“निकम्मे, नालायक, जब देखो किताब खोल के बैठा रहता है , कौनसा पढ़ लिख कर तूने आईएएस बन जाना है! तेरे माँ बाप तो इस संसार से चले गए, तुझे छोड़ गए मेरी छाती पर मूंग दलने को, ये किताब छोड़ और किचन में जाकर बर्तन साफ़ कर उसके बाद झाड़ू पोछा भी लगा देना , मुफ्त की रोटी तो नहीं तोड़ने दूंगी तुझे l ” सरोजिनी जी अपने दस वर्षीय भांजे , अमित पर अक्सर यूँ ही तंज कसा करती थी l भोला अमित हर बार कसमसा कर रह जाता l बिन माँ बाप का बच्चा ,अपनी मामी में हमेशा अपनी माँ को खोजता लेकिन उनसे उसे हमेशा अवहेलना ही मिली l उनके स्नेहिल आशीष के लिए वो तरस कर रह जाता , उसे आसरा था तो बस अपने मामा की स्नेहिल क्षत्र छाया का l
मामा के दिल में उसके लिए अथाह स्नेह था किंतु वो भी पत्नि के डर से और घर में शांति बनाए रखने के लिए उसे खुल कर पुचकार भी ना पाते l नन्हा अमित सब समझता था l उसके लिए तो मामा की एक प्यार भरी दृष्टि ही काफ़ी थी l उसी स्नेह के सहारे वो किसी तरह जी रहा था l
पढ़ने का बहुत शौक था अमित को, किन्तु मामी को उसका पढ़ना भी एक फूटी आंख ना सुहाता l घर के कामों के बोझ के साथ और मामी की प्रताड़ना झेलते झेलते किसी तरह उसने सरकारी स्कूल से बारहवीं की परीक्षा पास की थी l पूरे प्रदेश में प्रथम स्थान प्राप्त किया था उसने l रिजल्ट पता कर वो, चहकता हुआ घर आया था l सबसे अपनी उपलब्धी साझा करने का एहसास उसे अंदर तक रोमांचित कर रहा था, उसे पक्का यकीन था कि आज तो उसकी मामी का आशीर्वाद उसे ज़रूर मिलेगा l किन्तु किस्मत को कुछ और ही मंजूर था l घर पहुंचते ही सरोजिनी जी ने उस पर बेतहाशा थप्पड़ बरसाने शुरू कर दिएl
“चोर! अब तेरी इतनी हिम्मत हो गई ,कि तू घर से पैसे चुराने लगा ? बता… बता… कहाँ है 5000 रूपए? कहाँ उड़ा कर आ रहा है हमारे पैसे?”
सरोजिनी लगातार अमित पर प्रहार कर रही थी l
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अचानक हुए प्रहार और चोरी के आरोप ने अमित को अंदर तक झकझोर कर रख दिया l वो फटी आंखों से अपनी मामी को देख रहा था l
“हाय! मैं तो उस दिन को कोस रही हूँ जिस दिन तेरे माँ बाप एक्सीडेंट में परलोक सिधार गए और तेरे मामा तुझे उठा कर यहां ले आए l तब से तू मेरी छाती पर मूंग दल रहा है l तेरे माँ बाप के ही तो संस्कार होंगे जो तू आज चोरी चकारी पर उतर आया है l
खुद तो चले गए अपना सपोला यहां छोड़ गए l ”
अपने माता पिता के लिए इतने कड़वे बोल सुन अमित की सहनशीलता ने भी जवाब दे दिया l उसने खुद पर बेतहाशा बरसते हुए अपने मामी के हाथों को रोक लिया और अपनी पूरी ताकत के साथ चीखा l
“मैंने नहीं चुराए कोई पैसे l अच्छा होगा कि आप अपने नशेड़ी बेटे से पूछे l”
कोने में दुबक कर खड़े ,खुद से लगभग एक साल छोटे, अपने ममेरे भाई नवीन, की ओर इशारा करते हुए उसने कहा l
” क्या कहा तूने? तेरी इतनी हिम्मत! मेरे मासूम बेटे पर इल्ज़ाम लगाता है?”
सरोजिनी जी अपना हाथ, अमित की मजबूत पकड़ से छुड़ाते हुई बोली l
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“जी हां सही कह रहा हूं मैं, मैंने कई बार रंगे हाथों नवीन को अपने आवारा दोस्तों के साथ नशा करते पकड़ा है l मैंने इसे बहुत समझाया भी, कि ये सब छोड़ दे l मैं तो आपको और मामाजी को बताने भी वाला था पर नवीन ने मुझे आश्वासन दिया कि वो ये सब छोड़ देगा l यहां तक कि इसने मुझे ये कह कर धमकाया भी कि अगर आप लोगों को मैंने कुछ भी बताया तो वो आत्महत्या कर लेगा l नवीन को खो देने के डर से मैंने आप लोगों को कुछ नहीं बताया l सोचा धीरे धीरे ये सुधर जाएगा ,पर ये नहीं सुधरा l कई बार मैंने इसे आपके और मामा के पैसे चुराते पकड़ा है l पूछिये .. पूछिये ज़रा अपनी औलाद से l मैं सही कह रहा हूं ना नवीन…?? बोलो चुप क्यूँ हो??”
आज पहली बार अमित ने अपनी मामी के सामने ऊंची आवाज़ में बात की थी ,जो कि लाज़मी भी था l चोरी के झूठे आरोप से आज उसके आत्मसम्मान को गहरी ठेस पहुंची थी l
” न… न.. नशा! ये आप क्या कह रहे हैं अमित भैया?? क्यूँ मुझे फंसा रहे हैं l मम्मी.. ये झूठ बोल रहे है l पक्का चोरी इन्होंने ही की है l आ…. आ..आज ही इन्हें मैंने आपकी अलमारी के आसपास घूमते हुए भी देखा था l”
अपनी पोल खुलते देख नवीन एक साँस में झूठ बोल गया l
” हाँ मेरे बच्चे ,मुझे तुझ पर पूरा भरोसा है l हम ही बेवकूफ़ हैं जो इस सांप को पाल रहें हैं l आने दे तेरे पापा को ऑफिस से ! बड़ा प्यार आता है ना उन्हें अपने भांजे पर l आज इसकी करतूत उन्हें भी तो पता चले l आज तो मैं इस सांप को अपने घर से निकलवा कर ही दम लूँगी l
“अपने बेटे नवीन को पुचकारते हुए सरोजिनी जी बोलीं l
अमित का क्रोध अब उस पर हावी हो रहा था l इससे पहले वो गुस्से में आकर कुछ उल्टा सीधा कर दे, वो दूर चला जाना था उस घर से l उसने अपना सामान बाँधा और तुरंत घर से निकल गया l उसे पता था अगर उसके मामा ऑफिस से आ गए तो वो उसे किसी तरह घर छोड़ कर जाने से रोक लेंगे l किन्तु अब उसका एक मिनट भी उस घर पर रुकना मुश्किल हो रहा था l उसके कदम बिना सोचे समझे रेल्वे स्टेशन की ओर बढ़ गए l उसकी आँखों से अनवरत अश्रु धारा बह रही थी l बदहवास सा वो ट्रेन में बैठ गया l उसे खुद नहीं पता था वो कहाँ जा रहा है l
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अनजान शहर में उसे आसरा मिला एक ढाबे में ,जहां पर दिन रात खुद को घिस कर उसने कुछ पैसे इकठ्ठा किए और किसी तरह अपनी पढ़ाई पूरी की l
आज उसकी मेहनत रंग लाई थी l वो आईएएस अफसर बन चुका था l आज रह रह कर उसे अपने मामा की याद आ रही थी l इन बीते वर्षों में उसकी कई बार इच्छा होती अपने मामा से मिल कर उन्हें सीने से लगाने की l लेकिन वो हमेशा खुद को ये सोच कर रोक लेता कि कुछ बन कर ही वो अपने मामा के समक्ष जाएगा l आज वो दिन आ गया था l
अमित मामा से मिलने उनके घर पहुंचा l घर पर ताला लगा देख उसने पड़ोसियों से पूछताछ की l
वहाँ अमित को जो पता चला उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई l
पड़ोसियों ने अमित को बताया कि नवीन दिन प्रति दिन नशे का आदि होता जा रहा था l अब हालात ये थे कि नशे के लिए पैसे ना मिलने पर नवीन अपने माँ बाप के साथ हाथापाई तक करने लगा था l एक दिन गुस्से में उसने अपने पिता की हत्या तक कर दी l किसी तरह से सरोजिनी जी की जान पड़ोसियो ने बचाई l उस दिन से नवीन फरार है l इस बात को दो साल बीत चुके है l सरोजिनी के इतने बुरे दिन आ गए हैं कि लोगों के घरों में बर्तन माँज कर वो दो समय का भोजन जुटा पाती है l
दो दिन पहले वो काम पर जाते समय गश् खाकर गिर पड़ी l कुछ लोगों ने मिलकर उन्हें अस्पताल पहुंचाया l वो अभी भी वहीँ भर्ती है l
ये सब सुनते ही अमित अस्पताल की ओर दौड़ा l वहां अपनी मामी की दुर्गति देख उससे रहा ना गया और वो फूट फूट कर रो पड़ा l अपने समीप किसी को रोता सुन सरोजिनी जी ने एक नजर अमित की ओर देखा l अमित को पहचानने में उन्हें ज़्यादा समय ना लगा l
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“अमित तू आ गया बेटा l मुझे पता था तू एक दिन ज़रूर आएगा l देख ना क्या से क्या हो गया l नवीन ने नशे की हालत में तेरे मामा को मार डाला l वो तो मुझे भी मार डालता, लेकिन ईश्वर ने शायद मुझे अभी तक इसलिए जिंदा रखा है ताकि तुझसे माफ़ी मांग सकूं l
रोज़ ईश्वर से यही प्रार्थना करती थी कि तू वापस आ जाए और मैं तेरे पैरों पर गिर कर ,तुझ पर किए गए हर ज़ुल्म के लिए ,तुझसे माफ़ी मांग सकूं l मुझे पता है मैं इस लायक नहीं पर मुझ पापिन को माफ़ करदे बेटा l मैं तुझसे दया की भीख मांगती हूं l तूने मुझे माफ़ कर दिया तो मैं सुकून से प्राण त्याग सकूंगी l”
बिलखते हुए सरोजिनी अमित के पैरों पर गिर पड़ी l
” अरे !!आप ये क्या कर रहीं है मामी l मैं कौन होता हूँ माफ़ी देने वाला l मुझे तो बस आपका आशीर्वाद चाहिए जिसके लिए मैं जीवन भर तरसता रहा l आज आपने मुझे बेटा कहकर पुकारा है मुझे सब मिल गया l चलिए अब अपने इस बेटे के साथ चलिए अपने नए आशियाने में l जीवन भर ममता के लिए तरसा हूं मैं मामी , बस अब और नहीं l “
मामी को गले से लगाते हुए अमित छोटे बच्चे की तरह रो रहा था l सरोजिनी जी स्नेह से उसका सर सहला रहीं थीं ,
और सोच रहीं थीं –
ईश्वर के खेल भी निराले हैं l जहां एक तरफ तो उसकी अपनी जनी औलाद ने उसे जीते जी मार दिया था वहीँ दूसरी ओर किसी और की औलाद ने आज उसमे एक नए जीवन का बीज़ बोया था l
आज वो फिर से माँ बनी थी l
समाप्त ll
#औलाद
स्वरचित ,
सर्वाधिकार सुरक्षित
ऋचा उनियाल बौंठियाल