“हरिया !ओ हरिया ! जरा चाय दे जा”,दरवाजे से अखबार उठाते हुए सोमनाथ जी ने आवाज दी.आँगन में पड़ी मेज पर मोटी धूल जमी थी.
जाने क्यों उन्हें लगा जैसे कि सुमित्रा गुस्सा हो कर कह रही है, “कभी कुछ काम कर लिया करो ,कितनी धूल हो रही है.”सोमनाथ जी ने अखबार से ही धूल झाड़ कर लंबी साँस ली और कुर्सी पर बैठ गए. सुमित्रा थी तो उन्हें कहीं कुछ देखना नहीं पड़ता था. सुमित्रा के रहते घर, बच्चे सब कितना व्यवस्थित था. बच्चे तो अब भी वैसे ही हैं प्रेम अनुराग के साथ अनुशासित, बस वह ही अपने प्रति लापरवाह हो गए हैं .
ईश्वर ने क्यों सुमित्रा को उनसे छीन लिया. उन्हें याद है अंतिम समय मे सुमित्रा को बीमारी ने बहुत कमजोर कर दिया था फिर भी सहारा लेकर रसोई में हरिया का हाथ बटाने आ जाती. सोमनाथ जी को दुखी देख कर कहती, “आप मेरी चिंता छोड़िये मैं सदा आपके पास ही रहूँगी”.सोमनाथ जी को भी घर में बहुत बार सुमित्रा की उपस्थिति का अहसास होता.
हरिया ने चाय लाकर रख दी.
“सुनो हरिया !लौटकर जाते हरिया
को उन्होंने रोका,”आज दोनों कमरे अच्छी तरह से साफ कर देना.दोनों भईया और बहुएं आ रहीं हैं.”
“सच बाऊजी!हरिया खुश होते बोला “कितने दिन हो गए, माँ जी के जाने के बाद से कोई आया ही नहीं,अच्छा है घर भर जाएगा”.
“हाँ फैसला भी तो करना है” सोमनाथ जी ने बुझे से स्वर में कहा .
“कैसा फैसला? हरिया ने पूछा.
“हमारा और इस मकान का” सोमनाथ जी का स्वर कुछ भीग सा गया ,”तुम्हारी मांजी के रहते हमने कभी किसी के बारे में बहुत ज्यादा कुछ सोचा ही नहीं पर उनके जाने से सब कितना बदल गया है. घर बिल्कुल सूना सा हो गया है.तू नहीं होता हरिया तो जाने मेरा क्या होता.” सोमनाथ जी की आँखें भर आयीं.
“कैसी बात करते हैं बाऊजी आपके बच्चे तो राम लक्ष्मण हैं.
माँ जी हमेशा कहती थीं कि मेरे बच्चे बहुत अच्छे हैं मैंने जरूर पिछले जनम में कोई पुण्य किए होंगे. पर आप लोगों ने तो इस जनम में भी पुण्य किया है मुझ अनाथ को सहारा देकर” कह कर हरिया आँखें पोछने लगा.
“अरे पगले !छोड़ देखेंगे किस्मत का फैसला क्या होगा तू दिल छोटा न कर “.कह कर सोमनाथ जी अखबार पढ़ने लगे.
रात तक दोनों बेटे परिवार सहित आ गए थे . सोमनाथ जी ने कभी इतना अच्छा महसूस नहीं किया था .घर का कोना कोना जैसे खिलखिला उठा था .बड़े बेटे सुमेर के दोनों बच्चे इधर उधर दौड़ लगा रहे थे. छोटे बेटे मानव का बेटा सो गया था. उन्हें सुमित्रा के भी आस पास ही होने का आभास हो रहा था.
सुबह जब वह बगीचे में आए तो दोनों बेटे व दोनों बहू चाय के लिए उनका इंतजार कर रहे थे.
“अरे जरा देर हो गई, तुम लोग पी लेते.आज जैसे बहुत दिनों के बाद चैन से सोया.”सोमनाथ जी बैठते हुए बोले.
“क्या पापा कितने समय बाद साथ बैठने का मौका मिला है. सब साथ पिएंगे.” कहकर बड़ी बहू सबके लिए चाय बनाने लगी.
कुछ इधरउधर की बातें करने के बाद सोमनाथ जी बोले, “बेटा क्या फैसला है तुम लोगों का?”
“कैसा फैसला पापा ?सुमेर ने पूछा.
“,यही कि घर का क्या करना है, मेरा क्या करना है” सोमनाथ जी का स्वर भीग सा गया.
“कैसी बात कर रहे हैं पापा।घर आपका है और आप जैसा चाहेंगे वही होगा ” मानव ने बीच में टोका .
“पापा !आप चाहे मेरे साथ रहे या छोटे के साथ या कुछ समय दोनों के साथ हमें सब मंजूर है, बस आप खुश रहें “सुमेर ने सोमनाथ जी का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा फिर
पास खड़े हरिया से बोला,” क्यों हरि जी!
सुमेर हमेशा हरिया को हरि जी ही कहता था.
” भैया जी आप सबकी किरपा बनी रहे ,हमें तो बाऊजी के चरणों में पड़ा रहने दो”.
हरिया रोने लगा था.
सोमनाथ जी सोच में पड़ गए फिर धीरे से बोले,”बेटा सच कहूँ तो इस उम्र मेंं कहीँ नहीं जाना चाहता. मैं तो इस घर की ईटों में रच बस गया हूँ और तुम्हारी माँ की भी यादें जुड़ी हैं मैं यहीं रहना चाहता हूँ .देखभाल करने के लिए हरिया है ही बाकी तुम लोग आते जाते रहो “.
“ठीक है पापा !हमने आपकी बात कभी टाली है ?हमारा नहीं आपका जो फैसला होगा हम सब मानेंगे ” सुमेर बोला .
सोमनाथ जी की आँखें छलछला उठी.मन ही मन वह सुमित्रा का धन्यवाद कर रहे थे. आज के समय में आज्ञाकारी बच्चे किसी दौलत से कम नहीं होते. उनके कई दोस्त इस उम्र में बच्चों की ओर से बहुत निराश हैं . उन्हें फिर लगा जैसे सुमित्रा आस पास ही है. आँखों में आँसू मुस्कुरा उठे थे..
मणि शर्मा