आ अब लौट चलें हम…! – सीमा प्रियदर्शिनी सहाय : Short Moral Stories in Hindi

Short Moral Stories in Hindi : “बड़े पापा आप आ गए …!”आंखों में आंसू लेकर शुभम ने दिवाकर जी के पैर छूते हुए कहा।

“आ गया मैं ?और क्या क्या खबर सुनाओगे मुझे इस उम्र में… कुछ अच्छी खबर भी  सुनाया करो।

अब छोड़ो बताओ कैसा है अनुज?” हताशा भरे शब्दों में दिवाकर जी ने शून्य में ताकते हुए शुभम से कहा।

“बड़े पापा  भैया अब ठीक हैं। खतरे से बाहर हैं। बस दो-तीन दिन में छुट्टी मिल जाएगी।”

“बहुत अच्छा…!, दिवाकर जी ने तसल्ली की सांस लेते हुए कहा,फिर पूछे 

“और इलाज का खर्चा कितना आया?”

” बड़े पापा तीस लाख का बिल आया है…!”

“हम्म…म्म…!!!, लंबी सांस लेते हुए दिवाकर जी ने कहा

तीस लाख… जितना जिंदगी में कमा नहीं पाए उतना अस्पताल में उड़ा दो…  और फिर कर्ज में डूब जाओ!”

“बड़े पापा भैया ने हेल्थ इंश्योरेंस करा लिया था। उनकी कंपनी की तरफ से भी कुछ हेल्प हो गई है और  हेल्थ इंश्योरेंस की तरफ से भी पैसे मिल गए हैं। कुल मिलाकर घर का कोई खर्चा नहीं हुआ है।”

” हां, लंबी सांस लेते हुए दिवाकर जी ने कहा अब यही दलील दो…पैसे नहीं लगे बहुत अच्छी बात है लेकिन अभी से .. अस्पताल का चक्कर..?

अभी अनुज की उम्र ही क्या है?इस उम्र में हार्ट सर्जरी?

और फिर भगवान न करे अगर उसे कुछ हो गया तो..फिर उसके पीछे उसके परिवार का क्या होगा…अभी तो शादी के पांच साल भी नहीं हुए पूरे..!”

 दिवाकर जी ने अपने चेहरे को रुमाल से पोछते हुए कहा।

 शुभम और अनुज दिवाकर जी के छोटे भाई पंकज के बेटे थे।

दिवाकर बाबू गांव में एक शिक्षक थे और उनके छोटे भाई पंकज एक बहुआयामी कंपनी के कर्मचारी।

 उनकी तनख्वाह लाखों में होती थी ।बड़े-बड़े शहरों में घूमना ,रहना, खाना ऐशो आराम की जिंदगी…!

 इसके विपरीत दिवाकर बाबू गांव में रहते थे। अपनी नियमित दिनचर्या के साथ। जिसके कारण 70 साल से ज्यादा होने के बावजूद वह अभी तक बिल्कुल स्वस्थ थे।बीमारी नाम की कोई भी चीज नहीं थी।

उनके छोटे भाई पंकज दो साल पहले यह हार्टअटैक से उनकी मृत्यु हो गई थी।तब से दिवाकर बाबू उनके बच्चों को लेकर बहुत सतर्क रहते थे।

इस बात को बीते 2 साल नहीं हुए थे कि अब उसी बीमारी में अनुज अस्पताल में भर्ती था।

 दिवाकर बाबू इन शहरी बाबुओं को बार-बार समझाया करते थे अपने सेहत पर ध्यान दो, अपने शरीर का ध्यान रखो, स्वास्थ्य की उपेक्षा मत करो नहीं तो यह शरीर दुख का घर है यह सिर्फ दुख देगा!

 स्वास्थ्य ही पूंजी है। स्वास्थ्य को बनाए रखना जरूरी है।

 छुट्टियों में पहले अनुज और शुभम गांव जाया करते थे लेकिन यह बच्चे दिवाकर बाबू की बातों पर ध्यान नहीं दिया करते थे।

 इन लोगों के दिमाग पर शहर की भौतिकता ,चकाचौंध और अव्यवस्थित रहन-सहन घर कर चुका था।

पैकेट में बंद खाना, ज्यादातर बाहर का भोजन खाना, दिनभर ऑफिस में बैठकर काम करना, ज्यादा से ज्यादा पार्टी अटेंड करना, रात देर तक जगना, सुबह देर तक सोना… ।

कई ऐसी बातें थी जो वह दबे स्वरों में दोनों भाइयों को ट़ोकते रहते थे लेकिन ना शुभम और ना ही अनुज दोनों को यह समझ आया करता था…!

 दिवाकर जी कहा करते थे शरीर ही ईश्वर है… शरीर की पूजा करो। मतलब व्यायाम करो, मंदिर जाकर पूजा करने से कोई फायदा नही।

शरीर को तपाओ..  बेकार का फैट गलाओ। जितना हो सके उतना एक्सरसाइज करो एक नियमित दिनचर्या का पालन करो लेकिन यह सब पर किसी का ध्यान नहीं जाता और यह नतीजा यह रहा अनुज एक दिन अपने ऑफिस में काम करते हुए ही बेहोश हो गया।

 जब उसे अस्पताल ले जाया गया तो उसे पता चला कि उसे हार्ट स्ट्रोक आया हुआ है।

 स्थिति काफी क्रिटिकल हो गई थी। हार्ट में स्टंट डालकर किसी तरह से  अनुज की जान बचा ली गई थी।

 डॉक्टर ने 3 महीने के अंदर बाईपास सर्जरी कराने की चेतावनी दी थी।

 सच जानकर दिवाकर जी ने अपना सर पीट लिया।

तीन लाख का खर्चा और बस तीन महीने  की जिंदगी मतलब आगे और भी ज्यादा खर्चा…!

” बेटा अब भी समय है सुधर जाओ। यह दुनिया कुदरत ने बनाई है। हमें भी कुदरत ने हीं बनाया है।

 अपने आप की हम उपेक्षा कर रहे हैं इसलिए दुनिया भर के रोगों को निमंत्रण दे रहे हैं।

खुश रहो, स्वस्थ रहो, सफाई का ध्यान रखो। यह शरीर घर की तरह है इसे भी झाड़ू,पोछे और इन्फेक्शन से बचाने की जरुरत है।”

” बड़े पापा, आपने मेरी आंखें खोल दी। अब हम आपके कहे में ही चलेंगे….। थैंक यू बड़े पापा!”शुभम ने अपने आँखों में आँसू भरकर कहा।

“हाँ बेटा, दिवाकर बाबू उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोले”एक बार अगर शरीर बीमार हो गया न तो फिर इस शरीर का भरोसा नहीं रह जाता है।इसलिए ऐसी नौबत ही नहीं आने दो।”

#उपेक्षा

प्रेषिका–सीमा प्रियदर्शिनी सहाय

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