बात उन दिनों की है जब मैं अपनी बहन पिंकी की नंद की शादी में गई थी। सबके लिए महीनों से तोहफे ले रखे थे
मैंने अपनी बहन के लिए बहुत सुंदर सा मोतियों का हार लिया था और उससे मेल खाती एक सुंदर सी साड़ी। उसकी सास उसकी नंद के लिए भी बहुत सुंदर सी साड़ी ली थी पर मोतियों का हार तो मैंने सिर्फ अपनी बहन के लिए ही लिया था। मेरी बहन उसे देखते ही खिल उठी और पूरे समय शादी में वही हार पहने रही।
मुझे एक बार कुछ अजीब सा भी लगा कहीं उसके ससुराल वाले यह ना सोचें कि अपनी बहन के हार के आगे तो इसने उनके दिए गहने नहीं पहने ।कहीं इसके वजह से उसके घर में कलेश ना हो जाए ।
मैंने उसे एक बार इशारा भी किया कि उसे तो शादी में दो-दो सेट चढ़े थे क्यों नहीं वह सब पहन लेती ,अच्छा नहीं लग रहा हर फंक्शन में यही मोतियों का सेट पहने घूम रही हो पर उसने जैसे मेरी बात अनसुनी कर दी ।उसने कहा दीदी यह सब तो मेरी हर ड्रेस से मैच कर रहा है और वह बाबा आदम के जमाने के सेट पहनने का मेरा दिल नही चाहता।
शादी हंसी खुशी निपट गई सभी लोग प्रसन्नता पूर्वक घर लौट गए लेकिन शादी के बाद पिंकी के घर का माहौल बहुत गमगीन था जो अक्सर लड़कियों की विदाई के बाद हो जाया करता है ।उसकी सास भी उदास थी । पिंकी भी मुंह बनाए अपने कमरे में बैठी थी। मैंने अपनी बहन से कहा कि जाओ सबके लिए चाय बना लो कुछ नाश्ता बना दो सब के साथ हंसो बोलो तब भी मेरी बहन वही बैठी रही ।
तभी अचानक उसने कहा दीदी तुमने सोचा नहीं मैंने असली सेट शादी में क्यों नहीं पहना! मेरी तो उत्सुकता थी लेकिन पूछने की मैंने जरूरत नहीं समझी थी। मैंने कहा हां बताओ कहीं तुम विपिन जी से किसी बात से गुस्सा तो नहीं हो गई।
पिंकी ने कहा देखो दीदी विपिन ने मुझे शॉपिंग के लिए ₹25000 दिए थे मैंने अपने लिए एक लहंगा खरीदा 2 साड़ियां और कुछ चूड़ियां सैंडल पर्स लिए। अब यह मुझसे कह रहे हैं कि ₹25000 तुमने कहा खर्च किये है मुझे लिखकर उसका हिसाब दो ! देखो दीदी हिसाब तो मुझसे होते नहीं है मैंने भी गुस्से में आकर कह दिया कि मैं भी शादी में असली गहने पहनूंगी ही नहीं और ना मैं हिसाब दूंगी । दीदी बताओ क्या कभी तुम जिजाजी को किसी रुपए का हिसाब देती हो।
मैं सोचकर चुप होकर बैठ गई मैं उसे कैसे बताती कि जो साड़ी गहना मैंने उसके लिए ,उसके सास के लिए लिए हैं उसके लिए मुझे कितना बली दान देना पड़ा है ।मुझे 3 महीने के लिए जेब खर्च नहीं मिलेगा इसी शर्त पर इन्होंने मुझे यह साड़ियां खरीदने दी है। उसकी नंद को जो सोने की गिन्नी मैंने उपहार स्वरूप दी है वह गिन्नी पिताजी की आखिरी निशानी थी मेरे पास।
मैंने कहा देखो पिंकी यह सब बातें तो हर घर में होती हैं और कई बार हमें अपने पति का साथ देने के लिए कई चीजों का बलिदान देना पड़ता है। तब पिंकी कहने लगी कि दीदी कहना आसान है पर करना मुश्किल। तुम तो इतने बड़े घर में ब्याही हो तुम्हें पैसे रुपए की कभी कमी नहीं रही है। तुम क्या जानो एक एक रुपए की कीमत क्या होती है !
तब मैं इस बात पर हंस दी- हां मेरी शादी एमबीए पढ़े-लिखे लड़के से हुई थी , कमाई शायद लाखों में थी लेकिन मैं कभी किसी से कह नहीं पाई कि मुझे हर एक रुपए का हिसाब अपने घर पर देना होता है ।कहने को तो मेरे पति ने मुझे कितने ही क्रेडिट कार्ड दे रखे हैं लेकिन उनमें से जैसे ही पैसा निकालो तुरंत मैसेज मेरे हस्बैंड को बहुत जाता है
और मुझे हर एक पैसे का हिसाब देना पड़ता है कि मैंने कब कहा किस लिए पैसे निकाले ।कपड़े तो मैं अपनी मर्जी के पहन ही नहीं सकती सारे कपड़े इन्ही के मर्जी के पहनने होते हैं ।
फिर पिंकी ने पूछा “क्यों दीदी क्या सोचने लगी तुमने कभी देखी है पैसे की तंगी जिजाजी तो तुम्हें सारे क्रेडिट कार्ड देकर रखते हैं तुम्हें क्या पता पाई पाई का हिसाब देना क्या होता है। मैं हंस दी मैंने कहा” पिंकी सब कुछ वैसा नहीं होता जैसा दिखाई देता है ।कहने को तो मेरे पास हीरे माणिक पन्ने के सेट हैं
लेकिन सब कुछ बैंक के लॉकर में बंद रहता है। कहीं आना जाना हो तो यह कहते हैं क्या जरूरत है तुम्हारे पास इतने अच्छे आर्टिफिशियल ज्वेलरी है तो असली क्या करोगी निकालकर! खतरा ही रहता है ।सालों बीत गए हैं मैंने अपने कोई गहने नहीं पहने पता नहीं वह गहने लॉकर में है भी या नहीं?
मैं तो यह भी नहीं जानती। लॉकर की चाबी इनके पास रहती हैं जो यह कभी भी मुझे देखने को भी नहीं देते। कहने को तो मैं बहुत बड़े घर में रहती हूं पर मैं अपने मन से एक साड़ी भी नहीं खरीद सकती, अपने पसंद के कपड़े पहनना क्या होता है मैं तो भूल चुकी हूं। अगर मैंने कभी अपने पसंद से कपड़े खरीद लिए
और वह पहन के इनके साथ चली गई तो रास्ते भर ताने सुनने को मिलते हैं कि तुमने कैसे बेकार से कपड़े पहने है इसका रंग अच्छा नहीं, ऐसी कढ़ाई आउटडेटिड है ,तुमने मेरी नाक कटा दी ।यह सब बातें सुनने से अच्छा लगता है कि जैसा यह कहते हैं वैसा ही करती रहूँ । मैं एक बड़े घर में कैद कैदी के समान हूं
जो अपने मन से कुछ भी पहन नहीं सकती ,घूम फिर नहीं सकती, खर्च नहीं कर सकती क्योंकि…. मैं तुम्हें कैसे समझाऊं कि मैं सोने के पिंजरे में कैद चिड़िया हूँ।
फिर मैंने पिंकी से कहा देखो पिंकी हिसाब हिसाब होता है फिर चाहे वह सब्ज़ी का हो ,घर गृहस्ती का ,या कपड़े का। अगर तुम हिसाब नहीं दोगी तो सब यही सोचेंगे कि तुमने पैसे जरूर इधर उधर किए हैं और तुम तो ऐसा नहीं सुनना चाहोगी। याद नहीं है पापा हमें क्या सिखाते थे ?
हां दीदी याद है कभी भी हमें पैसे के हिसाब किताब में झूठ नहीं बोलना चाहिए नहीं तो भगवान हमें उसकी सजा देंगे। बिल्कुल ठीक यही बात याद रखना पिंकी अगर हम बईमानी से किसी के पैसे लेंगे तो उसके चौगुने निकल जाएंगे ।चलो अपना मोबाइल खोलो और उसमें तुम मुझे बताती जाओ हर साड़ी का दाम पर्स का दाम ,
याद करो ,सब याद आ जाएगा वह बोलती गयी और मैं लिखती गई। कुल जमा ₹24500 का हिसाब मिल गया था जो कि देने लायक था। मैंने उससे कहा अभी हिसाब कागज पर लिखो और ठीक से विपिन जी को दे दो पैसे बहुत मेहनत से कमाए जाते हैं ।हमें हमेशा उसी कद्र करनी चाहिए ।यह मत समझना कि मैं बहुत बड़े घर में रही हूं
तो मैं पैसे का हिसाब किताब नहीं रखती। मैं पैसे के हिसाब किताब में तुमसे भी माहिर हूं समझी। यह बात बताते बताते अनायास ही मुझे एक बात ध्यान में आ गई जब मैंने भी ऐसे ही अपने पति को एक बार पैसे का हिसाब देने से मना कर दिया था तो किस तरह उन्होंने गुस्से में आकर मुझे गरीब घर की लड़की होने का ताना दिया था
और साथ ही कह दिया था कि मैं जरूर अपने मायके वालों को पैसे देती हूं !उसके बाद से मैंने अपनी खुद्दारी के लिए कभी भी इनके सामने हाथ नहीं फैलाया मैंने अपना मन मार लिया लेकिन कभी भी इनके पैसे पर अपना हक नहीं जमाया।
इस कहानी के जरिए मैं हर मां-बाप को एक बात कहना चाहती हूं कि अपनी बेटी के हाथ पीले करने से पहले उसे अपने पैरों पर खड़ा होने लायक अवश्य बनाइये।