रिया और सिया दोनों जुड़वा बहनें, बहुत प्यारी। एक दूसरे से इतना प्यार करती थी मानो दो जिस्म एक जान हो। दोनों लगभग पाँच साल की थी। वैसे तो उन्हें कुछ ज्यादा नहीं पता था पर जब रक्षाबंधन पर बाजार में रंग-बिरंगी राखियाँ सजती तो बाल सुलभ कुतूहल माँ से पूछ बैठता,” मम्मी हमारा भाई कहाँ है? हम भी उसे राखी बांधेगे।”
वैभवी की आँखों में आँसू आ जाते। दोनों बच्चियों के जन्म के पश्चात यूट्रस में हुई रसोली की गाँठ की वजह से डॉक्टर को वैभवी का यूट्रस निकालना पड़ा था। अब वह पुनः माँ नहीं बन सकती थी पर बच्चियों को क्या समझाती?
हर रक्षाबंधन पर रिया और सिया के रिश्ते के भाई उनसे राखी बँधवाना चाहते पर बच्चियों का मन नहीं मानता था। रक्षाबंधन पर हर साल दोनों बच्चियाँ मायूस हो जाती।
अब रिया और सिया पंद्रह साल की हो गई थीं। पर न जाने क्यों? आज रक्षाबंधन पर उनकी खुशी देखते ही बनती थी। पता नहीं! दोनों गुपचुप गुपचुप क्या कर रही थी?
वैभवी सब कुछ देख रही थी पर कुछ समझ नहीं पा रही थी। वह दोनों को टोक कर उनका मूड खराब नहीं करना चाहती थी। आखिर रक्षाबंधन पर पहली बार दोनों इतनी खुश थी। धीरे-धीरे सभी रिश्तेदार घर पर इकट्ठा होना शुरू हो गए। चाय नाश्ते के उपरांत सभी रिया और सिया के पापा को राखी बांधने लगे कि अचानक रिया और सिया एक सजी हुई थाली लेकर आई और एक दूसरे को राखी बांधने लगी। यह देख कर रिया की बुआ बोली,” बेटा! यह आप क्या कर रहे हो? राखी तो भाई को बाँधी जाती है, बहन को नहीं।”
“जी, बुआ!आप सही कह रही हैं” सिया बोली,”राखी भाइयों को बाँधी जाती है पर राखी तो रक्षा सूत्र है और जो हमारी रक्षा करें,हम से प्रेम निभाए,उसे ही तोरक्षा सूत्र बाँधा जाता है और मैं और सिया एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं और अपना पूरा जीवन एक दूसरे से जुड़े रहेंगे।इसलिए आज से हम एक दूसरे को ही राखी बाँधा करेंगे।”
“जी, बुआ! सिया सही कह रही है। हम दोनों ना केवल एक दूसरे को राखी बाँधेंगे बल्कि पापा मम्मी के न रहने के एक दूसरे का सहारा भी बनेंगे। हमारा कोई भाई नहीं है इसलिए एक दूसरे के लिए मायके और भाई के फर्ज हम दोनों पूरे करेंगे।” सिया की बातें सुनकर पापा मम्मी की आँखें डबडबा गई। उन्होंने दोनों बच्चियों को अपने गले से लगा लिया।
“वाकई भैया! हमारी दोनों भतीजियाँ बहुत समझदार हैं।” सिया की बाजी बोलीं।
“चल,सिया! इसी बात पर राखी बाँधे और मिठाई खाएँ।” सिया के हाथ से अपना गिफ्ट छीनते हुए रिया ने कहा।
उन दोनों की खुशी और शरारती देखकर सभी हँसने लगे।
यह कहानी पूर्णतया मौलिक है।
स्वरचित
ऋतु अग्रवाल
मेरठ