मातृ सुख – खुशी :  Moral Stories in Hindi

नीति एक मस्तमौला लड़की थी उसे कोई जिम्मेदारी नहीं लेनी होती उसकी मां शारदा उसे कई बार कहती ससुराल में जब सास चोटी पकड़ के काम कराएगी तब समझ आएगा।नीति हंसते हुए कहती मै तो ऐसा घर ढूंढेंगी जिथे सास फोटो टंगी हो।शारदा बेशर्म कैसी बाते करती हैं।नीति के पिता मोहन जी एक अकाउंटेंट थे मां सरला एक गृहिणी घर में नीति जो एम टेक कंप्यूटर्स के फाइनल ईयर में थी और उसका भाई नमन एक लॉयर था।नमन के लिए लड़की तलाश रहे थे तो शारदा चाहती थीं कि

नीति के हाथ भी पीले कर दिए जाएं। नमन के लिए आरती का रिश्ता आया जो स्कूल में अध्यापिका थीं। आरती एक सुलझी हुई लड़की थी उसकी और नमन की सोच भी मिलती थी। इसीलिए यह रिश्ता पक्का हो गया और आरती और नमन की शादी हो गई शादी के बाद सब ठीक चल रहा था 6 महीने बाद आरती ने खुश खबरी सुनाई ।घर में सब खुश थे सिर्फ नीति को छोड़ कर वो आरती से बोली

आरती भाभी अभी तो घूमने फिरने और ऐश के दिन है कहा इस जिम्मेदारी में फंस रही हो पूरी जिंदगी पड़ी है यह बोझ ढोने के लिए आरती बोली नीति ऐसा नहीं कहते  जब तुम मां बनोगी तब समझ आएगा। नीति बोली ना बाबा ना इतनी जल्दी जिम्मेदारी मैं तो नहीं लूंगी। इसी बीच नीति का पोस्ट ग्रेजुएशन कंप्लीट हो गया और उसे नौकरी लग गई उसके साथ काम करने वाला अनिल उसे

पसंद था एक ही जात बिरादरी के होने के कारण विवाह में कोई परेशानी नहीं हुई और नीति की शादी हो गई और उसके 20  दिन बाद ही आरती ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया दादी दादा

आरती और नमन बहुत खुश थे इतने सालों बाद छोटा बच्चा  घर में आया था तो वो सबकी आंखों का तारा था उसी के आस पास सब घूमते रहते इसी कारण नीति को फोन भी कम होते इसी बात से नीति

गुस्सा हो गई। एक हफ्ते बाद सब सेटल होने पर शारदा ने उसे फोन किया और बोली अरे तू बुआ बन गई और अपनी भतीजी को देखने नहीं आई ।नीति बोली हा आप तो उस बच्चे में ही लगे रहो मुझे घर से बाहर निकाल कर उस में मस्त है पिछले दस दिन से फोन भी नहीं किया।शारदा बोली तो तू आजाती तेरा भी तो फ़र्ज़ है तू अपनी भतीजी से नहीं मिलेगी ।नीति बोली देखती हूं शाम को शाम को

नीति और अनिल शाम को घर आए सबने अच्छे से सत्कार किया नीति बोली आरती भाभी कहा है।शारदा बोली वो कमजोर है अपने कमरे में है जा तू मिल ले ।नीति अंदर गई बोली आरती कैसी हो।

आरती बोली ठीक हूं देखो कहा था ना मैंने किस मुसीबत में फंस गई कितनी कमजोर लग रही हो।आरती बोली ऐसा नहीं कहते देखो तुम्हारी भतीजी तुम जैसी है।नीति बोली मुझे डर लगता है उसने दूर से ही देखा पर अनिल ने बड़े प्यार से उस छोटी सी गुड़िया को उठाया। कुछ दिनों बाद बच्ची का

नामकरण किया गया उसका नाम रेवा रखा गया। वहां से लौटते वक्त क।र में  अनिल के माता-पिता बोले अब तुम्हें भी बच्चों के बारे में सोचना चाहिए। नीति बोली मैं अभी से जिम्मेदारी में नहीं पड़ना चाहती मुझे थोड़ा समय चहिए। बात आई गई हो गई नीति की शादी को 2 साल हो गए अब जब वो

रेवा की शरारतें देखती तो उसका मन भी करता की वो मां बने उसने ये बात अनिल से की अनिल को बच्चे पसंद थे।परंतु कई महीनों बाद भी नीति गर्भवती ना हो सकी ।शारदा उसे डॉक्टर के पास ले गई वहां पता चला नीति को किसी परेशानी के कारण गर्भ धारण करने में परेशानी हो रही है।इलाज हुआ दिन भी रहे पर कुछ कारण से गर्भ ना रह सका।नीति बहुत परेशान रहती छोटी सी रेवा के नन्हे नन्हे

हाथ पकड़ कर उसे ऐसा लगता कि इन हाथों में पूरी दुनिया है और उसकी दुनिया अधूरी है। नीति आरती को कहती मैने आपको उल्टा सीधा बोला था ना इस लिए भगवान ने मुझे सजा दी।आरती कहती ऐसा कुछ नहीं है इधर नीति की बेसब्री बढ़ रही थी और कुछ हो नहीं रहा था।इसी बीच आरती फिर गर्भवती हुई इस बार उसे जुड़वां बच्चे थे।आरती को देख नीति को अपनी लाचारी पर रोना आता वो अब अपने घर भी कम जाती उसे लगता हर निगाह उसे देख रही है इसी तरह 4 महीने बीते एक

दिन आरती ने अनिल और नीति को घर बुलाया और बोली मैने एक फैसला किया है मेरी और नमन की दुनिया रेवा से पूरी थी।परंतु ईश्वर ने मुझे इस बार दो खुशियों से नवाजा है और मैं अपनी खुशी आप लोगों के साथ साझा करना चाहती हूं मै अपना एक बच्चा नीति को दूंगी ताकि वो भी मातृ सुख का आनंद ले सके।मैने कोई उपकार नहीं किया है मैने दूसरा चांस ही सिर्फ नीति के लिए लिया है और

मेरी यह विनती है ये बात यहां से बाहर ना जाए नीति तुम दिन रहने की खबर फैला दो हम दूसरी जगह जा कर डिलीवरी करवा लेगे मेरी डॉक्टर से बात भी हो गई है।नीति और आरती शारदा जी के साथ आरती के मायके आ गई नीयत समय पर आरती ने दो बच्चों को जन्म दिया एक बेटा एक बेटी।नीति बोली भाभी मै बेटी लूंगी और उसे आप जैसा बनाउगी।आप जैसी महानता और त्याग मुझमें नहीं है।आरती बोली नीति अब ये तुम्हारी बेटी है जैसे मर्जी करो।नीति के ससुराल से सब आए सब खुश थे

कि दोनों घरों में खुशियां आई दोनो बच्चों का नाम करण हुआ।रेवती और रुद्राक्ष बच्चों के नाम रखे गए।नीति रेवती को ले अपने घर लौट गई।आरती के शारदा जी ने हाथ पकड़ लिए बोली बेटी तेरा उपकार जैसे उतारू ।आरती बोली मां कोई उपकार नहीं जिस दिन मै डॉक्टर के पास गई थी वही मुझे डॉक्टर ने बताया कि नीति के मां बनने की उम्मीद शून्य है और मै गर्भवती थी और मेरे गर्भ में दो शिशु थे जो शायद ईश्वर नीति को देना चाहते थे इसलिए आज वो मां बनी है ना तो उसे पता चल गया है कि मातृ सुख क्या होता है।

शारदा ने आरती को गले लगा लिया और नमन अपनी पत्नी की सूझबूझ का कायल हो गया।

स्वरचित कहानी 

आपकी सखी 

खुशी

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