निधि की बेटी शिप्रा बहुत बीमार थी। 6 वर्ष की छोटी सी आयु में दिल की बीमारी, डॉक्टर साहब ने कहा कि ऑपरेशन करना पड़ेगा, 7 8 लाख रुपए का खर्च आएगा।
निधि ने अपने ऑफिस में बात की, काम नहीं बना। बॉस ने साफ इनकार कर दिया। रिश्तेदारों का तो कहना ही क्या, मायके में सिर्फ एक बूढी मां थी जिसका गुजर पापा की सरकारी नौकरी की पेंशन से चल रहा था, फिर भी उसने बड़ा दिल रखते हुए 50000 देने का वादा किया था। बाकी पैसे कहां से लाऊं,निधि सोच रही थी। आज निधि को अपने पति संजीव की बहुत याद आ रही थी।
निधि का बिल्कुल मन नहीं था, संजीव से मदद मांगने का, लेकिन अपनी बच्ची को ऐसे तिल तिल मरते हुए भी तो नहीं देख सकती थी और फिर माता-पिता तो बच्चों के लिए क्या कुछ नहीं करते।
आज बहुत समय बाद निधि को अपनी गलती का एहसास हुआ था। नई-नई शादी हुई थी, निधि और संजीव बहुत खुश थे। थोड़े समय बाद निधि को अपने गर्भवती होने का पता चला। संजीव बहुत ही खुश था उसने कहा था कि मुझे बेटी चाहिए। कुछ समय बाद पता नहीं क्यों, निधि खुद को
असुरक्षित महसूस करने लगी थी। उसे लगने लगा था कि संजीव अब उस पर ध्यान नहीं देता है क्योंकि प्रेग्नेंट होने के कारण उसका शरीर में बेडौल हो गया है। संजीव का ऑफिस की किसी लड़की से कोई चक्कर चल रहा है।
इस कारण दोनों में झगड़े होने लगे। संजीव ने निधि को बहुत समझाया कि ऐसा कुछ नहीं है। तुम अपने साथ-साथ होने वाले बच्चों को भी नुकसान पहुंचा रही हो। इतना गुस्सा चिखना चिल्लाना, उल्टी सीधी दवाई खाना सही नहीं है। तुम्हारे साथ-साथ बच्चे का स्वास्थ्य भी खराब हो जाएगा, लेकिन निधि कुछ नहीं सुनती थी।
एक दिन वह संजीव से लड़ झगड़कर चिट्ठी लिखकर घर छोड़कर चली गई। मायके जाने पर उसकी मां ने भी उसे बहुत समझाया, पर वह कुछ नहीं समझी।
संजीव ने उसे मैसेज किया। तुम खुद घर छोड़ कर गई हो, घर के दरवाजे खुले हैं, आना चाहो तो आ जाओ, मैं लेने नहीं आऊंगा क्योंकि तुम बेवजह शक कर रही हो, मेरी कोई गलती नहीं है।
निधि वापस नहीं गई। समय आने पर उसने एक प्यारी सी बेटी शिप्रा को जन्म दिया। संजीव बच्ची को देखने एक बार आया था और जाते समय सुस्त कदमों से वापस गया और उसकी आंखें नम थी, लेकिन उसने निधि से वापस चलने को नहीं कहा और ना ही निधि ने उसके साथ जाने को कहा। दोनों की अपनी-अपनी ईगो थी।
जबकि निधि को बाद में एहसास हुआ कि वह गलत थी। संजीव का कोई अफेयर नहीं था, पर वह झुकना नहीं चाहती थी।
बच्ची जब थोड़ी बड़ी हुई तब निधि ने नोटिस किया कि वह बहुत जल्दी थक जाती है। बिना किसी कारण के उसे पसीना बहुत आता है और उसकी सांस फूल जाती है। उसे सांस लेने में भी कभी-कभी कठिनाई होती थी।
तब चेकअप करवाने पर दिल की बीमारी का पता लगा। डॉक्टर ने कहा, वाल्व खराब है ऑपरेशन होगा। निधि की रातों की नींद और दिन का चैन हवा हो गया था।
लेकिन अब क्या? अब तो बच्ची की खातिर संजीव के आगे झोली फैलानी ही पड़ेगी, बच्ची को ऐसी हालत में देख भी तो नहीं सकती थी।
उसने अपनी ईगो को साइड में रखा और संजीव के आगे हाथ फैला दिए।
निधि संजीव के घर गई और उससे कहा -” संजीव, बचा लो शिप्रा को, दिल की बीमारी है उसे, 7 लाख नहीं है मेरे पास। अभी दे दो, धीरे-धीरे लौटा दूंगी। “
संजीव -” अब क्यों आई हो मेरे पास, आओ अंदर आओ, आकर देखो, चेक कर लो, कोई दूसरी औरत तो नहीं है यहां, तुम्हारे कारण मेरी बच्ची बीमार हुई है,, कितना समझाता था मैं तुम्हें गुस्सा मत करो,उल्टी सीधी दवाइयां मत खाओ, पर क्या फायदा, तुम्हारी वजह से मैं अपनी बच्ची से दूर हो गया। ”
इतना कहकर संजीव अंदर चला गया और 10 मिनट तक उसका कुछ अता-पता नहीं था। निधि को लगा कि मुझे वापस चले जाना चाहिए। संजीव मदद नहीं करेगा। वह जाने के लिए वापस मुड़ी, तभी संजीव ने एक पॉलिथीन उसकी पीठ पर फेंक कर मारी। पॉलिथीन में कुछ कागजात थे।
संजीव ने कहा-” इसे उठाओ और चली जाओ यहां से, दोबारा मुझे अपनी शक्ल मत दिखाना, तुमने मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी है, मैं अपनी बेटी को दूर से ही देख कर खुश हूं। ”
निधि हैरान थी। उसने घर जाकर पॉलिथीन खोल कर देखा, तो उसमें हस्ताक्षर किए हुए, एक चेक बुक थी और एक चाबी। वह तुरंत बैंक से पैसे निकाल लाई और शिप्रा का ऑपरेशन करवा दिया। खाते में कुल 20 लाख थे।
सुबह ऑपरेशन सफल हुआ और रात में संजीव का फोन आया। ऑपरेशन कैसा रहा, शिप्रा मेरी बिटिया कैसी है? ”
निधि-” ऑपरेशन सक्सेसफुल था,शिप्रा बिल्कुल ठीक है। ”
संजीव ने कहा -” वह चाबी, इसी घर की है, वह घर अब तुम्हारा है, मैं अमेरिका जा रहा हूं। ” निधि के कुछ और पूछने से पहले ही फोन कट चुका था।
काफी समय तक वह शिप्रा की देखभाल में लगी रही। कुछ समय बाद वह उस घर में आई। घर की सफाई के दौरान उसे कुछ कागज मिले, उसने सोचा फुरसत मिलेगी तो देखूंगी। फुर्सत मिलने पर उसने देखा,यह कुछ रिपोर्ट्स थीं।
उसकी समझ में कुछ नहीं आया। उसने डॉक्टर को रिपोर्ट्स दिखाईं। तब डॉक्टर ने बताया, रिपोर्ट्स में बताया गया है कैंसर थर्ड स्टेज। ऊपर संजीव का नाम था। बहुत देर हो चुकी थी,निधि के हाथ से समय निकल चुका था। यह मैंने क्या कर दिया। संजीव अंदर ही अंदर बिखर गया था। अकेलेपन उसे खा लिया था। कितनी बेवकूफ थी मैं, जो मुझे आज तक अपनों की पहचान नहीं हुई है। सब कुछ गवा दिया मैंने।
निधि ने तुरंत संजीव को व्हाट्सएप कॉल लगाई। पूछने पर उसने कहा-” उस रिपोर्ट को मैं यहां ढूंढ रहा था, अगर वह तुम्हें ना मिलती,तो मैं तुम्हें कुछ नहीं बताता, मुझे पता है मैं बेचूंगा नहीं, तुम्हें तो मेरे बिना रहने की आदत पड चुकी है। मैं तुम्हारी जिंदगी में फिर से आता और चला जाता तो इससे
तुम्हें बहुत दुख होता। मेरी बच्ची का ध्यान रखना, अगर बच भी गया तो कितना ही जिऊंगा। अगर कुछ समय बाद मैसेज आए “अलविदा” तो समझ जाना कि मैं इस दुनिया में नहीं हूं, मैं हॉस्पिटल में किसी से मैसेज करने के लिए कहूंगा, अगर मैं मरने वाला होऊँगा तो। मेरे मरने पर वह तुम्हें मैसेज कर देंगे। ”
निधि के मुंह से निकला-” ऐसा मत कहो”
लेकिन संजीव ने नहीं सुना क्योंकि फोन कट चुका था।
6 महीने बाद संदेश आया” अलविदा”
निधि यह मैसेज पढ़ कर फूट-फूट कर रो रही थी और कह रही थी मुझे माफ कर दो संजीव, मैं अपनों की पहचान नहीं कर पाई।
अप्रकाशित स्वरचित गीता वाधवानी दिल्ली