और फूल खिल गए! – ज्योति व्यास

अरे लल्ला ! यहाँ अकेले काहे बैठे हो ? वो भी इतने उदास ! क्या हो  गया?

कुछ नहीं भाभी माँ !बस यूं ही।

हमसे न छुपाओ। हमारे सामने नेकर पहनना भी नहीं आती थी। कल तुम्हारा ब्याह हुआ है ,आज यहाँ उदास बैठे हो और कहते  हो कुछ नहीं हुआ !

भाभी एक ही साँस में अपने देवर प्रमोद से इतना कुछ बोल गईं।

प्रमोद  रुआंसा हो गया। बोला भाभी ,आपकी बहू सबके साथ नहीं रहना चाहती। उसका मानना है कि इतने लोगों के शोर शराबे के बीच में रहना मुश्किल है। कहती है ,अलग रहेंगे शांति से।

सुनते ही भाभी माँ सकते में आ गई पर स्वयं पर नियंत्रण रखते हुए बोलीं ,”बस इतनी सी बात !

हम अभी दुल्हन को समझा लेते हैं ।मानी तो ठीक नहीं तो हम तुम्हारा अलग घर बसा देते हैं।मन  दुखी करके साथ में रहने से अच्छा है अकेले शांति से रहो।”

” पर हम तुम्हें छोड़कर कहीं नहीं  जा सकते।”

देवर प्रमोद ने कहा।

भाभी ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा औऱ कहा, ” शांत रहो लल्ला जी ,कुछ न कुछ समाधान अवश्य निकल आएगा।”

प्रमोद की माँ बचपन में ही उसे छोड़कर भगवान को प्यारी हो गईं थीं और बड़ी भाभी ने ही उसे पाल पोस कर बड़ा किया था लेकिन देवरानी ने आते ही बड़े जोर का झटका दिया था।

खैर ,वे इतनी जल्दी हार मानने वाली नहीं थी।

शाम को बगीचे में जा कर बैठ गईं।जाते जाते अपनी बेटी से सुनीता चाची को वहाँ लाने की बात कह गईं।

थोड़ी देर में देवरानी उनके सामने थी। भाभी माँ ने उसे पास बैठा लिया।



कुछ इधर उधर की बात करके बोलीं, “बेटा सुनीता! तुम्हारा मन तो लग रहा है न घर में !कोई परेशानी तो नहीं ?”

सुनीता की तो मन माँगी मुराद पूरी हो गई। बोली

“जी ,मुझे छोटे परिवार में रहने की आदत है।

यहाँ इतने कोलाहल ,शोर शराबे में मैं असहज महसूस करती हूँ। मुझे शांति चाहिए।”

भाभी ने संयत स्वरों में कहा ,”तुम्हें अलग रहना है। कोई बात नहीं ।हम तुम्हारी रहने की व्यवस्था करवा देते हैं पर हमारी एक बात समझ लो ।”

देवरानी ने चेहरा उठा कर उनकी तरफ देखा।

कुछ सूखे फूल दिखाते हुए वे बोलीं ,” देखो ये फूल अपनी डाल से टूटकर मुरझा गए हैं। जिस तरह ये फूल डाल से टूट कर  मुरझा जाते हैं उसी तरह इंसान भी अपनों से बिछड़ कर बिखर जाता है। “

“तुम समझ रही हो न!हम प्रमोद की बात कर रहे हैं ।बिन माँ के बच्चे को अब और  मत टूटने दो “

कहते हुए भाभी रो पड़ीं।

सुनीता पैरों से मिट्टी कुरेदते हुए चुपचाप बैठी रही।

अगले दिन प्रमोद ने खुश होकर भाभी माँ को  बताया , ” हम साथ -साथ हैं।”

भाभी खुश हो गई अपने प्यारे देवर की बात सुन कर।  बोलीं “रुक्क !इस बात पर मैं तेरी पसन्द का हलवा बनाती  हूँ।”

“भाभी माँ !थोड़ा सा मेरे लिए भी।”

सुनीता ने  वहाँ आ कर धीरे से कहा।

सब लोग खिलखिला कर हँस पड़े।

बहुत सारे फूल एक साथ खिल गए और एक बगीचा रेगिस्तान बनते बनते बच गया।

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