गुरूजी – अनुज सारस्वत

“चल चिकने(अमित)ये पीछे क्लास की खिड़की दूसरे मोहल्ले में खुलती है,इंटरवल में तू अपना और मेरा बैग नीचे फेंक दियो,मैं पीछे पहुंच जाऊंगा,और बैग उठा लूंगा फिर तू आराम से खाली हाथ बाहर आ जइयो और चलेंगे सिनेमा “राजा बाबू” लगी है पायल टाकीज में वहाँ मुंशी (अशोक) टिकट ले कर तैयार होगा”

सौरभ ने अमित से कहा।

इंटरवल हुआ योजनानुसार बैग फेंके गये सौरभ ने पीछे के मोहल्ले में जाकर उठाये और इधर अमित हाथ हिलाता हुआ जा रहा था तभी अमित को गन्ने की गुलेरी(गन्ने  के टुकड़े के छोटे छोटे टुकड़े काला नमक सहित) का ठेला दिख गया।वो उसका मनपसंद था।उसने एक दोना गुलेरी लेकर मस्ती से खाता हुआ चला जा रहा था जिस सेंटर प्वाइंट पर मिलने की बात हुई थी वहीं दोनो मिले।अपने अपने बैग कंधे पर लटकाये गुलेरी चबाये मदमस्त हाथी की तरह (मिशन सफल होने की खुशी जो थी )चल दिये।

तभी दोनों के कानों पर वज्रपात हुआ पीछे से तडाक।

देखा तो स्कूल के प्राचार्य जो उनके हिंदी के अध्यापक भी थे।दोनों की कान पर कवर ड्राइव मार चुके थे और कान को चाबी की तरह ऐंठ कर बोले।

“धूर्तों उदंडियों विद्यालय में उत्पात मचाने आते हो,और छात्रों को भी ऐसे भागने के लिए प्रेरित करते हो चलो अब ऐसा दंड देंगे कि अंग अंग कीर्तन करेगा और आगे कभी यह दुस्साहस नही करोगे”


अमित की चीख निकली

“अईईईईईई प्राचार्य जी शमा कर दो अब नही करेंगें ऐसा”

अब तो प्राचार्य जी की क्रोधाग्नि प्रज्ज्वलित हो उठी बोले

“ये शमा क्या होता है ,गलत उच्चारण करता है क्षमा को अब तुझे अधिक दंड मिलेगा यही शिक्षा मिली है,ऐसे ही घुड़दौड करेगा तो क्या सीखेगा “

दोनों के सर के कान पकड़ते हुए प्राचार्य जी ले गये। और हिंदी की किताब हाथ में थमाते हुये बोले आज से हर दिन दो घंटे कक्षा 6 से लेकर कक्षा 8 तक के बच्चों की कक्षा में जाकर अध्याय पाठ करोगे तुम दोनों।और अध्यापक के सामने अगर गलती करी तो समझ जाओ।हिंदी में बिंदी दोनो की गुम थी यह तो उन्हें मार से अधिक कष्ट दे गया।पर मरते क्या ना करते शुरू किये गलत गलत बोलने पर अध्यापक मेहंदी की शंटी(छड़ी) उनके शरीर के सबसे उभरे हुये भाग(पीछे) पर रसीद कर देते।

सौरभ ने लोमड़ी युक्ति निकाली और उस बीमारी का बहाना मारकर गायब हो लिया अमित अकेला पिसा।

यह सब अमित के दिमाग में चल ही रहा था कि एयरहोस्टेस की आवाज ने उसका ध्यान भंग किया सर प्लीज कुर्सी के पेटी बांध लीजिए दिल्ली आने वाला है।

अमित ने शिकागो से दिल्ली पहुंच कर अपने शहर के लिए टैक्सी की और चल दिया।शहर पहुंच कर पहले अपने घर नही जाकर प्राचार्य जी के घर गया घंटी बजाई तो किसी नौकर ने दरवाजा खोला अमित ने प्राचार्य जी का नाम बोला तो वो एक कमरे में ले गया वहाँ प्राचार्य जी जो अब बहुत वृद्ध हो चुके थे शरीर पर फालिश का असर था जिससे मुँह टेढ़ा हो चुका था शरीर एक दम सूखी हड्डी यह देखकर अमित की आँखो में से आँसू निकल गये और रोते हुए बोला।


“प्राचार्य जी आज मैं जो भी कुछ हूँ आपकी वजह से हूँ ,आज मैं जाना माना लेखक हूँ,कहानियाँ सुनाता भी हूँ हिंदी में,अगर उस दिन आप वो दंड नही देते तो मेरी हिंदी इतनी अच्छी नही होती पर आप अब ऐसे,मैने आपके लिए किताब लिखी है उसीका लोकार्पण आपके हाथों कराने के लिए आया था सरप्राइज देना था आपको “

फिर नौकर ने बताया कि शादी नही की थी प्राचार्य जी ने आजीवन बिना शुल्क बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते थे रिटायर्मेंट के बाद।

अमित के आँसू नही रूक रहे थे फिर प्राचार्य जी ने कंपकपाता हाथ अमित के सिर पर रखा और किताब को छूने की कोशिश की किताब गिर गई कवर खुल गया किताब का नाम था “गुरूजी”और आँखो मे आँसू लिए मुस्कुराते रहे और हमेशा के लिए सो गये।

अमित के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई।वो रोता बिलखता रहा।अंतिम संस्कार भी उसीने किया।

एक बात उसे अभी तक चुभती है कि क्यों नही बीच में एक बार वो मिला।

-अनुज सारस्वत की कलम से

(गुरू दिवस विशेष)(समस्त गुरुओं को नमन)

(स्वरचित एवं मौलिक)

2 thoughts on “गुरूजी – अनुज सारस्वत”

  1. It is wonderful. The importance of GURU & their punishment/ discipline is understood only afterwards. Earlier we always feel like opposing them. SHAT SHAT NAMAN TO ALL GURUS.

    Reply

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!