गहराती रात में सड़क किनारे लगे पेड़ के नीचे वह पगली ना जाने कहां से आकर बैठ गई थी।बिल्कुल सुनसान सड़क पर शायद किसी का ध्यान उसकी तरफ गया ही ना होगा।अगली सुबह सब्ज़ी लेते वक्त अचानक निर्मला जी की निगाह उस पर पड़ी।मैले कुचैले कपड़े पहने, बिखरे बाल और बेतरतीब अवस्था में वह वहां बैठी हुई थी।किसी ने शायद तरस खाकर उसे कुछ खाने को दिया था।जब निर्मला जी की नज़र उस पर पड़ी थी तो उसे खाते देख ऐसा लगा जैसे उसने काफी दिनों से कुछ नहीं खाया था।खाना खाते वक्त भी उसकी निगाहें आसपास घूम रही थी जैसे खुद को आश्वस्त कर रही हो कि उससे यह खाना कोई नहीं छीनेगा।
सब्जी वाले से पूछने पर उसने बताया,” पता नहीं बीबी जी, कहां से आकर बैठ गई है कुछ पूछते हैं तो आगे से मारने को दौड़ती है इसीलिए आसपास के ठेले वालों ने इसे कुछ नहीं कहा।सुबह सामने वाले मंदिर के पंडित जी ने भी इससे कुछ पूछने की कोशिश की तो इसने उन पर भी पत्थर फेंकने शुरू कर दिए।कहां से आई और कौन है किसी को कुछ नहीं पता।यह तो मंदिर में भंडारा लगाने आई एक बीबी जी इसे प्रसाद पकड़ा गई हैं।
सब्ज़ी लेकर निर्मला जी घर आई और मन ही मन उस औरत के बारे में सोचती रही। दो-तीन दिनों बाद जब फिर से वह वहां सब्ज़ी लेने गई तो देखा कि कुछ बच्चे उसे परेशान कर रहे थे।निर्मला जी के डांटने पर वे बच्चे वहां से भाग गए।निर्मला जी ने कुछ फल लेकर उसे खाने को दिए।उस स्त्री की आंखों में अपने प्रति कृतज्ञता के भाव देखकर निर्मला जी की उस से कुछ बात करने की इच्छा हुई पर उसे फल खाने में व्यस्त देख वह चुप्पी लगा गई।
अब तो आते जाते निर्मला जी का ध्यान उसकी तरफ चला जाता।गली मोहल्ले में भी उसके बारे में बातें होने लगी। वह कभी गली में नहीं आती.. हैरानी की बात थी कि निर्मला जी के अलावा वह किसी स्त्री को भी अपने पास फटकने नहीं देती… दूर से ही गुर्राने लगती या फिर पत्थर फेंकती।निर्मला जी हाथ से इशारा करती तो वह शांत हो जाती।
न जाने किस बात का गुस्सा, डर और नफ़रत भरी थी उसके मन में।निर्मला जी उसके मन के भीतर छिपी बातों से उसके बारे में जानना चाहती थी पर हमेशा कुछ भी पूछने पर वह कोई जवाब ना देती।उसके बारे में तरह-तरह की बातें होती कि शायद किसी ने धोखा दिया हो या फिर ससुराल वालों ने निकाल दिया होगा या फिर किसी अनहोनी का शिकार ना हो गई हो वह बेचारी।जितने मुंह उतनी बातें पर उसकी पहचान के बारे में रहस्य लगातार बना रहा।
उसे वहां आए लगभग 15 दिन बीत चुके थे।निर्मला जी ने उसे साफ कपड़े भी पहनने को दिए और उन्हें वह सार्वजनिक स्नान घर में जाकर बदल आई थी।साफ सुथरे कपड़े पहन उसका रूप ही निकल आया था..लगता था जैसे किसी भले घर की हो पर वह कभी कुछ ना बोलती।पेड़ के नीचे सारा दिन बैठी रहती और रात को मंदिर की सीढ़ियों पर सो जाती।फिर एक दिन निर्मला जी रिक्शा से उतरी तो बाज़ार में उन्होंने कुछ शोर सुना तो देखा तो वहां बहुत भीड़ इकट्ठी हुई थी।
निर्मला जी को सब्ज़ी वाले ने बताया कि वह पगली कुछ देर से ही अजीब अजीब हरकतें कर रही थी.. कभी किसी ठेले वाले को खींचती तो कभी मंदिर के बाहर जाकर शोर मचाती पर सब ने उसकी तरफ ध्यान ना दिया क्योंकि सबको लगता था यह पगली औरत ऐसे ही शोर मचा रही है पर फिर न जाने कैसे चौंक पार कर वह चौराहा है ना.. वहां पर खड़े पुलिस वाले को खींचकर अपने साथ ले आई और पीछे बने खंडहर की ओर इशारा कर ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगी।कुछ बता नहीं पा रही थी बस इशारा कर रही थी।उस पुलिस वाले को देख सब उसके पास इकट्ठे हो गए और खंडहर की तरफ उसे इशारा करते देख सबने वहां जाने का सलाह दी।
जब सब वहां पहुंचे तो देखा एक युवा लड़की को कुछ लोगों ने वहां बांध कर रखा था।लड़की को खोला गया तो उसने बताया कि कुछ देर पहले ही वह पिछला पुल पार कर रही थी जहां से कुछ लोग उसे गाड़ी में उठाकर यहां ले आए और यहां बांध दिया।जब उस लड़की को खोला गया तो पगली ने सबसे पहले उसे अपनी बाहों में भर लिया और ज़ोर-ज़ोर से रोने लग पड़ी और उसके ऊपर हाथ फेरती रही जैसे जानना चाह रही हो कि वह ठीक है।जब लड़की ने आश्वासन दिया कि उसे कुछ नहीं हुआ तो यह पगली पुलिस वाले के पैरों में गिर गई।हर कोई हैरान था कि जहां किसी को उस लड़की के बारे में पता नहीं चला वहीं इस पगली ने कैसे जान लिया और फिर कैसे सबको इकट्ठा कर उस बच्ची की जान और इज्ज़त को बचा लिया”।
सब्ज़ी वाले के इतना बताते ही निर्मला जी भीड़ को चीरकर आगे गई तो उन्हें देख झट से वह पगली उनके गले लग गई और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी।निर्मला जी के सिर पर हाथ फेरने से वह कुछ शांत हुई।उन्होंने उसे मंदिर की सीढ़ियों पर बिठाया और उसे पानी पिलाते हुए कुछ पूछने लगी।
उसके बारे में कुछ-कुछ रहस्य निर्मला जी को शायद समझ आ रहा था पर वह उसके मुंह से सुनना चाहती थी पर वह पगली अभी भी मौन बैठी थी।कुछ देर बाद वह निर्मला जी की तरफ देखकर धीरे से बोली,” मैडम, मैंने ठीक किया ना”।
” हां.. बिल्कुल ठीक किया पर अब तुम्हारा यहां रहना खतरे से खाली नहीं।वह लड़के कभी भी तुम पर हमला कर सकते हैं..कहां से आई हो.. अपने बारे में कुछ तो बताओ” निर्मला जी के इतना कहते ही वह फिर से चुप हो गई और शून्य में ताकती रही।निर्मला जी समझ गई थी कि वह अपनी पहचान का रहस्य किसी के साथ सांझा नहीं करना चाहती या शायद वह अभी इसके लिए तैयार नहीं थी।
निर्मला जी ने कुछ सोचा और अपनी एक सहेली को फोन किया जो बेसहारा औरतों के लिए एक एनजीओ चलाती थी।कुछ देर बाद निर्मला जी उसे लेकर अपनी सहेली के सामने खड़ी थी।आज से तुम यहीं रहोगी..यह तो मैं बहुत पहले ही करना चाहती थी पर तुम किसी को अपने पास ही नहीं आने दे रही थी पर अब लगता है सही वक्त आ गया है.. तुम यहां पर महफूज़ हो”।
निर्मला जी की तरफ देख उस पगली ने हाथ जोड़ दिए और उसकी आंखों से झर झर आंसू बहने लगे।उसे वहां छोड़ निर्मला जी उस रहस्य के साथ वापिस आ गई जो अभी भी उन्हें कचोट रहा था कि वो कौन थी और कहां से आई थी पर निर्मला जी चाहती थी कि वह उस पगली की इच्छा का सम्मान रखें और तब तक इंतज़ार करें जब तक वह अपना रहस्य खुद नहीं बताना चाहती।उन्हें पूरी उम्मीद थी कि वो कौन थी का रहस्य जल्द ही उनके सामने खुल जाएगा।
उनकी सोच सही साबित हुई जब कुछ दिनों बाद उनकी सहेली का फोन आया और वह उनसे मिलने गई।वहां उस पगली औरत का रूप देख वह बिल्कुल हैरान रह गई थी।अब वह एक अच्छे घर की भली महिला लग रही थी जिसमें थोड़ा सा आत्मविश्वास भी आ चुका था।सहेली से बात करने के बाद वह उससे मिली तो उस पगली लड़की ने उनके हाथ पकड़ कर कहा,” मैडम, मैं आज आपको अपने बारे में सब बताना चाहती हूं मेरा नाम रमा है और मैं यहां से काफी दूर एक गांव में रहती थी।मेरी शादी एक संयुक्त परिवार में हुई थी ।मायके वालों के विपरीत ससुराल वाले अच्छे खासे संपन्न परिवार से थे पर मुझे जब शादी के 3 साल बाद भी बच्चा नहीं हुआ तो ससुराल वालों ने प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। मैं मायके भी नहीं जा सकती थी क्योंकि माता-पिता रहे नहीं थे और भाई के ऊपर बोझ नहीं बनना चाहती थी सोचती थी कभी ना कभी सब ठीक हो जाएगा पर मेरी यह गलती थी एक दिन मुझसे छुटकारा पाने के लिए और अपने बेटे का दूसरा ब्याह करने के लिए मेरे ससुराल वालों ने मुझे शहर में ले जाकर किसी के हाथों बेच दिया और वहां से मेरी किस्मत की काली रात शुरू हुई।
मैं छटपटाती पर कुछ कर नहीं पा रही थी। सोचती कि ससुराल वाले इतना कैसे गिर सकते हैं।फिर एक दिन मौका देखकर मैं वहां से भाग गई काफी देर छुपती छुपाती.. कितने दिन बिना कुछ खाए पिए मैं इस कस्बे में पहुंच गई।यहां पर सब मुझे पगली समझने लगे तो मैंने भी वही रूप धारण कर लिया।अपनी इज़्ज़त और जान बचाने के लिए मुझे यही सही लगा।कोई भी मुझसे बात करने की कोशिश करता या पास आता तो मैं उसे पत्थर मारती जिससे वह मुझे सच में पागल समझे पर उस दिन उस लड़की को बचाकर मुझे बहुत ही आत्म संतुष्टि हुई और आपकी आंखों में मैंने हमेशा अपने लिए दया के साथ-साथ प्यार भी देखा और आज आपकी वजह से ही मैं यहां पर एक अच्छा जीवन जीने की कोशिश कर रही हूं।
मैं सिलाई का काम अच्छे से जानती हूं इसलिए एनजीओ की अध्यक्षा ने मेरे लिए दो-चार जगह काम की बात की है..जल्दी ही कोई ना कोई काम करना शुरू कर दूंगी।रमा की आत्मविश्वास से भरी बातों से निर्मला जी का मन प्रसन्न हो गया..लगा..जैसे किसी की ज़िंदगी संवारने की उनकी थोड़ी सी चेष्टा भी आज उनकी आत्मा संतुष्टि का कारण बन गई थी।
सच में कभी-कभी किसी के लिए करना कुछ कर पाना कितना संतोषजनक होता है।यही सोचते हुए निर्मला जी रमा से फिर से मिलने का वादा कर वापस आ गई। वो कौन थी का रहस्य अब खुल चुका था और वो पगली लड़की एक आत्मविश्वासी महिला की तरह ज़िंदगी में आगे बढ़ने के लिए तैयार थी।
#स्वरचितएवंमौलिक
गीतू महाजन,
नई दिल्ली।