काली रात – निशा जैन : Moral Stories in Hindi

“ये क्या मां आप फिर रोने लगी,

जब भी आप ऐसे इमोशनल सीन देखती हो बस रोने लग जाती हो।( सोनल टीवी पर पिता पुत्री के स्नेह को दर्शाता एक सीन देखकर भावुक हो गई)

 अब तो नानाजी को गुजरे हुए भी 10 साल हो गए पर आपका उनको इस तरह रह रह कर याद करना समझ नही आता मुझे”

तनुज अपनी मां सोनल से बोला

“बेटा तू नही समझेगा मेरे मन की कसक जो मुझे दिन रात , मुझे क्या हम चारो भाई बहनों को आत्मग्लानि से भर जाती है कि नानाजी से शायद उस दिन हम चारों में से किसी एक ने भी बात की होती तो वो आज हमे ऐसे छोड़ कर नही जाते।

वो काली रात ऐसे अचानक नहीं आती

जहां एक दिन भी मैं अपने पापा से बात किए बिना नहीं रहती थी जब वो ऐसे बिना बोले ही चले गए तो रुक रुक कर मन में एक टीस उठती है कि शायद हमसे ही गलती हो गई जो पापा को समय रहते इलाज़ नही मिल पाया और वो हमेशा हमेशा के लिए हमे छोड़ कर चले गए …”कहते कहते फूट फूट कर रोने लगी सोनल 

“अरे मम्मी होनी को कौन टाल सकता है? जो होना था वो हो गया पर अब आप खुद का ध्यान रखिए , ऐसे दुखी होकर नानाजी को याद मत कीजिए। सोचो उन्हें भी तो आपको ऐसे देखकर दुख होता होगा” तनुज सोनल को पानी पिलाते हुए बोला

“चल ठीक है अब तू ज्यादा ज्ञान मत बांट , तैयार हो जा तुझे कोचिंग के लिए लेट हो रहा है “सोनल तनुज के लिए कॉफी बनाने और खुद के लिए चाय चढ़ाने किचन में जाते हुए बोली

तनुज कोचिंग के लिए निकल जाता है और सोनल चाय लेकर अतीत की यादों में खो जाती है

“और बेटा कहां तक पहुंची? कब तक आ जाएगी?

“पापा अभी 10 मिनिट्स पहले ही तो बताया था आधा घंटा और लगेगा । आप खाना खा लो , “सोनल कुछ और बोलती उससे पहले ही पापा ने फोन काट दिया।

ये पापा भी न कितना चिंता करते हैं। पल_पल में फोन कर रहे हैं और परेशान हो रहे हैं। अगली बार बिना बताए ही आ जाऊंगी मायके …सोनल अपने आप से ही बतियाने लगी।

जब भी सोनल मायके जाती उसके पापा हर घंटे उसकी खबर लेते कहां पहुंची? कब तक आएगी? तब लाइव लोकेशन शेयर करने वाला ऑप्शन तो था नहीं कि घर बैठे हुए ही पल पल का हिसाब किताब हो। कभी कभी सोनल खीझ उठती और पापा का फोन ही नही उठाती। उसकी बड़ी बहने तो उसी शहर के आस पास में थी पर सोनल के पति की सरकारी नौकरी दूसरे शहर में थी तो उसे बस से आने में 6 घंटे लग जाते थे । जब तक सोनल बच्चों के साथ राज़ी खुशी नही पहुंच जाती उसके पापा की जान उसी में अटकी रहती । और सबसे छोटी बेटी थी तो लाडली भी थी

पापा का नियम था दिन में दो बार अपनी बेटियों के ,उनके ससुराल के हाल चाल पूछते थे और पता लग जाता घर में कोई बीमार है तो फिर दो क्या चार या पांच बार भी फोन कर लेते थे और उनकी इसी आदत से हर कोई उनसे अपनापन रखता था ऊपर से वो अनुभवी सरकारी कंपाउंडर थे तो दवाइयां भी बता देते और सबका इलाज़ मुफ्त में ही कर देते थे। 

सब कुछ बहुत अच्छे से चल रहा था । पापा भी अभी तीन साल पहले ही रिटायर्ड हुए थे तो समय व्यतीत करने के लिए फ्री समाज सेवा करते थे । जिसको जब जरूरत होती उसके लिए इंजेक्शन लगाना, ड्रिप चढ़ाना , बीपी नापना, और कोई सेवा जो उनसे होती खुशी खुशी करते।

पापा बहुत आस्तिक थे इसलिए बाकी समय धर्म ध्यान में लगाते थे।

मम्मी की इच्छा थी कि एक बार तीर्थ यात्रा कर आएं इसलिए पापा और मम्मी ने दो महीने पहले ही दिवाली बाद की टिकट भी करवा ली थी। और बैंक से रुपए निकालकर भी ले आए थे कि धीरे धीरे तैयारी भी करते रहेंगे।

सोचा चौमासे खत्म हो जाएंगे और मौसम भी अच्छा हो जाएगा तो तीर्थ यात्रा के बाद सभी बेटियों के ससुराल जाकर आयेंगे।

वैसे भी चार महीने पापा बहुत धर्म ध्यान करते थे । (जैन धर्म में चातुर्मास का विशेष महत्व होता है।)

पर्यूषण पर्व में तो पापा बेटियों से बात भी रात को ही करते और सभी बच्चे खुद से पापा को दिन में फोन कर हालचाल पूछते ।

 उस दिन भी पर्युषण का दूसरा दिन था , पापा दिन में तीन बार मंदिर जाते थे तो हमेशा ही फ्री होने के बाद रात 8 या9 बजे सबसे फोन पर बात करते। लेकिन उस रात पापा का 9 बजे तक भी फोन नही आया। सोनल ने सोचा बर्तन और साफ कर देती हूं फिर इत्मीनान से बैठकर पापा मम्मी से बात करती हूं। पर उसका मन थोड़ा विचलित जरूर था। 

वो बर्तन मांजने लगी उससे पहले ही फोन बज उठा । सोनल ने फोन उठाते ही बोला” पापा आप सौ साल जीओगे ,मैं मन ही मन आपको याद कर ही रही थी कि आपका फोन आ गया “

पर उधर से अपने भाई को रोता हुआ सुना तो उसके होश उड़ गए

“क्या हुआ , छोटे, क्या हुआ बता तो रो क्यों रहा है?”

“सब ठीक हैं ना… “तब तक फोन पर उसकी बड़ी बहन आ चुकी थी

” सोनल , पापा को हार्ट अटैक आया है।

ऐसा कर तू कल सुबह तक आ जा फिर पापा से यहीं मिल लेना ।”

“पर दीदी आप अचानक क्यों आ गए?”

“अरे मुझे तो यहां शहर में कुछ काम था पापा का पता लगा इसलिए अभी थोड़ी देर पहले ही घर आई थी।

पर तू चिंता मत कर सब ठीक हो जायेगा” कहकर दीदी ने फोन काट दिया 

सोनल को कुछ समझ ही नही आया अचानक हुआ क्या

किससे पूछूं क्या करूं?मन बैचैन हुआ जा रहा था 

तभी उसके पति विशाल का फोन आ गया” सोनल पापा की तबियत खराब है तो कल मिलने चलते हैं सुबह …तुम तैयारी कर लो।” कहकर फोन रख दिया

उसके दिमाग ने काम करना लगभग बंद कर दिया। वो रोती जा रही थी और काम करती जा रही थी। आज की रात उसे काली नजर आ रही थी। चांद और तारों की रोशनी में भी उसे सिर्फ़ अंधेरा ही दिख रहा था

उसके पति विशाल ने मुन्ने को सम्हाला और सोनल ने जल्दबाजी में बैग पैक किया और सुबह जल्दी निकल गए और पहुंच कर घर के सामने का नज़ारा देख कर उसके तो होश ही उड़ गए

 सामने देखा तो घर के बाहर लोगों की भीड़ जमा थी । सबकी आंखे नम थी। अंदर से रोने की आवाजें आ रही थी । सोनल का दिल बैठ गया ।और कदम रुक गए वो गश खाकर गिर पड़ी।

  निशांत उसका भाई अंदर से बाहर आया उसे गोदी में उठाकर अंदर ले गया। उसके मुंह पर पानी छिड़का तब जाकर वो होश में आई। 

  तभी मम्मी सफेद साड़ी में , बिना बिंदी, सिंदूर के सोनल के सामने आई और फूट फूट कर रोने लगी। सोनल को समझते देर नहीं लगी कि उसके मन की बेचैनी उसको क्या कहने की कोशिश कर रही थी।

  सब लोग उसे झूठ बोल रहे थे यहां तक कि विशाल भी …..

  वो उठी और सीधे पापा के शांत हुए शरीर के पास बैठ रोते हुए उनसे बाते करने लगी और लिपट गई।

  साथ में निशांत भी …. दोनो बहन भाई का ऐसा विलाप सुन कोई भी अपने आपको रोने से नही रोक पाया। बहुत ही हृदय विदारक दृश्य बन पड़ा था( पिता का खोना किसी भी संतान के लिए जिंदगी का सबसे बुरा लम्हा होता है जो आज सोनल,उसकी बहने और निशांत के लिए था)

  क्रिया क्रम होने के बाद………

  सोनल चिल्लाई कि उससे अब तक सच क्यों छिपाया गया, वो अपने पापा से कल बात भी नहीं कर पाई थी और अब वो कभी बात नही कर पायेगी ये मन की कसक मुझे हर लम्हा पापा के जाने के दर्द का एहसास कराएगी। कैसी मनहूस काली रात थी कल जो मेरे पापा को मुझसे छीन कर ले गई और फूटफूट कर रो पड़ी

  बहने बोली…” छोटी हमने ही कंवर साहब को मना किया था बताने से, क्योंकि पूरी रात तेरी हालत क्या होती हमें पता है। साथ में छोटा बच्चा … वो तुझे सम्हालते या मुन्ने को

  और रात में आना उचित नही था इसलिए सुबह आने को बोला।”

  “पर पापा को अचानक हुआ क्या ? अभी तो कई महीनों से वो ठीक थे ।”

     सोनल को विश्वास नही हुआ जब मम्मी ने बताया  

” कल शाम,4 बजे से ही पापाजी को पेट दर्द और उल्टी हो रही थी ,सोचा खाने पीने से बदहजमी हो गई है, या फिर व्रत उपवास चल रहे हैं तो शायद उससे कुछ फर्क पड़ गया है तो पापाजी ने दवाइयां लिख कर मुझे दे दी और किसी से मंगवाने को बोल दिया था 

(पापा खुद कंपाउंडर थे तो अपने लिए दवाई लिख कर दे दी) मैने मंगवा कर दे दी पर कुछ ज्यादा आराम नही मिला तो  मैने बोला एक बार हॉस्पिटल चलकर डॉक्टर साहब से  चेक अप करवा लेते हैं , पर तुम्हारे पापा ठहरे जिद्दी इंसान  नही गए हॉस्पिटल और घर पर ही एक ड्रिप मंगवाकर पास ही के  अन्नू को बुलाकर चढ़ा ली(अन्नू उसका पड़ोसी था जो कंपाउंडर भी था हॉस्पिटल में) पर दर्द कम होने की बजाय बढ़ता जा रहा था तो चिंता के मारे मुझे भी तुम बहनों को और निशांत को फोन करने की बात दिमाग में नही आई।( निशांत भी दूसरे शहर में नौकरी कर रहा था) मम्मी अब फूट फूट कर रोने लगी……

मैने किसी तरह पड़ौसियों को बुलाया , वो उन्हें अस्पताल लेकर गए तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

शायद मेरी गलती रह गई जो पापा को समय पर इलाज़ नही मिला , तुम बच्चों को एक बार फोन कर देती तो शायद पापा … “मम्मी रोते हुए बोलती जा रही थी 

बाहर डॉक्टर अंकल ने बताया पापाजी को जो दर्द था वो अटैक की वजह से हुआ था , उन्हे पता नही चला और वो नॉर्मल पेट दर्द की दवाई लेते रहे  यदि टाइम रहते होस्पिटलाइज हो जाते तो और टाइम पर इलाज मिल जाता तो शायद आज वो सबके बीच होते 

ये सुनकर सब भाई बहन खुद को कोसने लगे कि क्यों पापा के फोन का इंतजार किया ?

क्यों आगे से किसी ने भी उन्हें फोन नही किया?

पापा अपने बच्चों की मन की बात बिना बताए समझ जाते थे और हम लोग उनके इस दर्द में उनके साथ नही थे। अब कौन बार बार फोन करके परेशान करेगा, कौन हमे लाड़ जताएगा कहते हुए तीनों बहनें लिपट कर रोने लगी।

(दोनों बहने पास के ही शहर में थी तो पता चलते ही आ गई पर सोनल दूर रहती थी इसलिए उसे किसी ने सच बताया नहीं बस विशाल को पता था पर उसने भी उसे झूठ बोल दिया ये सोचकर कि सोनल को वो कैसे संभालेगा। वो पापा की बहुत लाडली थी और पूरी रात काटना उसके लिए भारी पड़ जाता)

काश उस दिन समय से एक फोन कर लिया होता तो जिंदगी कुछ और होती और ये उजाली रात , ऐसे काली रात नहीं बनती ऐसे ये सोचकर अब सब मायूस और दुखी थे।

 (काश एक ऐसा शब्द है जो दर्द से भरा हुआ है और जिंदगी में समय पर कुछ नही करने का मलाल जेहन में हमेशा ताजा रखता है।)

पूरा अतीत सोनल की आंखों के आगे चलचित्र की भांति घूम गया ।

अब पापा की आवाज़ सुनने के लिए उसके कान तरसते हैं । मायके जाती है तो कोई बार बार फोन करके उसे परेशान नहीं करता । उसकी ये इच्छा कि काश वो पापा से एक बार बोल पाती अब अधूरी इच्छा बनकर रह गई है और मन की कसक आज दस साल बाद भी जस की तस बनी हुई है।

अचानक फोन की घंटी बजने लगी_ट्रिन.. ट्रिन…

फोन की घंटी से सोनल चौंक कर वर्तमान में आ गई और मां का फोन देखते ही खुद को सामान्य कर बोली

“हां मां कैसी हो…..और बाते करती गई।

 अब तीनों बहनें अपनी मां से रोजाना बात करना नही भूलती ये सोचकर कि कहीं किसी दिन बात न हो और मां भी पापा की तरह उन्हें छोड़ कर चली जाए ।

पापा तो चले गए पर उस काली रात की यादें अब भी सोनल को उस दुख से उबरने नहीं देती। कभी कभी बरबस ही सोनल की आँखें अपने पापा की याद में नम हो जाती हैं।

दोस्तों दुर्भाग्य से मेरे पापा भी अब मेरे साथ नही है पर उनकी दी हुई शिक्षाएं और संस्कार उनके साथ रहने का एहसास हर पल दिलाते है और ….. और जब भी मैं किसी पापा को उनकी बेटी के साथ देखती हूं तो बड़ी खुश हो जाती हुं और दुआ करती हूं कि ऐसी काली रात का साया भी किसी संतान पर नहीं पड़े ।

(पिता को खोने का दुख शायद मुझसे बेहतर कोई नहीं जानता….😭😭😭)

निशा जैन

साप्ताहिक विषय #काली रात

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