” आ, अब लौट चलें” (भाग-2) – नीति सक्सेना      

सुबह पांच बजे तैयार होके सुरेश जी ने अमित के बेडरूम का दरवाज़ा खटखटाया।अमित ने आंखें मलते हुए दरवाज़ा खोला तो पाया कि मां ,पापा दोनों हाथ में अटैची और बैग लेकर तैयार खड़े थे।

” हम गांव वापस जा रहे हैं बेटा,सोचा जाते वक्त तुमको बता तो दें ताकि तुम  मुख्य दरवाज़ा अंदर से लॉक कर सको।

” क्या? आप दोनों वापस जा रहे हैं? क्यों? कब तक वापस आयेंगे? हमको पहले से क्यों नहीं बताया?” अमित एक ही सांस में सारे सवाल पूछ गया।उसको यकीन नहीं हो रहा था कि मां भी वापस चली जायेंगी।

मिताली भी उठ के बाहर आ गई।

” ऐसा क्या हो गया मम्मी जी,जो बिना बताए आप वापस गांव जा रही हैं,” उसने पूछा।

” बेटा,हम तुम लोगों के पास सिर्फ इसलिए आए थे ताकि नन्हें अंश की और बहू की अच्छे से देखभाल हो सके।और यह हमारा कर्तव्य भी था,और तुम लोगों के प्रति हमारा प्रेम भी।मुझे ख़ुद पता था कि आया के भरोसे छोटे बच्चे को छोड़ना ठीक नहीं। न्यूज में ऐसी खबरें मैं भी देखती थी कि मां बाप की गैर मौजूदगी में आया ने बच्चे को बुरी तरह मारा ।उसकी यह हरकत सीसीटीवी में उसकी  कैद हो गई थी। क्रेच में भी बच्चों की देखभाल ठीक हो इसका भी कोई ज़्यादा भरोसा नहीं।इसीलिए मैं अंश की देखभाल के लिए यहां रुकी रही,उसके मोहवश,उसकी अच्छी देखभाल हो सके इसलिए।पर तुम लोगों ने मुझको अपने घर की आया,कुक,नौकरानी सब समझ लिया,सिवाए ” मां” छोड़ के।उम्र हो रही है मेरी।थक जाती हूं काम कर करके।

अमित ने कभी नहीं कहा कि मां,तुम और पापा भी रात में थोड़ा गर्म दूध पी लिया करो,थक जाती होगी।बीमार पड़ने पर हर बार बड़े नखरों के बाद तुमने मुझे डॉक्टर को दिखाया।इंतजार करते रहे कि घर में पड़ी दवाई खा के ही मां ठीक हो जाएं तो अच्छा है।पिछली बार डॉक्टर ने मेरी पूरी जांचें करवाने को कहा था क्योंकि उनको संदेह था कि मुझे हार्ट संबंधी कोई गंभीर बीमारी या ब्लॉकेज वगैरा है।आज पूरे दो माह हो गए पर तुमको अभी तक यह ध्यान नहीं आया कि मां की कहीं सारी जांचें करवा दें।बुखार तक में मैं सारे घर के काम करती रही।

बेटा, हमें तुम लोगों से कुछ नहीं चाहिए था,बस जिस बात की  तुमसे अपेक्षा रखते थे,वो था  थोड़ा सा प्यार,थोड़ी सी केयर,थोड़ा से लगाव,अपनापन।पर तुम लोगों ने हमें सिर्फ एक मुफ्त का नौकर समझ लिया जोकि चौबीसों घंटे तुम्हारे घर की देखभाल करे,तुम्हारे बच्चे को संभाले।

ऊपर से तुम्हारे और बहू के मुंह से निकलने वाले कटु वचन,जोकि तीर की भांति ह्रदय को बेध देते थे।

बस,बहुत हो गया अमित,अब और अधिक अपमान बर्दाश्त नहीं कर सकते हम अपना,हमारा भी एक आत्म सम्मान है,सेल्फ रिस्पेक्ट है।अब हम चलते हैं, हां प्यारे,नन्हें अंश की बहुत याद आयेगी,उसको हमारा बहुत प्यार देना,वसुधा एक ही सांस में सब बोल गईं और आंखों में भर आए आंसू साड़ी के पल्लू से पोंछने लगीं।



अमित और मिताली हक्के बक्के से रह गए।

” मम्मी जी,आपका अपमान करने का हमारा कोई इरादा नहीं था।बस गुस्से में अगर मुंह से कुछ निकल गया हो तो माफ कर दीजिए।अब अंश को कौन देखेगा घर पे।अगले महीने उसका बर्थडे भी आ रहा है,बर्थडे करके चली जाइएगा,” मिताली ने तुरुप का पत्ता फेंकने की कोशिश की।

” नहीं बहू,  बहुत हो गया अब।अब हम जा रहे हैं।वहां जाके मुझे खेती बाड़ी भी देखनी है,इलेक्शन आने वाले हैं,हम लोगों का आधार कार्ड और वोटर आईडी कार्ड वहीं का बना हुआ है। हर बार हम दोनों के वोट बेकार चले जाते हैं।इस बार वहां जाके अपने वोट डाल के अपने नागरिक अधिकार का प्रयोग भी करेंगे।तुम लोग अंश की देखभाल के लिए कोई नौकर रख सकते हो।बीच में कभी अंश से मिलने का मन हुआ ,तो दो चार दिन को आके मिल जायेंगे उससे।अब हम चलते हैं,सड़क के पार ऑटो मिल जाएगा बस स्टैंड के लिए,” सुरेश जी थोड़े कड़े स्वर में बोले और दोनों अपना सामान उठा के घर से बाहर निकल गए,लिफ्ट की ओर।

अमित और मिताली ठगे से खड़े रह गए ।अमित में इतना साहस भी न हुआ कि आगे बढ़ कर उनको रोक सके।

वसुधा और सुरेश जी के जाने के बाद मिताली और अमित को बारी बारी से अपने ऑफिस से छुट्टी लेनी पड़ी क्योंकि अंश को देखना बहुत ज़रूरी था।किसी आया के बारे में सोसाइटी में पूछताछ की तो कोई भी ढंग की नहीं मिल पाई।किसी के पास समय नहीं था तो कोई बहुत बढ़ा चढ़ा के पैसे मांग रही थी।

मिताली और अमित के सामने एक बड़ी समस्या आ खड़ी हुई थी।अब दोनों को आभास हो रहा था की मां पापा कितने अच्छे से सारा घर संभाले हुए थे।ये दोनों तो अंश और घर की देखभाल,खाने,सफाई इत्यादि सब कामों से बेफिक्र हो चले थे।

अब आटे दाल का भाव पता चल रहा था दोनों को।

झक मार के मिताली ने मायके से अपनी मां को बुला भेजा कि नई आया मिलने तक वही घर की और अंश की देखभाल करें।

मिताली की मां आशा जी भी लगभग वसुधा की ही उम्र की थीं।

उनके आने के बाद अमित ने नोटिस किया कि मिताली सुबह एक घंटे और जल्दी उठ कर सबका नाश्ता और खाना बना देती थी दोपहर का,साथ ही मशीन लगा के एक दिन पहले के कपड़े भी धो जाती थी ऑफिस जाने से पहले।

अमित ने उसको टोका भी कि इतनी सुबह क्यों उठ जाती हो,अंश की नानी खाना वगैरा सब बना ही लेंगी।

” उनकी उम्र हो चली है अमित,इस उम्र में इतना काम करेंगी तो थक नहीं जाएंगी? मेरे घर आईं हैं तो मेरा कर्तव्य है कि अपनी मां को पूरा आराम दूं,” मिताली छूटते ही बोली,थोड़ी तुनक के।

अमित को धक्का सा लगा।मिताली को अपनी मां की उम्र और काम का इतना ख्याल? मेरी मां पूरे दिन घर के कामों में खटती रहती थीं ,थक जाती थीं,तब मिताली को उनकी उम्र या थकान का ख्याल नहीं आया? और तो और स्वयं अमित और मिताली ने उनको न जाने कितनी बार खरी खोटी सुनाई, ज़रा ज़रा सी बात पर।और अब तो मिताली ने डांट डांट कर अंश को भी समझा दिया था कि वह अकेले ही लिफ्ट से उतर कर स्कूल बस में बैठ जाया करे।ऊपर वाले फ्लैट में रहने वाले शर्मा जी का बेटा बड़ा है,उसी के स्कूल में पढ़ता है,वही उसको बस में बैठा दिया करेगा साथ में,और उतरते समय दोनों साथ साथ वापस आ जायेंगे।नानी को परेशान करने की ज़रूरत नहीं है।

अमित को अपने ऊपर ग्लानि होने लगी।उसकी आंखें खुलने लगीं थीं और अपने मां पापा के साथ किए गए दुर्व्यवहार पर उसका  मन उसको धिक्कारने लगा था।

उस रात मन ही मन  उसने एक निर्णय लिया।इंटरनेट पे देर रात तक वह एक वेबसाइट पर पुलिस और रिकॉग्नाइज्ड संस्था द्वारा वेरिफाइड नौकरों और  बेबी सीटर्स की लिस्ट देखता रहा।

कुछ नंबर उसने अपने मोबाइल में सेव किए और उन्हीं में से किसी एक को घर के कामों के लिए लगाने का फैसला लेकर , सुबह उनसे बात करने की सोच कर सो गया।

सुबह उठते ही उसने उनमें से चार पांच मेड को फोन करके घर आने को कहा ताकि उनका इंटरव्यू लेके किसी एक को घर के कामों और अंश की देखभाल के लिए रख सके।

दिवाली नज़दीक ही थी।उसने दोपहर लंच टाइम में पापा को फोन लगाया।



” हेलो पापा,कैसे हो आप लोग? दिवाली आने वाली है।मैं आप लोगों का रिजर्वेशन करा देता हूं ।इस बार दिवाली हमारे साथ ही करना है।”

” पर बेटा,हम लोग अभी नहीं आ सकते।तेरी मां को दिखाने मुझे लखनऊ भी जाना है।वहां पीजीआई में सारी जांचें करवा लूंगा।” सुरेश जी ने प्रतिवाद किया।

” पापा ,बस पंद्रह दिन रह के चले जाना। मां को दिखाने के लिए मैंने फोर्टिस हॉस्पिटल में वहां के कार्डियोलॉजिस्ट डिपार्टमेंट के एचओडी से बात कर ली हैं।उनसे मेरी जान पहचान है।अपॉइंटमेंट आसानी से मिल जायेगा।सारी जांचें यहां अच्छे से हो जाएंगी। मैं आप लोगों को जबरदस्ती अपने यहां नहीं रोकूंगा बिना आपकी मर्ज़ी के। मां को फोन दो ज़रा,” अमित अनुरोध करते हुए बोला।

सुरेश जी ने वसुधा के हाथ में मोबाइल पकड़ा दिया।

” हेलो मां,बचपन में मैं जब गलती करता था तो आप मेरे कान मरोड़ देती थीं, आज भी आपका वही छोटा सा अमित अपनी गलती के लिए शर्मिंदा है और कान मरोड़वाने के लिए तैयार है। कब आ रही हो मेरी डांट लगाने,मेरे कान मरोड़ने? मुझे माफ कर दो मां।जल्दी से आओ,अंश अपनी दादी दादा को बहुत याद कर रहा है,” अमित ने रुंधे हुए गले से कहा।

” जल्द ही आउंगी बेटा,तेरे मनपसंद कढ़ी चावल भी तो बना के खिलाने हैं तुझे,” वसुधा अपनी रुलाई रोकती हुई बोलीं।

अमित के पश्चाताप के स्वर को पहचान चुकी थीं वो ।आखिर बेटा था उनका,कोई दुश्मन नहीं।

शाम को घर वापस लौट कर अमित ने मिताली को बता दिया की मां पापा दिवाली पर आ रहे हैं और साथ ही कड़े स्वर में ताकीद भी कर दी कि इस बार वह मां,पापा का पूरा ख़्याल रखे ,उनके साथ दुर्व्यवहार न करे,वरना  उसको अमित के मन से उतरते देर न लगेगी।

अंदर ही अंदर मिताली को भी अहसास तो था ही अपनी गलतियों का।आंखें झुका के अमित से माफी मांग कर वह अपनी मां के कमरे में चल दी जोकि दिवाली पर वापस अपने घर जाने की तैयारियों में लगी थीं।

सबके मन पे छाया हुआ घना कोहरा हट चुका था

स्वरचित और अप्रकाशित

नीति सक्सेना” आ, अब लौट चलें”                           

               भाग-2

सुबह पांच बजे तैयार होके सुरेश जी ने अमित के बेडरूम का दरवाज़ा खटखटाया।अमित ने आंखें मलते हुए दरवाज़ा खोला तो पाया कि मां ,पापा दोनों हाथ में अटैची और बैग लेकर तैयार खड़े थे।

” हम गांव वापस जा रहे हैं बेटा,सोचा जाते वक्त तुमको बता तो दें ताकि तुम  मुख्य दरवाज़ा अंदर से लॉक कर सको।

” क्या? आप दोनों वापस जा रहे हैं? क्यों? कब तक वापस आयेंगे? हमको पहले से क्यों नहीं बताया?” अमित एक ही सांस में सारे सवाल पूछ गया।उसको यकीन नहीं हो रहा था कि मां भी वापस चली जायेंगी।

मिताली भी उठ के बाहर आ गई।

” ऐसा क्या हो गया मम्मी जी,जो बिना बताए आप वापस गांव जा रही हैं,” उसने पूछा।

” बेटा,हम तुम लोगों के पास सिर्फ इसलिए आए थे ताकि नन्हें अंश की और बहू की अच्छे से देखभाल हो सके।और यह हमारा कर्तव्य भी था,और तुम लोगों के प्रति हमारा प्रेम भी।मुझे ख़ुद पता था कि आया के भरोसे छोटे बच्चे को छोड़ना ठीक नहीं। न्यूज में ऐसी खबरें मैं भी देखती थी कि मां बाप की गैर मौजूदगी में आया ने बच्चे को बुरी तरह मारा ।उसकी यह हरकत सीसीटीवी में उसकी  कैद हो गई थी। क्रेच में भी बच्चों की देखभाल ठीक हो इसका भी कोई ज़्यादा भरोसा नहीं।इसीलिए मैं अंश की देखभाल के लिए यहां रुकी रही,उसके मोहवश,उसकी अच्छी देखभाल हो सके इसलिए।पर तुम लोगों ने मुझको अपने घर की आया,कुक,नौकरानी सब समझ लिया,सिवाए ” मां” छोड़ के।उम्र हो रही है मेरी।थक जाती हूं काम कर करके।

अमित ने कभी नहीं कहा कि मां,तुम और पापा भी रात में थोड़ा गर्म दूध पी लिया करो,थक जाती होगी।बीमार पड़ने पर हर बार बड़े नखरों के बाद तुमने मुझे डॉक्टर को दिखाया।इंतजार करते रहे कि घर में पड़ी दवाई खा के ही मां ठीक हो जाएं तो अच्छा है।पिछली बार डॉक्टर ने मेरी पूरी जांचें करवाने को कहा था क्योंकि उनको संदेह था कि मुझे हार्ट संबंधी कोई गंभीर बीमारी या ब्लॉकेज वगैरा है।आज पूरे दो माह हो गए पर तुमको अभी तक यह ध्यान नहीं आया कि मां की कहीं सारी जांचें करवा दें।बुखार तक में मैं सारे घर के काम करती रही।

बेटा, हमें तुम लोगों से कुछ नहीं चाहिए था,बस जिस बात की  तुमसे अपेक्षा रखते थे,वो था  थोड़ा सा प्यार,थोड़ी सी केयर,थोड़ा से लगाव,अपनापन।पर तुम लोगों ने हमें सिर्फ एक मुफ्त का नौकर समझ लिया जोकि चौबीसों घंटे तुम्हारे घर की देखभाल करे,तुम्हारे बच्चे को संभाले।

ऊपर से तुम्हारे और बहू के मुंह से निकलने वाले कटु वचन,जोकि तीर की भांति ह्रदय को बेध देते थे।

बस,बहुत हो गया अमित,अब और अधिक अपमान बर्दाश्त नहीं कर सकते हम अपना,हमारा भी एक आत्म सम्मान है,सेल्फ रिस्पेक्ट है।अब हम चलते हैं, हां प्यारे,नन्हें अंश की बहुत याद आयेगी,उसको हमारा बहुत प्यार देना,वसुधा एक ही सांस में सब बोल गईं और आंखों में भर आए आंसू साड़ी के पल्लू से पोंछने लगीं।

अमित और मिताली हक्के बक्के से रह गए।

” मम्मी जी,आपका अपमान करने का हमारा कोई इरादा नहीं था।बस गुस्से में अगर मुंह से कुछ निकल गया हो तो माफ कर दीजिए।अब अंश को कौन देखेगा घर पे।अगले महीने उसका बर्थडे भी आ रहा है,बर्थडे करके चली जाइएगा,” मिताली ने तुरुप का पत्ता फेंकने की कोशिश की।

” नहीं बहू,  बहुत हो गया अब।अब हम जा रहे हैं।वहां जाके मुझे खेती बाड़ी भी देखनी है,इलेक्शन आने वाले हैं,हम लोगों का आधार कार्ड और वोटर आईडी कार्ड वहीं का बना हुआ है। हर बार हम दोनों के वोट बेकार चले जाते हैं।इस बार वहां जाके अपने वोट डाल के अपने नागरिक अधिकार का प्रयोग भी करेंगे।तुम लोग अंश की देखभाल के लिए कोई नौकर रख सकते हो।बीच में कभी अंश से मिलने का मन हुआ ,तो दो चार दिन को आके मिल जायेंगे उससे।अब हम चलते हैं,सड़क के पार ऑटो मिल जाएगा बस स्टैंड के लिए,” सुरेश जी थोड़े कड़े स्वर में बोले और दोनों अपना सामान उठा के घर से बाहर निकल गए,लिफ्ट की ओर।

अमित और मिताली ठगे से खड़े रह गए ।अमित में इतना साहस भी न हुआ कि आगे बढ़ कर उनको रोक सके।

वसुधा और सुरेश जी के जाने के बाद मिताली और अमित को बारी बारी से अपने ऑफिस से छुट्टी लेनी पड़ी क्योंकि अंश को देखना बहुत ज़रूरी था।किसी आया के बारे में सोसाइटी में पूछताछ की तो कोई भी ढंग की नहीं मिल पाई।किसी के पास समय नहीं था तो कोई बहुत बढ़ा चढ़ा के पैसे मांग रही थी।

मिताली और अमित के सामने एक बड़ी समस्या आ खड़ी हुई थी।अब दोनों को आभास हो रहा था की मां पापा कितने अच्छे से सारा घर संभाले हुए थे।ये दोनों तो अंश और घर की देखभाल,खाने,सफाई इत्यादि सब कामों से बेफिक्र हो चले थे।

अब आटे दाल का भाव पता चल रहा था दोनों को।

झक मार के मिताली ने मायके से अपनी मां को बुला भेजा कि नई आया मिलने तक वही घर की और अंश की देखभाल करें।

मिताली की मां आशा जी भी लगभग वसुधा की ही उम्र की थीं।



उनके आने के बाद अमित ने नोटिस किया कि मिताली सुबह एक घंटे और जल्दी उठ कर सबका नाश्ता और खाना बना देती थी दोपहर का,साथ ही मशीन लगा के एक दिन पहले के कपड़े भी धो जाती थी ऑफिस जाने से पहले।

अमित ने उसको टोका भी कि इतनी सुबह क्यों उठ जाती हो,अंश की नानी खाना वगैरा सब बना ही लेंगी।

” उनकी उम्र हो चली है अमित,इस उम्र में इतना काम करेंगी तो थक नहीं जाएंगी? मेरे घर आईं हैं तो मेरा कर्तव्य है कि अपनी मां को पूरा आराम दूं,” मिताली छूटते ही बोली,थोड़ी तुनक के।

अमित को धक्का सा लगा।मिताली को अपनी मां की उम्र और काम का इतना ख्याल? मेरी मां पूरे दिन घर के कामों में खटती रहती थीं ,थक जाती थीं,तब मिताली को उनकी उम्र या थकान का ख्याल नहीं आया? और तो और स्वयं अमित और मिताली ने उनको न जाने कितनी बार खरी खोटी सुनाई, ज़रा ज़रा सी बात पर।और अब तो मिताली ने डांट डांट कर अंश को भी समझा दिया था कि वह अकेले ही लिफ्ट से उतर कर स्कूल बस में बैठ जाया करे।ऊपर वाले फ्लैट में रहने वाले शर्मा जी का बेटा बड़ा है,उसी के स्कूल में पढ़ता है,वही उसको बस में बैठा दिया करेगा साथ में,और उतरते समय दोनों साथ साथ वापस आ जायेंगे।नानी को परेशान करने की ज़रूरत नहीं है।

अमित को अपने ऊपर ग्लानि होने लगी।उसकी आंखें खुलने लगीं थीं और अपने मां पापा के साथ किए गए दुर्व्यवहार पर उसका  मन उसको धिक्कारने लगा था।

उस रात मन ही मन  उसने एक निर्णय लिया।इंटरनेट पे देर रात तक वह एक वेबसाइट पर पुलिस और रिकॉग्नाइज्ड संस्था द्वारा वेरिफाइड नौकरों और  बेबी सीटर्स की लिस्ट देखता रहा।

कुछ नंबर उसने अपने मोबाइल में सेव किए और उन्हीं में से किसी एक को घर के कामों के लिए लगाने का फैसला लेकर , सुबह उनसे बात करने की सोच कर सो गया।

सुबह उठते ही उसने उनमें से चार पांच मेड को फोन करके घर आने को कहा ताकि उनका इंटरव्यू लेके किसी एक को घर के कामों और अंश की देखभाल के लिए रख सके।

दिवाली नज़दीक ही थी।उसने दोपहर लंच टाइम में पापा को फोन लगाया।

” हेलो पापा,कैसे हो आप लोग? दिवाली आने वाली है।मैं आप लोगों का रिजर्वेशन करा देता हूं ।इस बार दिवाली हमारे साथ ही करना है।”

” पर बेटा,हम लोग अभी नहीं आ सकते।तेरी मां को दिखाने मुझे लखनऊ भी जाना है।वहां पीजीआई में सारी जांचें करवा लूंगा।” सुरेश जी ने प्रतिवाद किया।

” पापा ,बस पंद्रह दिन रह के चले जाना। मां को दिखाने के लिए मैंने फोर्टिस हॉस्पिटल में वहां के कार्डियोलॉजिस्ट डिपार्टमेंट के एचओडी से बात कर ली हैं।उनसे मेरी जान पहचान है।अपॉइंटमेंट आसानी से मिल जायेगा।सारी जांचें यहां अच्छे से हो जाएंगी। मैं आप लोगों को जबरदस्ती अपने यहां नहीं रोकूंगा बिना आपकी मर्ज़ी के। मां को फोन दो ज़रा,” अमित अनुरोध करते हुए बोला।

सुरेश जी ने वसुधा के हाथ में मोबाइल पकड़ा दिया।

” हेलो मां,बचपन में मैं जब गलती करता था तो आप मेरे कान मरोड़ देती थीं, आज भी आपका वही छोटा सा अमित अपनी गलती के लिए शर्मिंदा है और कान मरोड़वाने के लिए तैयार है। कब आ रही हो मेरी डांट लगाने,मेरे कान मरोड़ने? मुझे माफ कर दो मां।जल्दी से आओ,अंश अपनी दादी दादा को बहुत याद कर रहा है,” अमित ने रुंधे हुए गले से कहा।

” जल्द ही आउंगी बेटा,तेरे मनपसंद कढ़ी चावल भी तो बना के खिलाने हैं तुझे,” वसुधा अपनी रुलाई रोकती हुई बोलीं।

अमित के पश्चाताप के स्वर को पहचान चुकी थीं वो ।आखिर बेटा था उनका,कोई दुश्मन नहीं।

शाम को घर वापस लौट कर अमित ने मिताली को बता दिया की मां पापा दिवाली पर आ रहे हैं और साथ ही कड़े स्वर में ताकीद भी कर दी कि इस बार वह मां,पापा का पूरा ख़्याल रखे ,उनके साथ दुर्व्यवहार न करे,वरना  उसको अमित के मन से उतरते देर न लगेगी।

अंदर ही अंदर मिताली को भी अहसास तो था ही अपनी गलतियों का।आंखें झुका के अमित से माफी मांग कर वह अपनी मां के कमरे में चल दी जोकि दिवाली पर वापस अपने घर जाने की तैयारियों में लगी थीं।

सबके मन पे छाया हुआ घना कोहरा हट चुका था

स्वरचित और अप्रकाशित

नीति सक्सेना

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