कागज के फूल – सुधा शर्मा

वसुधा का मन बेचैन था।बहुत कोशिश करती खुद को

बहलाने की पर बार बार खूबसूरत यादें आकर फिर उसे ले जाती थीं अपने आगोश में जहाँ राज के

प्यार के एहसास से, उसकी आवाज की गूँज, उसके शब्दो से फिर बार बार बेचैन हो उठती।

               कैसे वह उसे नीरस उदास शुष्क दुनिया से बाहर निकाल लाया धा और वह उसकी

भावनाओं के सैलाब में डूब गई थी

उसके शब्दों की फुहार से तन मन भीग गया था ।

         कैसे सुबह होती थी उसकी याद के साथ,रात डूबती थी उसके एहसास के साथ।कितनी कितनी बार याद आता था दिन मे।उसकी भावनाओं के सैलाब में डूब गई थी  वह।

कितना लिखती थी उन एहसासों पर, फिर उसकी प्रतिक्रिया पढ़कर उसके रोम रोम में लहर सी उठने लगती थी।



               ” क्यूँ आई मेरे जीवन में

बेहिसाब, समुन्दर से गहरा।

           मेरे जीवन का बेशकीमती एहसास हो , लिपटी हो मेरी रूह आत्मा से।”

           उसके शब्द, उसकी आवाज , उसके गीत “,,,,

    कितना पागल हो गई थी वह,

मन मन मे उसके नाम को दुहरा कर कितना अच्छा लगता था ।

           आकण्ठ समा गयीं थी भावनाओं के भँवर में ।

         फिर कितनी जल्दी उसके दूर होते कदमों की आहट सुनाई देने लगी थी ,वह  खूबसूरत एहसास, उडते बादलों समान दूर जाते दिख रहे थे , और वह ?,,,,,

अपने मन की भावनाओं को अपने

शब्दों से चित्रित करती , खयालो

मे जी रही थी , विचित्र सी टीस , दर्द को अपने अन्तर्मन में समेटे।

            उस दिन अचानक ही नील ने हौले से उसके मन का दरवाजा खटखटाया।



       उसकी किसी गीत की गहराई ने उसके जख्मो को कुरेद दिया था शायद।

         इससे पहले कि वह सँभल पाती नील इतनी तीव्रता से अपनी भावनाओं का अपने एहसास में उसको समेट लेने को आतुर ,उसके अन्तर्मन को झकझोरता ,अथाह प्यार लिये उसके समक्ष था।

          फिर वही  शब्द,”मै  साथ रहूँगा तुम्हारे, ” ” समा गई हो रूह मे”, ” कुदरत ने भेजा तुम को मेरे लिये “”हमेशा”  ,,,,,,,,, बार बार उसको अतीत में खींच लिये जा रहे थे , कहाँ पूरी तरह भूल पाई थी

अपना अतीत।

         सामने नील था ,,,,, आँखों मे सच्चाई   गहराई लिये , प्यार का सैलाब लिये ,,,,,,बार बार  वसुधा को विश्वास दिलाता  ,,,,।

जब वसुधा ने उसे राज के बारे मे बताया तो उसके हृदयस्पर्शी शब्द

“तुम्हारा उसके साथ होना यदि सुस्वप्न है तो हम याद भी दिलायेगे, याद भी रखेंगे, और अगर दुःस्वप्न है

तो तुम्हें भी भुलवा देगें ।”

     इन शब्दो ने उसको अन्दर तक छू लिया था।

  वसुधा अपने मन को स्थिर करने का प्रयत्न कर रही थी ,,,, दो दिन बाद मुरझाने वाले असली फूल जिनकी बस यादे शेष है या कागज के फूल ,,,, जो हमेशा तक कायम रहें ,जीवन पर्यन्त।

      जितना कोशिश करती खुद को फिर उन्ही भावनाओं के सैलाब मे डूबने से रोकने की उतना ही नील के खूबसूरत शब्द, उसका चुम्बकीय व्यक्तित्व, उसके प्यार की गहराई उसके रूह मे समा जाने वाले शब्द उसे भावनाओं के प्रवाह  में बहा ले जाते । उसकी सच्चाई, उसकी स्पष्टता, उसका स्नेह उसे



भाव विभोर कर देता ।उस दिन उसने लिखा

“बन इश्क़ रूह का तेरी, तेरे दिल का नूर कहलाऊ वसुधा

जन्मो जनम तक, तेरे इश्क़ का बन गरूर इतराऊं वसुधा

तेरे माथे की बिंदियाँ बन, मेरी ज़िंदगी गुज़र जाए वसुधा

तेरी नज़रों के इतना करीब रह, में तुझमें रम जाऊँ

वसुधा”

       और फिर वसुधा डूब गई उसकी भावनाओं के सैलाब में हमेशा के लिये।

#दिल_का_रिश्ता

सुधा शर्मा

मौलिक स्वरचित

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