पति पत्नी और धोखा – गीतू महाजन : Moral Stories in Hindi

दरवाज़े की घंटी ने डाइनिंग टेबल पर ऊंघती हुई माहिरा को उठा दिया था।अपने पति राघव का इंतज़ार करती माहिरा को लगा कि दरवाज़े पर उसका पति ही होगा पर दरवाज़ा खोलते ही सामने पड़ोसन नित्या का पति सार्थक खड़ा था।नित्या आज शाम को मायके जाते हुए उसे अपने फ्लैट की चाबी थमा गई थी। सार्थक को चाबी दे माहिरा ने दरवाज़ा बंद किया और एक नज़र दीवार पर लगी घड़ी की ओर घुमाई तो पाया कि रात के 9:30 बज चुके थे। 

आमतौर पर राघव शाम को 7:00 बजे तक आ जाता था पर पिछले कुछ दिनों से वह देर से आ रहा था क्योंकि उसके अनुसार ऑफिस में कोई नया प्रोजेक्ट चल रहा था जिसके लिए उसे देर हो जाया करती थी पर अब तो 10:00 बजने वाले थे और राघव का कोई पता नहीं था।माहिरा ने उसे एक दो बार फोन भी किया पर उसका फोन स्विच ऑफ आ रहा था।माहिरा ने सोचा कि वह शायद किसी मीटिंग में व्यस्त होगा। 

राघव का इंतज़ार करते हुए माहिरा ने भी अभी तक खाना नहीं खाया था और घर का सन्नाटा उसे और भी परेशान कर रहा था।महानगर मुंबई की एक बहुमंजिला  इमारत में एक फ्लैट में रहते हुए राघव और माहिरा को लगभग 5 साल हो चुके थे।इंदौर से आए इस जोड़े की शादी को लगभग 8 साल

बीतने वाले थे।दोनों का घर वालों की रज़ा मंदी से प्रेम विवाह हुआ था।राघव एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करता था और माहिरा एक डांस स्टूडियो चलाती थी और शाम को राघव के आने से पहले वह लगभग 6:00 बजे तक घर आ जाती।दोनों के माता-पिता इंदौर में रहते थे।

सब कुछ ठीक था..अच्छा पैसा,नाम और शोहरत सब कुछ था पर अब माहिरा को अपने जीवन में एक कमी सी लगती थी..एक बच्चे की कमी।वह चाहती थी कि अब परिवार को बढ़ाया जाए।पहले अपने महत्वाकांक्षाओं के चलते दोनों ने अपने परिवार को बढ़ाने का फैसला नहीं किया था पर अब माहिरा

को घर का सन्नाटा चुभता था।दोनों के माता-पिता का भी अब दबाव बढ़ता जा रहा था।इसलिए कुछ महीने पहले माहिरा राघव को मना कर डॉक्टर के पास दोनों  का चेकअप करवाने के लिए ले गई ताकि डॉक्टर से सलाह कर दोनों आगे बच्चा प्लान कर सकें पर जो नतीजा आया उसमें माहिरा और राघव दोनों की ज़िंदगी एकदम से रुक सी गई।

डॉक्टर के अनुसार राघव कभी पिता नहीं बन सकता था।दुख तो माहिरा को भी बहुत था  पर अपने दुख को राघव के सामने ज़ाहिर कर वह उसकी नज़रों को झुकाना नहीं चाहती थी।वह नहीं चाहती थी कि राघव भावनात्मक रूप से टूट जाए इसीलिए वह उसे संबल देने के लिए उसके साथ खड़ी रही

और घर वालों के बार-बार पूछने पर भी उन्हें उसने रिपोर्ट के बारे में कुछ नहीं बताया। माहिरा की सास कभी-कभी फोन पर उसे ही बच्चा देर होने का उलाहना दे देती और माहिरा चुपचाप सुन लेती अपने प्यार की खातिर इतना तो कर ही सकती थी यही सोच वह अपने मन को समझा लेती और आगे से कोई प्रतिक्रिया नहीं देती। 

कुछ देर बाद माहिरा ने राघव को एक बार फिर से फोन करने की कोशिश की पर फोन अभी भी स्विच ऑफ था। कुछ सोच कर उसने नीचे सोसाइटी के पार्क में जाकर थोड़ा घूमने का सोचा ताकि बाहर की ठंडी हवा से उसके मन को कुछ सुकून मिल सके।नीचे पहुंचकर उसे तीसरी मंज़िल पर रहने वाली अदिति मिल गई जो अभी ऑफिस से लेट आ रही थी।

“कहां जा रही है माहिरा इस समय”?

“वो बस, राघव अभी आया नहीं तो सोचा नीचे पार्क में थोड़ा चक्कर लगा लूं”।

“अच्छा चल.. बहुत थक गई हूं फिर किसी दिन बैठकर गप्पे मारते हैं”, यह कहकर अदिति लिफ्ट की और बढ़ गई।

यह सब बातें वहां बैठा सोसाइटी का गार्ड भी सुन रहा था।उसने माहिरा को बताया कि राघव साहब तो कब के आ चुके हैं पार्किंग में उनकी गाड़ी लगी हुई है।

“तुम्हें कोई धोखा हुआ होगा”, माहिरा बोली ।

“नहीं मेमसाब, मैंने ही उनकी गाड़ी लगवाई है..लगभग 2 घंटे हो चुके होंगे उन्हें बिल्डिंग में आए हुए”। 

माहिरा गार्ड की बात सुन हैरान रह गई।बिल्डिंग में अगर राघव आया था तो कहां चला गया..घर क्यों नहीं आया और बिल्डिंग में तो वह सिर्फ अदिति और सार्थक को ही जानता था और उसने फोन क्यों बंद कर रखा था..अगर आया होता तो मुझे भी बता देता.. ऐसे कई सवाल माहिरा के मन में घूम रहे थे।उसे कुछ घबराहट सी महसूस हुई तो उसने दोबारा से लिफ्ट में ऊपर जाने का सोचा।

लिफ्ट में जाकर माहिरा ने अपने घर जाने के लिए पांचवें फ्लोर का बटन दबा दिया।बीच में लिफ्ट दूसरे फ्लोर पर रुकी तो राघव लिफ्ट के दरवाज़े के सामने खड़ा था और उसके साथ ही एक औरत थी जो शायद उसे लिफ्ट तक छोड़ने आई थी।उसे देखकर एक पल को तो दोनों सकपका गए थे और

फिर राघव चुपचाप लिफ्ट के अंदर आ गया और कुछ ही देर बाद राघव और माहिरा दोनों अपने घर में थे।माहिरा को दूसरे फ्लोर से पांचवें फ्लोर तक आते-आते काफी कुछ समझ आ गया था पर यह सब वह राघव से के मुंह से सुनना चाहती थी। 

“कब से जानते हो तुम इसे”, माहिरा ने ठंडे स्वर में पूछा। 

“कुछ महीनों से”।

“शाम से इसी के पास थे”?

“हां” 

“तो इतने दिनों से जो लेट आने का और ऑफिस में काम होने का बहाना था वह सब गलत था”।

“तुम समझदार हो”, राघव ने सपाट सा उत्तर दिया।

“क्यों राघव..क्यों”, अचानक से माहिरा ज़ोर से चीखी, “क्या कमी रह गई थी मुझ में या मेरे प्यार में जो तुम बाहर जाकर एक साथी की तलाश कर रहे हो।इतने सालों का हमारा साथ क्या सब दिखावा था जिस प्यार की तुम कसमें खाते थे क्या वह सब झूठ थी और कैसे…कैसे तुमने मुझे धोखा देने के बारे में सोच लिया”। 

“मैं तुम्हें बताने ही वाला था कि मैं अब तुम्हारे साथ और नहीं रह सकता”।

“पर क्यों” माहिरा ने सवाल पूछा।

“बस यूं ही..अब लगता है कि शायद हम दोनों आपस में रह नहीं पाएंगे और मैंने तुम्हें कोई धोखा नहीं दिया। मैं तो बस तुम्हें बताने ही वाला था”।

“अच्छा, पकड़े जाने पर सब यही कहते हैं”, कहकर माहिरा अपने कमरे में ना जाकर दूसरे कमरे में चली गई।

सारी रात वह इसी सवाल जवाब के दायरे में घूमती रही कि ऐसा क्या हो गया था जो राघव उस औरत के साथ समय बिता रहा था और कैसे उसने माहिरा को छोड़ने के लिए अपना निर्णय सुना दिया था। कुछ सोचकर सुबह तड़के ही उसने अपने ससुराल वालों और मायके वालों को यहां बुला लिया।आनन फानन में सब हवाई यात्रा से शाम तक मुंबई पहुंच चुके थे।

माहिरा ने सबको इकट्ठे बिठाकर पूरी बात बताई तो उसकी सास एकदम से बोली,” तभी तो कहती थी बच्चा कर लो..अरे बच्चे  से पति पत्नी का रिश्ता और मज़बूत हो जाता है।बच्चा मां-बाप को करीब लाने में मदद करता है पर आजकल की लड़कियां अपनी ही चलाती हैं.. कुछ सुनती नहीं..आदमी का ध्यान तो  भटकेगा ही.. तभी कहते हैं कि बड़ों की बात मानने में ही भलाई होती है.. अब समझ आया तुम्हें”। 

अपनी सास की बात सुन माहिरा हैरान गई और सोचने लगी.. क्या राघव के मुझे धोखा देने के लिए भी मैं ही ज़िम्मेदार हूं। अगर उसने मुझे छोड़ पराई औरत की तरफ अपने कदम बढ़ाए हैं तो क्या उसका कसूर मुझ पर जाता है।माहिरा के माता-पिता राघव के साथ प्यार से बात कर उसे समझाना चाह रहे थे पर राघव कुछ भी सुनने के लिए तैयार नहीं था।

अपनी सास की आंखों में अपने लिए घृणा देखकर माहिरा बोली,” जो आप यह बच्चा ना होने का मुझ पर कसूर निकाल रही हैं ज़रा अपने बेटे से भी पूछ कर देखें कि बच्चा क्यों नहीं हो पा रहा।कौन सी औरत है जो मां बनना नहीं चाहेगी।एक बार बहू के अलावा बेटे से भी तो बात की होती।अरे, आपका बेटा धोखेबाज़ है इसने ना सिर्फ मुझे धोखा दिया है बल्कि आपको भी धोखा दे रहा है और साथ ही

साथ इसने अपने धोखे में मुझे भी शामिल किया और  मैंने अपने प्यार की खातिर इसका कहना माना और किसी को यह बात नहीं बताई कि आपका बेटा पिता बनने के काबिल नहीं है।कितने महीनों से मैं आपके ताने सुनती जा रही हूं बिना कोई प्रतिक्रिया के क्योंकि आपको धोखे में रखकर मैं अपने पति का मान बचा रही थी और अपने प्यार की खातिर यह सब कर रही थी पर अब और नहीं अब आपको यह जानना ज़रूरी है कि मेरे घर के टूटने में मैं कसूरवार नहीं बल्कि आपका बेटा है”।

यह सब सुनकर माहिरा के सास ससुर एकदम चुप कर गए थे और राघव का बड़ा भाई भी जो उनके साथ आया था।वह जानता था कि माहिरा एक अच्छी लड़की है पर मां के सामने उसके लिए बोलने की कुछ हिम्मत नहीं हो रही थी और राघव से ऐसी उम्मीद उसे तो बिल्कुल भी नहीं थी।वो रात सब पर बहुत भारी थी। माहिरा के लिए पहली रात भी काली रात बनकर आई थी जिसने उसके पति का असली चेहरा उसके सामने लाकर रख दिया था। 

माहिरा जान नहीं पा रही थी कि उसे कहां चूक हो गई थी जो राघव उस औरत के साथ अपने रिश्ते को बढ़ाना चाहता था।सारी रात माहिरा यही सब सोचती रही.. सुबह उठने पर उसका मन हल्का था।वह फैसला कर चुकी थी कि वह अपने धोखेबाज़ पति के साथ एक पल भी नहीं रहेगी और जीवन में ऐसे धोखेबाज़ पति के लिए दुख मनाने के बजाय आगे बढ़ेगी।उसका डांस स्टूडियो अच्छा चल रहा था और उसके पास अच्छी जमा पूंजी थी जिससे वह मुंबई जैसे घर में भी एक छोटा सा पर अपना घर ले सकती थी।

वह सुबह सो कर उठी और अपने भाई के साथ उसने फोन पर बात की जो कि इस समय 6 महीने के लिए कंपनी की तरफ से विदेश में ट्रेनिंग लेने के लिए गया हुआ था। माहिरा का भाई उसके हर फैसले में उसके साथ था।उसके माता-पिता तो चाहते थे कि वह एक मौका और राघव को दे पर राघव तो उस मौके को लेना ही नहीं चाहता था । 

कुछ देर में माहिरा ने अपना फैसला सबको सुना दिया। “मैं इस शादी से शादी को यहीं खत्म करना चाहती हूं क्योंकि मुझे लगता है मैं इस बंधन को सिर्फ अकेले ही निभा रही थी। राघव तो शायद इसमें कभी था या नहीं कुछ कह नहीं सकते क्योंकि अब मेरा भरोसा उस पर उठ गया है मैं नहीं जानती कि उसने ऐसा क्यों किया और ना ही जानना चाहती हूं क्योंकि अब सवाल जवाब की कोई जगह ही नहीं

बची।मैं इस रिश्ते को और नहीं निभा सकूंगी जिस रिश्ते में अब सिर्फ घुटन ही बची है और राघव भी तो यही चाहता है..इसने तो अपने कदम पहले ही बढ़ा दिए हैं।इसलिए मैं अपना सामान लेकर कुछ दिनों में यहां से चली जाऊंगी और अभी भी मैं इस घर में तो नहीं रहूंगी बल्कि जब तक मुझे मेरा घर नहीं मिलता मैं  अपनी सहेली के घर रह लूंगी। मैं उससे बात कर चुकी हूं”।

सारी बात सुनने और समझने के बाद  उसके माता-पिता ने भी उसके फैसले में उसका समर्थन किया।वह भी अपनी बेटी को खुश देखना चाहते थे।

राघव के माता-पिता निराश हो गए थे।उनके बेटे ने पत्नी के साथ-साथ उनका भी धोखा दिया था और माहिरा अब उसे धोखे से मुक्त हो अपनी नई ज़िंदगी की तरफ कदम बढ़ाने के लिए तैयार थी।

उस काली रात ने माहिरा की ज़िंदगी की दिशा को बिल्कुल पलट कर रख दिया था पर अपनी फैसले को लेकर वह राहत महसूस कर रही थी। 

प्रिया पाठकों ,यह एक सच्ची कहानी है।जिस जीवन साथी पर आपने अटूट विश्वास किया हो उसी से धोखा मिलने पर जीवन की गाड़ी अपनी पटरी से डगमगा तो जाती है पर अगर हिम्मत और समझदारी से काम लिया जाए और अपनों का साथ हो तो जीवन को फिर से जिया जा सकता है।

#स्वरचितएवंमौलिक 

#अप्रकाशित

गीतू महाजन, 

नई दिल्ली।

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