“गोपी की माँ…जल्दी जल्दी काम समेटो मुझे बच्चों के स्कूल जाना है।”
“लेकिन आज तो छुट्टी है भाभी जी!”
“हाँ छुट्टी तो है ,पर फैंसी ड्रेस कॉमपिटीशन है…उसमें ही जाना है।”
“यह क्या होता है भाभी जी?”
“तू नहीं समझेगी, जाकर काम जल्दी से करो”
गोपी की माँ अपने काम में लग गई। वह पोछा लेकर कमरे में गई तो उसने दोनों बच्चों को तैयार होते देखा। वह पोछा छोड़ मुँह पर हाथ धरे आश्चर्य से देखने लगी।
“तू क्या देख रही है?”
“ओ माँ!…भाभी जी ये बच्चे तो बिल्कुल राधा-कृष्णा लग रहे हैं।”
“ये भगवान जी वाले कपड़े कहां से मिले?”
“बाजार से और कहां से।”पांच हजार के हैं समझी!
“जी भाभी जी समझ गई ।”
“हाँ इसीलिए तो मुझे इन्हें स्कूल लेकर जाना है वहां ऐसे ही बहुत सारे बच्चे आयेंगे।
“अच्छा तो मैं भी चलूँगी वहां।”
“तुम!…..तुम जाओगी वहां?”
“जी भाभी जी!”
“पागल हो क्या! वहां बाहर के लोगों को आने की मनाही है।”
“आप मुझे बाहर की कह रही हैं भाभी जी! मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि आप ऐसा कहेंगी….।”
वह रोती हुई कमरे से बाहर निकल गई। बच्चों ने उसकी आँखों में आंसू देख लिया था।
उन्होनें कहा-“माँ ले चलो ना ताई को। हम कह देंगे हमारी रिलेटिव हैं।”
“दिमाग खराब है तुम्हारा! वहां बड़े-बड़े घरों के लोग आयेंगे प्रोग्राम देखने। मैं क्या परिचय दूँगी इसका…बोलो!”
दोनों बच्चे बहुत प्यार करते थे ताई से। उन्हें माँ का बर्ताव अच्छा नहीं लगा। उन्होंने फैसला सूना दिया कि अगर ताई नहीं जाएगी तो वे भी नहीं जाएंगे।
बच्चे पापा के पास सिफारिश लेकर गए।
“पापा प्लीज ताई को स्कूल ले चलिए न उनको हमारा प्रोग्राम देखना है।”
उनसे इजाजत मिलते ही बच्चे खुश हो गए। वे दौड़ कर ताई के पास गए।
“ताई आप भी आना। और अपने मुन्ने को भी लाना वह बहुत खुश होगा…हमें राधा-कृष्णा बनते देखकर!”
गोपी की माँ अपने आंसूओं को पोछ कर हंसते हुए बोली – “हाँ ठीक है…मैं जरूर चलूँगी!
भाभी जी आप परेशान मत होना, मैं पिछे बैठ कर देख लूँगी।”
वह जल्दी जल्दी काम निपटाकर घर चली गई।
स्कूल में फंक्शन शुरू हो गया था। सभी बच्चे राधा और कृष्णा के ड्रेस में डांस कर रहे थे। एक तरफ चीफ़ गेस्ट को बैठाया गया था। निर्णय का समय आ गया था। सभी पैरेंट्स सांस थामे बैठे थे। पता नहीं किसका बच्चा प्रथम आयेगा?
तभी चीफ़ गेस्ट के इशारे पर दो टीचर दर्शकों के बीच जाकर एक बच्चे को उठाकर स्टेज पर लेकर आ गये।
“अरे माँ! यह तो गोपी है! अपनी ताई का मुन्ना! बच्चे उछल पड़े।
माइक पर गूंज रहा था…आज का कृष्णा इस बच्चे को चुना गया है। “
बधाई
हो बहन! बिना ताम-झाम के, बिना कीमती कॉस्टयूम के…सिर्फ फूलों से सजा हुआ नन्हा सा बाल गोपाल! सबने जोर से जयकारा लगाया
“जय श्री कृष्णा!”
पिछे लाउडस्पीकर में गाना बज रहा था….यशोदा का नंद लाला वृज का उजाला है मेरे लाल से तो सारा…..।
स्वरचित एवं मौलिक
डॉ. अनुपमा श्रीवास्तवा
मुजफ्फरपुर,बिहार