समझदारी – पूनम अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

“बेटा , शाम को ऑफिस से आज जल्दी आ जाना । कोई तुम्हें देखने आने वाले हैं ”  पिता की आवाज सुन कर रागिनी के पैर ठिठक गये । वह माँ के पास जा कर बोली ” ऐसी भी क्या जल्दी है माँ ” । माँ ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा और कहा , जल्दी क्या बेटा ? अच्छा घरबार है । लड़का भी अच्छी

जगह  काम करता है । इसलिए मुझे तो कोई बुराई नजर नहीं आती । और फिर जरूरी भी तो नहीं कि बात बन ही जाऐ । क्या तुम किसी और को पसन्द करती हो तो बताओ  । रागिनी बोली कि ऐसा तो कुछ नहीं माँ लेकिन हाँ , मेरे ऑफिस के पास जो दूसरा ऑफिस है न माँ , वहाँ  एक  लड़का है 

जो मुझे अच्छा लगता है । मैंने कभी उससे बात नहीं की । कभी कभी लिफ्ट में मिल जाता है बस।  और मैं उसके बारे में कुछ नहीं जानती । माँ बोली , ठीक है । जब तुम कुछ जानती ही नहीं उसके बारे में , तो कोई बात ही नहीं । आज जल्दी आ जाओ , बात बनती है तो ठीक है नहीं तो मैं और तुम्हरे पिता जी उसके घर हो आएंगे।  

        ऑफिस में रागिनी ने जल्दी जल्दी अपना काम समाप्त किया और घर के लिये चल दी । लिफ्ट में अचानक वह लड़का भी घर मिला । रागिनी के मन में विचार आया कि लो आज इसको भी जल्दी ही घर जाना है क्या ?   शाम को ऑफिस से जल्दी ही रागिनी  घर आ गयी । हल्के फिरोजी रंग की

शिफाॅन की साड़ी पहन कर हल्का मेकअप कर बालों का ढीला सा जूड़ा बना लिया । माँ ने भी नाश्ते की सारी तैयारी कर रखी थी  ।  शाम को नियत समय पर  मेहमान आ गये । लड़के के माता पिता , बहन और खुद लड़का । कुल चार लोग आये । औपचारिक बातों का सिलसिला शुरू हुआ । कुछ

समय बाद रागिनी का भाई       को    रागिनी  को बुलाने  आ  गया ।  रागिनी ने जाकर  सबको नमस्ते की और बैठ गई  । सभी आपस में बातें कर रहे थे  कि रागिनी ने निगाह उठा कर लड़के को देखना चाहा  तो दोनों की नजरें मिलीं तो वह मुस्कुरा दिया ।  अरे! यह तो वही है , देख रागिनी के मन में

घण्टी बजने लगी ।  रागिनी ने माँ की तरफ देखा तो माँ भी रागिनी का प्रफुल्लित चेहरा देख  मुस्कुरा  दी  । तब रागिनी को सब समझ आ गया कि इन बच्चु  जी ने अपने घर वालों को सब बता दिया है  इसीलिये ये रिश्ता लेकर आये । बात बन गयी थी और सभी एक दूसरे को बधाई दे रहे थे ।

स्वरचित 

पूनम अग्रवाल , मेरठ

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