बादलों में दामिनी – ज्योति अप्रतिम

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रातभर पानी गिरा था। झोपड़ी और उसके बाहर दूर -दूर तक पानी ही पानी नज़र आ रहा था। झोपडी में भी कमर तक पानी भर गया था।दूर तक घर के टीन और एल्युमिनियम के बर्तन बहते नज़र आ रहे थे।मंगलू और उसकी पत्नी रात भर से पानी मे दो साल की गुड्डी को लेकर खड़े थे।घर में खाने को कुछ नहीं था।

गुड्डी ने भूख से रोना शुरू कर दिया ।तभी गुड्डी की माँ को ताख पर रखा हुआ गुड़ का टुकड़ा याद आ गया।उसने टुकड़े को  गुडडी के मुँह में रखा ।मीठा रस मिलते ही वह मुस्कुरा उठी।

सुबह होते होते बारिश बन्द हो गई और पानी उतरने लगा।झोपडी से बाहर निकल कर दोनों ने चलना शुरू कर दिया ।सूरज निकल आया था ।धूप और भूख से दोनों हलकान हुए जा रहे थे।काफी दूर चलने के बाद एक झोपड़ी दिखाई दी जहाँ  एक बूढ़ी औरत ने थोड़ा सत्तू खिला दिया।

आगे की यात्रा मंगलू के लिए कठिन ही थी।गुड़ भी खत्म हो रहा था।

पूरे बीस घण्टे ही गए थे चलते हुए। बस्ती दिखने लगी थी ।थक चुके थे दोनों।आधी बेहोशी की हालत थी दोनों की।

तभी मंगलू की पत्नी में जाने कहाँ से इतनी ताकत आ गई । वो उठी, पल्लू से कुछ सिक्के निकाल कर  पास की दुकान से एक छोटा सा पाउच  खरीद लाई।गुडडी पास में ही खेल रही थी

मंगलू की पत्नी उस पाउच से कुछ पॉवडर निकाल कर दो गिलास पानी मे घोल रही थी।

मंगलू उसका इरादा समझ गया ।उसने उस घोल को दूर फेंक दिया।फिर दोनों फूट फूट कर रोने लगे।

ताक़त तो थी नहीं ,जल्द ही दोनों होश खो चुके थे।


तभीबस्ती के सेठ की कार आकर रुकी।उन्होंने एक छोटी बच्ची और दोनो को बेहोश देख कर कार रुकवाई ।किसी तरह कार में बैठा कर सीधे अस्पताल में भर्ती करवाया।डॉक्टर ने बताया कि इनकी ऐसी हालत  भूख के कारण हुई है।दो दिन से इनके पेट में कुछ नही गया है।

अगले दिन स्वस्थ होते ही मंगलू ने अपनी राम कहानी सेठ को सुनाई।सेठ ने दोनों को अपने दोने पत्तल के कारखाने में काम दिलवा दिया और घर के आउट हाउस में एक कमरा दे दिया और मंगलू की जिंदगी फिर चल पड़ी।

धीरे धीरे मंगलू ने मेहनत कर थोड़े  थोड़े पैसे

बचाना शुरू कर दिए।अब गुडडी भी बड़ी हो गई और पास ही के स्कूल में पढ़ने लगी थी।

समय अपनी गति से पंख लगा कर उड़ रहा था।

मंगलू ने अब अपनी स्वयं की हरे पत्तों के दोने पत्तलों की फैक्ट्री  डाल ली थी क्योंकि जंगलों के पास रहने से उसे पत्तों के बारे में अच्छा ज्ञान था।

एक फैक्ट्री  के मालिक बनने के बाद भी मंगलू ने सेठ जी की फैक्ट्री में काम करना बंद नहीं किया था।सेठ जी उसे छोटे भाई के समान मान देने लगे थे।

फिर एक बहुत बड़ा दिन आया।आज गुडडी की शादी है।पंडितजी ने कन्यादान के लिए माता पिता को बुलाया

ये क्या!इतना सुंदर दृश्य !गुडडी का कन्यादान मंगलू और उसकी पत्नी के साथ सेठजी और उनकी पत्नी  भी कर रहे थे।

कितनी भाग्यशाली है गुडडी!पालनहार और जन्मदाता दोनों थे कन्यादान के लिए।

सच है दोस्तों !  दुर्भाग्य के काले बादलों में आशा की एक दामिनी छुपी होती है।आवश्यकता है बस थोड़े  धैर्य की !

#बरसात

स्वरचित

ज्योति अप्रतिम

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