” आज की बरसात ” – गोमती सिंह

           ऐसे तो तुम्हें सैकड़ो काम पड़े रहते हैं।  तुम्हारे साथ वक्त बिताने का इससे बेहतर मौका कब मिलता ।

     मुझे बहुत डर लग रहा है जी , और आपको मस्ती सूझ रही है। 

        बारिश, बिजली और गर्जना की रफ्तार बढती जा रही थी तभी सामने एक ढाबा दिखाई दिया जहां चाय पकौड़ी बन रहे थे । मनोज ने कहा – वो देखो आज भगवान भी युगल जोड़े की बराबर ब्यवस्था में लगे हुए हैं,  चलो ढाबे में रूक जाते हैं। 

         करीब आधे घंटे की तेज वर्षा के बाद  मौसम शान्त हुआ।  चाय पकौड़ी खा पी कर दोनों ने सफर की पुनः शुरुआत किए।  फिर हल्की सी सूर्यास्त की ओर ढलते सूरज की धूप दिखाई देने लगी ।

       उर्मिला को जान में जान आई हे भगवान! अब थोड़ा अच्छा लगा,  “आज की बरसात ” हम कभी नहीं भूलेंगे न मनोज !  बिलकुल मैं तो कहता हूँ ऐसी बरसात रोज ही रहे और हर रोज जिंदादिली में गुजरे ।

           मानाकि जिंदगी में ऐशो-आराम की भी जरूरत होती है । कार, बंगला ,  प्रसाद की भी जरूरत होती है मगर ये सुख के पर्याय नहीं है  मेरी उमी ! आज जो आनंद मिला वो नैसर्गिक है।  कृत्रिम से कोसों दूर। 

      तब उर्मिला भी हाँ में हाँ मिलाने लगी । हां जी आप सही कह रहे हैं।  आज बहुत मज़ा आया।  इस तरह बातें करते सड़क में दौड़ते हुए उन लोगों का घर आ गया,  उर्मिला की माँ ने दरवाजा खोला तो अपने बेटी-दामाद को तीज पर्व में देखकर फूला नहीं समा रही थी ।  मारे खुशी के झूम उठी । और उर्मिला और मनोज का सफर पूरा हुआ। 

          ।।इती।।

     – गोमती सिंह

        छत्तीसगढ़

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित 

भाद्रपद का महीना चल रहा था यानि कि तीज पर्व  आने में  मात्र तीन दिन  बचा था । इस महीने में बरसात अपने पूरे यौवन में रहता है कब लहराता बादल आ जाए और झमाझम बारिश हो जाए इसका कोई वक्त नहीं रहता।

             शाम के लगभग  तीन चार बज रहे थे आसमान में धूप  खिली थी खिड़की से झांक कर उर्मिला बाहर का नजारा देख कर कहने लगी – ए जी ! सुनो न , मौसम खुला हुआ है क्यों न  मायका चले जाते हैं कितने वर्ष हो गये तीज में माँ के पास नहीं गई हूँ। 

                 मनोज भी सनकी मिज़ाज के थे कहने लगे- चल देंगे, मगर पीहू को साथ में लेकर जाना ठीक नहीं होगा।  ” पीहू को माँ जी के पास छोड़ देंगे न , वो तो बड़े मजे से माँ जी के पास रह जाती है । “

        माँ जी भी सरल स्वभाव की थी ज्यादा टोका टाकी नहीं करती थी ,इजाज़त मिलते ही निकल पड़े दो दीवाने शहर में, बाइक लेकर सफर में। 

           बाइक सड़क पर दौड़ने लगी ठंडी हवाओं के झोंके के साथ दोनों तुक में तुक मिलाते चले जा रहे थे ।

       तभी मौसम ने मिज़ाज बदल लिया अचानक तेज बारिश होने लगी आकाशीय बिजली की चमक और बादल की गर्जनाहट से उर्मिला मारे डर के मनोज को कमर से पकड़ कर बोली – कितने दिनों से कह रही हूँ एक छोटी मोटी कार ले लो  । कार में होते तो बारिश की परवाह ही नहीं होती ।

         जिसका नाम ही मनोज है ; फितरत का अंदाजा कौन लगाए !!! अरे पगली ! मैं तुम्हें तीज मनाने थोड़े ही ले जा रहा हूँ, मुझे तो बारिश का आनंद उठाना था ।


           ऐसे तो तुम्हें सैकड़ो काम पड़े रहते हैं।  तुम्हारे साथ वक्त बिताने का इससे बेहतर मौका कब मिलता ।

     मुझे बहुत डर लग रहा है जी , और आपको मस्ती सूझ रही है। 

        बारिश, बिजली और गर्जना की रफ्तार बढती जा रही थी तभी सामने एक ढाबा दिखाई दिया जहां चाय पकौड़ी बन रहे थे । मनोज ने कहा – वो देखो आज भगवान भी युगल जोड़े की बराबर ब्यवस्था में लगे हुए हैं,  चलो ढाबे में रूक जाते हैं। 

         करीब आधे घंटे की तेज वर्षा के बाद  मौसम शान्त हुआ।  चाय पकौड़ी खा पी कर दोनों ने सफर की पुनः शुरुआत किए।  फिर हल्की सी सूर्यास्त की ओर ढलते सूरज की धूप दिखाई देने लगी ।

       उर्मिला को जान में जान आई हे भगवान! अब थोड़ा अच्छा लगा,  “आज की बरसात ” हम कभी नहीं भूलेंगे न मनोज !  बिलकुल मैं तो कहता हूँ ऐसी बरसात रोज ही रहे और हर रोज जिंदादिली में गुजरे ।

           मानाकि जिंदगी में ऐशो-आराम की भी जरूरत होती है । कार, बंगला ,  प्रसाद की भी जरूरत होती है मगर ये सुख के पर्याय नहीं है  मेरी उमी ! आज जो आनंद मिला वो नैसर्गिक है।  कृत्रिम से कोसों दूर। 

      तब उर्मिला भी हाँ में हाँ मिलाने लगी । हां जी आप सही कह रहे हैं।  आज बहुत मज़ा आया।  इस तरह बातें करते सड़क में दौड़ते हुए उन लोगों का घर आ गया,  उर्मिला की माँ ने दरवाजा खोला तो अपने बेटी-दामाद को तीज पर्व में देखकर फूला नहीं समा रही थी ।  मारे खुशी के झूम उठी । और उर्मिला और मनोज का सफर पूरा हुआ। 

          ।।इती।।

     – गोमती सिंह

        छत्तीसगढ़

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित 

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