मेरी नजर में….विशिष्ट नारी
वैसे तो इस उम्र तक आते-आते अनेकों विशिष्ट स्त्रियों का सानिध्य प्यार मिला… जिसमें अनेक विदुषी थी… अपनी कार्यक्षेत्र की अग्रगणी … जिनपर मैंने अनेक बार लिखा भी है… लेकिन आज मेरे वाल्यकाल की स्मृति में एक नाम उभरकर आया है वह है….आजी।
आजी से हमारा कोई रक्त संबंध नहीं था लेकिन… वे पूरे गांव की आजी थी।
गोरी-चिट्टी, अधपके बाल, दुबली-पतली काया… साफ-सफाई की शौकीन… स्पष्टवादी और सभी के दुख-सुख में खड़ी धार्मिक महिला थी।
वे अपने गांव के पुराने मिट्टी के मकान में तीन चार महीने अवश्य रहती।गाय के गोबर से दह-दह लीपा हुआ आंगन… तांबे पीतल के चमाचम मांजे हुये लोटे… आंगन में ही छोटे से कुयें में लबालब मीठा पानी…वह चमकदार लोटा और कुएं का निर्मल जल देखते ही प्यास लग जाती।
सबसे बड़ी बात उनके खंड़ी में तरह-तरह का फलों का पेड़ जो हर मौसम में फलों से लदा रहता। मौसमी सब्जियां… हरी धनिया ,हरी मिर्च , टमाटर , बैंगन….पालक… सबकुछ क्यारियों में उपलब्ध रहता।जो भी मांगने आता उसे वे सहर्ष थोड़ी सी दे देती।
सभी के दुख-सुख… समस्याएं निपटाने में मदद करती। शादी विवाह,छठ , देवी, शिवजी,बारहमासे सभी लोकगीत उन्हें कंठस्थ थे… जिसे बड़े मनोयोग से वे हमें सिखाती जो आज भी काम दे रहा है।
पति के मृत्यु के पश्चात… अपने विशिष्ट आचरण मिलनसारिता के वजह से वह सभी की प्रिय बनी हुई थी।
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उनके चार बेटे और दो बेटियां थी। बेटियां अपनी घर-गृहस्थी में व्यस्त थी… कभी-कभी मिलने आती।
चारों बेटे में बड़ा बेटा बहुत बड़ा वकील बने …जो शहर में वकालत करते थे…. उनके पास यश सुख-समृद्धि सबकुछ था।
उसके बाद वाले बेटे महानगर में नामी चिकित्सक थे और लाखों में खेलते थे।
तीसरे बेटे अनुशासित मेधावी थे…उनका झुकाव अध्यात्म में हुआ और वे संन्यासी के रूप में विदेश जा बसे…आजी बिलखकर रोई थी।
चौथे बेटे को सरकारी नौकरी थी और किसी प्रकार घर गृहस्थी की गाड़ी चलती।
आजी का जीवन सूत्र आज भी कईयों का मार्गदर्शन करता है।
वे अपने तीनों बेटों के पास बिना किसी भेद-भाव के जाती…रहती और उनकी खुशियां मनाती।
छोटा बेटा बहू संकोच में पड़ जाता “मैं अपनी मां को वह सुख-सुविधाएं नहीं दे पाता जो भैया के यहां मिल पाता है” ।
आजी का निर्विकार उत्तर,” धन संपत्ति अपनी जगह और किस्मत अपनी जगह … मुझे सभी बेटे एक समान प्यारे हैं… माता-पिता कभी बच्चों का स्टेटस देख प्यार नहीं करते बल्कि अपनी संतानों की कुशलता मनाते हैं।”
माता-पिता को बच्चों के आर्थिक सामाजिक स्थिति से आकलन नहीं कर उन्हें एक नजर से देखना चाहिए…यह सूत्र मेरे दिल को छू गई ।
… और आज माता-पिता को बात-बात पर बच्चों की तुलना दुसरे बच्चों से कर उनका मनोबल तोड़ते हैं…तब दुख होता है।
तब फोटो का जमाना नहीं था अतः आजी की तस्वीर मेरे पास नहीं है… पुण्यात्मा आजी को शत-शत नमन ।
मौलिक रचना -डाॅ उर्मिला सिन्हा
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