भगवान प्लीज मुझे बेटी देना

मेरे पापा रेलवे में नौकरी करते थे इस वजह से उनका ट्रांसफर हर 3 साल पर भारत के किसी न किसी शहर में हो जाता था.  इस बार मेरे पापा का ट्रांसफर पश्चिम बंगाल के खड़गपुर नामक शहर में हुआ था। हम खड़गपुर के रेलवे कॉलोनी में शिफ्ट हो गए थे।  मेरा परिवार ज्यादा बड़ा नहीं था मेरे परिवार में मैं और मेरा एक छोटा भाई और मम्मी-पापा ही थे। दादा-दादी गांव में रहते थे।

हमारे  फ्लैट के बगल में  मिश्रा जी का परिवार रहता था मिश्रा जी के तीन बेटे और एक बेटी थी।  सब की शादी हो चुकी थी। घर में अकेले मिश्रा जी कमाने वाले थे। बेटों तीनो अभी भी बेरोजगार थे।  तीनों बेटों की शादी हो चुकी थी इसलिए घर में खर्चा भी बढ़ गया था।

मिश्रा जी  अपने तीनों बेटों को रोजाना डांटते रहते थे।  तीनों की शादी हो गई फिर भी कब अक्ल आएगी तुम्हें।  कब कमाओगे ? तीनों की बीवियाँ भी आपस में खूब लड़ा करती थी। ऐसा लगता था मिश्रा जी का घर।  घर नहीं कोई कुश्ती का अखाड़ा हो। आए दिन उनके घर से लड़ाई की आवाज आती ही रहती थी।



धीरे-धीरे समय के साथ मिश्रा जी के तीनों बेटे कमाने लगे और जैसे-जैसे कमाना शुरू किया सब वहां से अलग किराए का मकान लेकर रहने लगे बस मिश्रा और मिश्राइन अकेले बच गए।  मिश्रा जी हमारे जस्ट बगल में ही रहते थे इस वजह से हमारी उनसे दोस्ती हो गई।

मिश्रा जी के बेटे अब  तो महीने में कभी-कभार ही  मिलने आते थे लेकिन उनकी बेटी जो कि उसी शहर में उसका ससुराल था हर संडे को मिलने जरूर आती थी।  मिश्रा जी के बेटू को देखकर तो मैंने मन बना लिया था कि भगवान 3 बेटे देने से क्या फायदा जो मां बाप के बुढ़ापे को का सहारा ही ना बने और बेटी एक है फिर भी हर संडे मिलने आती है।   मैं तो भगवान से यही प्रार्थना करती थी कि भगवान जब मेरी शादी होगा तो मुझे सबसे पहले बेटी ही देना बेटा चाहे दो या ना दो।

खड़गपुर से ही मैंने ग्रेजुएशन कंप्लीट की और उसके बाद ही दादा दादी ने गांव में ही एक लड़के से जो कि सरकारी स्कूल में शिक्षक था मेरी शादी तय कर दी थी।   कुछ दिनों की छुट्टी लेकर पापा ने हम सब को घर ले गए। क्योंकि लड़के वाले मुझे देखने आने वाले थे। देखने में मैं ठीक ठाक ही थी मुझे यकीन था कि इतनी बुरी तो थी नहीं जो कोई मुझे पसंद नहीं करेगा।  

शादी ठीक होने के 1 साल बाद मेरी शादी हो गई और उसी साल में मां भी बन गई।  वैसे तो मैं अभी इतना जल्दी मां बनना नहीं चाहती थी लेकिन जब जांच करवाया तो पता चला कि मैं मां बनने वाली हूं।  फिर तो अपने अंदर के जान को बाहर लाना ही था। और उसी दिन से मैं भगवान से प्रार्थना करने लगी कि भगवान मुझे बेटी ही देना।

घर में मैंने पोस्टर भी लड़कियों के लगाने शुरू कर दिए थे और अगर कोई खिलौना भी खरीद कर लाती थी तो वह भी लड़कियों वाली।  अगर कोई मुझे आशीर्वाद देता था “पुत्रवती भव:” तो मैं यही कहती थी प्लीज “पुत्रवती नहीं “पुत्रीवती भव:” कहिए’। सब मुझे देख कर हंसा करते थे।  यह कैसी औरत है हर कोई सबसे पहले बेटा ही चाहता है और यह है कि बेटी चाहती है।



लेकिन मेरी सास  बेटा होने की उम्मीद लगाए हुई थी जैसे कि हर सास करती है पता नहीं लड़कियों से इतनी नफरत क्यों।  जबकि खुद औरतें लड़की ही होती हैं। मेरी और सास में एक कंपटीशन का माहौल हो गया था मैं पूरे घर को लड़कियों की तरह सजा दी थी और सारा सामान लड़कियों वाला खरीदती थी और मेरी सासू मां घर में लड़कों के पोस्टर लगा लगाई थी और वह भी लड़कों वाले खिलौने खरीद कर लाती थी।

एक दिन मैंने अपने पति से पूछा आप बताइए आप क्या चाहते हैं।   मेरे पति ने बड़े प्यार से बोला लड़का हो या लड़की क्या फर्क पड़ता है आजकल लड़कियां लड़कों से  कम थोड़े है भगवान जो भी दे हम उसे अच्छे से पढ़ाएंगे लिखाएंगे। मुझे इससे फर्क नहीं पड़ता है कि वह लड़का होगा या लड़की।

देखते-देखते 9 महीने कब बीत गए मुझे पता भी नहीं चला और मैं हॉस्पिटल में भर्ती हो गई उसी रात मैंने बेबी को जन्म दिया। नर्स आते ही सबसे पहले मैंने सिस्टर से पूछा मुझे गर्ल्स बेबी हुई है या ब्वॉय बेबी।  नर्स ने बोला गर्ल्स। सच में मेरी खुशी का ठिकाना ना रहा। ऐसा लग रहा था भगवान ने मेरी मुरादे पूरी कर दी हो मैंने तो उसी दिन ठान ली कि मैं हॉस्पिटल से जाते ही घर के आगे भंडारा करवाऊंगी।

तभी मेरी सास मेरे बेड के पास आई और उन्होंने मेरा माथा चूम लिया।  और कहा बहु आखिर तुम जीती गई मैं हार गई। मुझे तो लगा था कि बेटी पैदा हो गया तो सास मुझसे नाराज होंगी लेकिन उन्होंने बिल्कुल भी नाराजगी नहीं जाहिर की।  दो-तीन दिनों बाद हम हॉस्पिटल से घर पहुंच गए थे। मेरी सासू मां मेरी बेटी का खूब प्यार करती थी मुझे तो कुछ करना ही नहीं पड़ता था। यह सब कुछ मेरे कल्पना से परे था मुझे लगता था कि बेटी पैदा हो जाएगी तो  मेरी सास शायद उसको छुएंगी भी नहीं। मैंने एक दिन अपनी सासू मां से पूछ ही लिया। मम्मी जी आपको तकलीफ तो हुआ ही होगा बेटी पैदा हुई होगी तो।



मेरी सास ने कहा बहू वह तो मैं तुम्हें चिड़ाने के लिए ऐसा करती थी।  मैं भी शुरू से ही बेटी ही चाहती थी क्योंकि मेरी कोई भी बेटी नहीं थी।  पता नहीं लोग क्यों बेटा बेटा रटते रहते हैं। धीरे धीरे मेरी बेटी अपनी दादी की लाडली बन गई थी।  वह तो मेरे से ज्यादा अपने दादी के साथ ही रहती थी। दादी और पोती का प्यार देखकर ऐसा लगता था कि हर घर में लोग अपने पोतियों को ऐसे ही प्यार करें तो कितना अच्छा होता।

मैंने अपनी बेटी का नाम प्यार से  टीना रखा था। लेकिन जब उसका कुंडली बनवाया गया तो तो पंडित जी ने बताया कि इसका नाम अ अक्षर से होना चाहिए।  फिर हमने अपनी बेटी का नाम है अ से अयांशी रख दिया।

अयांशी  और उसकी दादी का प्यार देखने ही बनता था। अयांशी  बड़ी होकर इंजीनियर बनना चाहती थी तो हमने अयांशी का कोटा में एक कोचिंग में एडमिशन करवा दिया था हम सोच रहे थे अयांशी को एक पीजी में रखवा दें।

लेकिनअयांशी   की दादी ने साफ मना कर दिया बोली मैं अयांशी  के साथ रहूँगी। फिर क्या था हमने कोटा में एक छोटा सा फ्लैट किराए पर ले लिया और अयांशी  और उसके दादी एक साथ रहने लगे।



अयांशी   बड़ी होकर एक एमएनसी कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर बन गई थी।  बेंगलुरु में रहने लगी थी। लेकिन वहां भी वह अपने दादी को अपने साथ रखना नहीं भूली।  जो भी देखता दादी पोती की रिश्ते की तारीफ करता नहीं भूलता। अयांशी के दादी की आखिरी इच्छा थी कि मैं अपने जीते जी अपनी पोती की शादी देखना चाहती हूँ।  फिर क्या था हमने बहुत कम उम्र में ही अयांशी की शादी कर दी। शादी के कुछ दिनों बाद ही मेरी सास इस दुनिया से विदा होकर स्वर्ग सिधार गई।

अयांशी बेंगलुरु रहती है लेकिन वह हमारा ख्याल इतना रखती है कि हमें कभी भी एक लड़के की कमी महसूस नहीं हुई।  किस्मत से हमारा दामाद भी बहुत अच्छा था। दोस्तों कहा जाता है कि अगर आप का दामाद अच्छा मिल जाए तो फिर बेटी तो आपकी है ही और एक बेटे की कमी भी आपकी पूरी हो जाती है।  हमारा दामाद कई बार बोलता था कि आप लोग अब आकर बेंगलुरु में ही रहने लग जाओ। हम बोलते थे बेटा जब तक हाथ पैर चलता है तब तक तो हम यहीं रहेंगे आगे की आगे देखेंगे।

दोस्तों अगर आप अपनी बेटी को भी पढ़ा लिखाकर लायक बनाओगे तो हमें नहीं लगता है कि फिर बेटा और बेटी में कोई अंतर करने वाली बात है।  इसलिए आज के जमाने में शिक्षा बहुत जरूरी है आप अपनी बेटी को कुछ दो या ना दो उसको शिक्षा जरूर दो

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