विश्वास घात – सरोजनी सक्सेना : Moral Stories in Hindi

रामकृष्ण और हरिकिशन एक छोटे से गांव में रहते हैं। दोनों ही खेत-खलिहान का काम करते हैं। सादा जीवन, उच्च विचार उनके अंदर कूट-कूट कर भरे थे। उनके विचारों से गांव के लोगों को पूर्ण संतुष्टि होती थी, जबकि दोनों किसान भाई अनपढ़ थे।

कई बार गांव के लोग उनकी बातों की खिल्ली उड़ाते, परंतु उलझे विचारों वाले लोग भी उनसे अच्छा ज्ञान प्राप्त करते। उनकी खेती की सब तारीफ करते। कहते – कितने मेहनती हैं, दिन-रात मेहनत करते हैं।

गांव का सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन भी अत्यंत मनोहारी है। यहां के निवासी स्वभाव से सरल, हृदय से भोले और मधुर भाषी हैं। छल-कपट से दूर रहकर शांत और खुशहाल जीवन जीते हैं। प्राकृतिक खुशियों से परिपूर्ण यह जीवन ऐसा लगता है जैसे चारों ओर खुशियां ही खुशियां हैं।

ग्रामवासी अधिकतर भाई-बंधु अटूट बंधन में बंधे होते हैं। एक-दूसरे के दुख-सुख में सदा साथ देते हैं। सामाजिक परंपराओं, विवाह-शादी में सब मिलकर हर तरह की मदद करते हैं। औरतें घर का कार्य भी सब मिलजुलकर करती हैं। ग्रामीण जीवन परिश्रम का प्रतीक है।

रामकिशन-हरिकिशन किसान होने के साथ-साथ परिवारों में भाईचारे का नाता रखते थे। दोनों की पत्नियां भी आपस में मिलनसार थीं। रामकिशन का एक बेटा था। हरिकिशन के बच्चे नहीं थे। गोपी को दोनों परिवार के लोग बहुत प्यार करते थे। अब गोपी बड़ा हो गया और शहर में पढ़ाई करने चला गया।

हल्का उजाला होते ही किसान भाई अपना-अपना हल कंधे पर रखकर, बैलों के गले में घुंघरू की मधुर ध्वनि सुनते हुए खेतों की ओर निकल पड़ते। ठंडी-ठंडी हवा, कोयल की कूक की सुरीली आवाज मन को हर्षित करती। चारों तरफ हरियाली देखकर मन करता – यही स्वर्ग है। सच ही कहा है कवि गोपाल सिंह ने –

“नीले नभ में बादल कल, हरियाली में सरसों पीली,
शहरों को गोदी में लेकर चली गांव की डगर नुकीली।”

दोनों परिवारों को देखकर ऐसा नहीं लगता था कि वे दो हैं, बल्कि एक ही परिवार हैं। उनको देखकर गांव वालों को अपनापन का अनुभव होता था। परंतु कई लोग गांव में ऐसे भी थे, जो उन्हें देखकर ईर्ष्या करते थे। उनमें एक बुजुर्ग आदमी कालूराम थे, जो रामकिशन के पिताजी के परिचित थे। हम सब बच्चे उन्हें कालू चाचा कहते थे।

गोपी बड़ा हो गया। उसकी शादी के लिए रिश्ते आने लगे। रजनी नाम की लड़की से गोपी की शादी तय कर दी गई। पूरे गांव को आमंत्रण दिया गया। पूरे गांव में खुशियां ही खुशियां छा गईं। रजनी बहुत ही सुंदर, सरल स्वभाव और हंसमुख लड़की थी। वह भी दोनों परिवार वालों को प्रसन्नता और आदर भाव से देखती थी।

गांव की जीवनशैली बहुत ही प्यारी और मन मोहने वाली थी। मानो प्रकृति के हरे-भरे खेतों में झूमती हरियाली, बरसता सावन, खुली हवा के झोंके और प्रदूषण से मुक्त रहन-सहन – ऐसा प्रतीत होता मानो चारों तरफ खुशहाली का साम्राज्य हो।

बहू रजनी, जो छोटे शहर की लड़की थी, उसका मन पूरी तरह अपने परिवार और गांव के रमणीक वातावरण में रम गया। तीज-त्योहार पर पूरा गांव भाईचारे के अटूट बंधन में बंधा होता।

अब होली आने वाली थी। घर-घर में पकवान बनने शुरू हो गए थे। महिलाएं मिलजुलकर पकवान बनाने में मस्त रहतीं और साथ ही गीतों की लहरियां गूंजती रहतीं। पता ही नहीं चलता था कि काम भी हो रहा है। त्योहार पर ग्रामवासियों की मस्ती देखने योग्य होती थी।

गांव का जीवन परिश्रम का प्रतीक है। ग्रामीण जनता कर्मशील और निष्ठावान है। मेहनत ही उनके जीवन का ध्येय रहा है। मुंशी प्रेमचंद ने गांव के जीवन का बहुत ही मार्मिक यथार्थ वर्णन किया है। कृषि उस सूत्रधार किसान की है। गांधी जी ने कहा था –

भारत का हृदय गांव में बसता है। गांव में ही सेवा और परिश्रम के अवतार किसान बसते हैं। यही अन्नदाता हैं, सृष्टि के पालक हैं। किसान को आराम कहां, उसे नित्य कठोर जीवन जीना पड़ता है। मां प्रकृति की गोद में उसे बड़ा आनंद मिलता है। प्रकृति से निकट संबंध होने के कारण वह सदा हष्ट-पुष्ट और स्वस्थ रहता है। उसके जीवन की कुंजी है – सादा जीवन, उच्च विचार।

होली का त्योहार आया। पूरे गांव में खुशियां छा गईं। गोपी भी होली पर अपने गांव आया, सबके साथ त्योहार मनाने के लिए। गांव भर में पकवानों की महक फैल गई, जैसे फूलों की सुगंध वातावरण को महका देती है। गोपी के पिताजी कालू चाचा को अपने सगे चाचा ही मानते थे। परंतु उनके मन में क्या चल रहा था, यह कोई नहीं जानता था। उनके मन में दोनों परिवारों के बीच विश्वासघात पनप रहा था।

खैर, उनके मन की वही जाने। खुशी-खुशी सबने होली का त्योहार मनाया। दारू पीने वालों ने रंगों के साथ-साथ दारू भी पी। उनमें कालू चाचा भी एक थे। उन्होंने भी कुछ ज्यादा पी ली, जिसके कारण उनकी तबीयत बहुत खराब हो गई। गांव में इलाज संभव न हो पाया। इस कारण गोपी उन्हें अपने साथ शहर ले गया।

वहां डॉक्टर को दिखाया। डॉक्टर ने दवा देकर कहा – दो-चार दिनों में ठीक हो जाएंगे। गोपी और रजनी ने उनकी खूब सेवा की। बहू-बेटे की सेवा भाव से वे जल्दी ठीक हो गए। उनके मन में जो विश्वासघात का पौधा पनप रहा था, वह पूर्ण रूप से मुरझा गया।

गांव आकर उन्होंने बहू-बेटे की बहुत तारीफ की – “दोनों बच्चों ने मेरा बहुत अच्छे से ख्याल रखा, इतना कोई अपना भी नहीं करता।” अब कालू चाचा पूरे गांव में दोनों परिवारों की तारीफ करते नहीं थकते।

एक दिन उनके मन में आया – मेरे मन में इन बच्चों के प्रति गलतफहमी थी, इसे पूरे गांव में उजागर कर दूं। पता नहीं जीवन का अंत कब हो जाए, यह बोझ लेकर जाने से अच्छा है इसे स्वीकार करना। यह सोचकर उन्होंने गांव की सभा में कहा –

“आज मैं अपने दिल के गलत भाव सबको बताना चाहता हूं। इन बच्चों का पारिवारिक प्यार और अपनापन देखकर मेरे मन में ईर्ष्या और विश्वासघात पनपते रहे। परंतु आज इन बच्चों के संस्कारों ने मेरे मन के गलत विचार धो दिए। मैं दिल से इन बच्चों को आशीर्वाद दे रहा हूं।”

अकेले मानव के दिल में सुख-दुख की अनुभूति अनेक प्रकार के संकल्प उठते रहते हैं। मनुष्य जीवन इसी आशा-निराशा में बीतता रहता है। मन में लोगों के प्रति अच्छे-बुरे विचार आते-जाते रहते हैं। यही सब विचार उनके मन में विचलित हो रहे थे।

इतने में एक हवा का झोंका आया, जिसने चाचा को अपने आगोश में ले लिया। चाचा सदा के लिए चिरनिद्रा में चले गए।

लेखिका – सरोजनी सक्सेना

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