डिनर बनाने का समय हो गया था नेहा ने सोचा कि सब से पूछ लेती हूं कि सब लोग क्या क्या डिनर में खाएंगे। सबसे पहले उसने अपनी सास से पूछा, “मम्मी जी आज खाने में क्या बनाऊँ. नेहा की सास सविता जी ने कहा, “मुझे तो आज राजमा चावल खाने का मन कर रहा है
मेरे लिए राजमा चावल बना दो बाकी लोगों से पूछ लो वह क्या खाएंगे।” नेहा ने अपनी ननद और देवर से भी पूछा कि मैं आज राजमा चावल बनाने जा रही हूं आप लोग क्या खाएंगे, वो बोले ठीक है भाभी आप राजमा चावल बना लो हम भी राजमा चावल खाएंगे।
अब बारी थी उसके ससुर से पूछने की अपने ससुर से जाकर बोली, “पापा जी आज डिनर में कौन सी सब्जी खाएंगे।” क्योंकि नेहा के ससुर को चावल खाना मना था उनको शुगर की बीमारी थी।
नेहा के ससुर ने कहा, “बेटी राजमा के साथ तो चावल ही अच्छा लगता है और मैं भी रोटी खा खा के बोर हो गया हूं। आज मुझे भी चावल ही खिला दो और वैसे भी डॉक्टर ने कभी-कभी चावल खाने को तो बोला ही है।” नेहा ने कहा, “ठीक है पापा जी।”
रात्री के 9:00 बजते ही नेहा ने सभी घर वालों को आवाज लगाई सब लोग खाने के टेबल पर बैठ जाइए मैं खाना लगा रही हूं। नेहा ने सबको राजमा-चावल लगा दिया और अपने ससुर जी को भी राजमा चावल ही परोस दिया था। साविता जी ने जब देखा की नेहा अपने ससुर को भी राजमा चावल ही परोस दिया था।
सविता जी बोली, “नेहा अपने ससुर जी को तुम चावल क्यों दी हो इनको तो डॉक्टर ने मना किया है न चावल खाने से।” “मम्मी जी मैंने पापा जी से पूछा था तो उन्होंने बोला था की रोटी खा-खा के बोर हो गया हूं आज मेरे लिए भी राजमा चावल ही बना दो।”
सविता जी नेहा पर गुस्सा हो गई और बोली “अगर यह कल कहेंगे कि मुझे जहर दे दो तो क्या तुम जहर दे दोगी इनके लिए तुम्हें पता है कि चावल जहर के समान है।” सविता जी अपने बेटे समीर की तरफ इशारा करते हुए कहा, “देख लो अपनी बीवी को इससे चार रोटी नहीं बनाया जा रहा था
आजकल की लड़कियां ना जाने कितनी आलसी हो गई हैं एक हम लोग थे। अगर तुम से रोटी नहीं बन पा रहा था या बनाने का मन नहीं था तो मुझसे कह देती मैं समीर के पापा के लिए रोटी बना देती। चार रोटी बनाने की आलस की वजह से इनकी स्वास्थ्य के साथ हम खिलवाड़ तो नहीं कर सकते हैं।”
नेहा बोली, “मम्मी जी मुझे बनाने में कोई दिक्कत नहीं था पापा ने बोला तो मैंने सोचा चलो चावल ही खा लेंगे और वैसे पापा जी को डॉक्टर ने बिल्कुल चावल खाने से मना नहीं किया है कभी-कभी तो बोला ही है चावल खाने को।”
तभी समीर भी नेहा को डांटने लगा, “एक तो तुम पापा जी के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रही हो और ऊपर से बहस भी कर रही हो तुम्हें तो पता ही है कि कितने पैसे खर्च हो रहे हैं पापा के बीमारी में।” नेहा के ससुर ने कहा, “अब रहने भी दो सब लोग बहू के पीछे हाथ धोकर पड़ गए हो आज के बाद मैं नहीं खाऊंगा चावल।”
“मेरी गलती है, बहू मुझे माफ कर दो मैंने जो तुम्हें चावल बनाने को कहा। ना मैं तुमसे चावल बनाने को कहता और ना तुम्हें इतना सुनना पड़ता।” सविता जी ने नेहा को बिना बात के इतना सुना दिया था लेकिन फिर भी उनको इस बात का बिल्कुल भी अफसोस नहीं था कि नेहा भी एक इंसान है
इसके अंदर भी एक छोटा सा दिल बसता है। यह सब देख कर नेहा की भावनाएं बहुत ही आहत हुई । नेहा की सास हमेशा इस तरह जरा-जरा सी बात पर नेहा पर बरस पड़ती थी। नेहा कितना भी करती अपनी सास के लिए वह कुछ ना कुछ कमी ढूंढ ही लेती थी।
पति भी मिला था तो मां का लाडला बेटा था। समीर को अपनी मां मे कभी भी गलती दिखाई नहीं देती थी वह भी अपनी मां की बातों को लेकर डांट देता था। नेहा अब इसलिए किसी से कुछ नहीं कहती। चुपचाप अपने घर के काम में लगी रहती थी। वह भूल गई थी कि उसके भी कुछ सपने थे अरमान थे शादी से पहले कितने सपने देखी थी अपने पति के बारे में अपने सास-ससुर के बारे में। उसने सोच रखा था कि अपने प्यार से अपने ससुराल को मंदिर बना देगी। लेकिन यह सब ख़्वाबों में ही मुमकिन था असल जिंदगी में कहां मुमकिन है।
यह तो हम सभी जानते हैं कि सलमान खान की फिल्में ईद पर ही रिलीज होती हैं और इस साल भी सलमान खान की एक मूवी रिलीज होने वाली थी उसने अपने पति से कहा समीर हमने बहुत दिनों से मूवी नहीं देखा इस बार हम मूवी देखने चलेंगे वह भी फर्स्ट शो में।
नेहा ससुराल में आते ही काम करने वाली बाई बन गई थी लेकिन वह अब ऊब गई थी। शादी का मतलब ससुराल की नौकरानी बनना है तो फिर शादी करना क्या जरूरी है। अपने पति के साथ वह कुछ रोमांटिक पल बिताना चाहती थी मूवी देखना चाहती थी, कहीं लॉन्ग ड्राइव पर जाना चाहती है।
वह हर पल अपने पति के साथ ऐसे बिताना चाहती है थी जैसे यह पल कभी जिंदगी में खत्म ही ना हो। समीर ने कहा, “ठीक है भाई मैं टिकट आज ऑफिस में बुक कर दूंगा इस बार हम चलेंगे मूवी देखने।” फ्राइडे का दिन था नेहा बिल्कुल सज धज के तैयार थी
आज समीर के साथ शादी के बाद पहली बार घूमने जा रही थी। नेहा बिल्कुल ही राजकुमारी जैसी लग रही थी। नेहा जैसे ही अपने कमरे से तैयार होकर निकली, बाहर देख रही है कि घर के सारे लोग तैयार हैं। नेहा ने अपनी सास से पूछा मम्मी जी आप कहीं जा रही हैं क्या?
तो नेहा की सास ने जवाब दिया बहु तुम्हें पता नहीं है हम सभी को समीर सलमान खान की मूवी दिखाने ले जा रहा है। यह सुनते ही नेहा के सपने एक पल में चकनाचूर हो गए उसने समीर को आवाज दी और अपने कमरे में ले गई।
समीर, मैंने तुमसे हम दोनों के लिए मूवी देखने के जाने के लिए बोला था ना कि पूरे परिवार को साथ ले जाने के लिए। समीर तुम समझते क्यों नहीं आखिर हमारी भी कोई अपनी प्राइवेट लाइफ है। मैं तुम्हारे साथ अकेले में वक्त बिताना चाहती हूं ताकि हमारा रिश्ता मजबूत बन सके जो छोटी-छोटी बातें हमारे बीच झगड़े पैदा करती हैं
एक दूसरे के साथ जब हम समय बिताएंगे तो उसको दूर करने के तरीके ढूंढ लेंगे थोड़ा एक दूसरे के करीब आएंगे अपने इस भागम-भाग जिंदगी में कुछ प्यारे पल अपने रिश्ते के लिए निकालेंगे। लेकिन समीर तो अपने परिवार का प्यारा बेटा था मोहल्ले वाले तो समीर को रामायण की राम की उपाधि तक दे देते थे।
उसने कहा, “नेहा तुम मेरे परिवार वालों से इतना जलती क्यों हो। तुम्हें मेरे परिवार वालों के साथ वक्त बिताने में क्या परेशानी है तुम्हें बस सिर्फ अकेले घूमना है मेरे परिवार वालों या मेरी मां को ले जाने में तुम्हें तकलीफ है।
देखो भाई तुम्हारे मायके में मां बाप को अकेले छोड़ देते होंगे लेकिन हमारे यहां नहीं हम जो भी काम करते हैं सारे परिवार वाले मिलकर करते हैं। पता नहीं तुम्हारी मां बाप ने क्या सिखाया है। तुम्हें यह समझना चाहिए कि ससुराल में सास ससुर ही तुम्हारे मां-बाप है देवर ननद तुम्हारे भाई-बहन समान है।
मैंने सोचा भी नहीं था कि तुम इतनी बुरी हो हमारे परिवार वालों के बारे में ऐसा सोचती हो।” नेहा बोली, “इसमें मां-बाप या तुम्हारे परिवार वालों को छोड़ने की बात कहां से आ गई समीर वो सब अकेले बाहर घूमने जाते हैं तो क्या हमें लेकर जाते हैं तुम्हारे भाई-बहन जब मर्जी जहां घूमने चले जाते हैं
तुम्हारे मम्मी-पापा भी अक्सर जाते हैं तो क्या वह मुझे लेकर जाते हैं। लेकिन एक दिन मैंने तुम्हारे साथ मूवी देखने की बात क्या कह दी तुम्हें तो लगने लगा कि मैं तुम्हारे परिवार वालों को अहमियत ही नहीं देती हूं। हमारी अपनी भी तो जिंदगी है।”
पर समीर नेहा की बातों को समझे बगैर नेहा को साफ साफ कह दिया कि देखो भाई अगर हम जाएंगे तो पूरे परिवार साथ मूवी देखने जाएंगे वरना हम नहीं जाएंगे। नेहा क्या करती नेहा भी साथ में चल दी। सिनेमा हॉल जाने से पहले मम्मी जी रास्ते में ही एक मंदिर पड़ता था पहले नेहा को मंदिर लेकर गई उसके बाद मूवी देखने गए।
नेहा मन ही मन सोच रही थी मैंने क्यों मूवी आने की बात कह दी इससे तो अच्छा मैं घर पर रहती कम से कम अपने पसंद की सीरियल तो देखती। नेहा मूवी देखकर आने के बाद मन बना लिया था कि अब वह कुछ भी नहीं कहेगी जो घरवाले कहेंगे या समीर कहेगा बस वही करेगी।
अब वह अपने मन से कोई खाना बनाती ना ही कुछ करती जो घर वाले कहते वही सिर्फ करती थी। नेहा और समीर के रिश्ते में बिना बात की दरार पड़ चुका था। समीर को लगता था कि नेहा को उसके घर परिवार वालों की बिल्कुल भी चिंता नहीं है।
जबकि सच्चाई यह नहीं थी नेहा हमेशा अपने सास-ससुर या देवर ननद का ख्याल रखती थी। समीर और नेहा की सास को छोड़कर नेहा सबको पसंद थी चाहे ससुर हो या उसके देवर ननद हो। दोस्तों हमारी जिंदगी में भी कई बार ऐसा ही होता है
हम एक दूसरे को समझने के बजाय एक गलती के कारण उस इंसान के बारे में एक गलत अवधारणा बना लेते हैं हमें लगता है कि वह इंसान ऐसा ही होगा जबकि वह ऐसा नहीं होता है। अगर हम अपने जीवन की गाड़ी को संतुलन में रखकर चलाना चाहते हैं
तो हमें एक दूसरे को समझना होगा एक दूसरे के भावनाओं का ख्याल रखना होगा और पति पत्नी के रिश्ते में खासकर यह जरूरी है। पति को भी इस बात को समझना होगा कि एक लड़की जो अपना घर परिवार सब कुछ छोड़ कर एक नई दुनिया में आ जाती है
जो उस लड़की की दुनिया नहीं होती है उसी को अपना घर मानने में थोड़ा तो टाइम लगेगा यह बात ससुराल वाले को भी समझना पड़ेगा और बहू के भी पसंद और नापसंद का ध्यान ससुराल वालों को भी रखना पड़ेगा सिर्फ अपनी पसंद और नापसंद थोंपना यह कहां की समझदारी है।