जादूगरनी – पुष्पा पाण्डेय

बड़ी मुश्किल से विवेक पार्थ को सुला पाया।  घंटों मशक्कत के बाद वह सो पाया। न जाने कैसे बबीता इसे दस मिनट में खेलते- खेलाते सुला देती थी। आज तीन दिन हो गये बबीता को अस्पताल में। सीढ़ियों से गिर पड़ी और बेहोशी की हालत में उसे अस्पताल ले जाना पड़ा। अब डेढ वर्षीय पार्थ की पूरी जिम्मेवारी विवेक पर आ गयी। बबीता अभी ठीक है, लेकिन डाॅक्टर की देख-रेख में है। क्या सब माएँ जादूगरनी होती है? सोचते-सोचते वह अपनी माँ की दुनिया में चला गया।—–

उस समय तो वह समझ ही नहीं पाता था कि माँ कब सोती है और कब उठती है। वह पल में छोटू को (जो मुझसे पाँच छोटा था) सुलाती रहती थी और पल में मेरे लिए हलुआ भी बनाकर ला देती थी। पापा का टिफिन और मेरा स्कूल बैग दोनों एक साथ तैयार मिलता था। दादी के लिए पूजा घर में भी फूल ,दूब सबकुछ तैयार कर दिया करती थी। मेरे सारे सवालों का जवाब माँ के पास होते थे, क्योंकि माँ जादू जानती थी। छोटू चाहे जितना भी रोता हो, मम्मी के पास आते ही खेलने लगता है। मैं अपने दोस्तों को बोला करता था – मेरी मम्मी जादू से सब काम कर लेती है। आज भी याद है जब एक बार छोटू बहुत बीमार था, दादी, मम्मी सभी रो रही थीं। एक बार दादी के साथ ही टेलिविजन पर आतिमताई  पिक्चर देखा था। उस फिल्म का प्रभाव बाल मानस पटल पर   गहरा था। मैं भी आतिमताई की तरह दादी का रंगीन आसनी के ऊपर खड़ा होकर भगवान जी से प्रार्थना कर रहा था कि “हे भगवान जी, मुझे भी परी के पास से छोटू के लिए दवाई लेने जाना है। मेरा आसनी क्यों नहीं उड़ रहा है। जादू कर दो भगवान जी।”

अंत में मैं रोने लगा तब दादी ने कहा था-

” बेटा, बच्चे के लिए माँ से बड़ा कोई जादूगर नहीं है। माँ सबसे बड़ी जादूगरनी है। तुम्हारी मम्मी छोटू को ठीक कर देगी।”

छोटू ठीक हो गया और दादी की बात पर मुहर लग गयी।  

तब भी माँ को जादूगरनी मानता था और आज भी, फर्क सिर्फ बदलते भाव का है। उस समय नासमझी में जादूगरनी  मानता था और अब समझकर मानता हूँ। तभी अस्पताल से फोन आया और विवेक माँ की जादुई दुनिया से बाहर निकला।

“विवेक जी, बबीता जी को आज केबिन में सिफ्ट किया जायेगा।”

उसकी हालत में काफी सुधार सुनकर विवेक खुश हो गया और पार्थ को काकी की निगरानी में छोड़ अस्पताल के लिए निकल पड़ा।

 

स्वरचित एवं मौलिक रचना

पुष्पा पाण्डेय 

राँची,झारखंड। 

 

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