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क्या बात है बहू ,जब हम तुम्हारे घर पहुंचे तो न तो तुम्हारी मम्मी हमें लिवाने आईं न ही उन्होंने हमारे पैर छुए।
ओह मम्मीजी! लिवाने तो इसलिए नहीं आ पाई होंगी कि साथ पापाजी भी थे न!अब वे अपने समधी से कहाँ बात करती हैं ?
आप कह रही हैं कि उन्होंने आपके पैर नहीं छुए ।तो मम्मीजी आपके पैर क्यों छूने थे मेरी मम्मी को?आप दोनों तो उम्र में करीब करीब बराबर ही हो।
सासूमाँ थोड़ा चिढ़ कर बोलीं ,बात उम्र की नहीं है।
बहू ने तुरन्त पूछा तो फिर!
अरे ये तो हमारे समाज में रिवाज़ है।
बहू ने कुछ न समझने का नाटक करते हुए पूछा ,अच्छा तो आप एक दूसरे के पैर छुएंगी?
सासूमाँ का चेहरा लाल भभुका हो गया था।
वो हम लड़केवाले हैं न! इसलिए तेरी मम्मी को हमारे पैर छूने चाहिए ।अबकी बार दादी सास ने मोर्चा सम्हालते हुए अपनी बात रखी।
बहू ने कहा ,माफ़ करना दादीजी और मम्मीजी ,मैं कुछ समझ नहीं पा रही हूँ।
क्या लड़कीवाले कम इज्जतदार होते हैं जो उन्हें ही पैर छूने चाहिए।
नहीं रे! ये तो बरसों से परम्परा चली आ रही है।
लड़की की माँ लड़के की माँ के पैर छूती है और उन्हें कुछ उपहार देती है।दादी ने बात को सम्हालते हुए कहा।
अब तक बहू अपने आप को तैयार कर चुकी थी।
बोली ,आप दोनों मुझे माफ़ करें।मेरी मम्मी पैर नही छुएंगी।अब वो दिन लद चुके हैं जब लड़की बिना पढ़ी लिखी होती थी और उसे गाय की तरह खूंटे से बांध दिया जाता था और चरणों मे झुक कर बेटी को निभाने की विनती की जाती थी।अब स्थितियां बदल गई हैं।आजकल की लड़कियां पढ़ी लिखी हैं ,आत्मनिर्भर हैं।अब हमें
इस सड़ी गली प्रथा को ख़त्म करना होगा।
हाँ ,दादीजी, आप उम्र में बड़ी हैं।आपके पैर अवश्य छूना चाहिए ताकि सबको आपका आशीर्वाद मिलता रहे।
सासूमाँ अत्यधिक नाराज़ थीं किन्तु कुछ न बोल पा रही थीं ।वहाँ से उठ कर जाने में ही भलाई समझी।
बहू के चेहरे पर एक स्मित मुस्कान थी।उसने एक गलत परंपरा को जड़ से उखाड़ फेंका था।
ज्योति अप्रतिम