लिखने के पहले ही चेहरे पर मुस्कान आ गई ,और पुरानी कई मधुर स्मृतियां यादों में तैर गई।
यह 35 वर्ष पुरानी बात है। जब मैं 20 वर्ष की थी। M.A.. फाइनल में थी ।सरकारी स्कूल में शिक्षिका 18 वर्ष की उम्र में ही बन गई ।मैं और मेरी चचेरी बहन उषा, हम दोनों बहनों के लिए लड़के देखने का कार्यक्रम शुरू हुआ। पिताजी ने बायोडाटा बनाया ।
पिताजी की शर्ते थी।
लड़की की शादी बहुत दूर नहीं करूंगा।
उसी परिवार में शादी करूंगा जो बेटी की जाब कंटिन्यू रखें ।
पढ़े-लिखे परिवार में शादी करूंगा ..
बात चल रही थी ।कहीं भी प्रस्ताव आने पर आगे बाबूजी जाते ,उनको समझ में आता तो बात बढ़ती।
एक जगह उन्हें लड़के के घर की सीढ़ियां पसंद नहीं आई, उनको लगा ,ऐसी टेढ़ी-मेढ़ी सीढ़ियों पर मेरी बेटी कैसे चढ़ेगी ?
एक जगह लड़के वालों ने कहा ,” हम जिस बस को लेकर आएंगे उसका किराया आपको देना होगा”। बाबू जी को यह बात पसंद नहीं आई।
एक जगह लड़के वालों ने बोला” सारी रसोई शुद्ध घी की बनाना, और बारातियों को बढ़िया से गिफ्ट देना”।
बाबू जी को उनकी यह बात भी जमी नहीं ।
बाबूजी जहां भी जाते, मेरी अंकसूची की फाइल लेकर जाते ।लड़के की भी डिग्री जरूर देखते।
एक परिवार ने यह कह कर मना कर दिया “आपकी लड़की सदैव फर्स्ट क्लास रही है और हमारा लड़का भी फर्स्ट क्लास है ,दोनों फर्स्ट क्लास की जोड़ी नहीं जमेगी। इस प्रकार बातें चलती रही, पर जम नहीं रही थी ।
बाबूजी चिंतित होने लगे। मुझसे कहते ,हम शाम को सभी इकट्ठे होकर प्रार्थना करते थे, बाबूजी कहते “हम तो कोशिश कर रहे हैं ,तुम भी भगवान से प्रार्थना करो कि तुम्हें अच्छा घर वर मिले”
मैं भी भगवान से हाथ जोड़कर प्रार्थना करती।
एक दिन बाबूजी को मेरी बड़ी मम्मी ने कहा” उनके भाई के लड़के के बारे में की” दिलीप कैसा रहेगा ?”
उनके पिताजी और मेरे पिताजी बचपन के मित्र, साथ में पढे, साथ में रहे थे। और मेरी बड़ी मम्मी इनकी बुआ। इनका आना जाना होता था, पर मैंने कभी इस विषय में सोचा ही नहीं ।
जब बाबू जी मम्मी से कह रहे थे, क्यों श्रीमल भाई का बेटा दिलीप अपनी सुधा के लिए कैसा रहेगा?
तब मेरी बाई बोली “अच्छी बात है”
मैं पास के कमरे से सब सुन रही थी ।बाबूजी को तो कुछ बोल नहीं पाई, लेकिन अपनी बाईं से बोली” मैं नहीं करूंगी शादी”
मेरी बाई बोली, क्यों ?
मैंने कहा,” लड़के के बाल कितने छोटे हैं, शर्ट भी इन नहीं करते और जूते भी नहीं पहनते “
उस समय हम बहनें खूब मायापुरी पढ़ती थी ,और फिल्मी हीरो की कल्पना जीवनसाथी के रूप में करते थे।
जब मेरी बाई ने बाबूजी को कहा” सुधा तो मना कर रही। बाबूजी ने पूछा?
क्यों? तो बाई ने कारण बता दिए। पिताजी हंसने लगे और कहा” यह तो कोई बात नहीं, बाल छोटे हैं ,तो बड़े हो जाएंगे ।शर्ट इन नहीं करते तो करने लग जाएंगे, चप्पल पहन रहे हैं, जूते भी पहन लेंगे ।अभी उनकी पारिवारिक स्थिति कैसी है? उन्होंने अपनी मां को खोया था। परिवार की जवाबदारी थी। सादगी भरा परिवार था ।चार भाई-बहनों का साथ। पिताजी इस बात को समझते थे। खैर, मेरी भी स्वीकृति उन्होंने मन ही मन मान ली।
और धार आकर वे छोटी रस्म करके चले गए। मैं अपने दिल में इनके प्यार को महसूस करने लगी।
यह भी मिलने आते ।मेरा फोटो ले गए, मैंने इनका फोटो लिया ।कभी-कभी तो यह बस में मात्र मुझे देखने के लिए इतनी दूर का सफर करते ।
उन दिनों की बातें बहुत खूबसूरत एहसास है ,जो आज भी आसपास है। हर पल यही एहसास रहता कि यह रिश्ता “दिल का रिश्ता “है।” दिल से दिल तक” जुड़ा हुआ….
2 महीने बाद ही हमारी शादी हो गई, और मैं मन में ढेर सारे सपने संजोए ससुराल आ गई।
जीवन फिल्मों जैसा नहीं फिल्मों से ज्यादा खूबसूरत है, ऐसा महसूस करती हूं। उस प्यार की रवानगी को आज भी अपने आसपास पाती हूं, और दिन प्रतिदिन इस प्यार को बढ़ता हुआ महसूस करती हैं ।ईश्वर को धन्यवाद देती हूं ।चेहरे पर मुस्कान हैं, और यह उन दिनों की बात है।
यह उन दिनों की बात है
प्यार की पहली मुलाकात है,
आंखें देख रही थी सपने
तुम मुझको लगे थे अपने,
थोड़ी नानुकुर ,बाद में मनुहार है,
सब लोगों के बीच में प्यार से तुम्हारा देखना,
हर घड़ी, हर पल आंखों का सेंकना ,
ओंठों पर आती प्यारी सी मुस्कान है,
यह उन दिनों की बात है ,
वह छुप छुप के बस में मिलने को आना,
कभी बिना बोले ही, यूं ही चले जाना
कभी रूठना ,कभी मनाना ,
यह प्यार की सौगात है
यह उन दिनों की बात है।
मेरे लिए प्यारी सी सौगात लाना
वो चिट्ठीका आना, पढ़कर मुस्कान आना,
ए जिंदगी का गान है,
ये उन दिनों की बात है ।
उन बातों को बीत गया बड़ा जमाना
लेकिन मुझे याद है ,प्यारा सा फसाना
आज भी नहीं लगता है बेगाना
हाथों में तेरा हाथ, और जीत लूं जमाना
ये उन दिनों की बात है
ये इन दिनों की बात है
तेरा मेरा साथ पुराना
जन्मो जन्म का साथ है,
ये इन दिनों की बात है।
यह खट्टी मीठी यादें मेरी,
जिंदगी की सौगात है।
सुधा जैन