हाँ छमिया ही तो थी , एक दिन गली के तीन चार कुत्ते उसके पीछे पड़ गए थे। घबरा कर भागते हुए घर के खुले गेट से आकर सोफे के नीचे आकर दुबक ही तो गई थी वह!
कुत्ते भौंकते हुए गेट तक आ पहुँचे थे ! माली ने डण्डे से उन्हें दूर तक खदेड़ दिया था, शची ने उसे प्यार से पुचकारा और हाथ फेरा तब भी वह डर से काँप रही थी। किसी ने उसके गले में घुंघरू बांध दिए थे, जो छम-छम बजते थे, तभी से बच्चे उसे छमिया बुलाने लगे!
दूध और रोटी खाकर वह दुम हिलाने लगी थी।
शची घर से कही बाहर भी जाती तो वह साये की तरह साथ हो लेती। बहुत बार निकट परिचित लोगों के सामने शर्मिंदा भी होना पड़ता छमिया के कारण उसे ! पर नतीजा शून्य !
वह साथ नही छोड़ती शची का ।
ऐसे ही शची उससे नजर बचाकर उस दिन ,माँ के घर मिलने गई थी। माँ के आग्रह पर वह खाना खाने के रुक गई ,बहनों के साथ गपशप में कब काफी रात हो गई, पता ही नही चला। वह निकली और कैब से घर की और चल दी। कुछ दूर जाकर कैब रुक गई थी, ड्राइवर ने पूछने पर बताया की , पहिया पंचर हो गया है ! रास्ता भी सुनसान लग रहा था , वह कैब से उतर कर तेज तेज कदमों से चल रही थी, सामने पान की गुमटी दिख रही थी, वह थोड़ी आश्वस्त हुई थी रोशनी देखकर!
लेकिन वहाँ खड़े कुछ मवाली किस्म के दो तीन लड़के कुछ अजीब तरह से घूर रहे थे।
शची मन ही मन सिहर उठी थी, उनकी कामुक दृष्टि को पढ़कर।
उसके कदमों की गति तेज हो गई थी, की तभी पीछे से उसे कदमों की आहट आने लगी, कुछ अश्लील वाक्य भी सुनाई दे रहे थे। शची की धड़कने बढ़ गई थी!
उसने पलट कर देखा, तीनों लड़के निर्लज्जता से उसकी और बढ़ रहे थे, वो लड़के फ़िकरे कसते हुए उसके पीछे ही लगे थे, तभी एक लड़के के हाथ में उसका दुपट्टा आ गया था, जिसे उसने खिच कर गिरा ही दिया था, शची दौड़ ही पड़ी थी, वह आने वाले खतरे को भांप चुकी थी!
वह जितना तेज भाग रही थी, लड़के फ़िकरे कसते उसके पास आते जा रहे थे, तभी अचानक !!
देवदुत् जैसे छमिया सामने आ खड़ी हुई थी !
वह कुछ रुकी! लड़के उसकी तरफ बेशर्मी से बढ़ रहे थे, की अचानक छमिया ! उन तीनों पर लपक कर भौंकते हुए टूट पड़ी। तीनों आवारा लड़कों को सम्हलने का मौका ही नही मिल पाया, छमिया ने उन्हें काट काट कर घायल कर दिया था । और शची सहमी सी सोच रही थी, की क्या उस दिन छमिया को कुत्तों से , उसने बचाया था ? या आज इन नर भेड़ियों से छमिया ने उसे जीवन दान दिया है !!
किरण केशरे