रमा ने जब से ससुराल में कदम रखा रसोई ही उसका कमरा हो गया था । वह सिर्फ़ रात को ही अपने कमरे में सोने जाती थी वह भी रात के ग्यारह बजे तक पूरे घर का काम ख़त्म करके।
सुबह चार बजे से उठकर सासु माँ बैठ जाती थी और उसके कमरे का दरवाज़ा खटखटा कर उसे जगा देती थी ।
भूले बिसरे कभी ऐसा हो जाए कि वह उठ नहीं पाए तो घर के बर्तन की खनक मुहल्ले के छोर तक सुनाई देती थी ।
वे ग़ुस्से में है यह जानकर भी ससुर जी जानबूझकर आग में घी डालने का काम करते थे उनके ही सामने खड़े होकर पूछते थे कि बेटा मैंने आधे घंटे पहले तुम से चाय माँगी थी और तुमने अब तक नहीं दी है ।
बस फिर क्या सासु माँ को तो रमा को झाड़ने के लिए एक मौका और मिल जाता था कि मायके में यही सीख कर आई हो मेरी नहीं तो कम से कम उनकी इज़्ज़त करना तो सीख लो ।
रमा आँखों में आँसू भर कर सोचने लग जाती थी कि आख़िर ससुर जी ने चाय कब माँगी थी । यह हर दो दिन की बात थी । सासु माँ तो उसे डाँटने के लिए नए नए बहाने ढूँढती रहती थीं ।
उस दिन रमा की ननंद ससुराल से आई हुई थी । वह अपने माता-पिता को जब सास ससुर के बारे में बता रही थी तो दोनों एक दूसरे को देखने लगे थे क्योंकि जैसे वे अपनी बहू को ताने देते थे वैसे ही उनकी बेटी को सुनने पड़ रहे थे ।
बस अब रमा अकेली रसोई में नहीं खटती थी और सब उसकी मदद कर देते थे वह आराम की ज़िंदगी जीने लगी । चलिए दोस्तों देर आए दुरुस्त आए सास ससुर में सुधार तो आया है ।
के कामेश्वरी