बेटियां ही नहीं आज बेटे भी पराया धन हो जाते हैं,
पढ़ने के लिए जब वो घर छोड़ विदेश जाते हैं…
छोड़ जाते हैं पीछे गिटार और म्यूजिक सिस्टम अपना,
हर चीज से मोह और लगाव घर पर ही भूल जाते हैं…
जब वो घर छोड़ विदेश….
कल तक करते थे जो हजार नखरे खाना खाने में,
आज ब्रेड पर जैम लगा चुपचाप खा लेते हैं…
जब वो घर छोड़ विदेश….
जो बेटे कभी बिन प्रेस के कपड़े नहीं पहनते थे,
आज वह खुद कपड़े धोते और यूं ही पहन लेते हैं…
जब वो घर छोड़कर विदेश….
मम्मी पापा की छोटी-छोटी शिकायतें दादी बाबा से करने वाले, आज उनकी हर बात चुप से सुन लेते हैं…
जब वो घर छोड़ विदेश…
मां की बगल में जो सो जाते थे बेफिक्र,
आज विन तकिये बैग पर सिर रखकर ही सुस्ता लेते हैं…
जब वो घर छोड़ विदेश….
करते थे जो हंँसी ठिठोली छोटी बहन संग हर पल,
आज उन पलों को याद कर अपने आंसू आंखों में छुपा लेते हैं….
जब वो घर छोड़ विदेश….
कहते थे पापा से आप रहते हो सीधे-सादे से,
आज उसी सादगी को अपने भीतर पाते हैं….
जब वो घर छोड़ विदेश ……
होती थी जिन लाड़लो को मामूली धूल से भी एलर्जी,
आज दुनिया भर की धूल फांकते और संघर्ष करते जाते हैं….
जब वो घर छोड़ विदेश…
ईश्वर इनके संघर्षों को बदले सफलता में इनकी,
जब ये बच्चे अपनी राह, अपनी मंजिल खुद बनाते हैं…
जब वो घर छोड़ विदेश..
ऋतु गुप्ता
खुर्जा बुलंदशहर
उत्तर प्रदेश