसन्द नहीं आ रहा। किन्तु वे  तो इतने वेशर्म थे कि बात को एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल दिया बच्चे भी परेशान हो जाते। घर का माहौल एक‌बदल जाता। शोरगुल जोर-जोर से बातें करना एवं बच्चों की धमाचौकड़ी उनकी पढ़ाई नहीं  हो पाती।

विभाजी भी कहां तक छुट्टी लें। इतना घर का काम बढ़ जाता और नौकरी बुरी तरह से थक जातीं। समझ नहीं पा रहे थे इन्हें कैसे सीधे सीधे  मना करें कि उन्हें बुरा भी न लगे ।

अभी तीन माह होने को जा रहे थे कि वे अपने एक दोस्त को और साथ ले आये। विभाजी एवं विपुल जी अपने काम पर गये थे। बच्चे स्कूल से आकर अकेले थे घर में। उन्हें देखते ही मितेश बोला अंकल  अभी मम्मी-पापा घर में नहीं हैं। 

तो क्या हो गया बेटा हम तो हमेशा आते ही हैं। शाम तक विपुल भी आ जाएगा हम कोई गैर थोडे ही हैं कहते वे अन्दर आ गए। साथ में आये उनके दोस्त को देखकर मितेश को अच्छा नहीं लगा और कमरे में जाकर मम्मी को फोन कर सूचना दी उनके आने की।

विभा जी तुरंत अवकाश लेकर भागी-भागी घर आईं एवं विपुल जी को भी सूचित कर दिया।

घर में घुसते ही अजनबी को देख वे ठिठक गई ,तब अशोक जी बोले भाभी जी ये कोई गैर नहीं हमारा लंगोटिया यार है। देखना विपुल इससे मिलकर कितना खुश हो जाएगा। अन्दर से कुछ तलने की खुशबू आ रही थी। वे किचन में पहुंची तो सीमा जी पूरियां तल रही थी। दो सब्ज़ियां बनी रखी थीं। यह नजारा देख उनका खून खौल उठा। वह कुछ बोलती उसके पहले ही सीमा जी बोलीं मैंने सोचा आप तो शाम तक आ पायेंगी तो मैं ही खाना बना लेती हूं सब भूखे हैं। बच्चों ने पूरी की फरमाइश की तो वही बना ली।

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विभा जी बोलीं इतना सब करने की क्या जरूरत थी आप लोग बाहर से खा के भी तो आ सकते थे। आज किसी ओर को साथ ले आये मुझे अच्छा नहीं लगा।

अरे  भाभी जी कोई और नहीं घर के हैं रात-दिन हमारे यहाँ उनका उठना बैठना है सो आप परेशान  न हों। 

विभा जी का मूड आज उखडा हुआ था बोली जब आपने बना ही लिया है तो खाओ कह कर वह बच्चों के कमरे में चली गई। सोच रही थी कि कितना चिकने घड़े की तरह हैं दोनों पति-पली जैसे घडे पर पानी नहीं टिकता वैसे ही  इन पर किसी बात का असर नहीं होता।

शाम तक विपुल जी आये दोस्त को देखकर उनके माथे पर भी बल पड गये उन्होंने अपने हाव-भाव से दर्शा दिया उसका आना उन्हें पसन्द नहीं आया।

दो दिन  रुक कर चले गये। कितनी परेशानी हुई बच्चों का रुम भी खाली कर उन्हें दिया गया।

उनके जाने के बाद दोनों सोच रहे थे कि अब बहुत  हो गया कैसे इनसे पीछा छुडायें। तभी विपुल जी के दिमाग में आइडिया आया इस बार उनके आते ही अपन बाहर जाने की बात कहकर चल देंगे फिर अपने आप समझ जायेंगे कि हमें उनका आना पंसद नहीं है।

वही हु‌आ तीन माह बाद सपरिवार फिर आ गये ।बच्चे को डाक्टर को दिखाना था कुछ शपिंग भी करनी थी।

घंटी बजते ही की होल  से जैसे ही विपुल जी ने उन्हें देखा बजाए दरवाजा खोलने के पहले तीन-चार छोटे-छोटे सूटकेस ड्रांइग रूम में रखे बच्चों को जूते पहनने को कहा खुद पहने और फिर दरवाला खोला। बच्चों को तैयार देख सूटकेस, बैग तैयार रखे देख वह  कहने लगे कहीं जा रहे हो क्या  । विपुल जी बड़ी ही रूखाई से बोले हाँ हम बाहर  घूमने जा रहे हैं। तभी तैयार हो विभा जी भी आ गईं।

 एक दो दिन में लौट आओगे तब तक हम यहाँ रह लेंगे।

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नहीं हमारा पंदह दिन का कार्यक्रम है। कोई बात नहीं चाबी हमें दे जाओ जाते समय चाबी  हम पडोस में दे जायेंगे। 

यह सुनते ही विभाजी बिफर पड़ीं ऐसे में अपने घर की चाबी देकर  नहीं जाऊँगी। अशोक की बोले भाभी हम गैर थौडे ही हैं।

विपुल जी बोले अशोक न हमारे  घर में कुछ राशन पानी  है क्योंकि हम लाये ही नहीं जब इतके दिनों के लिये जाना था 

आप जहाँ से  लाते हो होम डिलीवरी करवा दो।

 नहीं न होम डिलीवरी होगी  न चाबी देंगें। चलो बच्चों देर हो रही है। आप अन्यत्र कहीं  होटल में कमरा ले लें , कहकर उन्होंने सामान ले जाकर गाडी में  रखा और बोले आइए  मैं  घर  को  लाक कर दूं। हमारी फ्लाइट  का समय हो रहा है।अब अशोक जी अपना सा मुँह लेकर खड़े रहे और वे लोग गडी लेकर चले गये । घूम फिर कर शाम को घर आ गये। विपुल जी बोले अब नहीं आयेगा कभी ऐसा सबक सिखा दिया।

पर ये क्या अभी चार महिने ही बीते थे कि अशोक जी अपने परिवार एवं दो मित्रों के साथ दरवाजे पर खडे डोर बेल बजा रहे थे।

दरवाजा खोलते ही उन्हें 

देखकर आज विपुलजी का सब्र का बांध टूट गया। जोर से बोले बस अशोक बहुत हुआ। तू दोस्त है या मेरा दुश्मन । अभी तक तुझे ही झेल रहा था अब औरों को भी लाना शुरू कर दिया ।मेरे घर को क्या धर्मशाला समझ रखा है। दिल्ली में होटलों की कमी है क्या वहाँ जाकर क्यों नहीं ठहरते। घूमना है तो थोडी जेब भी ढिली करना सीखो। मेरा सारा बजट बिगाड कर रख देते हो। मेरे यहाँ पैसे क्या पेड पर लगते हैं जो मुझे फर्क नहीं पड़ता। बाहरी लोग

  कोई भी मुँह उठाये मेरे घर में रहने चले आयेंगे। विभा क्या तुम्हारी नौकरानी है जो इतने लोगों को बना बना कर खिलायेगी । अब तुम कहीं भी जा सकते हो, मेरे यहाँ तुम्हारा प्रवेश बन्द है। परोक्ष रूप से मैंने  तुम्हें  बहुत समझाने की कोशिश की किन्तु तुम चिकने घडे हो तुम्हारे ऊपर कोई असर नहीं हुआ ।अब स्पष्ट कह रहा हूँ कि तुम  जाओ यहाँ से कह अंदर आकर दरवाजा बन्द कर लिया और राहत की साँस ली। अशोक जी अपना सा मुँह लेकर खडे रहे।

शिव कुमारी शुक्ला

5-9-24

चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता ***मुहावरा प्रतियोगिता

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