“बदलाव ”  – गोमती सिंह

——-बहुत दिनों से मेरी लेखनी थमी हुई थी, मैं समझ गई; लिख लिख कर नारी की गाथा कलम मेरी हैरान बड़ी थी।

     तब क्या हुआ, एक दिन देखा ख्वाबों में मैंने  बलखाई नागन की तरह फिर इक नारी राहों में खड़ी थी ।    

         ख़्वाबों में ही पूछा मैंने- ऐ माँ ! इस बार ये कैसी चोट लगी है , तू क्यों इतनी बलखाई हुई है ? आसमान की ओर देखते हुए बड़े ही बेरंग मुद्रा में कहा उस नारी नें- ” मेरी व्यथा का सिर्फ और सिर्फ एक कारण होता है, मेरे साथ मेरे पति का साथ नहीं होता ।”

         जब मुझे मेरे पति छोड़ जाते हैं ” इहलोक हो या परलोक  ” तब मैं बलखाती नागन या मझधार में पड़ी नैया बन जाती हूँ।

      फिर पूछा ख्वाबों में ही मैंने…..क्यों माँ! आगे की क्या सोचा है आपने  ? इस तरह बीच राह में खड़ी हो जानें से तो बात नहीं बनेगी!

       खुद के अंदर साहस बटोरते हुए कहा उनसे  ” माँ ! आपको तो आगे बढना ही होगा , सफर पूर्ण करना ही होगा। ” मैं भी विचार की मुद्रा में आई तब पाया मैंने कि इसके लिए तो पूरे समाज को बदलना होगा।  जब किसी स्त्री से पति का साथ छूट जाता है तब उसे उसके मूल अधिकारों से वंचित क्यों किया जाता है-: वैधव्यता के साथ नारी अपनें तन पर लाल , पीले वस्त्र धारण नहीं कर सकती , वह अमुक अमुक सब्जी भाजी नहीं ग्रहण कर सकती ,  वह किसी भी शुभ कार्य में आगे नहीं आ सकती। 

        समाज वालों को समझना चाहिए कि भगवान द्वारा दिए गए इस चोट को भूलने के लिए ही वह खुद को पुनः सजाने संवारने की शुरुआत करती है । और दोबारा जीवन जीने का प्रयास करती है।  मगर ऐसा करनें से समाज को यह मंजूर नहीं होता। उसके ऊपर लांछन लगाया जाता है ,उसे ताना दिया जाता है। 

       मैंने ख्वाबों में ही कदम मिलाकर कहा- चलो माँ ! आगे बढो , ऐसा कहकर उन्हें समझाने की कोशिश की ,पता है माँ! हम सभी नारियाँ किसी अपरिचित पुरूषों को भैया का ही संबोधन क्यों देते हैं,  क्योंकि हम पिता और पति के सिवाय हर अपरिचित पुरुष में भैया का ही स्वरूप देखते हैं।

     तो ऐ माँ ! आप नि:संकोच अपने समस्त अधिकारों के साथ आगे बढते हुए किसी के भी वक्तव्य की ज़रा सी भी परवाह नहीं करते हुए  मजबूत कदमों से आगे बढो और समाज में बदलाव का पैगाम देती जाओ ।

        ।।इति।।

          -गोमती सिंह

          छत्तीसगढ़

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