जब तुम माँ बनोगी, तब पता चलेगा – लक्ष्मी त्यागी : Moral Stories in Hindi 

सुनीता एक महीने से, अपने घर पर ही, रह रही थी, उसकी मम्मी परेशान थीं, कि अब बेटी का इतने दिनों तक मायके में रहना उचित नहीं है। वो चाहती थीं कि उसे अब अपने घर चले जाना चाहिए किन्तु कह भी नहीं पा रहीं थीं ,कहीं बेटी को बुरा न लगे ,कि अब ये घर, मेरे लिए इतना पराया हो गया ,जो मैं कुछ दिनों के लिए यहां नहीं रुक सकती किन्तु अब तो हद ही हो गयी ,वो तो जाने का नाम ही नहीं ले

रही थी।उसकी ससुराल से भी कोई संदेश नहीं आया। उन्हें अब उसकी चिंता सताये जा रही थी, अक्सर बेटी से कहती रहती थीं -आजकल बेटियों का इतने दिनों तक, मायके में रहना ठीक नहीं है। वहां दामाद जी को परेशानी होती होगी, तुम्हारे ससुराल वाले क्या सोचेंगे ? कहेंगे! इतने दिनों पश्चात विवाह किया है और अब भी, मायके में जाकर बैठ गई है।

कभी उससे पूछतीं -परिवार में सब अच्छे से तो हैं ,दामाद !जी तुम्हें प्यार तो करते हैं ,उनसे कोई झगड़ा  तो नहीं हो गया। वो फोन तो करते रहते हैं ,तुम्हें लेने कब आ रहे हैं ? 

अपनी मम्मी के प्रश्नों से तंग आकर सुनीता कहती -‘आप तो व्यर्थ में ही, परेशान होती रहती हो, कोई कुछ नहीं कहेगा।  मुझे तो लगता है, आप मुझे यहां से भगा देना चाहती हैं। 

क्यों ? तुम्हें पच्चीस साल क्या इस घर में नहीं रखा था ? किंतु विवाह के पश्चात ,बेटी का असली घर तो उसका ससुराल ही होता है, तुम्हें अब समय रहते,वहां चले जाना चाहिए। क्या तुम्हारी दामाद जी से कोई बात हुई है ?उस दिन तो उन्होंने कठोर मन करके बेटी से कह ही दिया। 

 पंद्रह  दिनों तक तो उनका फोन आया था, उसके पश्चात न जाने क्यों, उन्होंने फोन नहीं किया ? 

सुनीता की बात सुनकर, कामायनी जी को बहुत क्रोध आया, और वो बोलीं -कितनी लापरवाह लड़की है ?क्या तुम इतना भी नहीं समझती हो ? यदि उन्होंने इतने दिनों तक फोन नहीं किया है, तो इसका मतलब यही है, कि वे तुमसे नाराज हैं।

क्या? आपने ही, मेरी सारी परेशानी का ठेका ले लिया है, ऐसा कुछ भी नहीं होगा,वो लापरवाही से बोली। 

उन्होंने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और उससे पूछा – अच्छा ,यह बताओ! तुम से दामाद जी ने क्या कहा था?

उन्होंने कहा था -अब मुझे उनके घर चले जाना चाहिए , कब तक वहां रहोगी ?

तब और क्या चाहती हो ? उन्होंने सही तो कहा है ,और अब वो घर तुम्हारा भी है ,तुमने यह बात हमें बताई भी नहीं, आने दो ! तुम्हारे पापा को, मुझे तो लगता है, दामाद जी नाराज हो गए हैं ,वे बेचैनी बोलीं। 

ऐसा आपको लगता है, आपने सारी चिताओं, समस्याओं को जबरदस्ती ओट रखा है। 

ओट नहीं रखा है, तुम्हें क्या मालूम ? एक मां की चिंता क्या होती है ? पहले बच्चों को, पालना -पोषणा  फिर उन्हे पढ़ाना -लिखाना, उसके पश्चात, उनका घर -परिवार बस जाए , बेटियां खुशी-खुशी अपने घर चली जाएं , तब जाकर सुकून मिलता है। इतनी मुश्किलों से लड़का ढूंढ कर, तुम्हारा विवाह किया और अब तुम यहां बैठी हो। कोई भी यह बात, तुम्हें नहीं कहेगा, सब मां को ही कहते हैं ! माँ ने क्या

संस्कार दिए हैं , ब्याही भरी लड़की, घर आकर बैठ गई है, और उसे अपने परिवार और पति की कोई परवाह ही नहीं है।” जब तुम मां बनोगी तब तुम एक मां के मर्म को समझ पाओगी क्रोध से वो बोलीं –  जब बच्चा पैदा होता है, उसके पालन- पोषण से लेकर, उसके जीवन की सभी समस्याएं, वह अपने

ऊपर ले लेती है। अपने हर निर्णय में, बच्चों की खुशी देखती है। चाहे वह निर्णय प्रसन्नता से लिया जाए या फिर कठोरता पूर्वक ! मैं तो समझ रही थी, तुम्हारे यहां आने से दामाद जी को कोई परेशानी नहीं हुई होगी ,तुम उनसे कहकर और पूछकर आई होंगी।  

तुम इतनी लापरवाह कैसे हो सकती हो ? वहां तुम्हारा पति परेशान है और तुम यहां पड़ी हो , यह बात तुम्हें प्यार से समझ में नहीं आई, अब यह घर तुम्हारा नहीं रहा है। अपने घर को बसाओ! अपने पति का कहना मानो ! और जब तुम मां बन जाओगी , तब मुझसे कहना – कि मम्मी देखो! मैं कितनी

निश्चिंत हूं, मुझे किसी भी प्रकार की कोई चिंता नहीं है। कहने को तो उम्र के साथ, हमारी जिम्मेदारियां समाप्त हो जानी चाहिए , इस मोह- माया से दूर हो जाना चाहिए किंतु जब मां अपने बच्चों का घर बिगड़ते देखती है तो उसे बर्दाश्त नहीं होता, चाहे वह बेटा हो या फिर बेटी हो !

 एक माँ  ही माँ के मर्म को समझ सकती है , इसलिए तुम मेरी परेशानी नहीं समझ पाओगी जब माँ बन जाओगी तो तुम्हें ,यह बात भी समझ में आ जाएगी कि मैं सही थी ,आज तुम्हें मेरा कहना गलत लग रहा है किन्तु बाद में एहसास होगा ,कहते हुए उन्होंने बेटी की ससुराल में फोन लगा दिया और

बात करने लगीं ,अगले दिन ही ,सुनीता के ससुराल जाने की तैयारी होने लगी ,तब वो सुनीता से बोलीं -तुम्हें जिस किसी भी सामान आवश्यकता हो ,बाजार से ले आओ ! शाम तक दामाद जी तुम्हें लेने आ जायेंगे ,कल अपने घर चली जाना,अब यहां बहुत दिन रह लिया ,अब तुम्हें अपने घर जाना ही होगा।  

अक्सर हर मां अपनी बेटी से यही कहती है -”जब तुम मां बन जाओगी ! तब तुम इस बात को समझ पाओगी” एक तरीके से देखा जाए तो मां अपनी बेटी को ताना मार रही है लेकिन इस ताने में भी, उसका आशीर्वाद छुपा होता है कि उसकी बेटी फले -फूले,उसमें उसकी खुशियां देखती है,उसकी बेटी, अपने घर -परिवार को संभाले,यही एक माँ का सपना होता है।  

                  ✍🏻 लक्ष्मी त्यागी

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