ईश्वरत्व – लतिका श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

मां तू मेरे पास बैठे रह अपने नन्हे कोमल हाथों से विशाखा का हाथ कस कर पकड़ते हुए अबोध मुन्नू ने कहा तो विशाखा की आँखें भर आईं।

हां हां बिटवा हम यहीं बैठे हैं।अपने बेटू के पास से उठ कर कही ना जायेंगे कहने के बाद विवशता की एक टीस उसके कलेजे को चीर गई ।

मुन्नू का माथा ज्वर से तप रहा था।

कल से बुखार नहीं उतरा है।सुबह सरकारी दवाखाने लेकर गई थी तो डॉक्टर साहब अपने प्राइवेट नर्सिंग होम में भर्ती करने के लिए कह रहे थे।

तुरंत वहां ले जाकर भर्ती कर दो।आज की रात अगर यह बुखार नहीं उतरा तो कल का सबेरा नहीं देख पाएगा डॉक्टर बाबू के कहते ही विशाखा की सांसे ऊपर ही अटक गईं थीं।

साहब मेरे बेटा को कुछ नहीं होगा ।आप बचा लीजिए सूजी गोली दे दीजिए वह फूट फूट कर रोने लगी थी।

कह तो रहा हूं नर्सिंग होम ले चलो वहीं सही तरीके से इलाज हो पाएगा डॉक्टर ने आराम से कहा।

लेकिन साहब जी वहां की फीस ज्यादा होगी सहमे स्वर में विशाखा पूछ बैठी।मन का डर उसकी जुबान पर आ ही गया।

गरीब का सबसे बड़ा डर उसकी गरीबी ही होता है।ये ऐसा डर होता है जो उसे हमेशा लौह जंजीरों की तरह जकड़ कर रखता है।ये जंजीरें उसकी जुबान को खुलने नहीं देती और उसके पैरों को मजबूती से खड़े नहीं होने देती हैं।

फीस की बात पहले करने लगते हो तुम लोगों की यही बुरी आदत है।पैसा भी गांठ से ना जाए और जान भी बच जाए डॉक्टर ने उसकी मजबूरी को नजरअंदाज करते हुए व्यंग्य मारा।

विशाखा को उनका ताना सुनकर बिल्कुल भी बुरा नहीं लगा।ये सब सुनना तो उसकी दिनचर्या के अंग थे।

अभी तो उसे सिर्फ अपने नन्हे मुन्नू की तबियत ठीक होने की चिंता सवार थी।मुन्नू का पिता तो पांच बरस पहले ही उन्हें छोड़ बड़े सहर भाग गया था।अकेली अनपढ़ विशाखा दो चार घरों में काम करके किसी तरह दो जून की रोटी का जुगाड़ कर पाती थी।

मुन्नू की बीमारी ने उसकी थोड़ी बहुत जमा पूंजी भी खत्म कर दी थी।अब तो उसके पास दवा के पैसे भी नहीं थे।उस गरीब को कोई उधार भी नहीं दे रहा था।क्या भरोसा चुका पाए या नहीं सबके मन में यही संदेह था।

नर्सिंग होम का तगड़ा खर्च उसके लिए आकाश कुसुम था।आंखों में बेकसी के आंसू घुमड़ आए।

देखो अब ये आंसू बहा कर मुझे फुसलाने की कोशिश मत करो।अगर इलाज करवाने के पैसे हों तो जमा करो नहीं तो जाओ।मेरा कीमती समय  बर्बाद मत करो डॉक्टर ने हिकारत से कहा।

मानवीय संवेदनाएं धन लोलुपता की भेंट चढ़ चुकीं थीं।

डॉक्टर साहब अपनी गाड़ी में बैठ कर नर्सिंग होम की ओर चले गए थे।

मां मुझे ठीक लगने लगा है अब चल घर ले चल मुझे मुन्नू से मां की  इस कदर बेचारगी देखी नहीं गई तो उसने हिम्मत बटोर कर मां को हिम्मत दिलाने का यत्न किया।

हां बेटा चल चल कहती मां अपने बेटे को गोदी में चढ़ा घर ले आई।डॉक्टर उसे राक्षस ही लग रहा था।

लेकिन घर आते ही मुन्नू की हालत और बिगड़ गई।शाम गहराती गई और रात आ गई।

इतनी काली रात तो विशाखा की जिंदगी में तब भी नहीं आई थी जिस रात उसका पति उसे दुधमुंहे मुन्नू के पास घर में सोता छोड़ चुपचाप भाग गया था।

रात्रि की गहराती कालिमा विशाखा के गहरे दुख और अवसाद को गहराती जा रही थी।ईश्वर  से प्रार्थना करने के अलावा उसके पास कोई अवलम्ब ना था।मुन्नू का हाथ कस कर थाम अवरुद्ध कंठ से आर्तनाद मुखरित होने लगा।क्रंदन के स्वर उसकी झोपड़ी के बाहर तक जा रहे थे।

अचानक दरवाजे पर दस्तक होने लगी।इतनी घोर रात्रि में कौन है।आशंकित हृदय लिए विशाखा किसी तरह दरवाजे तक गई।

दरवाजा खोला तो देखा सामने वही दवा खाने वाले डॉक्टर साहब खड़े हैं।

साहब आप अचरज से इतना ही बोल पाई।

हां मैं वही डॉक्टर जिसकी बात तुमने नहीं मानी थी।चलो अभी नर्सिंग होम । मैं इसलिए तुम्हे ढूंढते हुए आया हूं इतनी दूर डॉक्टर ने आगे बढ़ मुन्नू को संभालते हुए कहा।

लेकिन साहब मेरे पास तो फूटी कौड़ी भी नहीं है किसी तरह विशाखा के मुंह से निकल पाया।

फूटी कौड़ी तो नहीं है लेकिन हीरे से भी ज्यादा अनमोल बेटा है ना तुम्हारे पास चलो अब जल्दी कहते डॉक्टर साहब मुन्नू को उठाए गाड़ी की तरफ बढ़ गए थे।

नर्सिंग होम पहुंचते ही सभी कर्मचारी दौड़ भाग में लग गए।तुरंत एडमिट किया गया। बॉटल,इंजेक्शन,दवाएं इलाज की प्रक्रिया तेजी से होने लगी।

चलिए डॉक्टर साहब आपको बुला रहे हैं।आपका बेटा खतरे से बाहर हो गया है एक कोने में आंखे बंद कर प्रार्थना करती विशाखा को एक नर्स ने आकर कहा तब वह होश में आई।

आंखें खोली तो देखा सुबह का सूरज उजाले की किरण लेकर आ चुका है और रात्रि की कालिमा तिरोहित हो चुकी है।

डॉक्टर साहब आप मेरे लिए ईश्वर बन कर आए हैं आपका एहसान जिंदगी भर नहीं उतार पाऊंगी डॉक्टर के कदमों में लोट गई थी विशाखा।

जो डॉक्टर शाम को राक्षस की भांति लग रहा था अब ईश्वर बन चुका था।

सत्कर्म ही ईश्वरत्व की तरफ ले जाते हैं।

नहीं बहन तुमने मुझे पाप करने से बचा लिया।तुम्हारे जाने के बाद मुझे बेचैनी सी लगने लगी थी।तुम्हारे आंसू तुम्हारी वेदना तुम्हारे बच्चे का मासूम चेहरा मुझे रह रह कर मेरी जिम्मेदारी याद दिलाने लगे थे ।मेरे अंदर का डॉक्टर मुझे उलाहने दे रहा था।तुमसे कहे मेरे कटु वाक्य मुझे कोड़े की भांति पीड़ा देने लगे थे तब मैं अपनी गाड़ी निकाल तुम्हे ढूंढने निकल पड़ा।तुम्हारी व्याकुल प्रार्थना के स्वर बाहर तक आ रहे थे तो मैने तुम्हारा दरवाजा खटखटाया।ईश्वर की कृपा रही तुम्हारा बेटा ठीक हो गया।मेरा एहसान कैसा।और अगर तुम्हे लग रहा है तो आज से तुम यहीं नर्सिंग होम के काम में सहायता करो और यहीं रहो।बेटे को पढ़ाई करने दो उसका सारा खर्च मुझे उठाने दो ….डॉक्टर साहब की बातें विशाखा को किसी चमत्कार की तरह लग रहीं थीं और एक बार फिर उसकी आँखों से आंसुओं की धार बह चली थी।

काली रात#साप्ताहिक कहानी

error: Content is protected !!