किराया दो या घर खाली कर दो – डॉ बीना कुण्डलिया  :  Moral Stories in Hindi

शकुन्तला जी कमर में हाथ रखे हाथों में दवाई का बंडल लिए धीरे धीरे अपने घर की तरफ वापस लौट रहीं थी। साफ जाहिर हो रहा था उनके कमर में पीड़ा और वो अस्पताल से आ रही हैं। घर के कुछ दूरी पर रास्ते में चार महिलाएं उनको देख आपस में धीरे धीरे फुसफुसाने, बड़बड़ाने लगीं एक थोड़ा

तीव्र आवाज में बोली- वो देखो शकुन्तला देवी बड़ी ही कठोर, वाहियात किस्म की महिला है ये भी, तीन मंजिला मकान की मालकिन और इकलौते बेटे बहु इनके, उनसे भी मकान का किराया वसूल करती हैँ । इनकी बहु बेचारी बता रही थी एक दिन रो रोकर बड़े ही साफ़ साफ़ शब्दों में कह दिया इन्होंने उनको, मुझे मकान का ‘किराया दो या घर खाली कर दो ‘! 

बातें सुनकर एक महिला जो शायद अभी नई नई आई होगी मोहल्ले में इस जानकारी से अनभिज्ञ बोली राम जाने कैसा दिल इस महिला का भई हम तो अपने बच्चों पर जान देते और वो भी हमारी बहुत इज्जत करते। अब अपने ही बच्चों से किराया कौन वसुलेगा भला ? इंसान कमाता जोड़ता भला किन के लिए है ?

जब चारों महिलाएं आपस में फुसफुसाहट कर रही पास से गुजरते शकुन्तला जी ने पल भर रूककर उन सब की तरफ देखा कमर में हाथ रखकर पीठ को थोड़ा सीधा किया और सीधे खड़े होकर बोली हाँ बिल्कुल सही कहा आप सब ने, मैंने कहा था अपने बहु बेटे को ‘किराया दो या घर खाली कर दो ‘ उन्होंने किराया देना मंजूर किया मै लेती हूँ उनसे किराया…. क्योंकि जब…

“ दिल के रास्ते में दीवारें और चटकनियां लग जाती है तो ऐसे फैसले लेने पड़ते हैं। रिश्ते दिल से निभाये जाते हैं और दिल के रास्ते में दीवारें नहीं होती वहां जाने आने के लिए जब खटखटाहट की जरूरत पड़ने लगे तो किराया लेने में मुझे कोई बुराई नजर नहीं आती “ ।

फिर शकुंतला जी उस महिला की तरफ इशारा करके थोड़ा कड़ी आवाज में बोली उससे, जो उनका सबको परिचय सभी महिलाओं को ऊँची आवाज में दे रही थी….हाँ तो बिमला जी तुम्हारी बहु ने जो तुमको धक्के मारकर घर से कई बार बाहर निकाल दिया और तुम दो दो दिन मन्दिर के बाहर चबूतरे

पर पड़ी रहती हो वो तो गनीमत तुम्हारे अड़ोस-पड़ोस के लोग बहु बेटे को समझा बुझाकर तुमको घर में प्रवेश करवा देते हैं। ये सब बातें तुम कैसे भूल सकती हो ? अरी बिमला जो तुम्हारी हालत वो ही हालत मेरी भी होने वाली थी। मेरे बहु बेटे ने भी मुझे धक्के मारकर घर से निकालने की पूरी तैयारी

कर ली थी। वो तो मैं पढ़ी लिखी कानूनी ज्ञान है मुझे अरे मैं भी अपने समय की बारहवीं पास हूँ..  तो बहु बेटे को जवाब दे दिया जैसे ही बहु ने मुझे घर से निकालने की धमकी दी मैंने भी कहा ये मेरा घर है या तो ‘किराया दो या घर खाली कर दो ‘ और बिमला बहन तुमने क्या किया ? लाड़ प्यार में चापलूस बहु के चक्कर में आकर अपना मकान ही उनके नाम कर दिया फिर परिणाम अपनी दुर्दशा देख चुकी हो नतीजा क्या हुआ ? सब तुम्हारे  सामने तुम देख ही रही हो अच्छे से ।

मेरा वो सामने तीन मंजिला मकान शकुन्तला जी ने सामने मकान की तरफ इशारा किया जिसके नीचे के हिस्से में मेरे पति और मैं रहते सबसे ऊपर बहु बेटे बीच का सेट बहु का भाई जो यही हमारे घर पर रह कोई ट्रेनिंग कर रहा था वही रहता अब जब मेरे पति का देहांत हुआ तब से बहु की नजर मेरे

नीचे वाले कमरे में पड़ी है कह रही उसको जरूरत है इसलिए मुझे स्टोर रूम में शिफ्ट होने पर जोर डाल रही जो दूसरी मंजिल पर है । अब मैं कमर दर्द से वैसे ही परेशान कहा सीढ़ियां ऊपर नीचे दौड़ती फिरूंगी । मैंने जैसे ही मना किया तो मुझे घर से धक्के मारकर निकालने की धमकी देने लगी मेरी बहु । 

बेटा जो पहले मेरी सुनता इज्जत देता बहु के कहने पर चलने लगा मेरे साथ अन्याय होता देखकर भी कुछ नहीं बोलता मुंह पर चुप्पी साधे रहता ।

 तो क्या करती ?  दो ही आप्शन मेरे पास या तो दर दर की ठोकरें खाती फिरती या बहु बेटे से किराया लेकर कठोर वाहियात माँ का किरदार निभा लिया। जब तक जिंदा हूँ खुद को बेघर नहीं होने देने वाली मैं…अब ये बात अलग है जो पैसा उनसे किराये के रूप में मिलता मैं पोते पोतियों के लिए कपड़े लत्ते अपनी मर्जी से खरीद दे देती हूँ लेकिन किराये के मामले में पक्की हूँ वो तो हर हाल में मुझे चाहिए ही चाहिए।

सब सुनकर नई पड़ोसन बोली- बहन आप तो बहुत ही समझदार निकलीं वो बिमला जी की तरफ देखकर बोलती है इस तरह बिना सोचे-विचारे ताक-झांक करके दूसरो की बातों में आकर किसी के विषय में बातें बनाना कहा तक सही है ? 

आप शकुन्तला जी की पड़ोसन है आप उनसे मिलकर सच्चाई भी तो जान सकती थी। 

तब बिमला जी आँखों में आँसू भरकर भरभराते हुए गले के साथ बोली – 

“क्या बताऊं बहन, अब मैं तुम सबको “

 मै तो किस्मत की मारी दर दर ठोकरें खाती फिरती रहती हूँ ।

पति तो बरसों पहले साथ छोड गये अपना बड़ा सा मकान हमारा  किराये पर मकान दिया अच्छा किराया आ जाता बेटा नौकरी करने लगा शादी होते ही बहु शालिनी शुरू शुरू में इतना अच्छा व्यवहार करती मुझे लगा भगवान से बेटी मांगा करती थी वो तो उसने नहीं दी हाँ खुशी हुई बहु के रूप में जैसे बेटी दे दी हो । मैंने अपना घर बार गहने जेवर सभी उसके कहने पर धीरे धीरे उसको सौंप दिए अब मुझे क्या पता वो सब इनको हासिल करने की ताक लगाये थी । 

जब उसने देखा अब मेरे पास कुछ नहीं बचा तो उसने मुझ पर अत्याचार करना शुरू कर दिया रात की बासी रोटी सब्जी पकड़ा देती कभी कभी तो वो भी नसीब नहीं होती मैं मंदिर में प्रसाद खाकर समय काटने लगी । बहु मुझसे घर के काम करवाती बात बात पर झगड़ती घर से निकाल देती ।

 बेटा भी सब देखता मगर पत्नी को कुछ नहीं कहता बदले में मुझे ही फटकार देता था।

सभी बिमला जी की बातें सुनकर दया और करुणा भरी नजरों से उनकी तरफ देखते हैं। शकुन्तला जी उनको आश्वासन देती है बिमला बहन चिंता न करें सोचते हैं कुछ तुम्हारे बारे में भी।समय तो लगेगा मगर न्याय मिलेगा जरूर।

 नई पड़ोसन शकुन्तला जी को कहती हैं बहन मुझे आपसे मिलकर बहुत खुशी हुई हम आपके पीछे वाले मकान में आयें है हमने हाल में ही खरीदा है वो तीन मंजिला मकान मेरे पति सरकारी नौकरी पर थे हम सरकारी मकान में ही रहते थे।अब वो रिटायर हो गये तो वो सरकारी मकान खाली करना पड़ा हमने ये खरीद लिया दो बेटे हैं हमारे ऊपर के सैट में वो रहते नीचे मैं और मेरे पति रहते। 

पहले मेरी दोनों बहुओं में खिचखिच रहती काम धाम खाने पीने को लेकर तो हमने यहां किचन भी सबकी अलग-अलग करवा दी सब अपनी अपनी पसंद का बनाते हैं जब मन हुआ आपस में शेयर कर लेते हैं। हमें ज्यादा तर कभी एक बहु कभी दूसरी बहु नाश्ता खाना दे जाती है मगर मैंने भी अपनी किचन रखी हुई है जब जिस चीज का मन हुआ बनाती हूँ खुद भी खाती हूँ और सबको खिला भी देती हूँ। सभी खुश हैं हमें और क्या चाहिए ? 

सभी एक दूसरे के दुख सुख में शरीक हो जाते हैं। कभी किसी को इधर उधर जाना हो तो दूसरा एक दूसरे के परिवार की देखभाल कर लेता है ।एक बेटी है हमारी आते रहते बेटी दामाद बच्चे जब वो या कोई और मेहमान आता तो सब कुछ न कुछ बना नीचे हाल में बिछे डाइनिंग टेबल पर मिलकर बैठकर खाते हैं। कोई त्यौहार घर में कोई फंक्शन तो हम सभी मिलजुल खाते मनाते हैं। अब तो सदा ही घर का माहौल सुखद बना रहता है। लडाई झगडे का कोई मतलब ही नहीं।

पड़ोसन की बातें सुनकर शकुन्तला जी बोलीं बहुत खुश नसीब हो बहन आप । 

कोशिश तो मैंने भी बहुत की थी मेरा घर बना रहे घर में सुख शांति समृद्धि बनी रहे ।

 मगर मेरी बहु को समझना समझाना बहुत मुश्किल था इसलिए मजबूरन मुझे यह कदम उठाना पड़ा साफ कहना पड़ा ‘किराया दो या मकान खाली कर दो’ बहु को मकान खाली करना महंगा लगा उसने किराया देना सही समझा तो ठीक है जैसे बच्चों की मर्जी शकुन्तला जी कहकर एक बार तो धीरे से मुस्कुराई फिर थोड़ी नरमी से बोली- 

अरे बहन कौन माँ कठोर, वाहियात होती है ? मजबूरी सब करवा देती है। दो ही तरीके थे मेरे पास या तो वो मुझे धक्के देकर घर से निकाल देते या फिर मैंने किराया वसूल कर कठोर माँ की भूमिका निभाई । जब तक जिंदा हूँ मकान अपने ही पास रखूंगीं बाद में तो सब इन्हीं बहु बेटे का हो जाना है

साथ तो कुछ ले जाना नहीं है मैंने।सब यहीं छोड़कर जाना है। मगर कम से कम तब तक अक्ल तो ठिकाने पर रहेगी उन दोनों की । अब तुम सब बताओं बहनों आखिर मैंने क्या ग़लत किया ?

शकुन्तला जी की बातें सुनकर चारों महिलाएं ने सहमति से सर हिलाया बोली शकुन्तला बहन आप कहीं गलत नहीं है। आपने बहुत समझदारी से काम लिया। मगर तब बिमला जी सबके सामने अपने को थोड़ा संकुचित लज्जित महसूस कर रहीं थीं । 

लेखिका डॉ बीना कुण्डलिया 

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