देवकी – अभिलाषा श्रीवास्तव :

 Moral Stories in Hindi

“चाची नहीं छोटी माँ है आप हमारी”

कहते हुए किशन अपनी नई नवेली चाची के गोद में बैठ गयें तो दिपा निश्छल प्रेम से देखतीं रहीं अमर सिंह के परिवार में नई बहू के रूप में साक्षात गृहलक्ष्मी आ चुकीं थीं अत:बिना किसी कलेश के दोनों बेटों का परिवार हंसी खुशी से चलने लगा दिपा किसी भेदभाव के जेठ के बच्चों पे प्रेम लुटाती रहीं

संयुक्त परिवार था अत: आगे की फसल खाद पानी एवं संरक्षण से परिपूर्ण होकर खिल उठा  आखिर दिपा छोटी माँ थी और जेठानी देवकी माँ जिनके कोख से किशन को जन्म लिये थे फिर पालन- पोषण कि सारी जिम्मेदारी दिपा के कंधों पे था उसके लिए तो किशन माँ शब्द बोलने वाले पहला बच्चे थे अत:‌ ममता लुटाती यशोदा बन जाती थी दिपा खैर वक़्त के साथ किशन अपनी दिपा माँ के निश्छल

प्रेम से निकल कर जननी माँ देवकी के गोद में बैठ गयें आखिर जननी तो जननी ही है दिपा खुद के मन को समझा कर जीवन में आगे बढ़ गई लेकिन किशन के शादी के बाद जब उसकी नई नवेली बहू आई तो देवकी से ज्यादा खुश दिपा थी आज उसे भी सास बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और हंसी खुशी से जीवन व्यतीत होने के सपने सजाये प्रफुल्लित थी

संयुक्त परिवार अब बहुत बड़ा हो चुका था

फिर नई नवेली बहू अपर्णा का आगमन उस परिवार के लिए बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा था आखिर संयुक्त परिवार की नींव प्रेम समर्पण भाव लिए खड़ा जो था दिपा अब भी खुद को छोटी माँ ही समझतीं थीं भले उसके गोद में उसके खुद के दो बच्चे थे लेकिन कभी भी किशन को अलग नहीं समझी मगर बहू अपर्णा के आते ही घर का महौल बदलाव लाने लगा शुरू शुरू में तो दिपा हर बात को इग्नोर मारती लेकिन एक दिन जेठानी देवकी सिंह ने कहा

“दिपा अब हमें समाज में अलग हो जाना चाहिए”

“मगर क्यों जी जी”

दिपा ने कहा तो किशन ने बीच में कहा

” छोटी माँ अर्पणा को संयुक्त परिवार में घूटन होता है मतलब हमारे परिवार के चारा सदस्य और आपके परिवार के चार सदस्य फिर दादा दादी अब कौन इतना लेकर चलता है “

“मैं तो सारे दिन के चाकरी से परेशान हो जाती हूँ”

बहू अपर्णा ने कहा तो दिपा व प्रमोद सिंह बिना कुछ बोले सहमति दे दिये

घर दो टूकड़े के बंटवारें में मकान बन गया और दादा दादी दिपा के हिस्से में आ गयें अब किशन के लिए छोटी माँ एक चाची बन गई और बहू अपर्णा के इशारे पे देवकी का घर नाचने लगा रोज बाहर घुमना खाना और मौज मस्ती जिस घर में शायद ही कभी बाहर से खाना आता था वहाँ अब रोज पिज़्ज़ा इत्यादि आने लगा घर में दो कामवाली बाई आ गई  धीरेधीरे बहू अपर्णा उस घर की मालकिन बन गई और देवकी रसोई तो कभी हाथों में पोछा लेकर नज़र आने लगी दिपा उनके जीवन में अब कोई

दखलअंदाजी नहीं करतीं थीं बल्कि एक अनुशासित पडोसी बनकर स्वयं में मस्त रहतीं थीं परिवार छोटा तो दिपा का भी हो गया था अत: जमापूंजी बचत होने लगा था पहले संयुक्त परिवार था तो खर्च भी ज्यादा आतें थे अब परिवार छोटा हुआ तो बचत भी होने लगा अत: दिपा का एक छोटा सा फ्लैट लिया गया और सभी लोग उसमें रहने चले गए अपने इस घर को किराये पे दे दिया गया एक दिन

शाम के वक्त अमर सिंह अपने पत्नी और पोते पोती के साथ फ्लैट में बैठे थे तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया दिपा ने दरवाजा खोल के देखीं तो देवकी अस्त व्यस्त स्थिति में सामने थीं देवकी ने दिपा के गले लग कर रोने लगीं तो दिपा अदंर जेठानी देवकी को लेकर आई बाकी सदस्य मूकदर्शक बने हुए देख रहे थे थोड़ी देर में देवकी ने कहा

“आपलोग के यहाँ आने के बाद बहू अपर्णा ने मेरा जीवन नरक बना दिया उसकी महत्वाकांक्षी स्वभाव के आगे किशन नतमस्तक होकर सभी मांगे पूरी करता जा रहा था अत:कर्ज बढ़ गयें और मैं खुद के घर में कामवाली बाई बनकर रह गई हूँ दिपा चलों पुनः संयुक्त परिवार बनकर रहेगें”

अमर सिंह सारी बातें सुनकर खुद को रोक नहीं पाये और अपनी बड़ी बहू देवकी से बोले

“जिस किशन ने दिपा रूपी यशोदा को स्वार्थ सिद्ध के लिए दो पल में अलग कर दिया वह देवकी को कैसे छोड देता “

देवकी जीजी चुप्पी साधे चुप थी और बाबूजी बोलते जा रहे थे

“बंटवारा मकान का हो तो पुनः जुड़ सकता है लेकिन देवकी तुमने तो मातृत्व विश्वास का बंटवारा किया था!

तुम नें शायद सुना नहीं है

किशन और यशोदा का पुनः मिलन हुआ नहीं था”

कमरे में कोई शब्द वार्तालाप नहीं उठा फिर  देवकी अपने किरदार निभाने किशन के पास जा रहीं थी लेकिन इस बार संयुक्त परिवार की ताकत देखकर मौन थीं।

अभिलाषा श्रीवास्तव

गोरखपुर

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