सीन 1–
दादी आज गांव से आई हैं।
ओफ्फो दादी मां कितनी चीजें लेकर आई हैं आप
क्या करुं बेटा.. तुम्हारे दादा जी के चले जाने के बाद सारी खेती मजदूरों के सहारे चल रही हैं, कितना कुछ होता है खेत में, आते समय लगता है कितना ले चलूं बच्चों के लिए, यहां तुम्हारे पापा की नौकरी के चलते गांव घर का कुछ खा नहीं पाते। बाजरे के लड्डू,तिल का लड्डू, मूंगफली पाक… सब रमैया काकी को बुला कर बनवा लिया.. ये दाल चावल भी बोरी में लदवा लिया.. मैंने कहा बस ट्रेन में चढ़वा लूं.. वहां पहुंच कर तो मेरा बेटा स्टेशन पर मिल ही जाएगा.. सारा सामान उतरवाने के लिए..
मां, लीजिए नाश्ता कीजिए, फिर आराम से सो जाइए,शाम को ऋषि और नम्रता काॅलेज से आ जाएंगे.. फिर सबके साथ बातें कीजिएगा..
कह कर सुशीला जी ने अपनी सासू मां को नर्म लिहाफ ओढ़ा कर सुला दिया…
रात को सभी बात करते हुए खाना खा रहे थे.. जबसे सुशीला जी के ससुर जी का देहांत हुआ ऐसे ही चल रहा है,सासू मां कभी गांव में तो उनके पास रहती हैं। कहती हैं अभी पूरी तरह घर छोड़ कर यहां नहीं रहूंगी,गांव में आस पास बहुत से अपने हैं, तो मन लगा रहता है…. सब जानते हैं झटके से जड़ से उखड़ नहीं पाएंगी.. शनै शनै यहां रहने को तैयार हो जाएंगी,
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रात को सबने देर तक बात की
सुबह सुशीला जी ने कमरे में झांका तो
सासू मां अभी तक सो रही हैं
कोई बात सफर की थकान भी है, मिट जाएगी तो रुटीन पर आ जाएंगी.. वो तो बहुत सुबह की जगने वाली हैं। सुशीला जी भाग भाग कर गृहस्थी के काम समेटने लगी.. जो चाहे कितना भी निपटाओ, रोज सूरज उगने के साथ फिर वहीं आ जाता है
वो लग गई सबके मन का नाश्ता बनाने में…
सीन 2–
अविनाश जी ( सुशीला जी के पति) बाहर बैठक में आफिस की फाइलें लिए बैठे हैं , सुशीला जी उन्हें एक बार ( और) चाय का कप पकड़ा कर आईं.. ऐसे ही तो करते हैं.. देर रात तक काम मतलब कड़क अदरक, इलायची वाली चाय नींद भगाने के लिए और काम करने के लिए भी
अविनाश जी सुबह देर तक सो रहे हैं?
तो क्या हुआ, इंसान देर रात तक थकेगा,काम करेगा तो शरीर को आराम भी तो चाहिए। सुशीला जी ने खिड़कियों के पर्दे लगा दिए, जिससे चढ़ते दिन की धूप उन्हें परेशान ना करें.. और लग गई किचन में.. खाना बनाने.. जैसे ही उठेंगे जल्दी जल्दी नहा कर आफिस के लिए भागेंगे… मैं उनके मन की( फेवरेट चीजें) बना कर रखूंगी तो उन्हें कितना अच्छा लगेगा.. पति के माथे पर बिखर गए बालों को हाथ से हटा कर,माथा चूमने की इच्छा हुई… नहीं नहीं, बच्चे ( कोई) क्या कहेगा
सुशीला जी जुट गई व्यवस्था करने में….
कोई नहीं
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थके हैं तो थोड़ी देर तक सो लें!!
सीन 3–
बेटा देर रात की फ्लाइट से घर पहुंचा है.. खाना नहीं खा रहा है.. सुशीला जी ने गर्म दूध की गिलास पकड़ाई.. सुबह ही खाऊंगा मम्मी
कोई बात नहीं.. अभी आराम करो
बेटा सुबह देर से उठा
नीद तो ठीक से आई ना बेटा… अब थकान तो नहीं.. चलो फ्रेश हो जाओ तो… फिर आओ डाइनिंग टेबल पर…
वाओ मम्मी.. क्या नाश्ता बना है
हां बेटा सब खा कर निकल चुके… बस तुम सो रहे थे ना
मैंने तुम्हें डिस्टर्ब करना उचित नहीं समझा
कोई बात नहीं
अब खा लो…
मम्मी सब कुछ मेरे मन का है.. भूख भी जोरों की लगी है
खाओ बेटा.. तुम सबको खाते देखकर ही मेरी सारी थकान मिट जाती है..
सीन 4–
कहां हो भाई
अभी तक सुबह की चाय नहीं मिली.. अविनाश जी सुबह की वाक करके आ गए.. सुशीला जी को सोता छोड़ गए थे
लगा कल ढेर सारे मेहमान आ गए थे.. किचन समेटने में टाइम लग गया था.. थोड़ा सो रही होगी
मगर अभी तक?
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बहू मैं नहा भी ली.. चाय नाश्ता कहां है
सासू मां ने भी बेटे के सुर में सुर मिलाना शुरू कर दिया
शहर के चोंचले देखो, गांव हो तो अंधेरे मुंह उठकर काम करना पड़े.. कपड़े मशीन धोती है, मसाला मिक्सी पर पिसता है.. काम ही क्या रहता है.. तू भी कुछ बोलता नहीं
मम्मी मैंने कहा था, मुझे आज जल्दी निकलना होगा… मेरा नाश्ता और टिफिन दोनों तैयार कर देना… आप कितनी लापरवाह और भुलक्कड़ होती जा रही हैं
मम्मी… मम्मी.. कहां हैं भई
अरे नव्या? मैं क्या.. तुम ये नाश्ता बना कर डाइनिंग टेबल पर रख रही तो, तुम्हारा तो एक्जाम है ना
मम्मी कहां हैं
कहां है भाई
लापरवाही की भी हद होती है
बहू को तो सिर् पर चढ़ा रखा है
बस… बस कीजिए आप सब.. ये सच है कि मेरा भी पेपर है, मुझे भी.. आप सबको जल्दी निकलना है.. आज मम्मी सुबह जल्दी नहीं उठी तो किसी ने कमरे में जाकर देखा.. कि कैसी है वो.. सबने अपनी जरूरतों के हिसाब से बड़बड़ाना शुरू कर दिया। जब सब देर तक सोते हैं तो मम्मी प्यार से कहती हैं,देर तक काम किया है.. थकान भी उतरनी जरूरी है… क्योंकि सब इंसान हैं तो अतिरिक्त काम पड़ने पर थक जाएंगे.. और मम्मी वो मशीन हैं क्या?.. मशीन भी कभी कभी बिगड़ जाती है
मैंने मम्मी को उठते ना देख कर उनके कमरे में जाकर देखा वो बुखार में तप रही थीं.. उन्हें चाय बिस्किट खिला कर दवा दे दिया और जल्दी जल्दी नाश्ता बनाने लगी जिससे सभी अपने काम पर निकल जाएं
आप कमरे में पलट कर गए पापा?.. सिर्फ देखने ही कि अभी तक मम्मी क्यों नहीं उठी है?
और आप दादी मां? आप तो गांव में सारा काम अपने हाथ से करती हैं, कहती हैं मुझे अपना शरीर चलता फिरता रखना है.. कभी मम्मी के काम में छोटी सी मदद भी कराई?.. जानना चाहा आपने कि आपकी बहू अभी तक क्यों नहीं उठी है?
और आप भाई?.. सिर्फ मम्मी मम्मी चिल्लाते हो.. मम्मी के लाडले बेटे हैं.. किस बात के..
सबकी सुख सुविधा का ख्याल रखने वाली मां एक दिन देर से उठे, तो उससे किसी ने कहा
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कोई बात नहीं मां.. आपको आराम तो मिला.. तबियत ठीक नहीं है तो चलो हम सब मिलकर काम कर लेते हैं
सबको आराम करते देख कर सबकी सुविधा का ध्यान रखने वाली मां की किसी को परवाह नहीं?
घर में सुबह से चिल्लमचिल्ली मच गई
अरे मां आज इतनी देर तक सो रही है???
क्यों भाई… वो भी हम सबकी तरह हाड़ मांस से बनी इंसान नहीं है क्या
आप सब नाश्ता कर लीजिए, मुझे भी निकलना है
अब तक नव्या नाश्ते का डोंगा मेज पर रख कर बिलख कर रो रही थी..
कहने में बात छोटी सी है
क्या मां को भी ( कभी) देर तक सो जाने का हक़ है?
जो उसकी थकान मिटा दे
कभी,.. सारी जिम्मेदारियों को दरकिनार कर
जो उसमें फिर से वैसी ही ऊर्जा भर दे.. जैसी वाली( चिंता मुक्त) साउंड स्लीप. सबको चाहिए ?
कि वो देर से उठे.. और कोई कहे.. कोई बात नहीं, तुम्हारी तबियत तो ठीक है ना!.. चलो नाश्ता तैयार है
यकीन मानिए
एक स्त्री को, महारानी वाली कोई कुर्सी नहीं बस इतनी सी देखभाल.. प्यार.. अपनापन चाहिए.
वो तो फिर से तत्पर हो कर खड़ी हो कर खड़ी हो जाएगी,उस घर ( के काम) को संभालने के लिए
जिस घर की वो
तथाकथित.. रानी कहलाती है!!
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बस ऐसे इंसान का साथ चाहिए जो सच्चे मायनों में हमसफ़र साबित हो…. मात्र अपनी जरूरतें, इच्छाएं ना पूरी कराए,उसका भी हर हाल में साथ निभाए… !!
एक अनुत्तरित प्रश्न .. जो हवा में तैर रहा था
सब अपने अपने ( गिरेबान) में झांक कर उसका जवाब ढूंढ रहे हैं।
पूर्णिमा सोनी
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#हमसफर, कहानी प्रतियोगिता, शीर्षक — आज मां देर तक सो रही है..