आज मैंने एक फैसला लिया है अपने आत्म सम्मान के लिए – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

हेलो वकील‌ साहब हां बहन जी  ,आप जरा घर आ जाइए कुछ काम है कुमुद जी ने कहा , ठीक है बहन जी मैं आता हूं।और थोड़ी देर में वकील साहब आ गए । कुमुद जी ने अलमारी से कुछ पेपर निकाले और वकील साहब की तरफ बढ़ा दिए । वकील साहब आपके सेठ जी ने जो वसीयत बनाई थी उसमें कुछ फेर बदल करनी है ।

हां बहन जी बताइए,देखिए जो घर का और‌ सोने चांदी का बंटवारा तीनों बेटों में करने को लिखा है उसकी जगह अब पूरी प्रापर्टी में चार हिस्से होंगे ।और जो मेरे गहने और रूपये पैसे हैं

वो भी मुझे अभी किसी को नहीं देना है जबतक मैं जीवित हूं वो सब हमारे पास रहेंगे ।जी अच्छा मैं पेपर ले जाता हूं और आपके कहे अनुसार बनाकर ले आता हूं।और हां चारों पेपर अलग-अलग बना दे जिससे मैं सबको उसके पेपर दे सकूं।

 ठीक है कहकर वकील साहब चले गए।

                  कुमुद जी और दयाशंकर जी के तीन बेटे थे । काफी जमीन जायदाद और पैसों के मालिक थे।घर में आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी थी। किसी तरह की कोई कमी न थी। तीनों बेटे बड़ी सुख सुविधा में पले बढ़े थे।पैसा भरपुर था तो बेटों ने पढ़ाई लिखाई पर कोई खास तवज्जो नहीं दिया ।बस थोड़ी थोड़ी पढ़ाई करके सबने पढ़ाई छोड़ दी ।

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कोई इंटर तक तो कोई भाई स्कूल तक बस आगे पढ़ने की किसी ने जहमत नहीं उठाई। तीनों बेटे नकारा ही निकल गए ।घर में पैसा था तो बस फिर क्या था सभी जरूरतें तो पूरी हो ही रही थी।बस बैठे बैठे खाते और जेब खर्च को पैसे पिताजी से लेते।

                 दयाशंकर जी के पास रूपया पैसा और जमीन जायदाद खुद का कमाया नहीं था पुश्तैनी था जो उन्हें अपने पिता और दादा से मिला था।जिसको दयाशंकर जी ने काफी अच्छे से सहेजा था और समझदारी से चलाया था। लेकिन दयाशंकर जी के तीनों बेटे नालायक निकल गए ।घर में कितना ही रूपया पैसा क्यों न हो जब दोनों हाथों से लुटाया जाएगा

तो एक न एक दिन खत्म हो ही जाएगा।इसी पैसे की वजह से बड़े बेटे को नशें की लत लग गई।वो ड्रग्स,,शराब , सिगरेट सभी का नशा करने लगा।वो घर में मां से जबरदस्ती पैसे लेता था अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए। बाकी दोनों बेटे नशा तो नहीं करते थे लेकिन काम धंधा कुछ न करते थे।दूसरा बेटा इंटर में पढ़ रहा था तभी किसी लड़की से चक्कर चला बैठा ।

लड़की , पिंकी के पिता एल आई सी में डपलप मेटं आफिसर थे ।इधर संजय और पिंकी का प्यार परवान चढ़ता जा रहा था। किसी तरह पिंकी के पिता को पता लग गया कि उनकी बेटी किसी लड़के के चक्कर में पड़ गई है तो उन्होंने पिंकी को बहुत डांटा लेकिन वो‌नही मानी । कहते हैं न कि प्यार अंधा होता है । किसी तरह संजय ने इंटर कर लिया और पिंकी ने भी ।

अब आगे  बी ए करने के लिए दोनों ने एडमिशन लिया । क्योंकि आगे अगर संजय एडमिशन न लेता तो पिंकी से कैसे मिलता।संजय ने घर में मां से कहा कि मुझे पिंकी से शादी करनी है लेकिन कुमुद जी ने ध्यान नहीं दिया कि अभी तो बड़ा बेटा ही बैठा है शादी को छोटे की कैसे कर दें । पिंकी के घर पर भी पिंकी पर दवाब बढ़ गया

कि यदि तुमने उस लड़के से मिलना जुलना न छोड़ा तो तुम्हारी पढ़ाई छुड़वा देंगे। लेकिन घर में दबाव के कारण पिंकी और संजय ने कोर्ट में जाकर शादी कर ली । दोनों अठारह साल के हो गए थे। शादी के बाद कोर्ट से संजय के घर फोन आया कि आपके बेटे ने शादी कर ली है आकर अपनी बहू को ले जाए ।अब शादी हो गई तो बहू को घर लाना ही पड़ा । लड़का कहां रखेगा पत्नी को वो कुछ करता धरता तो है नहीं ।

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                अब जल्दी जल्दी बड़े बेटे की शादी ढूंढी जाने लगी ।बड़ा बेटा तो नशेडी था लेकिन दयाशंकर जी का बड़ा नाम था तो गांव की गरीब घर की लड़की को ब्याह लाए । धीरे धीरे पैसा खत्म होने लगा ।

जब भी जरूरत होती दो तीन जमीने थी उसको बेच देते।दो जमीन बिक चुकी थी अब बस यही घर बचा था जिसमें सब लोग रहते थे।अब घर के खर्चे बढ़ गए ‌‌‌‌‌रोज रोज घर में कलह होंने लगे ।इसी बीच एक दिन दयाशंकर जी को हाटअटैक आया और वो भगवान को प्यारे हो गए।

         अब छोटे बेटे ने भी अपनी पसंद बताकर शादी कर ली ।अब खाना कौन बनाए , नाश्ता कौन बनाए ,घर के अन्य काम कौन‌ देखें बस इसी बात पर रोज लड़ाई झगडे होने लगे ।सब अपना-अपना बना लेते और कुमुद जी को कोई पूछता ही नहीं । तीन तीन बहुओं के होते हुए भी उनको खाना नाश्ता नहीं मिल पाता ।

सब एक दूसरे पर डालती रहती है ही क्यों करूं वो क्यों नहीं करती ।रोज रोज के झगडे से तंग आ गई थी कुमुद जी । उन्होंने सबको अलग-अलग करने का फैसला कर लिया । उनके फैसले से सब खुश भी थे । कुमुद जी ने सोचा था मेरा क्या कभी किसी के यहां तो कभी किसी के यहां खा लूंगी बस ऐसे ही चल जाएगा ।सब कहने लगे मां हम लोग का हमारा हिस्सा दे दो छुट्टी । हां बेटा यही सोच रही हूं मैं ।

           आज कुमुद जी की कुछ तबियत ठीक नहीं थी तो वो कमरे में आराम कर रही थी तभी उनके कानों में बड़े दोनों ‌‌‌‌‌‌‌‌ बेटों की आवाजें पहुंची संजय कह रहा था भईया आप बड़े हो मां को आप रखना क्यों ंनहीं नहीं मैं ही क्यों रखूंगा मां  को रखूंगा तुम रखो अरे मैं नहीं रखूंगा क्योंकि पिंकी बिल्कुल भी पसंद नहीं करती मम्मी को ।

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इतने में सबसे छोटा बेटा भी आ गया बड़े भाई ने उससे कहा छोटे मां को तुम रख लो , अच्छा भइया सारी बला मुझपर डालें दे रहे हो तुम दोनों बड़े हो जब तुम नहीं रख रहे हो तो मैं क्यों रखूं ।ना ना मैं नहीं रख सकता । कुमुद जी सबकी बातें सुन रही थी । अचानक उनको  दयाशंकर जी की बात याद आ गई कि कुमुद अपने जीते-जी सबकुछ लड़कों को न बांट देना नहीं तो एक रोटी के लिए तरह जाओगी ।

           आज बेटे कितने स्वार्थी हो गये है मां को बोझ‌समझ रहे हैं सब । कुमुद जी ने आज एक अपने आत्म सम्मान के लिए फैसला लिया कि वसीयत बदली जाएगी और घर के चार हिस्से होंगे । तीनों बेटों के और एक हिस्सा मेरा ।और जो कुछ रूपया पैसा और जेवर गहने है पहले तो सोचा था कि सबमें बराबर बराबर बांट दूंगी लेकिन नहीं बेटों ने आज मेरी आंखें खोल दी । यदि सबकुछ दे दिया तो मैं एक रोटी के लिए तरस जाऊंगी और ये लड़के तो मुझे दर-बदर कर देंगे।

           आज उन्होंने तीनों बेटों को बुलाया और कहा कि ये घर के तुम लोगों के हिस्से के पेपर है । सबने पेपर पढ़ा और फिर पूछा मां ये चार हिस्से क्यों । इसलिए मेरे बच्चों की मैं दर-बदर नहीं होना चाहती ।मैं कल तुम लोगों की बातें सुन रही थी जो मुझे अपने साथ रखने के लिए लड रहे थे तुम सब ।

अपने आत्मसम्मान के खातिर मैंने ये फैसला लिया है।मैं अपने घर के हिस्से में रहूंगी ।और तुम लोगों से कोई मदद नहीं लूंगी ।एक काम वाली रखूंगी वहीं मेरा सारा काम खाना पीना करेगी ।और हां जो मेरी हारी बीमारी में मेरा साथ देगा उसको अपने हिस्से का घर दे दूंगी चाहे वो तुममें से कोई हो या मेरी मदद करने वाला कोई बाहर का हो ।

तीनों बेटे एक दूसरे का मुंह ताकने लगे कि मां इतना बड़ा फैसला ले सकती है। नहीं मां तुम मेरे साथ रहना संजय बोला । तेरी बीवी तो मुझको पसंद नहीं करती न यही कह रहा था।

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          नहीं मैं अपने आत्मसम्मान को गिराकर किसी के साथ नहीं रहूंगी।जाओ तुम लोग यहां से ।सब अपना सा मुंह लेकर चले गए।

     दोस्तों आजकल बहुत घरों में ऐसा हो रहा है ।घर जायदाद सब अपने नाम कराकर लड़के मां बाप को फुटपाथों पर या वृद्धाश्रम में छोड़ आते हैं । जीवन की आखिरी समय मां बाप का बहुत कष्टकारी हो जाता है ।तो ऐसा फैसला करना पड़ता है जैसा कि कुमुद जी ने ‌‌‌‌‌‌‌‌‌किया।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

12 मार्च

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