रश्मि की आँखें बार बार दरवाज़े की ओर कुछ ढूंढती हुई चली जाती। कब आएगी, आती क्यों नहीं, आएगी भी या नहीं प्रश्न उसे कचोट रहे थे। सौम्या को गए कई दिन हो गए वह बिना कुछ बोले चली गई तब से रश्मि बिस्तर पर ही है। उदास खोई खोई ठीक से ना तो खाती है ना घूमती फिरती हैं।
सौम्या उनकी बेटी है उदय बेटा। सौम्या बड़ी है उदय क़रीब सात साल छोटा है सौम्या से। रश्मि कॉलेज में पढ़ाती हैं और उनके पति किसी कंपनी में डाइरेक्टर हैं। खाता पीता परिवार है किसी चीज़ की कमी नहीं। रश्मि ने पूरी निष्ठा से गृहस्थी चलाई है और बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाई है।
बेटी सौम्या डॉक्टर है और बेटा भी इंटर्नशिप ख़त्म करके कुछ महीने बाद डॉक्टर हो जाएगा। नवीन कुमार सभी प्रकार से अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हैं जैसे किसी अच्छे पिता व पति को होना चाहिए वो मूलतः वैसे ही हैं। इतना सब कुछ होने के बाद भी रश्मि किस लियें बेचैन है क्यों बिस्तर पकड़ लिया। आत्मग्लानि के बोझ को उठा नहीं पा रही हैं उन्हें पहले ही सब बात सौम्या को बता देनी चाहिए थी। बताना देना चाहिए था कि वो विनायक भाई साहब की बेटी है। माँ की ममता और सौम्या को दुःख पहुंचेगा इस लियें नहीं बता पाई।
बात उस दिन से शुरू हुई जिस दिन चारों जन ड्राइंग रूम में बैठे एक दूसरे से हंसी मज़ाक कर रहे थे। ऐसा रश्मि का परिवार बरसों से करता आ रहा है। ख़ाली समय में चारों अंताक्षरी खेलते हैं लूड़ो व ताश की बाजियां लगाते और आपसी स्नहे को परस्पर बंटाते रहते हैं।
रविवार का दिन था चारों बैठे मस्ती से समय बिता रहे थे नवीन कुमार हमेशा की तरह पुराने किस्से सुना रहे थे। अचानक जो किस्सा वो सुनाने लगे रश्मि की लाख कोशिशों के बाद भी वो विषय बदला नहीं जा सका। उसी किस्से के दौरान दोनों बच्चों को ये पता चल गया कि सौम्या उनकी अपनी बेटी नहीं है वह उनके दोस्त विनायक की बेटी है। नवीन जी अपनी धुन में इतना खो गए कि जो बात पिछले तेईस वर्षों तक कभी मुँह से नहीं निकली आज बोल दी।
नवीन जी के जिगरी दोस्त व उनकी पत्नी की कार एक्सीडेंट में मृत्यु हो गई थी। छः माह की लड़की की जिम्मेदारी विनायक के किसी भी रिश्तेदार ने नहीं ली तब नवीन जी उसे अपने घर ले आये थे और दिल से उसे बेटी बना लिया।
घर से जाते समय सौम्या अपने माता पिता की वो फ़ोटो साथ ले गई जिसे वह अब तक नवीन के पक्के मित्र की तरह पहचानती थी। सच कभी छुपाया नहीं जा सकता। फिर जब सच्चाई सामने आती है तो दुख साथ लाती ही है। रश्मि और नवीन लाचार पल पल बेटी के गुस्से को शांत होने तक इंतजार करने लगे। वैसे तो उन्हें पता था कि सौम्या होस्टल चली गई है। बेहद सुशील है उनकी बेटी। अचानक लगी भावनात्मक चोट से वो टूट गई है।
उदय ने समझाने का बहुत प्रयत्न किया पर सब बेकार ही रहा। उसे रश्मि की सलाह थी कि सौम्या को समय देना ही उचित होगा। रश्मि को अपने स्नेह पर विश्वास था कि सौम्या लौट आएगी। परन्तु डर भी था कि कहीं सदा के लिए हम से अलग हो जाये। आख़िर जो सच्चाई उसे अपने बारे में पता चली है वो बहुत चोट पहुँचाने वाली ही तो है।
क़रीब तीन माह बाद सौम्या का कॉल आया रश्मि से उसका हाल चाल जान फ़ोन बंद कर दिया। धीरे धीरे उदय ने सौम्या के साथ बातचीत का सिलसिला बनाया। सौम्या नवीन जी से सख़्त नाराज़ थी उसे लग रहा था कि अपने दोस्त की बेटी पर उन्होनें एहसान किया है तभी तो उस दिन अचानक सारी बात बोल जता दिया, इसी से उसके मन में गहरी कड़वाहट घुल गई थी। सौम्या कभी नवीन जी को माफ़ नहीं कर पायेगी।
सौम्या का थोड़ा गुस्सा शांत हुआ है ये सोच रश्मि जी उससे मिलने गई। सौम्या उनसे चिपट कर बहुत रोई। चाहे जो भी हो माँ की ममता का अहसास तो रश्मि जी से ही मिला था। बरसों तक उन्हें ही अपनी माँ समझ कर कितना मनचाहा मांगा था। कितनी खुशियों के पल बिताए थे उस घर में। रश्मि उसकी पसंद का खाना ले गईं थी। माँ बेटी के बीच की दूरी कुछ ही पलों में मिट है। सौम्या अपनी एम.ड़ी की पढ़ाई पूरी होने तक होस्टल में रहना चाहती थी। रश्मि ने उसकी बात मान ली उन्हें उम्मीद थी कि कभी न कभी सौम्या नवीन जी को भी फिर से अपना लेगी और उनके बिना और अधिक दिन दूर नहीं रह पाएगी।
अचानक नवीन जी को दिल का दौरा पड़ गया। उन्हें अस्पताल में दाख़िल किया गया। ये ख़बर मिलते ही सौम्या अपने को रोक नहीं पाई। अस्पताल जा कर पिता से मिली घण्टों उनके पास बैठी रही। डॉक्टर से मिलना दवाई लाना सारी देखभाल अपने हाथों ले ली। नवीन जी और रश्मि बेटी से दुबारा जुड़ कर बेहद प्रसन्न थे। सौम्या सब कुछ कर तो रही थी परन्तु उसका व्यवहार नवीन जी से सहज नहीं था वो उनसे अधिक बात नहीं करती। आख़िर नवीन जी ने ही पहल की बेटी से माफ़ी मांगी बोले, “अब तो माफ़ कर दे मेरी गुड़िया, भगवान ने भी मुझे वापिस भेज दिया बोला पहले बेटी से माफ़ी मांग कर आओ। “सौम्या पापा के गले लग गई, मन के सारे मैल धुल गए।
गीतांजलि गुप्ता
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