मालिनी,तुम मेरी भावनाओ को क्यूँ नही समझ रही हो,तुम्हे पता तो है।तुमसे शादी करते समय भी तो मैं सेना में ही था,फिर अब मुझ पर सेना से त्यागपत्र देने का दवाब क्यों?सेना में रहना मेरा जुनून है, मालिनी,प्लीज—!
मेरी मनःस्थिति भी तो समझो शेखर।मैं तुम्हारे बिन नही रह सकती।तुम तो चले जाते हो सरहद पर,मैं यहां हर समय तुम पर मंडराती मौत की परछाई के अहसास से हर पल मरती हूं।मैं नही चाहती शेखर तुम अब फौज में रहो, तुम्हे वापस आना ही होगा,मेरे वास्ते,हमारे होने वाले बच्चे के वास्ते।
ओह, मालिनी मेरे पथ की सहयोगिनी बनो बाधक नही,मालिनी जिद छोड़ दो।
आगरा में एनसीसी के कैडेट्स का हेलीकॉप्टर से पैराशूट पहन कर छलांग लगा कर करतब दिखाते हुए जमीन पर उतरने का प्रदर्शन चल रहा था।अपने अपने कॉलेज के विद्यार्थी ताली बजाकर उनका अभिनंदन कर रहे थे।एक स्मार्ट से कैडेट ने तो कमाल का प्रदर्शन किया।कूदते ही उसने आकाश में जो करतब दिखाये,
वे हैरतअंगेज तो थे ही,साथ ही साहसिक भी थे।उसके जमीन पर आते ही तमाम लड़के व लड़कियां उसकी ओर दौड़ पड़े।लड़को ने उसे कंधे पर उठा लिया,लड़कियां उछल उछल कर तालियां बजाकर उसका स्वागत कर रही थी।सही मायनों में वह युवाओं का हीरो बन गया था।हीरो का नाम था शेखर। अगले दिन समाचार पत्रो में शेखर के चित्र मुख्य पृष्ठ पर प्रमुखता से छपे थे।
शेखर अब अपने कॉलेज में अनजान नही रह गया था।छात्र छात्राये अब उससे सब मित्रता करना चाहते थे।इन्ही में थी मालिनी बेहद खूबसूरत सौम्य ,शेखर से एक वर्ष जूनियर।उसकी इच्छा शेखर से मित्रता की होती तो थी पर संकोचवश पहल नही कर पाती,बस वह दूर से शेखर को देखती।एक दिन तीन चार लड़कियों ने दोपहर को शेखर के साथ कॉफी पीने का प्रोग्राम उससे तय कर लिया।
दोपहर को वे लड़कियां अपने साथ मालिनी को भी ले गये।पहली बार इतने पास से मालिनी शेखर को देख रही थी।वाचाल सहेलियों के बीच संकोची मालिनी से शेखर प्रभावित हुआ।उसकी सुंदरता और सौम्यता ने शेखर को लुभा दिया।कई दिनों बाद शेखर को मालिनी अकेली दिखाई पड़ गयी तो शेखर ने उसके पास जाकर उसके हालचाल पूछे।
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हड़बड़ाई सी मालिनी बस ठीक है ही कह पायी।शेखर को उसका ये अंदाज भी भाया।अब अक्सर शेखर मालिनी के अकेले होने का अवसर खोजता और कुछ भी बात करता।धीरे धीरे दोनो के बीच से संकोच की दीवार टूटती जा रही थी।अब वे कभी कभी कैंटीन में अकेले कॉफी पीने भी चले जाते।
यह सब वास्तव में दोनो का एक दूसरे के प्रति आकर्षण का परिणाम था।दोनो को लगने लगा था वे एक दूसरे के लिये ही है।वैलेंटाइन डे पर आखिर शेखर ने मालिनी को प्रपोज कर ही दिया।मालिनी तो इस अवसर को अपने मन मे कब से संजोय बैठी थी।अब वे अधिक से अधिक समय साथ बिताते भविष्य की योजनाएं बनाते।
शेखर कहता मालिनी उसका सपना मिलिट्री जॉइन करने का है,उसके लिये वह सीडीएस प्रतियोगिता की तैयारी कर रहा है।उसे विश्वास है उसका चयन अवश्य हो जायेगा।एनसीसी का सी सर्टिफिकेट भी वह प्राप्त कर चुका था,उससे भी चयन में वरीयता मिलती है।मालिनी तो उससे आकर्षित उसकी सेना छवि से ही हुई थी,सो वह शेखर को शुभकामनाएं ही देती।
शेखर और मालिनी दोनो के सम्पन्न परिवार थे,इसलिये उनकी परस्पर शादी में कोई परेशानी आने वाली नही थी,बस शेखर का मानना था कि कॉम्पिटिशन में सफल होने पर ही वह शादी करेगा।शेखर की तैयारी और आत्मविश्वास के कारण वास्तव में वह प्रथम बार मे ही चयनित हो गया।ट्रेनिंग पश्चात उसे सेकंड लेफ्टिनेंट का ओहदा मिला।
उसका सीना गर्व से चौड़ा हो गया था।शेखर और मालिनी दोनो ने ही अपने अपने घरों पर एक दूसरे से शादी करने की अपनी इच्छा से अवगत करा दिया।आशानुरूप दोनो परिवार इस रिश्ते को तैयार भी हो गये।उचित मुहर्त में शेखर और मालिनी की शादी भव्य समारोह में सम्पन्न भी हो गये।दोनो अपनी अपनी मंजिल मिल जाने से बेहद खुश थे।
दो महीने तो यूँ ही हनीमून ट्रिप और मौज मस्ती में बीत गये, पता भी नही चला।शेखर को ड्यूटी पर जाना ही था सो गया। शेखर के जाने के बाद मालिनी को रिक्तता का अहसास हुआ।पर अपने को संभाल वह घर गृहस्थी को समझने में लग गयी।अपने घर भी कुछ दिन रह आयी।
दीवाली पर शेखर घर आ रहा था, मालिनी का मन मयूर नाच रहा था।शेखर के आने पर दोनो ऐसे मिले जैसे जन्म जन्म के प्यासे हो।इसी प्रकार दिन बीत रहे थे।मालिनी गर्भवती हो गयी थी,उसे शेखर की कमी बुरी तरह खलने लगी थी।उसका स्वभाव भी चिड़चिड़ा होने लगा था।वह शेखर से दूर नही रहना चाहती थी,साथ ही उसे लगता कि मिलिट्री में शेखर की जिंदगी भी सुरक्षित नही है।यही कारण था कि अबकी बार मालिनी शेखर पर बिफर पड़ी और सेना से त्यागपत्र देने को कहने लगी।
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शेखर यूँ तो अपने पिता के व्यवसाय में प्रारम्भ से ही लग सकता था,अब भी उसे कोई समस्या नही थी,पर उसका मन तो सेना में था।वह मानिनी को यही समझाने का प्रयास कर रहा था।मालिनी समझ तो सब रही थी,पर शेखर के बिना रहना दूभर था इस कारण ही उसकी ये तकरार थी।
किसी प्रकार मालिनी को उसकी बात पर विचार करने का आश्वासन देकर शेखर चला तो आया पर उसका मन खिन्न था,उत्साह नही था।उसके सीनियर मेजर सोमनाथ ने जब शेखर को उदास देखा तो उससे कारण पूछा।मेजर सोमनाथ शेखर को पसंद व सपोर्ट भी करते थे।शेखर ने अपनी प्रॉब्लम मेजर को बताई कि उसकी पत्नी कैसे मिलिट्री छोड़ने जा दवाब बना रही है,और वह छोड़ना नही चाहता।वो करे तो क्या करे,वह मालिनी को दुखी भी नही देख सकता।मेजर सोमनाथ ने सब बातें समझ शेखर से कहा कि वह कुछ समय दे वह देखता है कि वह क्या कर सकता है।
मेजर सोमनाथ की सिफारिश पर शेखर का ट्रांसफर बॉर्डर से हटाकर मेरठ में रेजिमेंट में कर दिया गया और वहां उसे सेना की ओर से ही एक फ्लैट भी आबंटित हो गया,जिसमे वह सपरिवार रह सकता था।मालिनी यही तो चाहती थी,शेखर के साथ रहना।जब दोनो साथ रहने लगे तो धीरे धीरे मालिनी को भी समझ आ गया कि उसे केवल अपना अपना ही नही शेखर की भावनाओ का भी ध्यान रखना चाहिए था।
देश के लिये मर मिटने का जुनून यदि उसका पति रखता है तो यह उसके लिये गर्व की बात होनी चाहिये।सोच सोच कर मालिनी के सामने शेखर का वही रूप तैर गया जब आकाश में वह पैराशूट पहने हवा में अठखेली कर रहा था,और वह उछल उछल कर ताली बजा रही थी।
बालेश्वर गुप्ता,नोयडा
मौलिक एवम अप्रकाशित