विश्वासघात – डाॅ संजु झा : Moral Stories in Hindi

सूरज पाॅंच साल बाद अपने गाॅंव वापस लौटा है।उसके गले में सोने की मोटी चेन , कलाईयों में मॅंहगी घड़ी,प्रिंटेड कमीज और नीली जींस देखकर गाॅंव वाले अच्छे -खासे प्रभावित लग रहे थे। उन्हें यकीन नहीं हो रहा था

कि पाॅंच वर्ष पूर्व आवारागर्दी करनेवाला सूरज एकाएक इतना शरीफ और अमीर कैसे बन गया? गाॅंव में प्रचारित हो चुका था कि सूरज शहर में बहुत बड़ा आदमी बन गया है।उसका गाॅंव गरीबों की बस्ती है।सभी ग्रामीण उत्सुकतावश उसे चारों ओर घेरकर तन्मयता से उसकी बात सुन रहें हैं।उनलोगों के बीच सूरज अपनी

संपन्नता की कहानी बढ़ा-चढ़ाकर सुनाते हुए कहता है -“भाईयों! शहरों में रोजगार की कोई कमी नहीं है। तुमलोग गाॅंव से निकलना ही नहीं चाहते हो।कुऍं के मेंढ़क बने रहने से जिंदगी कठिनाई में ही बीतेगी।मुझे देखो! मैंने शहर जाकर मेहनत से अपना भाग्य बदल लिया है। तुमलोग भी गाॅंव से बाहर निकलो।जिसे मदद की जरूरत होगी,उसे मैं  दिल्ली में रोजगार दिलाने में मदद करूॅंगा।”

बहुत से युवा रोजगार की तलाश में दिल्ली जाने को उत्सुक थे। उनमें उसका दोस्त मोहन भी था।पाॅंच वर्ष पूर्व बेरोजगार सूरज  दिन-रात गाॅंव के आवारा लड़कों के साथ चौकड़ी जमाए रहता।एक दिन उसके पिता ने तंग आकर गाली देते हुए घर

से निकाल दिया।उस दिन सूरज भी गुस्से में गाॅंव छोड़कर दिल्ली पहुॅंच गया।शहर पहुॅंचकर उसे समझ में आ गया कि यहाॅं की जिंदगी आसान नहीं है!कुछ दिनों तक तो वह दिल्ली में रोजगार की तलाश में इधर-उधर भटकता रहा। रात को रेलवे स्टेशन पर सोता। कई-कई दिन तक तो उसे केवल पानी पर ही गुजारा करना पड़ता। नींद में जब भूख से ऑंतें कुलबुलाती ,

तो उसे माॅं की याद आती।उसे महसूस होता कि तुरंत ट्रेन पकड़कर माॅं के ऑंचल के साए में पहुॅंच जाऍं, परन्तु पलभर में ही उसे पिता का क्रोधित चेहरा और ऑंखों में अपने प्रति तिरस्कार के भाव याद आ जाते।

कुछ समय बाद सूरज को एक बिल्डर के दफ्तर में काम मिल गया।वह धीरे-धीरे बिल्डर का विश्वासपात्र बन गया।बिल्डर उस पर ऑंखें मूॅंदकर विश्वास करने‌लगा।बिल्डर से विश्वासघात कर वह चुपके-चुपके अपना निजी काम करने लगा। असलियत पता चलने पर बिल्डर ने उसे अपने दफ्तर से

निकाल दिया।अब वह छोटे-मोटा बिल्डर बन गया, परन्तु दिल्ली में इससे उसका गुजारा मुश्किल से होता था।अब वह नशे का अवैध व्यापार भी करने लगा। दिल्ली में दो जगह उसने अपना घर बना लिया।एक फ्लैट में उसका परिवार रहता था।एक जगह उसका ऑफिस था, जहाॅं उसने पीछे की तरफ मजदूरों के लिए दो कमरे बनवाकर रखे थे।

सूरज आज गाॅंववालों के सम्मुख अपनी संघर्ष गाथा नमक -मिर्च लगाकर सुना रहा था।सभी ग्रामीण उसकी कहानी उत्सुकता से सुन रहें थे, उनमें उसका दोस्त मोहन भी शामिल था।कुछ दिनों पहले मोहन की शादी हुई थी।घर में बूढ़ी बीमार माॅं थी।शादी से पहले तो जिंदगी किसी तरह चल रही थी,

परन्तु शादी के बाद उसे घर चलाने के लिए कोई ठोस रोजगार की जरूरत थी।उसने अपने दोस्त से कहा -“सूरज!इस बार अपने साथ मुझे भी दिल्ली ले चलो।तुम जो काम दोगे,वहीं मैं ईमानदारी से करुॅंगा।अब गाॅंव में गुजारा होना कठिन हो गया है!”

सूरज -“हाॅं!हाॅं!चलो मेरे साथ। वहाॅं काम की कोई दिक्कत नहीं है!”

सूरज की बातें सुनकर मोहन खुश हो जाता है और शहर जाने की तैयारी शुरू कर देता है।सूरज भी मन-ही-मन सोचता है कि दिल्ली में वैसे भी कोई भरोसे का आदमी मिलता नहीं है,इसे  ले जाना फायदेमंद रहेगा।

मोहन की पत्नी  रीना भी दिल्ली जाने की जिद्द करने लगती है, परन्तु उसे समझाते हुए मोहन कहता है -“रीना! जिद्द मत करो।पहले मैं खुद वहाॅं अपना ठिकाना देख लूॅंगा, फिर बाद में तुम्हें और माॅं को ले जाऊॅंगा।”

परिस्थिति की नजाकत समझते हुए रीना ने पति की बात मान ली।

मोहन सूरज के साथ दिल्ली पहुॅंच गया।सूरज ने दफ्तर के पीछे बने दो कमरे मोहन को रहने को दे दिया।मोहन सुबह से लेकर शाम तक सूरज के साथ काम करता।उसकी मेहनत से सूरज काफी खुश था।सूरज उसे मासिक वेतन भी देने लगा।

दोनों एक-दूसरे से काफी खुश थे।एक दिन मोहन को पिता बनने की खुशखबरी मिली।यह खबर सुनकर उसका दिल बल्लियों की भाॅंति उछलने लगा।वह पंख लगाकर उड़कर पत्नी के पास पहुॅंचना चाहता था, परन्तु कुछ ही पल में यथार्थ की धरती

पर उतरते हुए वह सोचता है -“छोटी-छोटी बातों पर जश्न मनाना अमीरों के चोंचले हैं,हम गरीबों के नहीं! बच्चे के जन्म के समय ही गाॅंव जाऊॅंगा,तब तक कुछ पैसे भी जमा हो जाऐंगे।”

अब मोहन खुद पर कम-से-कम पैसे खर्च करता। परिवार के लिए एक-एक पैसा जोड़ना शुरू कर दिया। पत्नी का प्रसव नजदीक आ रहा था।मोहन ने गाॅंव जाने की तैयारी शुरू कर दी,उसी बीच उसे बेटा होने की खुशखबरी मिलती है।मोहन ने खुशी से सूरज को समाचार सुनाते हुए कहा -“दोस्त!मुझे गाॅंव जाने के लिए पन्द्रह दिन की छुट्टी चाहिए!”

सूरज हॅंसते हुए कहता है -“तुम बाप बन गए हो ,तो तुम्हें छुट्टी देनी ही पड़ेगी!”

सूरज ने उसे अपने पास से भी कुछ पैसे दिऍं और गाॅंव जाने का टिकट भी कटवा दिया।

मोहन आठ महीने बाद अपने गाॅंव पहुॅंचता है।अपने नन्हें बेटे को गोद में उठाकर चूमता है,मानो सारे जहां की खुशियाॅं उसकी बाॅंहों में सिमट गईं हों।

बगल में मुस्कराती पत्नी को आवेश में आकर आलिंगन में भर लेता है।उसके बाद अपनी माॅं से मिलने उनके कमरे में जाता है।इन आठ महीनों में उसकी माॅं काफी अशक्त हो चुकी है।बेटे के आने की खुशी में बिस्तर से उठकर धीरे-धीरे बैठ जाती है।

मोहन माॅं की हालत देखकर काफी दुखी हो गया।माॅॅं को भींगे नयनों से गले लगकर कहता है -“माॅं! चिंता मत करो।अब मैं आ गया हूॅं।कल तुम्हें डॉक्टर से दिखला दूॅंगा।”

दोनों माॅं -बेटे की वाणी भावना के अतिरेक से अवरुद्ध हो जाती है। दोनों के नयन ही ऑंसुओं की बरसात कर एक-दूसरे पर स्नेह -वर्षण कर देते हैं।

अगले दिन मोहन बगल गाॅंव से डाॅक्टर लेकर आता है। डॉक्टर घर आकर मोहन की माॅं की हालत को चिंताजनक बताता है और मॅंहगी दवाईयाॅं

लिखकर चला जाता है।बेटे का फर्ज अदा करते हुए मोहन दिन-रात माॅं की सेवा  और इलाज कराता है, परन्तु मौत पर किसका वश चलता है?कुछ ही दिनों में उसकी माॅं दम तोड़ देती है,मानो बेटे की आस में ही उनके प्राण अटके पड़े थे!

मोहन के पास जितने पैसे थे,सभी खत्म हो चुके थे।अब उसके पास माॅं के क्रिया-क्रम के भी पैसे नहीं बचे थे।उसने गाॅंव का घर साहूकार के पास गिरवी रख दिया और उससे पैसे लेकर  विधिवत् माॅं की आत्मा को मुक्ति दी।उसके बाद पत्नी और बेटे को लेकर दिल्ली चला आया।

दिल्ली में रहने का ठिकाना तो सूरज ने दे ही दिया था,इस कारण रहने की कोई समस्या नहीं थी।वह दस बजे सुबह काम पर निकल जाता, फिर देर रात तक लौटता। रीना दिनभर बेटे के साथ व्यस्त रहती,रात में खुशी-खुशी पति के आने का इंतजार करती।

धीरे-धीरे उसकी जिंदगी पटरी पर आ रही थी। एक दिन उसका बच्चा बेतहाशा रो रहा था,उसे चुप कराने के लिए वह घर के बाहर टहल रही थी,इस क्रम में उसके कपड़े अस्त-व्यस्त हो गए थे,उसी समय बच्चे के रोने की आवाज सुनकर एकाएक सूरज वहाॅं पहुॅंच गया।वह रीना का गोरा गदराया बदन देखकर अपना सुध-बुध खो‌बैठा और एकटक रीना को निहारने लगा।

उसे अपनी तरफ देखते हुए देखकर रीना ने हड़बड़ाकर अपने कपड़ों को ठीक किया।उस समय तो सूरज बच्चे को पुचकारकर चला गया, परन्तु रीना को देखकर उसकी नियत खराब हो चुकी थी।

अब हर पल सूरज के दिलो-दिमाग में रीना का गदराया बदन नाचने लगा।वह रीना के जिस्म पाने की तरकीबें सोचने लगा। अधिक पैसों के लोभ में काम के बहाने मोहन को दूर-दूर के काम सौंपने लगा।मोहन को अपने दोस्त पर पूर्ण भरोसा था,इस कारण किसी काम में वह आना-कानी नहीं करता।

एक दिन जेठ की दुपहरी थी। चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था। पशु-पक्षी भी तपती गर्मी से विकल होकर अपनी-अपनी जगह पर दुबके पड़े थे।भरी दुपहरी में लोग भी अपने घरों में दुबके पड़े थे।ऐसे में कोई आदमी किसी के कमरे में घुस जाऍं,

तो किसी को पता भी नहीं चलेगा।ऐसे ही मौके का फायदा उठाकर सूरज चुपके से मोहन के घर के पास पहुॅंचकर धीरे-धीरे दरवाजा खटखटाने लगा।रीना का बच्चा सो चुका था,उसके उठ जाने के ख्याल से उसने झट से दरवाजा खोल दिया।सामने सूरज को देखकर घूॅंघटकर एक ओर खड़ी हो गई।

गाॅंव के रिश्ते से सूरज उसका जेठ लगता था,इस नाते वह सूरज की बहुत इज्जत करती थी। परन्तु उसे क्या पता था कि जब किसी के मन पर वासना की कलुषित चादरें सर्प की भाॅंति लिपट जाती हैं,तब सारे नाते-रिश्ते गौण हो जाते हैं।सूरज की ऑंखों में वहशीपन झलक रहा था।पानी के बहाने सूरज घर

के अंदर घुस गया और चट से दरवाजा बंद कर रीना को अपनी मजबूत बाॅंहों में जकड़ लिया।रीना को सॅंभलने का मौका नहीं मिला।वह निरीह मेमने की भाॅंति सूरज रूपी शेर के पंजे से छूटने का असफल प्रयास करने लगी।एक बार तो वह उसकी पकड़ से छूटकर चिल्लाने की कोशिश करने लगी,परन्तु

सूरज पूरी तैयारी के साथ आया था।उसने झट से अपनी जेब से रिवाल्वर निकालकर सोए हुए बच्चे पर तान दिया।ममता के आगे रीना बेबस हो गई। आखिर एक बेबस माॅं की इज्जत तार-तार हो गई।सूरज ने अपनी मनमानी कर  ली और निकलते समय धमकी देते हुए कहा-” कभी भूलकर भी मुॅंह मत

खोलना।तुम्हारी भलाई चुप रहने में ही है, नहीं तो इतने बड़े शहर में अपने पति और बेटा को ढ़ूॅंढ़ती ही रह जाओगी!”

रीना कुछ देर तक तो इस अप्रत्याशित घटना से चेतनाशून्य होकर शून्य में निहारती रही, फिर बेटे को सीने से लगाकर उसके होंठों से दर्द की एक सिसकारी फूटी।उसकी ऑंखों से अश्रुधारा बह निकली। गाॅंव की भोली-भाली अल्पशिक्षित रीना सूरज की धमकियों से डर गई।रीना के चुप रहने से सूरज का हौसला बढ़ता जा रहा था।वह हमेशा अवसर की ताकत में रहता,जब भी उसे अवसर मिलता,वह रीना के पास जाकर अपनी वासना की आग बुझा लेता और हर बार धमकी देना नहीं भूलता।अब सूरज मोहन पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान रहने लगा।कभी उसे गैस चूल्हा ल्हा,कभी कूलर तथा अन्य चीजों से मदद करने लगा था। मोहन सूरज के उपकारों  से उसका कृतज्ञ रहने लगा। उसे अपना बड़ा भाई समझता था,इस कारण उसने  विश्वासघात की कल्पना भी नहीं की थी।

रीना लाख कोशिशों के बाद भी मोहन को सूरज की करतूत बताने की हिम्मत नहीं बटोर पा रही थी, परन्तु उसकी ऑंखों में हर पल अजीब-सा भय तैरता रहता।सूरज के खिलाफ आवाज उठाना उसके लिए आसान नहीं था।वह दर्द के अंधेरे में स्वयं को गुम कर उस गुनाह की सजा भुगतने को तैयार थी,जो उसने किया ही नहीं।एक दिन उसने हिम्मत कर अपने पति से कहा -“मेरा मन यहाॅं नहीं लगता है। क्यों न हम यहाॅं से दूसरे किराए के घर में चलें?”

पत्नी की आंतरिक वेदना से अनभिज्ञ मोहन ने कहा -” दिल्ली में दूसरा घर मिलना क्या आसान है? यहाॅं हम मुफ्त में रहते हैं और सूरज भी हमारा कितना ख्याल रखता है?”

रीना चाहकर भी अपने दर्द जुबां ‌पर नहीं ला पा रही थी।बस अंदर ही अंदर घुटती रहती थी।उसकी चुप्पी का नाजायज़ फायदा उठाकर सूरज जब तब उसे अपनी वासना का शिकार बना लेता।रीना की स्थिति साॅंप-छूछंदर की भाॅंति हो गई थी।न तो उसे कुछ कहते बन रहा था और न ही चुप रहा जा रहा था।एक दो बार रीना ने मोहन से गाॅंव जाने की बात भी कही, परन्तु उसकी पीड़ा से अनजान मोहन ने उसे समझाते हुए कहा -” रीना!अभी कुछ दिन और रुको ,कुछ और पैसे जमा हो जाऍं,तो गाॅंव चलकर साहूकार से गिरवी घर वापस छुड़ा लूॅंगा।”

अब रीना के समक्ष एक  तरफ जिल्लत भरी जिंदगी थी,तो दूसरी तरफ पति और बेटे की जीवन‌रक्षा का प्रश्न!उसे इस दलदल से निकलने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था।

रीना को सूरज के अत्याचार सहते हुए एक वर्ष बीत चुके थे।मोहन को इसकी भनक तक नहीं थी।एक दिन फिर दोपहर में सूरज आ धमकता।उस समय रीना का बच्चा जाग रहा था, परन्तु उसकी परवाह न करते हुए सूरज ने उसे दबोच लिया।यह देखकर बच्चा जोर-जोर से रोने लगा।रंग में भंग पड़ते हुए देखकर सूरज ने बच्चे को जोर से चाॅंटा रसीद कर दिया।बच्चा डर से सहमकर चुप हो गया।सूरज ने रीना के बदन के साथ -साथ उसके मन को क्षत-विक्षत कर डाला।उस दिन रीना की चेतना जागृत हो उठी।उसका आत्मसम्मान उसे झकझोरने लगा, क्योंकि आज सूरज ने उसके बच्चे के सामने दुष्कर्म किया था।उसकी घुटन और वेदना पराकाष्ठा पर पहुॅंच चुकी थी।उसने अपने सहमे हुए बेटे को अपने सीने से लगा लिया।आज उसके मन में प्रतिकार की भावना जाग उठी थी।आज उसकी ऑंखों में डर,बेबसी नहीं बल्कि एक दृढ़ निश्चय झलक रहा था।

संयोगवश उस दिन मोहन जल्दी घर आ गया।वह बच्चे के साथ खेलने लगा। अचानक से उसकी नजर बच्चे के गाल पर चली गई।उसने  क्रोधित होते हुए पूछा -“रीना!इतने छोटे बच्चे को‌तुमने इतनी बेदर्दी से क्यों मारा?”

पति की बात सुनकर रीना बिलख-बिलखकर रो उठी।उसे इस प्रकार रोते हुए देखकर उसका हाथ पकड़कर मोहन ने पूछा -” बताओ!क्या बात है?”

पति के अपनत्व भरे स्पर्श से रीना पिघल उठी।उस दिन ऑंसुओं के साथ उसकी अव्यक्त व्यथा बह निकली और उसने मोहन को सूरज की काली करतूतों के बारे में बताया।मोहन‌ सूरज के विश्वासघात की बात सुनकर हक्का-बक्का रह गया।उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि जिसे वह रक्षक समझ रहा था,वही उसका भक्षक कैसे निकल गया?

रीना ने उसे यह भी बताया कि सूरज ने चोरी-चोरी कुछ आपत्तिजनक फोटो भी खींचे हैं,जिसके आधार पर उसे ब्लैकमेल कर रहा था।

मोहन को अपनी पत्नी की बातों पर शत-प्रतिशत विश्वास हो चला।उसने पत्नी से कहा -“तुमने एक साल तक उस दुराचारी के ज़ुल्म क्यों सहें?मुझे पहले खुलकर बताया होता! मैं भी नासमझ था ,जो तुम्हारे इशारों को समझ नहीं सका।तुम्हारा मुर्झाया हुआ चेहरा देखकर भी मुझे  अनहोनी का कुछ आभास नहीं हुआ।खैर अब भी देर नहीं हुई है।अभी पुलिस स्टेशन चलो।”

सीधे-सीधे सूरज से पंगा लेना मोहन के लिए आसान नहीं था। दोनों पति-पत्नी बच्चे के साथ पुलिस स्टेशन जाकर सूरज के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाते हैं। संयोगवश उस समय ईमानदार थाना प्रभारी बैठा हुआ था।उसने धैर्यपूर्वक उनकी बातें सुनी और उस पर विश्वास कर विश्वासघाती सूरज को गिरफ्तार कर लिया।उसके मोबाइल से सारे आपत्तिजनक फोटो डिलीट कर दिऍं।मोहन दम्पत्ति ने चैन की साॅंस ली।कुछ दिनों बाद मोहन पत्नी और बच्चे को लेकर अपने गाॅंव के पास कानपुर चला गया। वहाॅं अपना व्यवसाय करने लगा। वह पत्नी और बेटे के साथ खुश था, परन्तु कभी-कभी उसे सूरज का विश्वासघात याद आकर उसके मन को बेचैन कर देता।उस घड़ी में रीना उसे अपने आलिंगन में बाॅंधकर सब कुछ भूलने में सहयोग करती।बेटे का खिलखिलाता चेहरा देखकर दोनों कड़वी यादों को जेहन से सदा के लिए विस्मृति के गर्त में ढकेलने की कोशिश करते।

समाप्त।

लेखिका -डाॅ संजु झा (स्वरचित)

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