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एक टक घोंसले को निहारते हुए बेटे ने रीमा से पूछा , अम्मा चिड़िया घोंसला क्यों बनाती है तो उसने कहा बेटा हर मौसम तो बाहर रह कर गुजार सकती है पर……..।इतने में राजू ने आवाज लगाई अम्मा देखो ना यहां भी आखिर हम कहां जाएं ,कुछ समझ नहीं आता।
उसी में मिलती जुलती एक आवाज और उभरी हां हां बताओ न कहां जाएं कैसे रहें।
वो कुछ बोलती की उसके पहले को खो करती सास ने लक्ष्मी ने कहा।अरे काहे परेशान करते हो तुम सब मिल कर अपनी अम्मा को।
रामू के जाने के बाद कैसे उसने अकेले तुम सबके साथ मुझ बीमार को भी पाला वहीं जानती है।
आखिर क्या करें।
सुनो तुम सब यहां आओ मेरे पास ।बस कुछ ही देर की बात है सब ठीक हो जाएगा।
इतने में शालू क्या ठीक हो जाएगा कुछ नहीं ठीक होगा।
जिंदगी ऐसे ही कटेगी।
कोई आज की बात थोड़े हैं ये तो हर साल की कहानी है।
जब जब… ………।
इतने में बात काटती हुई बीच में रीमा चूल्हे से लकड़ी निकालकर पानी का चिट्ठा मारते हुए बोली चलो जो सेक पोके रखा है लील लो वरना इसके भी लाले पड़ जाएंगे अभी।
जब रात एक ही चारपाई पर बैठकर बितानी पड़ेगी।
जानते तो हो तुम सब हर मौसम से नहीं पर जब जब निचले हिस्से में पानी भरता है तो सबसे पहले हम ही लोगों की ज़िंदगी आफत में आती है।
अब क्या करें रोटी कपड़ा से बचें तब तो घर की सोचे।
हमें तो काली पन्नी का ही सहारा है।
जैसे तैसे रात तो टपकते पानी से सीलन भरे कमरे में ही बितानी पड़ेगी।
दूसरे ही दिन उसके छोटे से मोबाइल पर फोन आया।
आप रीमा जी बोल रहीं हैं।
इस पर इसने कहा हां मैं रीमा बोली रही हूं ।
पर आप कौन?
तो उधर से आवाज़ आई क्या? आपने मकान के लिए फार्म भरा था।
तो ये बोली हां ,तो वो बोले आपके नाम सरकार की तरफ से एक मकान एलाट हुआ है फलाने जगह पर आकर ले लीजिए।
इस बरसात के मौसम में ये खुशी खोए हुए खजाने के हाथ लगने जैसी थी।
उसने घोंसले को देखते बेटे को आवाज लगाई अरे सुन रज्जू हमें भी बरसात से बचने के लिए एक सरकारी मकान मिल गया ।
अब हम सब वही चलकर रहेंगे।
इस सीलन भरी काली पन्नी से टपकते पानी से हमेशा हमेशा के लिए निजात मिल गई।
कहते हुए तीनों बच्चों और बीमार सास को गले से लगा उस ओर चल पड़ी जहां बरसात से उसे पूरी तरह निजात मिलने वाली है।
स्वरचित
कंचन श्रीवास्तव