बहुत दिनों से संध्या के दिल और दिमाग में एक लड़ाई चल रही थी। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में एक ना एक बार ऐसा समय अवश्य आता है जब उन्हें दिल अथवा दिमाग किसी एक को चुनना पड़ता है अर्थात किसी एक पर विश्वास करके जीवन पथ पर आगे बढ़ना पड़ता है। परंतु क्या जो फैसला मैं (स्त्री हो या पुरुष) ले रही हूँ क्या वो सही है? मेरे एवं मेरे अपनों के हित में तो है ना, किसकी सुनूँ? इस ह्रदय की अथवा दिमाग की। जब इस तरह के हालात व्यक्ति के जीवन में उत्पन्न हो जाए तो इसे दिल और दिमाग की लड़ाई कहना गलत नहीं होगा।
कुछ ऐसा ही सूरत में रहने वाली एक लड़की संध्या के साथ भी हो रहा था। संध्या एक साधारण से परिवार की साधारण सी लड़की। इसके जन्म की कहानी कुछ इस प्रकार से थी कि संध्या की एक जुड़वा बहन भी हुई थी। दोनों बेटियों के जन्म लेते ही परिवार के सभी सदस्यों के चेहरे पर खुशी के साथ-साथ थोड़े गम के बादल भी छा गए। कारण था दोनों जुड़वा बेटियों में एक का रंग काफी साफ होना और दूसरी का उतना ही काले रंग का होना। परिवार के सभी लोग हैरान हो रहे थे कि एक ही समय में एक ही साथ पैदा हुई संतानों में इतना अंतर कैसे हो सकता है। परंतु ईश्वर के आगे किसकी चलती है? वो कहते हैं ना गोरा या काला रंग तो भगवान की देन होती है।
दोनों बेटियों की शक्ल में भी कोई समानता नहीं थी। “विनय जी (संध्या के पिता) ने अपनी एक बेटी का नाम आयशा और दूसरी का नाम संध्या रखा। गोरे और काले रंग को निश्चित तौर पर अंतर की दृष्टि से आज भी देखा जाता है। ऐसा ही कुछ विनय जी के परिवार में भी होता था। जहां एक ओर आयशा को परिवार के सभी लोग प्यार देते। उसकी हर एक इच्छा को पूरा करते। यहां तक की आयशा और संध्या की दादी तो आयशा पर अपनी जान तक लुटा देती थी। वही दूसरी तरफ संध्या पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। सब उसे हीन भावना की दृष्टि से देखते।
यहां तक कि कभी-कभी पिता विनय भी पक्षपात करने से बाज ना आते। परंतु एक मां का दिल मां का दिल ही होता है। मां सुजाता अपनी बेटी को बहुत प्यार करती थी। जिस दिन दोनों बच्चियों का दाखिला होना था उस दिन उनकी दादी ने उनके पिता से बोला “अरे विनय! क्यों दूसरी लड़की पर पैसा खर्च कर रहा है। स्कूल में इतने अच्छे-अच्छे घरों के बच्चे पढ़ने आएंगे। इसका रंग रूप देखकर सारे बच्चे इसपर हसेंगे। कोई इससे बात तक ना करेगा। सोच-समझकर विचार करके इस बात का फैसला ले। संध्या को पास के एक साधारण स्कूल में डाल दें। आयशा के लिए देख ले क्या करना है। हां, दादी ने थोड़ा कर्कश आवाज़ में बोला।
तभी बहू सुजाता बोली “मां जी, यह तो आप भी जानते हो कि किस तरह से घर के सभी सदस्य दोनों बच्चियों में फर्क करते हैं। आप लोगों का यह स्वभाव देख कर मैं भी कुछ नहीं कह पाती। पर मेरे मन को बहुत ठेस पहुंचती है। अब ये फैसला हम सब को मिलकर लेना है। ईश्वर ने अब इसे जैसा रूप दिया है इसमें इस बेचारी की क्या गलती।” लेकिन सुजाता जी की एक ना चली। सुजाता जी के अलावा किसी और ने बेटी संध्या के अच्छे स्कूल में पढ़ने को लेकर समर्थन नहीं किया। अंततः उसे पास के एक सामान्य स्कूल में भेज दिया गया।
“समय बीतता गया। अब दोनों बेटियां आयशा और संध्या बड़ी हो चुकी थी। बचपन से ही दोनों बेटियों में अंतर करने की वजह से जहां आइशा घमंडी, बिगड़ैल, सीधे मुंह किसी से बात तक ना करने वाली थी क्योंकि गोरे रंग के साथ भगवान ने उससे खूबसूरती का गुण भी बक्शा था। बचपन से लेकर बड़े होने तक उसने ज्यादा पढ़ाई पर भी ध्यान नहीं दिया। उसके लिए माता-पिता एवं दादी ने जो इतने अच्छे स्कूल में तालीम दिलवाना उचित समझा था, उसका उसने कभी सम्मान नहीं रखा। वह किसी की एक नहीं सुनती थी। पढ़ाई ना करके इसके विपरीत वह 16 साल की होते ही फैशन परस्ती में पड़ गई। वह मॉडलिंग की दुनिया में अपना नाम कमाना चाहती थी।
“उसके विपरीत संध्या दिल की बहुत ही भली, पढ़ाई में भी होशियार और घर के सारे कामों में निपुण हो चुकी थी। “एक सामान्य स्कूल में पढ़ने के बावजूद दिन में अपनी मां का घर के कामों में हाथ बंटाती और रात को समय मिलते ही खूब पढ़ाई करती। इसीलिए तो शुरू से कक्षा में फर्स्ट आती थी। 12वीं की परीक्षा में उसने अपनी पूरी क्लास में प्रथम स्थान प्राप्त करके स्कूल का नाम रोशन किया और स्कॉलरशिप प्राप्त करके उसे भी उसी कॉलेज में एडमिशन मिल गया जिसमें आयशा का एडमिशन उसके पिता विनय ने डोनेशन देकर कराया था। “आज दोनों बेटियों के कॉलेज जाने का पहला दिन है। सुबह-सुबह ही घर में चहल-पहल का माहौल है।
आयशा, उठो उठो आयशा! आज तुम्हारे कॉलेज का पहला दिन है। कॉलेज नहीं जाना क्या? क्या मां सुबह सुबह उठा देती हो। इतनी बार कहा है मेरे कमरे में मेरी इजाजत के बिना मत आया करो। आयशा ने थोड़े रूखे स्वर में कहा। अरे अपनी मां से भी कोई ऐसे बात करता है। एक तो मैं तुझे उठाने आई हूं। ऊपर से तू मुझसे पलट के उल्टा जवाब दे रही है। फिर एकदम से मां ने ठंडा होकर शांत स्वर में कहा। जल्दी से तैयार होकर नीचे आजा। तुम्हारी दादी तुम्हें दही शक्कर खिलाने को कब से तैयार बैठी है। मां। संध्या तैयार हो गई क्या? आज उसने भी तो मेरे साथ कॉलेज जाना है। आयशा ने मुंह मारते हुए थोड़े तीखे स्वर में कहा।
हां जाना तो है, मां ने कहा। क्यों क्या हुआ? संध्या तो सुबह 6:00 बजे से ही उठकर तैयार होकर मंदिर जाकर वापस भी आ गई। और एक तू है जो अभी तक सो रही है। उठती हूं मा। ऐसा कहकर आयशा बाथरूम में फ्रेश होने चली जाती है। थोड़ी ही देर में आयशा तैयार होकर बाहर आ जाती है और दोनों बेटियां कॉलेज जाने के लिए बिल्कुल तैयार हैं। अरे आयशा जरा इधर तो आ बेटा! आ मेरी गुड़िया रानी! दादी के हाथों से दही शक्कर नहीं खाएगी क्या बेटा? क्या दादी? अब मैं गुड़िया रानी नहीं रह गई। अब मैं बड़ी हो गई हूं। कॉलेज जाने लगी हूं! आप मुझे आयशा ही पुकारे। आयशा ने थोड़ा चिढ़कर कहा।
“क्या दादी! आप आज भी इन अंधविश्वासों में विश्वास करती है। यह दही शक्कर खाने से कुछ नहीं होता। ऐसा कहकर वह दूर से ही सबको बाय-बाय कहकर कॉलेज के लिए निकलने लगती है। इतने में दादी का ऐसा उदास चेहरा देखकर संध्या कहती है। “कोई बात नहीं दादी। आप आयशा के हिस्से का मुझे खिला दीजिए। इस बहाने मुझे आपका आशीर्वाद भी मिल जाएगा।”
“तुझे नहीं लड़की। तू तो रहने ही दे।” दादी की यह बात सुनकर संध्या को जरा भी बुरा नहीं लगा। बचपन से इन सब बातों को सुनने की आदत जो पड़ गई थी। शुरू से ही दादी मानो उस संध्या को देखना तक पसंद नहीं करती थी।
खैर! दोनों बेटियां कॉलेज चली जाती हैं। रास्ते में आयशा संध्या को कहती है। सुन संध्या! कॉलेज पहुंचकर क्लास में किसी को यह नहीं कहेगी कि तू और मैं बहने हैं। फालतू में सब मुझ पर भी हसेंगे, समझी। और हां कॉलेज में मुझसे जरा दूर ही रहना।
क्यों क्या इससे तुम्हारी इज्जत में फर्क आ जाएगा? संध्या ने आयशा से कहा जो मैंने कहा है चुपचाप सुन और वैसा ही कर। आयशा ने संध्या को गुस्सा किया। परंतु स्वभाव के अनुसार संध्या ने उसे हां कर दी और कहा ठीक है किसी को नहीं कहूंगी।
“कॉलेज पहुंचकर अपनी क्लास के सभी लड़के-लड़कियों से आयशा और संध्या का परिचय होता है। जैसा की स्वभाव के अनुसार आयशा घमंडी होने की वजह से उसकी एक या दो लड़कियों से ही दोस्ती हुई। पढ़ने में तो उसका जैसे ध्यान ही नहीं था। कभी कॉलेज की कैंटीन तो कभी ड्रामा क्लासेज में वह अपना पूरा वक्त बिताती थी। उसके विपरीत शुरु-शुरु में तो अपने कालेपन की वजह से संध्या का मजाक उड़ाया गया लेकिन थोड़े ही दिनों में उसने अपनी पढ़ाई, चालचलन और अपने अच्छे स्वभाव के बल पर सभी को अपनी और आकर्षित कर ही लिया। क्लास में उसकी अच्छी सहेलियां भी बन गई थी। फिर भी उसका कुछ लोग काफी उपहास उड़ा ही देते।
एक दिन कॉलेज में क्लास चल रही होती है। इतने में क्लास में एक चपरासी आया और उसने आकर कहा संध्या को प्रिंसिपल मैम ने अपने रूम में बुलाया है। सुनकर एक बार तो उसे थोड़ा डर लगा। पता नहीं क्या हुआ होगा? क्यों प्रिंसिपल ने मुझे बुलाया है? यह विचार उसके मन में उमड़ रहे थे। आयशा को भी थोड़ी हैरानी हुई कि संध्या को क्यों बुलाया गया है। बड़ी हिम्मत करके संध्या प्रिंसिपल के रूम में गई। मे आई कम इन मैम? यस प्लीज! कम इन। मैम आपने मुझे बुलाया। हां संध्या, इनसे मिलो। यह हैं मिसेज सोनिया। यह एक संस्था चलाती है जो गरीब बच्चों के लिए मुफ्त खाना, कपड़े, दवाएं तथा शिक्षा आदि का प्रबन्ध कराती है।
यह हमारे कॉलेज में एक सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करना चाहती हैं। संध्या ने प्रिंसिपल से कहा। तो मैम इससे मेरा क्या वास्ता है? तभी प्रिंसिपल ने जवाब दिया! उस सांस्कृतिक कार्यक्रम में एक छोटा सा फैशन शो होगा और तुम उसमें भाग लो। ऐसा मैं चाहती हूं। मैं मैडम? संध्या ने बड़ी हैरानी से कहा। इतने में मिसेस सोनिया कहती हैं कि हां संध्या, मैं इस कॉलेज में बरसों से सांस्कृतिक कार्यक्रम करा रही हूं। मेरा इस बार का मकसद कुछ अलग है। मेरा मकसद उन लड़कियों को ऊंचा उठाना है जिन्हें रूप-रंग की वजह से इस समाज में ऊंचा दर्जा नहीं मिल पाता है। उन्हें आज भी हीन भावना से देखा जाता हैं।
मैं समाज को दिखा देना चाहती हूं कि गोरा रंग ही सब कुछ नहीं होता, सांवला रंग भी किसी से कम नहीं होता। साँवले रंग के लोग भी खूबसूरत बहुत खूबसूरत हो सकते हैं। जिसका मन खूबसूरत उसका सब खूबसूरत। समाज में इस सोच को बदलाव की जरूरत है, इसी थीम पर आधारित होगा हमारा सांस्कृतिक कार्यक्रम और यकीन मानो तुम उसके लिए बिल्कुल परफेक्ट हो। तुम सभी कामों मे निपुण हो, होशियार भी हो। तुम्हें इस कार्यक्रम में भी भाग अवश्य लेना चाहिए। ऐसा सुनते ही एक बार तो संध्या जैसे हक्की-बक्की रह जाती है। उसकी ऐसी हैरानी वाली स्थिति देखकर प्रिंसिपल कहती हैं, “डोंट वरी। यह तुम्हारी एक नई पहचान बनाने का ईश्वर ने तुम्हें एक नया अवसर प्रदान किया है। तुम आराम से इसके बारे में सोचो। अभी कई दिन है इसमें और मुझे दो-चार दिन में आकर बता देना।”
“ठीक है मैम। ऐसा कहकर संध्या प्रिंसिपल के रूम से बाहर आ जाती है। “प्रिंसिपल के रूम में क्या हुआ? क्या बात हुई? यह सब उसने कॉलेज में आयशा से बिल्कुल भी शेयर नहीं किया। घर आकर अपनी मां को इस बारे में पूरी बात बताई। पूरी बात सुनते ही मां ने कहा, “देख संध्या, बचपन से लेकर आज तक तुझे हमेशा दुत्कार ही मिली। किसी से भी प्यार और सम्मान नहीं मिला। ये जानते हुए भी कि तुझ में हर प्रकार का गुण है, तेरी कदर नहीं जाती। हो सकता है इस के बाद ये सब तेरी अहमियत जानें या शायद ना भी! परंतु जैसा की तेरी उन सोनिया मैडम ने कहा कि समाज में एक नव चेतना जागृत करने के लिए समझ ले ईश्वर ने तुझे ये अवसर सौंपा है। इसका सम्मान कर बेटी।
हर किसी को यूँ ही यश नहीं मिलता! बहुत बार परीक्षा देनी पड़ती है स्वंय को साबित करने के लिए, लोगों की अक्ल के पर्दे गिराने के लिए! तू समझ रही है ना। अब यह अपने आपको लोगों के सामने सम्मान दिलाने का एक अच्छा मौका है। तू हां कर दे बेटी। तू खुद ही सोच, इससे पहले तो इस तरह का फैशन शो हुआ पहले कभी तेरे कॉलेज में जिसमें इस तरह बदलाव के बारे में लोगों को जागृत किया गयाहो? ऐसा पहली बार ही हो रहा है ना? सोचा तूने क्यों ऐसा हो रहा है? ये खुद ईश्वर भी चाहता है पगली। समझ तू। तेरी जैसी अनेक लड़कियां और भी होंगी इस समाज में। इतना विशाल देश, भांति-भांति के लोग। उन सबको भी हौसला मिलेगा, एक नई रोशनी मिलेगी। समझ रही है ना तू।
तभी तपाक से संध्या मां से बोली कि पर मां मैं यह नहीं कर पाऊंगी। पापा, दादी और आयशा को जब पता चलेगा तो वह इसके लिए कभी तैयार नहीं होंगे। दादी तो जैसे घर को सातवें आसमान पर ही उठा लेंगी। उन्हें तो जैसे मेरे कालेपन की वजह से मुझ से नफरत ही है इसलिए मेरा किया गया कोई काम उन्हें रास नहीं आता। आयशा तो वैसे ही बचपन से मुझे नापसंद करती आई है। जब उसे यह पता चलेगा कि जिन चीजों की वह शौकीन है। फैशन की दुनिया में अपना नाम बनाना चाहती है। याद है मां, आयशा कहती है कि एक दिन मैं मॉडल बनूंगी और दादी और पापा को भी उसका ये मॉडल बनने का ख्वाब कहाँ पसंद आया था, वो तो इसके खिलाफ ही थे कि हमारे घर की लड़की ये मॉडल नहीं बना करती।
वो तो आयशा उनकी लाडली है तो रो-धो के उन्हें मना लिया। मैं तो वो भी नहीं। संध्या ने उदासी से कहा। माँ क्या रूप-रंग ही सब कुछ होता है जीवन में?? क्या गुणों का कोई महत्व नहीं? संध्या ने उदासी से कहा। जो खूबसूरत, गोरा है उसी के आगे-पीछे लोग घूमने लगते हैं, जैसे दादी और घर के बाकी लोग। आयशा को हमेशा से महत्व दिया गया सिर्फ इस लिए कि वह सुन्दर है, गोरी है, बल्कि उसने कभी आप लोगों के प्यार का सम्मान नहीं किया फिर भी पापा और दादी उसकी बातों का बुरा नहीं मानते। वो अच्छे स्कूल में पढने के बावजूद पढ़ाई नहीं करती थी।फिर भी सब उसके आगे पीछे रहते है। और मुझे पल-पल पर महसूस कराया गया कि मैं काली हूँ, सुंदर नहीं हूँ। दादी तो उस दिन सरला बुआ से भी कह रही थीं कि इसे अच्छा युवक मिलेगा भी या नहीं शादी के लिए? इन कारणों से बचपन से ही मेरा मनोबल कमजोर हो गया है और मुझमें आत्मविश्वास की कमी आ गई है और ये फैशन शो में ये मॉडल की तरह सज धज कर चलना मुझ जैसे के लिए तो बहुत बड़ी बात है।
ये सभी बातें आज पहली बार रुद्र-क्रन्दन करते हुए एक बेटी माँ से कह रही थी। आज जब उसे पता चलेगा कॉलेज में होने वाले कार्यक्रम में फैशन शो में उसे नहीं मुझे भाग लेने का अवसर दिया गया है तो वह तो जैसे पागल ही हो जाएगी। नहीं मां मुझसे यह सब नहीं होगा। संध्या ने फिर कहा। तू इसकी चिंता मत कर। मैं तेरे पापा और आयशा को संभाल लूंगी। इस बार मैं पीछे नहीं हटने वाली। फिर तेरे पापा तेरी दादी को भी देख लेंगे। तू कर पाएगी और जरूर कर पाएगी। तू बचपन से ही हर काम में निपुण रही है। मां ने बेट के आंसू पोछते हुए कहा और तू इतना मत सोच अब कॉलेज में लगभग सभी तेरे दोस्त हैं! तूने सभी का अच्छे स्वभाव से दिल जीत लिया है और जो इस बात को नहीं समझते वो अब समझेंगे। ये मेरा विश्वास है।
मां की ऐसी उत्साहवर्धक बातें सुनकर संध्या के मन में एक नई उमंग जागृत होती है। परंतु रह-रहकर पूरी रात उसके मन और दिमाग की लड़ाई भी चल रही होती है। वह फैसला नहीं कर पा रही थी। मन कहता कि हाँ करनी चाहिए और दिमाग कहता है नहीं। सब तेरे ऊपर खिल्ली उड़ाये क्यों कर रही है ऐसा! दिमाग से ऐसी तरंगे निकल रही थी। घर में सब तेरे ऊपर तेल पानी लेकर चढ़ जाएंगे। दादी तो पापा के कान भरकर कॉलेज जाना ही ना छुड़वा दे। पर दिल दिलासा दे रहा था, घबरा नहीं जो होगा अच्छा ही होगा इस बार। माँ की उत्साह भरी बातें भी याद आ रहीं थी। आखिर दिल एवं दिमाग में जीत दिल की ही हुई।
दो चार दिन बहुत सोचकर कॉलेज में प्रिंसिपल को जाकर संध्या आखिर हां कर ही देती है और उसी दिन से सांस्कृतिक कार्यक्रम में होने वाले फैशन शो की तैयारी में जुट जाती है। और आखिरकार कार्यक्रम का दिन आ गया। फैशन शो शुरू होने से एक घंटा पहले संध्या जब तैयार होकर कमरे में आती है तब सब उसको देखते रह जाते हैं। बहुत खूबसूरत लग रही थी वह।
मां तो जैसे खुशी से फूली नहीं समा रही थी। दादी भी उसे देखकर जिंदगी में पहली बार खुश हुई थी। उनके मुंह से निकला मेरी सांवली सलोनी संध्या। फैशन शो की घड़ी आ गई और संध्या ने बहुत ही जज्बे के साथ फैशन शो में भाग लिया। सभी दर्शकों का मन मोह लिया। जब जीत का ऐलान हुआ। तब एक विजेता के रूप में अपना नाम सुनकर संध्या और उसके परिवार की खुशी का तो जैसे ठिकाना ही ना रहा।
संध्या के दिल से भी एक ही आवाज़ आ रही थी कि यदि दिल और दिमाग में से वह दिमाग की सुनती तो आज वो सब नहीं होता जो आज इस समय हो रहा है! आखिर दिल जीत ही गया। पापा तो अपने किए हुए पर बहुत पछता रहे थे। उन्होंने संध्या से कहा बेटी, मुझे माफ कर दो। बचपन से लेकर आज तक मैंने तुम में और आयशा में पक्षपात किया। मुझे पता है मैं माफी के काबिल तो नहीं हूं। पर हो सके तो मुझे माफ कर दो बेटी। ऐसा कहते हुए वे रोने लगते है। पास ही आयशा भी शर्मिंदगी लिए नीचे आँख किए खड़ी थी और उसने भी बहन से माफ़ी मांगी।
तभी प्रिंसिपल और श्रीमती सोनिया उनके पास आए और संध्या की तारीफ करते हुए बोले बहुतअच्छा किया तुमने बेटी। तुम एक होनहार लड़की हो। हमें तुम पर गर्व है। साथ ही साथ उन्होंने सभी से ये भी कहा कि समाज में हो रहीं कुरीतियों, भेदभाव और पक्षपात से ऊपर उठकर सभी को एक नए समाज का निर्माण करना होगा जिसमें ये सब बुराइयों का अंत होकर समानता का अधिकार मिले। एक ऐसे समाज, एक ऐसे परिवेश की कल्पना हम सभी को करनी चाहिए। अँग्रेजों ने हम भारतीयों के साथ आजादी से पहले जो किया, रूप रंग को लेकर कितने प्रहार भी किए तो उस समय भारतीयों के दिल पर क्या बीतती होगी, ये आप सब भली भांति समझते है, तो क्यूँ हम भारतीय होकर इस भेदभाव को दोहरा रहे है, वो भी आजादी के इतने वर्षों बाद भी।
तभी दादी शर्मिंदा होकर बोली कि इस बदलाव की शुरुआत आज से मैं करूंगी मैडम। ये मेरा अपने आप से वायदा है और वे दोनों पोतियों को गले लगा लेती हैं।
दोस्तों यह कहानी आपको कैसी लगी। बताइएगा जरूर।
ज्योति आहूजा