मेरी बेटी मेरा गुरूर – ऋतु अग्रवाल

 नीलू रोज की तरह कोचिंग क्लास से वापस घर आ रही थी। शैलजा, प्रीति और नीलू बातों में इतनी मग्न थी कि उन्हें पता ही नहीं चला कि दो मोटर साइकिलों पर सवार कुछ लड़के उनका पीछा कर रहे हैं। थोड़ी देर में शैलजा और प्रीति अपने घर की ओर मुड़ गई और नीलू अकेली रह गई। पर यह कोई नई बात नहीं थी। ऐसा तो रोज ही होता था। बस आज फर्क इतना था कि थोड़ी देर पहले ही बारिश रुकने की वजह से सड़कें कुछ खाली खाली थी। लोगों की आवाजाही लगभग बंद ही थी।

   अचानक  एक सुनसान गली को पार करते समय चार हाथों ने नीलू को झटके से अपनी ओर खींच लिया और एक हाथ नीलू के मुँह पर इस तरह आया कि उसकी आवाज तक ना निकल सकी। नीलू हाथ पाँव मारती रही पर उन मर्दाना जकड़नों से वह छूट न पाई।वह अजनबी हाथ उसे एक सुनसान मकान में खींच ले गए। उस मकान में पहुँचकर उन्होंने नीलू को छोड़ दिया। नीलू ने स्वयं को संयत किया और उस हल्के से अँधेरे में देखने का प्रयास किया।

“रमित!आशु! पूरब!निखिल! तुम चारों……” नीलू की चीख निकल गई। यह तो उसके साथ कोचिंग में पढ़ते थे, “यह क्या बदतमीजी है! तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ऐसी हरकत करने की?”नीलू ने जल्दी से बाहर निकलने की कोशिश की।


  “रूकिए!नीलू मैडम, ऐसे कैसे चली जाएँगी आप? पहले हिसाब चुकता कर दीजिए,फिर चली जाना।”  कहकर रमित ने नीलू को जोर का धक्का मारा और नीलू नीचे गिर पड़ी। पूरब ने दरवाजा बंद कर दिया और वहाँ अंधेरा छा गया। उसके बाद कुछ देर नीलू की घुटी घुटी चीखें और नीलू नीम बेहोशी में डूबती चली गई।

     जब नीलू को होश आया तो दर्द के मारे उसका रोम रोम कराह रहा था। उसने धीरे से आँखें खोली तो सब तरफ अँधेरा ही अँधेरा था और दरवाजा खुला हुआ था। बाहर नीम अँधेरा पसरा हुआ था। बस कहीं कहीं से प्रकाश की एक महीन रेखा दिख रही थी।

   नीलू ने खुद को सँभाला और दरवाजे के बाहर देखा तो रात काफी गहरा चुकी थी। ज्यादातर दरवाजे बंद थे।बस स्ट्रीट लाइट जल रही थी । नीलू बेतहाशा घर की तरफ दौड़ पड़ी।ना जाने पापा मम्मी का क्या हाल हो रहा होगा? घर के दरवाजे पर पहुँचकर नीलू ने दरवाजा खटखटाया और वही भरभरा कर गिर पड़ी।


दरवाजा खुला। सुभद्रा की चीख निकल गई।

” मेरी बच्ची! नीलू के पापा!जल्दी आओ।” उन्होंने नीलू को अपने अंक में भर लिया।

प्रदीप जी और छोटा केतन भागे भागे आए।प्रदीप जी ने नीलू को उठाया और कमरे में ले जाकर बिस्तर पर लिटा दिया। न जाने कितने घंटे बाद नीलू को होश आया। होश में आते ही नीलू फूट फूट कर रो पड़ी।

  “मम्मी……”नीलू सुभद्रा से लिपट गयी।

“नहीं! मेरी बच्ची,कुछ मत बोल। ” सुभद्रा जी प्यार से नीलू की पीठ सहलाने लगी।

   नीलू की हालत सब हालात बयां कर रही थी।

  “नीलू! उठो! हमें बिना देर किए पुलिस स्टेशन चलना है।” प्रदीप जी ने कहा।

“यह आप क्या कह रहे हैं?क्या बताओगे पुलिस में और लोगों से? हमारी बच्ची के साथ जो हुआ उसका ढिंढोरा पीटोगे। हमारी बच्ची कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं रहेगी।” सुभद्रा बोली।


  “मम्मी! मैं गंदी हो गई ।उन्होंने मुझे गंदा कर दिया।” कहकर नीलू रोने लगी।

   “बस! चुप!” प्रदीप जी दहाड़े,”कोई गंदा नहीं हुआ है और ना ही हमें मुँह छिपाने की जरूरत है। मेरी बच्ची मुँह तो वह छुपाएँगे जिन्होंने यह गलत काम किया है। बस तू इतना बता दे कि कौन थे वो? क्या तू उन्हें पहचानती है?”

    “पापा! वो मेरी कोचिंग क्लास में पढ़ने वाले रमित, पूरब,आशु और निखिल, उन चारों ने……” नीलू की हिचकी बँध गई।

   “बस आगे कुछ कहने की जरूरत नहीं, अब देर मत करो।” प्रदीप जी बोले।

   प्रदीप जी नीलू और सुभद्रा को लेकर पुलिस स्टेशन पहुँचे और उन चारों के खिलाफ f.i.r. लिखवाई। जल्दी ही धरपकड़ शुरू हो गई और उन चारों लड़कों को पुलिस ने धर दबोचा। उन चारों के शरीर पर पड़े निशानों, नीलू के बयान और पुलिस की ताबड़तोड़ पिटाई के सामने उन शोहदों ने जल्दी ही अपना गुनाह कुबूल कर लिया।

नीलू के साथ इस हरकत की जो वजह उन लड़कों ने बताई, वह बेहद शर्मनाक और हैरान कर देने वाली थी,”नीलू क्लास की सबसे इंटेलिजेंट लड़की थी जिसकी वजह से सर बार-बार उसका उदाहरण देकर हमें नीचा दिखाया करते थे। नीलू के साथ ऐसी हरकत करके हम उसका मनोबल तोड़ देना चाहते थे । आखिर वह एक लड़की है, वह भला लड़कों से आगे कैसे बढ़ सकती है? पर हमें नहीं पता था कि बात पुलिस तक जाएगी।”


   उन लड़कों के परिवारजनों के सिर शर्म से झुके हुए थे।

  अगले दिन प्रेस वार्ता में नीलू के पापा पत्रकारों से मुखातिब थे,” हर एक लड़की अपने माँ बाप का स्वाभिमान होती है। किसी को हक नहीं कि वह किसी लड़की के साथ खिलवाड़ करे। मेरी बेटी के साथ जो हुआ, उसमें उसकी कोई गलती नहीं और जिनकी गलती है उन्हें अपनी सजा भुगतनी ही होगी। साथ ही हमें अपनी बच्चियों के साथ हुए ऐसे हादसों के खिलाफ लड़ना ही होगा ताकि हमारी बच्चियां अपना जीवन स्वाभिमान से जी सकें।”

पापा के चेहरे का तेज देखकर नीलू का आत्मविश्वास और स्वाभिमान लौट आए।

स्वरचित

ऋतु अग्रवाल

मेरठ

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!