हर माँ का यह सपना होता है कि वह अपनी नाजों से पाली बेटी का सोलह श्रृंगार करके उसे अपने जीवनसाथी के साथ विदा करे।
लिहाजा मैं भी इसकी अपवाद नहीं हूँ।
‘अनुराधा’ हमारी अर्थात मेरे और ‘अनुज वर्मा ‘ की इकलौती बिटिया है।
वह दिखने में जितनी खुशनुमा है।
बुद्धि कौशल में उससे भी दोगुना है।
वह बहुत ही साफ और सुंदर लहजे में बिना झिझक के हर किसी से बात कर लेने में सक्षम है।
लिहाजा सुंदर, सौम्य और मितभाषी अनुराधा घर-बाहर सबकी प्रिय बन गई है।
बारहंवी क्लास में ही उसने पूरे स्कूल तो क्या स्टेट टौपर बन कर अपने उज्जवल भविष्य की ओर कदम आगे बढ़ा दिए हैं।
मैं उसे देख-देख कर गर्व से फूली नहीं समाती और इतराती हुई उसके पिता से कहती,
“देखना, एक दिन इसके लिए मैं चाँद के टुकड़े जैसा दूल्हा ढ़ूढंगी”
और वे उलझन में भरे हुए मुझे देख कर सिर्फ मुस्कुरा भर देते है खैर…
उनकी हार्दिक इच्छा अनुराधा को पढ़ा- लिखा कर सुशिक्षित करने की है।
वे मन-प्राण से उसे डॉक्टर बनाना चाहते हैं।
बनाना तो मैं भी चाहती हूँ। लेकिन पहले उसे गुड़िया की भाँति सजी-धजी देखने की मेरी इच्छा ज्यादा बलवती थी।
बहरहाल…
दिन बीतने के लिए होते हैं, बीत रहे थे।
एक दिन हमारे कॉलनी में किसी के घर कोई हाथ देख कर भविष्यवक्ता करने वाले महानुभाव पधारे हुए थे।
उनकी भविष्यवाणी अकाट्य होती है ऐसी चर्चा होने लगी थी।
बस हमारी सारी परेशानी यंही से शुरु हो गई।
मैं ने भी यह सोच कर कि,
‘ लगे हाथ अनु की कुंडली भी दिखवा लेती हूँ अनु के साथ उनके घर पंहुच गई ‘
यों कि ऐसा नहीं था कि,
‘अनु सहज ही इस कारण से जिज्ञासा वश मेरे साथ चलने को तैयार हो गई थी ‘
‘ लेकिन वह मेरी बात अक्सरहां नहीं काटती है
सो उस दिन भी नहीं काट कर मेरी बात मान कर चुपचाप बिना किसी आरग्यूमेंट के मेरे साथ हो ली थी।
वहाँ जाने पर…
‘ बिटिया की कुंडली में तो घोर अमंगल है बहूरानी,
इसके वैधव्य योग के चलते इसे पतिसुख से वंचित होना पड़ेगा ‘
पंडित जी मुँह से सुन कर मेरा मन घोर अमंगल की आशंका से कांप उठा।
पंडित जी के पैर पकड़ते हुए,
” कोई उपाय बताइए महाराज, इसे दूर करने के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूँ”।
” शांत हो जाइए जज़मानी, हमारे पास में हर अमंगल का समाधान है”
‘ सर्वप्रथम इसका नाम बदल दीजिये ‘
‘ क्या कह रहे हैं आप इस उम्र में नाम बदल लूँ ‘
अनुराधा टोक पड़ी बीच में ही।
‘ नहीं तो फिर शनिवार के दिन प्रातःकाल में पीपल के पेड़ से इसके फेरे लगवा कर ग्रहशांति का पाठ करवाइये ‘
पंडित जी ने उसे पहली वाली युक्ति साफ नकारते हुए देख कर दूसरी युक्ति सुझाई।
‘ तुम्हें क्या हो गया है माँ ? ‘ अनुराधा हैरत में पड़ी थी।
इस बार मैं ने इशारे से उसे आंखें दिखा कर चुप करा दिया।
लेकिन ‘महोदय’ ने इन सब कर्मों में उसकी साफ अनिच्छा भांपते हुए
“तुम्हारी नास्तिकता का परिणाम तुम्हें ही भुगतना होगा बेटी, यह मंगल दोष किसी को नहीं छोड़ता ” ,
‘ सोच लो एक और आसान और सीधा रास्ता है,
‘ किसी बकरे से प्रतीकात्मक विवाह कर लो, यह तुम्हारे सुखी दामपत्य जीवन के लिए होगा ‘।
बरदाश्त से बाहर होती बात सुन पैर पटक कर अनुराधा,
‘ हद हो गई ये तो इन टाइप के ठग लोग तुम जैसे लोगों की ही ताक में रहते हैं ‘
‘ जरा सा डराया, ग्रहनक्षत्रों का डर दिखाया और फंसा लिया जाल में, माँ लेकिन मैं इनके चंगुल में नहीं फंसने वाली ‘
मेरी हर बात को इच्छा-अनिच्छा से स्वीकार कर लेने वाली अनु, इस बार बिल्कुल आपे से बाहर हो गई थी।
‘ मैं यह जाहिलों जैसे काम हरगिज नहीं करने वाली हूँ ।
अगर ये सब करने से अपशकुन मिट जाते ? ‘
‘ तब तो कंही किसी के साथ कोई अनहोनी ही नहीं घटती माँ ”
कहती हुई उठ सीधे बाहर बैठे अपने पिता के पास चली गयी और ढृढ़ स्वर में बोली,
” मैं जा रही हूँ पापा, आप मेरे साथ चल रहे हैं पापा या आप भी ममा की तरह ? ‘
बोल कर चुप हो गई।
रोष से उसकी आवाज काँप रही थी और बड़ी-बड़ी आंखें मोटे आंसुओं के सैलाब से भरे हुए।
मैं हक्की-बक्की सी हैरान खड़ी सोच रही थी कि,
‘ उसके भले की सोच आखिर मैं गलत कहाँ से हूँ ? ‘
अब उसके पापा के धैर्य का बाँध टूट गया था ।
अमूमन घर के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करने वाले अनुज ने बेटी की आंख के आँसू देख कर उग्र हो उठे…।
अगले ही पल मैंने देखा…
उसके दोनों कंधे से पकड़ कर उसे संभालते हुए सीढियों से उतर रहे हैं।
चलते-चलते मैं ने उन्हें बोलते सुना,
‘ मेरी बेटी मेरा स्वाभिमान है श्रीमती जी। तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई इसे इस तरह यहाँ लाने की ‘
फिर बेटी से बोलने लगे…
‘ आखिर तुम्हारी ममा ने मेरी बात नहीं मानी तुम्हें खींच कर ले ही आईं,
‘ लेकिन तुम मत घबराओ , ‘मैं हूँ ना ‘ जैसा तुम्हें अच्छा लगे और जो तुम चाहोगी वही होगा मेरी बिटिया रानी ‘
और फिर मैं ने देखा वो महोदय जी बात बिगड़ती देख अपनी पोथी- पत्रा समेटने में लग गये हैं।
और मैं … ?
उन पिता-पुत्री को पकड़ने के लिए उनके पीछे तेज-तेज कदमों से भाग रही हूँ।
सीमा वर्मा /नोएडा