“अरे आप भी ना….आप अभी तक निमंत्रण पत्र बांटने नहीं निकले…. अखबार आता नहीं है कि हाथ धोकर उसके पीछे पड़ जाते हैं…. जल्दी जाइए ना! मुझे भी परिधि को लेकर गहनों की दुकान पर जाना है। कितने सारे काम पड़े हैं अनिकेत को भी साथ ले लीजिए, थोड़ी मदद होगी!”…. गीता जी ने स्नेहपूर्ण झिड़की के साथ अखिलेश जी को कहा।
“अरे बाबा, जा रहा हूं…इतना गुस्सा ठीक नहीं है रानी साहिबा….आप चिंता ना करें…. यह सेवक आपकी आज्ञा का अक्षरश: पालन करेगा ” अखिलेश जी ने हंसते हुए नाटकीयता के साथ हाथ जोड़ते हुए कहा।
गीता जी को भी बरबस हंसी आ गई। उन्होंने बनावटी क्रोध दिखाते हुए आंखें दिखाईं! इस पर अखिलेश जी हंसते हुए पुत्र अनिकेत के साथ निमंत्रण पत्र बांटने निकल पड़े।
अखिलेश जी और गीता जी को दम लेने का भी अवकाश नहीं था। होता भी कैसे, एक सप्ताह के बाद ही तो उनके कलेजे का टुकड़ा, उनकी प्यारी सी गुड़िया परिधि का विवाह जो होने वाला था। कितने सारे काम मुंह बाए पड़े थे। उनकी प्रसन्नता और उत्साह का ठिकाना नहीं था।
अखिलेश जी पूरी ईमानदारी के साथ काम करते हुए पिछले वर्ष ही कृषि विभाग से लिपिक के पद से सेवानिवृत्त हुए थे।उन्होंने जीवन में बहुत अभाव देखे परंतु कभी इमानदारी का साथ न छोड़ा और पुत्री परिधि और पुत्र अनिकेत को भी पढ़ाया लिखाया और दोनों को इस योग्य बनाया कि आज दोनों अपने पैरों पर खड़े थे। गीता जी ने भी परछाईं की तरह हर कदम पर उनका साथ निभाया। अभावों में जीते हुए भी बहुत सुघड़ता और बुद्धिमत्ता से गृहस्थी चलाई।
उन्होंने किसी को कठिनाइयों का आभास तक नहीं होने दिया! सदैव एक मृदुहास उनके मुख पर सजा रहता था। उन दोनों की इसी तपस्या का ही परिणाम था कि उनके दोनों बच्चे आज स्वाबलंबी बन गए थे और ऊंचे पद पर कार्यरत थे। और सद्गुण और संस्कार उनके अंदर इस तरह कूट-कूट कर भरे हुए थे कि वह समाज के लिए एक उदाहरण सा प्रस्तुत करते थे।
कॉलेज के दिनों से ही साथ पढ़ने वाला राहुल परिधि को पसंद करता था। पसंद तो परिधि भी उसे बहुत करती थी परंतु परिधि के लिए उसके माता-पिता की पसंद सर्वोपरि थी। राहुल ने भी धैर्य के साथ शिक्षा पूरी होने तक परिधि की प्रतीक्षा की और उचित अवसर देखकर अपने माता पिता के साथ परिधि के घर उसका हाथ मांगने आया था। परिधि की इच्छा का आभास होते ही अखिलेश जी और गीता जी इस विवाह के लिए सहर्ष तैयार हो गए।
अगला भाग
आज तो तूने मेरी माँ बन कर दिखा दिया बिटिया (भाग 2) – निभा राजीव “निर्वी”
#त्याग
निभा राजीव “निर्वी”
सिंदरी धनबाद झारखंड
स्वरचित और मौलिक रचना
Ser