कांति जी का हंसता खेलता पांच बच्चों का परिवार था , चार बेटियां और एक बेटा । बेटा सबसे छोटा था जो दो बेटियों के ब्याह के बाद हुआ था ।
सबसे छोटा और एकलौता होने के कारण कांति जी और राधेश्याम जी उसे खूब लाड़ प्यार करते थे , उसे अकेले कहीं जाने नहीं देते ।
दोनों बेटियां ममता और रूपा अपने अपने ससुराल में खुश थी ,
राधेश्याम जी दिल्ली में नौकरी करते थे , बीच-बीच में 1 महीने की छुट्टी लेकर वह अपने परिवार से मिलने के लिए आया करते थे ।
कुछ ही समय में उनकी दोनों छोटी बेटियां नेहा और पूर्वी भी ब्याह करने लायक हो गई ,
राधेश्याम जी ने नेहा और पूर्वी की शादी एक साथ एक ही मंडप में कर दिए ।
चारों बेटियों की शादी के बाद राधेश्याम जी , कांति जी , और उनका इकलौता बेटा सोहन तीनों हंसी-खुशी रह रहे थे ।
एक दिन अचानक राधेश्याम जी को हार्ट अटैक आ गया और वह हमेशा के लिए सबको छोड़ कर चले गए ।
इस घटना से कांती जी को गहरा सदमा लगा , चारों बेटियों और सोहन का रो रो कर बुरा हाल था ।
कांति जी पर तो मानो दुखों का पहाड़ ही टूट पड़ा , जैसे तैसे उन्होंने खुद को संभाला और पति की अंतिम क्रिया करवाई ।
कुछ दिन बाद सभी मेहमान चले गए , बेटियां भी अपने घर चली गई , घर में कांति जी और छोटा सा सोहन ही थे ।
सोहन के लिए कांति जी ने अपने आप को सम्हाला , और सिलाई करके और अपने खेतों में काम करके अपना और सोहन का खर्चा निकालने लगी ।
बेटियां भी समय समय पर मदद करती रही , कांति जी ने सोहन की पढ़ाई को लेकर खूब मसक्कत की , लेकिन निराशा ही हाथ लगी , क्योंकि सोहन का पढ़ाई में मन नहीं लगता था ।
सभी के समझाने के बाद भी सोहन ने आठ तक पढ़कर स्कूल छोड़ दिया , फिर घर पर रहकर मां के साथ खेतों में काम करता ।
अब कांति जी बूढ़ी हो गई थी और सोहन शादी के लायक ,
कांति जी ने सोहन के विवाह के बारे में बात की ,
सोहन ने कहा ठीक है मां जैसा आप सोचें ।
अब समस्या थी किसी घर बैठे को कौन अपनी लड़की देगा , यह सब सुनकर सोहन एक दुकान पर काम करने लगा ।
कांति जी ने उसकी शादी अपने मायके के एक गरीब लड़की माधवी से करवा दी । वह माधवी को अपनी बेटी से ज्यादा प्यार करती थी , माधवी में उनकी जान बसती थी ।
कुछ दिन तक तो सब ठीक था। फिर बहु माधवी ने सोहन पर दबाव बनाया दिल्ली चलने के लिए ,
सोहन सीधा था वह पत्नी की बातों में आकर दिल्ली चला गया , उसकी किस्मत अच्छी थी वहां उसे एक दुकान पर काम मिल गया ।
अब माधवी भी साथ चलने की जिद करने लगी , विवश होकर सोहन माधवी को अपने साथ लेकर चला गया , बिना ये सोचे कि बूढ़ी मां अकेले कैसे रहेंगी ।
कुछ दिनों बाद सोहन और माधवी को बेटी हुई , लेकिन कांति जी की बूढ़ी आंखें तरस गई पोती को देखने के लिए ।
पोती होने की खबर सुनकर कांति जी बहुत खुश हुई , उन्होंने बेटे से घर आने के लिए भी कहा , लेकिन ठीक है देखता हूं कहकर सोहन ने टाल दिया ।
वह जब भी माधवी के पास फोन करतीं , माधवी उनसे बात नहीं करती , सिर्फ इसलिए कहीं कांति जी को भी दिल्ली न ले जाना पड़े ।
अकेलेपन की वजह से वह बहुत बीमार रहने लगी , बेटियां कांति जी को अपने पास ले आईं ।अब कांति जी बेटे,बहु और पोती की राह देखते हुए अपनी सांसे गिन रही हैं ।
जिस बेटे के लिए मैंने इतना किया आज उसी बेटे ने मुझे छोड़ दिया।
यह कहानी हमारे काफी नजदीक के रिलेशन की है यह सत्य घटना पर आधारित है । कोई गलती या त्रुटि हो तो उसके लिए क्षमा चाहती हूं लिखते लिखते मेरी आंखें भर आई,
आपकी समीक्षा का इंतजार है
सरगम भट्ट। स्वरचित मौलिक
गोमतीनगर लखनऊ
#बेटी हमारा स्वाभिमान