माँ ने पूछा है ?
‘ सुधाकर नहीं दिख रहे हैं तेरे प्रमोशन का इतना बड़ा फंक्शन और वही गायब ‘
जब दरवाजे पर सुधाकर की राह तकती माँ की नजर थक चुकी तब उनसे रहा नहीं गया था। और उनके इस दुखदाई सवाल ने ‘मेहुल’ को अन्दर तक छिल कर रख दिया है ।
माँ और बाबा शुरु से ही उसके इस तरह लिविंग में रहने के सख्त खिलाफ थे तभी तो मेहुल से सब नाता तोड़ बैठे हैं।
आज पूछा भी है तो कब ?
‘हम अब साथ नहीं रहते माँ … ‘
कहती हुई मेहुल की आवाज बहुत सम्भालने पर भी आवेग से लरज गयी थी।
जिसे सुन कर माँ की सवालिया नजर उसके चेहरे से होती हुई बाबा के असमय ही झुर्रियों से भर गये निरीह चेहरे पर जा टिकी थी ,
‘ अरे ऐसा कैसे हो सकता है सुना है वह इसी शहर के दूसरे किनारे बसे बड़े से फार्म हाउस की मालकिन के साथ… ‘
उफ्फ् …मेहुल के कान सुन्न हो गये …
जो घट चुका है, बाबा उसे बोलने में भी कतरा रहे हैं।
इधर प्रमोशन पार्टी अपने पूरे उठान पर चल रही है। डीजे , लाइट्स, खाना-पीना खुल कर डांस गाना , हो हल्ला , शोर-शराबा सभी कुछ तो है
हाथ में शैम्पेन के ग्लास ले कर मेहुल एक कोने में रखी कुर्सी पर बैठी अतीत में जा पहुँची है।
तब तीन बहनों के बीच की मेहुल अपनी प्रतिभा के बल पर विदेश में जॉव ले कर कितनी खुश थी।
माँ बाबा के लाख मना करने के बाद भी ,
‘ कि अकेली उतनी दूर कैसे जाने दूँ ?’
लेकिन मेहुल ने कब किसी की मानी थी।
उसकी जिद के आगे वे भी थक कर चुप हो गये थे ,
‘अकेली कहाँ जा रही हूँ माँ सुधाकर है ना मेरे साथ ‘ आत्मविश्वास से लबरेज़ मेहुल बोल उठी थी।
फिर बोर्डिंग पास , सिक्युरिटी चेक आदि से गुजरती हुई फ्लाइट पर उसे छोड़ने आए एअरपोर्ट पर माँ-बाबा के पैर छूने को झुकी मेहुल से माँ ने कहा था,
‘कितनी प्यारी लग रही है तू ‘
नजर उतार कर कान के पीछे काजल का टीका लगा कर दबी लेकिन कड़ी आवाज में फुसफुसा कर हिदायत दे दी थी,
‘ जैसी कोरी जा रही वैसी ही कोरी लौट कर आना मुझे कोई फिरंगी अपने घर के लिए नहीं पसंद है ,
‘ सुना है वहाँ की हवा में … ओपेन सेक्स की बयार बहती है “
एक पल को सहम गयी मेहुल थी अगले ही क्षण चहकती हुई ,
‘ देख लेना माँ, जैसी वन पीस जा रही हूँ वैसी ही वन पीस लौट कर आउंगी ‘
लंबी उसांस भरी मेहुल ने… फिर यह दो साल उसने किस तरह घुट-घुट कर गुजारे हैं ?
यह सब याद आते ही सिहर गयी…
यहाँ की खुली संस्कृति में ढ़लने के प्रयास में सुधाकर के साथ स्वीमिंग पूल में उतरी मेहुल उसकी सिगरेट से उन्मुक्त कश लगाती जैसा देश वैसा वेश की तर्ज पर उस दिन सुधाकर की आंख में अपने लिए प्रशंसा देख कर गर्वित हो उठी थी।
फिर बाद में बेतकल्लूफ हो कर जब सुधाकर ने वाईन की दो बोतलें निकाल नुमाइशी अंदाज से टेबल पर रखा
तब अभ्यासहीन !
झंझा की उस रात में जाम पर जाम चढ़ाती, नदी के दुर्बल तटबंध सी टूटी मेहुल के पास कोई विकल्प ही कहाँ बचा था ?
कुछ चीजें एक बार बिगड़ जाने के बाद कभी नहीं सुधरती ,
‘बिल्कुल फटे हुए दूध की तरह ‘ ।
इधर माँ बाबा के बार-बार उसके विवाह की रजामंदी के लिए फोन पर पूछे जाने से परेशान मेहुल…
‘ माँ आखिर आप क्या चाहती हैं।
मैं आपके बताए हुए अनजान रिश्ते के लिए हाँ कर दूँ ?’
‘ क्या कह रही है मेहुल ? फोटो भेज तो दिया है ?
‘हद करती हैं माँ बिना मिले और जाने इस तरह आपने उन्हें हाँ कर दी ?
‘ यह तो हद है अगर इतनी ही जल्दी है तो मेरी जगह छोटी प्रिया को मंडप में बैठा दें ‘ कहती हुई फोन काट दिया था।
मेहुल फोन पर अपनी ही रौ में बोली जा रही थी … बिना यह जाने हुए कि उधर रिसीवर माँ की जगह बाबा ने पकड़ रखा है।
इधर मेहुल ने फोन काटा और उधर बाबा को पक्षाघात लगा था।
लेकिन यह जानने की फुर्सत मेहुल को कहाँ है।
वह त़ो सुधाकर के साथ ‘ लिविंग रिलेशन’ में रहती हुई प्रमोशन दर प्रमोशन पा कर खुश है।
शादी के नाम पर सुधाकर अक्सर टाल जाते हैं।
वैसे जल्दी मेहुल को भी कहाँ थी ?
वह हाई एक्सक्यूटिव की पोस्ट पर पहुँच कर सुधाकर के साथ माँ -बाबा के आशीर्वाद लेना चाहती है।
पर क्या सच हो पाना संभव हो पाया ?
आम मर्द की तरह सुधाकर का मन उससे अघा चला था। वह अक्सर उसे फ्लैट में अकेला छोड़ कर दो तीन दिनों तक गायब हो जाता पूछने पर उसे चुंबनों से भर देता।
पहले तो कभी उसे ऐसा महसूस नहीं हुआ है,
‘ कि अब कभी कुछ ठीक नहीं हो पाएगा एक बेनाम डर उसके भीतर घर करने लगा है ‘
उसने रेत पर घरौंदा बनाने की कोशिश की थी जब रिश्ते का आधार ही कमजोर है तब घर कैसे मजबूत होगा ?
अब उसे सुधाकर के साथ बिस्तर पर किसी और के साथ होने जैसा महसूस होने लगा है।
सुधाकर की कलीग मोना का बार-बार फोन एवं मेसेज आते रहना उसे उलझनों में बाँधने लगा है।
अकेले रात-रात भर नींद नहीं आती है उसे वह सोचने लगी है ,
‘ मैं यह कैसे भूल गयी थी ?
कि बंधनहीन प्रेम की ऐक्सपाएरी डेट भी होती है ? ‘
अब कम से कम मेरी वापसी का रास्ता नजर नहीं आ रहा है।
माँ-बाबा ने समाज में बदनामी के डर से पहले ही महज औपचारिक रिश्ता रखा है।
जिन्दगी से थकी हारी मेहुल के कान में रात भर यह शब्द गूंजते रहे ,
‘ तुम किसी चीज को पकड़ कर क्यों बैठ जाती हो मेहुल हर रिश्ते में चेंज होते रहना चाहिए ,
‘ यू नो!
चेंज इन एवरी थिंग इज माई लाईफ पॉलिसी ‘ कहता हुआ सुधाकर निकल गया था।
रात भर की बेचैनी के बाद अलसुबह ही उस विशाल फार्म हाउस के गेट को खोलने के लिए आगे बढ़े मेहुल के हाथ ठिठक कर रह गये थे …
अन्दर से सुधाकर और मोना की मिलीजुली खिलखिलाकर हँसने की आवाज से उसके उठे कदम वापसी के लिए मुड़ चुके थे।
तभी कंधे पर माँ के कमजोर हांथों की थपथपाहट से चौंक गई है मेहुल।
डीजे की गर्जना कर रही म्यूजिक के भयंकर शोर कब की बंद हो चुकी है।
अपने में खोई मेहुल को पता ही नहीं चल पाया है।
सारे मेहमान एक-एक कर विदा हो चुके हैं।
शायद माँ-बाबा ने ही उन सबों को समझा-बुझा कर वापस विदा कर दिया था,
‘चलो मेहुल अन्दर सोने चलो ठंड बढ़ती जा रही है कल सुबह जल्दी उठना भी तो है हमें ‘
कहती हुई टेबल पर रखे शैम्पन के ग्लास को दूर फेंक दिया है।
मानो अपनी बेटी की ‘उतरन’ बनी हुई जिन्दगी को हर बुरी बला से बचाना चाह रही हैं।
ओ हाँ … मेहुल को याद आया ,
‘ कल सुबह नौ बजे माँ -बाबा की रिटर्निंग फ्लाइट है कल से फिर वही पहले वाली रूटीन शुरु हो जाएगी ‘
‘ ‘मेहुल’ का अर्थात मेरा फैला आँचल अब तक खाली का खाली ही रहा कुछ भी कहाँ बचा है ?
सिर्फ़ सूनी रातें, उचाट- उदास दिन और माएके के बंद दरवाजे के सिवाय ‘
प्रिय पाठकों,
अब आप बताएं हमारी सामाजिक व्यवस्था में इस नयी ( कु) प्रथा ‘लिविंग ‘ के नया कॉन्सेप्ट कितना सक्सेस फुल होगा।
यह उचित है अथवा अनुचित ?
इसका फैसला आप पर छोड़ती हूँ
सीमा वर्मा /नोएडा