सविता देहरादून की जिला अधिकारी थी. वह प्रत्येक साल गर्मियों की छुट्टी में कहीं घूमने जाए या ना जाए लेकिन 1 सप्ताह के लिए अपने बच्चों के साथ अपने गांव रतनपुर जरूर जाती थी। बच्चों के स्कूल की छुट्टियां शुरू हो चुकी थी, गांव जाने की तैयारी शुरू हो गई थी। सविता के बच्चे भी उतने ही उत्साहित होते थे, गांव जाने के लिए, जितना कि सविता। देहरादून से रतनपुर की दूरी 7 घंटे का था। रतनपुर जाने के लिए कई सारी पहाड़ियों वाले रोड से गुजरना पड़ता था इसलिए सविता अपनी ही गाड़ी से जाना पसंद करती थी।
सविता अपने बच्चों के साथ रतनपुर पहुंच चुकी थी। सविता ने अपने गांव के नौकर मनोहर को मेन रोड पर आने के लिए फोन कर दिया था। मनोहर मेन रोड पर ही सविता के गाड़ी का इंतजार कर रहा था। मनोहर भी बहुत खुश होता था क्योंकि साल में एक बार ही तो सविता यहां आती थी। वैसे तो मनोहर सविता का नौकर था लेकिन सविता कभी भी मनोहर को यह आभास नहीं होने देती थी कि वह नौकर है हमेशा उसे चाचा ही कहती थी और वह भी अपनी भतीजी से कम नहीं मानता था सविता को।
सविता के बच्चों को कच्चे आम की मीठी चटनी बहुत पसंद थी वह भी गांव के शुद्ध मिट्टी के बर्तन में बना हो। सविता गांव जाने से पहले ही मनोहर को फोन कर देती थी ताकि मनोहर की पत्नी मीठी वाली चटनी बनाकर रख सके।
सविता अपने घर पहुंच चुकी थी और घर में पड़ी हुई खाट पर सब बैठ गए। मनोहर की पत्नी मटके के पानी लेकर आई। पानी पीते हुए ही सविता के बेटा नितिन ने अपनी मम्मी से पूछा, “मम्मी एक बात बताओ ? आप इतना पैसा कमाते हो तो गांव में अच्छा सा घर क्यों नहीं बना देते हो? जब हर साल हमें आना ही हैं और यहाँ सब लोगों के पास पक्के के मकान हैं और सबके घरों में बिजली भी है, हमारे घर में क्यों नहीं है? सविता ने नितिन को बड़ा सरल सा जवाब दिया, “बेटा यह सारी सुख सुविधाएं तुम्हें शहर में तो मिलता ही है। मैं 1 सप्ताह के लिए तुम लोगों को गांव इसीलिए लेकर आती हूं इस चीज को महसूस करो कि इस देश के अभी भी 50% से भी ज्यादा आबादी ऐसे ही रहती है। मेरा बचपन भी इसी हाल में बीता है तुम लोग चाहे कितना भी बड़ा बन जाओ, पढ़ लिख कर बहुत नाम करो लेकिन अपनी जड़ को नहीं भूलना और अपने आने वाली पीढ़ियों को उसे भूलने भी मत देना क्योंकि जब तक यह देखोगे तुम्हें याद रहेगा कि आज हम जहां पर हैं कभी हमारे पूर्वज ऐसे रहा करते थे। इसलिए मैं इसे विरासत के रूप में संजोना चाहती हूं।
उसके आगे नितिन कुछ भी नहीं बोल सका बस अपनी मां को पैर छू लिया और बोला मां सच में आप बहुत अच्छी हो, हम दुनिया के उस खुशनसीब बच्चों में से हैं जिनके पास आपके जैसे मां है।
सविता के बच्चों का गर्मी से बहुत बुरा हाल था इसलिए मनोहर की पत्नी बच्चों को हाथ वाला पंखा डोला रही थी ताकि उनको गर्मी न लग सके।
तभी दरवाजे पर एक बूढ़ी अम्मा की आवाज आई, बेटा कुछ खाने को है तो दे दो। आवाज सुनकर सविता चौक गई। “मनोहर यह तो लग रहा है कि कौशल्या ताई की आवाज है।” मनोहर ने सरिता को कहा, “हां बेटी सही कह रही हो यह कौशल्या बहन ही हैं।” सविता ने कहा तो फिर यह दरवाजे-दरवाजे घूम कर भीख क्यों मांग रही हैं। इनके चारों बेटे तो सब बड़े-बड़े सरकारी उच्च पदों पर हैं। मनोहर ने कहा यही तो रोना है बेटी भगवान ना करे किसी को कौशल्या बहन के बेटों जैसा बेटा दे।
अभी कुछ दिन पहले इनके चारों बेटे गांव आए थे और आपस में जमीन का बंटवारा करके जमीन सारा बेच दिया और घर भी बेच दिया और मां को यह कह कर ले गए की बारी बारी से सबको रखेंगे लेकिन स्टेशन पर ही मां को छोड़कर चारों बेटों चले गए हैं कौशल्या बहन किसी से पूछते-पूछते गांव आ गई यही पास के मंदिर में रहती हैं और गांव में रोजाना किसी-किसी के घर खाना मांग कर खा लेती हैं किसी की इच्छा करता है तो वह मंदिर में कौशल्या बहन के पास पहुंचा भी देता है।
सविता को अब रहा नहीं गया। जल्दी से उठी और बाहर जाकर कौशल्या ताई का पैर छू कर प्रणाम किया और कौशल्य ताई से बोली, ” ताई मुझे पहचान रही हो मैं सविता, याद है तुम बचपन में हमें पढ़ाया करती थी। ” कौशल्या ताई ने कहा, “हां बेटी पहचान लिया किशोर की बेटी होना तुम” सविता ने कहा, “हाँ ताई” सविता हाथ पकड़कर ताई को अंदर ले आई और खाट पर बैठाया। कविता ने मनोहर की पत्नी से ताई के लिए खाना ला कर देने को कहा।
कौशल्या ताई ने सुबह से कुछ खाया नहीं था इस वजह से बहुत भूखी थी खाना देखकर बहुत तेजी से खाने लगी। सविता, ताई को खाते हुए देखती रही और अपने बचपन के स्मृतियों में खो गई।
सविता उस समय 5वीं क्लास में पढ़ती थी उसी समय कौशल्या ताई का विवाह ठाकुर वीर प्रताप सिंह से हुआ था। कौशल्या का चर्चा आस-पास के गांव में थी कि ठाकुर वीर प्रताप की सिंह की होने वाली पत्नी एम.एस.सी पास है। क्योंकि उस जमाने में लड़कियां मैट्रिक नहीं पास कर पाती थी एम.एस.सी पास होना तो बहुत बड़ी बात होती थी।
कौशल्या कॉलेज में लेक्चरर बनना चाहती थी लेकिन ठाकुर वीर प्रताप सिंह ने यह कहकर नौकरी करने से मना कर दिया कि हमारे घर की औरतें बाहर जाकर नौकरी नहीं करती हैं।
कौशल्या को पढ़ाने का बहुत ज्यादा ही शौक था तो उसने अपने घर के ही अंदर गांव की लड़कियों को ट्यूशन देना शुरू किया वह भी बिना फीस के ।
जब यह बात सविता को पता चला तो सविता भी कौशल्या के पास ट्यूशन जाने के लिए सोचने लगी और उसने अपने बापू किशोर को कहा बापू मैं कौशल्या ताई के पास ट्यूशन पढ़ना चाहती हूं कल जब उनके घर जाना तो उनसे कहना कि वह क्या मुझे भी पढ़ पाएंगी।
सविता के बापू किशोर ठाकुर वीर प्रताप के के यहां नौकर था। उसकी इतनी औकात कहां जो जाकर कौशल्या से बात करे।
1 दिन सविता खुद ही चुपके से लड़कियों के साथ कौशल्या के पास चली गई और उसने ताई से पूछा कि ताई मेरा मैथ बहुत ही कमजोर है क्या आप मुझे भी पढ़ा दोगे। कौशल्या ताई ने कहा हां हां क्यों नहीं पढ़ आऊंगी आ जाना कल से तुम भी।
मैं नवोदय विद्यालय की एंट्रेंस एग्जाम की भी तैयारी कर रही थी क्योंकि मैंने सुना था कि अगर एंट्रेंस एग्जाम पास कर जाओ 6ठी से लेकर 12वीं तक हॉस्टल में रखकर मुफ्त में नवोदय विद्यालय में पढ़ाया जाता है। मेरी बापू की इतनी औकात तो थी नहीं कि वह मुझे 12वीं तक पढ़ा पाए इसलिए मुझे नवोदय विद्यालय का एंट्रेंस पास होना बहुत जरूरी था। लेकिन इसके लिए मैथ और रिजनिंग बहुत ही स्ट्रांग होना चाहिए। कौशल्या ताई ने मेरी अच्छी से तैयारी करवाई और मैंने एंट्रेंस क्लियर कर लिया उसके बाद मेरा दाखिला नवोदय विद्यालय में हो गया और वहीं से मैंने 12वीं पास की। जब मैंने 12वीं पास किया था उस समय मैं पूरे राज्य में तीसरे स्थान प्राप्त की थी।
मैं जब अपने गांव पहुंची थी तो कौशल्या ताई ने अपने घर बुलाकर अपने साथ खाना खिलाया था और गांव वालों को यह बताया कि अगर किसी इंसान में इच्छा शक्ति हो तो वह कुछ भी कर सकता है और वह सविता ने कर दिखाया है। आज सविता पिछड़ी जाति के होते हुए भी वह कर दिखाया जो लोगों को लगता है कि पढ़ना सिर्फ उच्च जाति के लोगों का ही जन्मसिद्ध अधिकार है। आज मुझे सविता पर गर्व हो रहा है जिसने कई लड़कियों के लिए एक उदाहरण पेश किया।
मैं बड़ा होकर आईएस बनना चाहती थी इसलिए मैंने ग्रेजुएशन में आर्ट्स विषय लिया। मैंने अपना ग्रेजुएशन इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से कंप्लीट की और वहीं पर यूपीएससी की तैयारी किया। जब ताई को यह पता चला कि मैं इलाहाबाद में पढ़ने जा रही हूं तो उसने मेरे बापू की तनख्वाह ₹1000 बढ़ा दिया और बोली कि यह ₹1000 किशोर मैं तुम्हारे लिए नहीं पढ़ा रही हूं या ₹1000 सविता के लिए बढ़ाया है ताकि तुम उसे सही टाइम पर पैसे भेज सकूं और उसकी पढ़ाई में कोई दिक्कत नहीं आनी चाहिए अगर कोई प्रॉब्लम है तो मुझसे जरूर बताना।
ताई के लड़के शुरू से ही शहर के बड़े प्राइवेट स्कूल में पढ़ते थे, बचपन से ही मां के आंचल से दूर हो गए थे। शहर में ही पढ़ाई की और वहीं पर उनकी नौकरी लग गई। गांव बस 1 दिनों के लिए आते थे गांव के लोगों से उनको कोई मतलब नहीं था।
इस साल पहली बार अपने जीवन में 13 दिन उन्होंने गांव में बिताया था क्योंकि उनके पिता ठाकुर वीर प्रताप सिंह का निधन हो गया था और 13 वीं तक तो कैसे भी करके गांव में रहना ही था 13 वीं के बाद ही उन्होंने अपनी सारी संपत्ति अपने भाइयों में बंटवारा कर ली और सबकुछ बेचकर हमेशा-हमेशा के लिए गांव छोड़ कर चले गए। छोड़ गए तो सिर्फ कौशल्या ताई को।
कौशल्या ताई तब तक खाना समाप्त कर चुकी थी। मैंने बोला ताई और कुछ चाहिए। ताई ने बोला नहीं बेटी आज बहुत दिनों बाद कुछ अच्छा खाने को मिला वरना तो सब लोग अपने घर के बची खुची खाना ही मुझे देते थे।
मैं सोचकर बिल्कुल ही हैरान थी कि जिसके पास इतना जमीन था जिनके चार-चार बेटे इतने उच्च पदों पर नौकरी करते हैं उसकी मां को दर-दर भटकना पड़ रहा है कैसा जमाना आ गया है। इसीलिए मैं अपने बच्चों को यह सब दिखाने के लिए लाती हूं कि तुम चाहे कितना भी बड़े बन जाओ लेकिन अपने जड़ों को मत काटना, अपने बुजुर्गों को मत भूलना कि आज कितनी मेहनत के बाद तुम्हें यह जीवन मिला है।
सविता के पति भी आईएस अफसर था क्योंकि इनकी शादी लव मैरिज हुई थी। सविता का पति चाहता था कि बच्चों को हॉस्टल में भर्ती कर दिया जाए लेकिन सविता ने मना कर दिया था बोली नहीं जो परवरिश बच्चों की मां बाप के देखरेख में होती है वह हॉस्टल में कभी नहीं हो सकता। हॉस्टल में शिक्षा तो मिल सकता है लेकिन संस्कार कहां से मिलेगा और मैं अपने बच्चों को शिक्षा के साथ संस्कार भी देना चाहती हूं।
मैंने मनोहर चाचा को उसी समय कहा कि आज के बाद कौशल्या ताई मंदिर में नहीं रहेंगी और आप इसे यहीं पर घर में रखेंगे और तीनो टाइम कौशल्या ताई को खाना भी खिलाएंगे आज से मान लीजिए कि यह आपकी मां है। मैं बहुत जल्द कौशल्य ताई को शहर ले कर जाऊंगी।
1 सप्ताह की छुट्टी समाप्ती के बाद सविता अपने बच्चों के साथ शहर वापस लौट गई थी। शहर आने के बाद सारा वाक्या उसने अपने पति महेश से सुनाया। महेश भी सुनकर बहुत आहत हुआ क्योंकि महेश भी जन्म से अनाथ था, उसकी पढ़ाई लिखाई एक अनाथ आश्रम में हुई थी। महेश, सविता से कह रहा था कि लोग भी कैसे होते हैं जिसके पास मां-बाप होते हैं वह अपनी मां बाप की कदर नहीं करते हैं और जिसके पास मां बाप नहीं होते हैं उन्हें मां बाप होते तो कितना अच्छा होता यह सोचते रहते हैं।
सविता ने कहा महेश याद है मैंने तुमसे बहुत पहले ही कहा था कि मैं एक आश्रम खोलना चाहती हूं जहां पर बेसहारा बच्चों को सहारा दिया जा सके। मुझे लगता है अब वह समय आ गया है क्योंकि उसको देखभाल करने के लिए कौशल्या ताई से अच्छा कोई वार्डन हो ही नहीं सकती। तुम्हें पता है मैं कौशल्या ताई उस जमाने में एमएससी पास थीं। अभी ताई की उम्र ही क्या हुआ है मुझे लगता है 60 साल भी नहीं हुआ होगा।
तनाव के कारण थोड़ा सा दिमागी रुप से कमजोर हो गई है सही से खाना पीना मिलेगा तो वह ठीक हो जाएंगी।
सविता ने एक एनजीओ के साथ मिलकर देहरादून में ही “ताई अनाथआश्रम” नाम से एक आश्रम खोल लिया था जिसका कर्ताधर्ता कौशल्या ताई को बनाया।
कौशल्या ताई कुछ दिनों के बाद लग नहीं रही थी कि वह बूढ़ी हो गई है अंदर से एक हौसला जो आ गया था। सविता ने कहा, “ताई अब आपको अपने सपने पूरे करने के दिन आ गए हैं भले देर से ही सही। ताई अनाथ बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया था थी।
ताई के मैथ और इंग्लिश बहुत ही अच्छे थे उसके पढ़ाये हुए बच्चे इंजीनियरिंग और मेडिकल बिना कोचिंग के ही क्वालीफाई करने लगे। आलम यह था कि कई अच्छे घरों के माता पिता भी आकर सिफारिश करते थे कि हमारे बच्चों को भी ताई पढ़ाती तो बहुत अच्छा हो। फिर हमने एक बड़ा सा हॉल किराए पर लिया यहां पर ताई बच्चों को मैथ और इंग्लिश की क्लास लिया कर दी थी।
इसकी खबर चारों तरफ फैल गई थी न्यूज़ पेपर में “ताई क्लासेज” की चर्चा छा गई थी। ताई के बेटे ने भी यह खबर पढ़ी और जब अपनी मां की तस्वीर देखा तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ उसकी मां इतना ज्यादा चर्चित हो गई और कैसे।
ताई के बेटे अपनी मां के पास आए और मां के चरणों में गिर कर माफी मांगने लगे। मां हमें माफ कर दो जिनका आप से खून का रिश्ता नहीं है उन्होंने आज आपको एक अपनी पहचान दिलवाया और हमसे आपका खून का रिश्ता है तो हमने आपको छोड़ दिया हम आपके बेटे कहलाने लायक तो नहीं है फिर भी आप हमें माफ कर दो, हमसे बहुत बड़ी गलती हुई। क्योंकि मां हमें शिक्षा तो मिला लेकिन संस्कार नहीं। हम शुरू से ही मॉडर्न इंग्लिश स्कूल में पढ़े जहां हमें उच्च शिक्षा दिया गया लेकिन कभी संस्कार नहीं सिखाया गया।
एक दिन ऐसा भी आया जब ताई को एशिया का नोबेल पुरस्कार कहे जाने वाले रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से नवाजा गया। ताई ने मंच से कहा कि इस पुरस्कार के सही में जो हकदार है वह मेरी बेटी सविता है। अगर आज उसने मुझे अपनाया नहीं होता और मुझे यह प्लेटफॉर्म नहीं दिया होता तो शायद मैं एक गांव के मंदिर के कोने में ही पड़ी होती या अब तक मर गई होती। लोग बेटियों को नकार देते हैं उसे पढ़ाते दिखाते नहीं है लेकिन सविता से मेरा खून का रिश्ता तो नहीं है लेकिन दिल का रिश्ता इतना बड़ा है कि वह खून के रिश्ते को भी झुका सकता है।
मैं आज उन सब लोगों से कहना चाहती हूं कि जो लोग बेटी समझ कर बेटियों को पढ़ाते नहीं है या उन्हें नौकरी करने से रोका जाता है लड़कियां नौकरी कर क्या करेंगी उनके मुंह पर सविता जैसी लड़कियां तमाचा है। मैंने एम एस सी पास किया था लेक्चरर बनना चाहती थी लेकिन मुझे यह कहकर नौकरी नहीं करने दिया गया कि बड़े घर की लड़कियां नौकरी नहीं करती हैं।
सभी माता-पिता से अनुरोध है कि ठीक है आप अपने बच्चों को बड़े से बड़े कन्वेंट स्कूल में पढ़ाएँ लेकिन आप अपने बच्चों को शिक्षा भी दीजिए लेकिन साथ-साथ संस्कार भी दीजिए जो उसे जीवन में आगे बढ़ने में पूर्ण रूप से योगदान दे सकते हैं।
Writer:Mukesh Kumar