आग में घी डालना – डाॅ संजु झा : Moral Stories in Hindi

दोपहर में अचानक से फोन की घंटी बजने से सुधा की नींद टूट जाती है।उधर से फोन पर उसका पति कमल कहता है -“सुधा! तैयार रहना। मैं जल्द आ जाऊॅंगा। पुस्तक मेला देखने प्रगति मैदान चलेंगे।”

 “अच्छा” खुश होकर सुधा कहती हैं।

सुधा मन-ही-मन सोचती है कि    अब फिर से  कमल मेरी भावनाओं की कद्र करने लगा है, एक समय तो तलाक की ही नौबत आ गई थी!”

सुधा जल्दी से अपने काम निबटा लेती है‌। घड़ी देखती है कि अभी कमल के आने में देरी है। बैठे-बैठे अपने टूटते-बिखरते रिश्तों की दास्तां उसकी ऑंखों के सामने नाचने लगी। दिल्ली आने से पहले उसके पति कमल की पोस्टिंग कानपुर में थी।

वहाॅं उसकी पड़ोसन नीना थी,जिसे वह बड़ी बहन समान मानती थी।पति  के दफ्तर और बच्चों को स्कूल जाने के बाद कभी वह नीना के यहॉं , तो कभी नीना उसके यहॉं पहुॅंच जातीं। दोनों आपस में अपने सुख-दुख बॉंटतीं।

नीना अपनी चिकनी -चुपड़ी बातों से सुधा को खुश रखती,परन्तु  मन-ही-मन सुधा के खुशहाल जीवन से ईर्ष्या करती।नीना का पति अपने दो बेटों के साथ छोटा-सा व्यापार करता था। तीनों शराब के आदी थे, जिसके कारण पैसों को लेकर आए दिन उसके घर में झगड़ा होता रहता था।

सुधा के बेटा-बेटी काफी होनहार थे, माता-पिता की काफी इज्जत करते थे। यह सब देखकर सुधा के कलेजे पर सॉंप लोटते रहते।बच्चों की पढ़ाई के कारण सुधा का नीना के यहॉं जाना काफी कम हो गया था। अधिकांश नीना ही उसके यहॉं आ जाती थी।

एक दिन पति और बच्चों के जाने के बाद अचानक से सुधा को बुखार आ गया।उसी समय उसकी पड़ोसन आ पहुॅंची।उसे बुखार से कराहते देखकर सिर सहलाते हुए कहा -“अरे सुधा!तुम बुखार से तड़प रही हो और तुम्हें देखनेवाला कोई नहीं है?”

सुधा -“अरे  नहीं दीदी! बुखार तो उनके जाने के बाद हुआ है!”

नीना -“सुधा!तुम बहुत भोली हो। तबीयत तो कुछ सुबह से ही ढ़ीली होगी, अचानक यूॅं बुखार थोड़े ही होता है! तुमने तो पति और बच्चों की खातिर सरकारी नौकरी छोड़ दी, फिर भी उन्हें तुम्हारी परवाह नहीं है।”

नीना की बातें सुनकर सुधा मन-ही-मन सोचने लगी। सचमुच! तबीयत तो सुबह से ही खराब लग रही थी, परन्तु पति कमल से ये भी नहीं हुआ कि पल भर ही खड़े होकर हालचाल पूछ लेतें। बच्चों की तो अपनी ही दुनियॉं है। दुःख -तकलीफ में तो नितान्त ही अकेली पड़ जाती हूॅं।

सुधा को गुम देखकर नीना ने आग में घी डालते हुए कहा “सुधा बहन!क्या  सिर्फ पैसा ही खुशियों की गारंटी तो नहीं है। भावनाओं को समझने  के लिए संवेदनशील पति भी तो जरुरी है!”

सुधा ने सोने का बहाना कर नीना को जाने तो कह दिया, परन्तु उसकी बातें उसके खामोश दिल में तूफ़ान जगा गई ं। छोटी-छोटी बातें उसके मन को कुरेदकर आहत करने लगीं।कमल के कहने पर दोनों बच्चों की खातिर उसने बैंक की नौकरी छोड़ दी, फिर भी उसकी कोई कद्र नहीं है।कमल अपनी नौकरी में व्यस्त और बच्चे अपने भविष्य निर्माण में ।घर में एक वहीं है,जो बेकार उपेक्षित सी पड़ी रहती है।सबके लिए वह मात्र आया बनकर रह गई है।उसका वजूद खो चुका है।

धीरे-धीरे नीना की लगाई हुई आग से सुधा का घर झुलसने लगा।नीना अपनी बातों में शहद की चाशनी लपेटकर सुधा को पति के खिलाफ भड़काने लगी।बात यहॉं तक पहुॅंच गई  कि पति-पत्नी के तलाक तक पहुॅंच गई। उनके तलाक की बात सुनकर उसकी दूसरी पड़ोसन आशा ने आकर सुधा को समझाते हुए कहा “-सुधा! तुमको  छोड़कर नीना की असलियत  सारा मोहल्ला समझता है।उसका खुद का परिवार सुखी नहीं है,इस कारण वह दूसरों के सुखी परिवार में मनमुटाव डालकर आग में घी डालने का काम करती है। छोटे-छोटे मनमुटाव को भयंकर रुप देकर अपना सुखी जीवन बर्बाद मत करो।”

नीना की असलियत जानकर सुधा की आंखें खुल गईं।कमल ने भी अपनी ग़लती समझकर माफी मॉंगते हुए कहा -“सुधा! मुझे माफ़ कर दो। मैं काम में व्यस्त होकर तुम्हारे प्रति उदासीन हो गया था। आगे से ऐसा नहीं होगा।”

सचमुच उसके बाद दिल्ली तबादला हो गया ।सभी उसकी भावनाओं की कद्र करने लगें और उसका परिवार बर्बाद होने से बच गया। सोचते-सोचते उसकी नज़र घड़ी पर पड़ी और वह गुनगुनाते हुए तैयार होने लगी।

समाप्त।

लेखिका -डाॅ संजु झा स्वरचित।

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